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गुरुवार, 24 सितंबर 2009

ध्या‍न: परम संवेदना--

मैं चाहता हूं कि तुम्‍हारा जीवन
संवेदनशील हो, गहन संवेदना से भरा हो।
और इसी सारी संवेदना के बीच में
ध्‍यान की संवेदना पैदा होती है।
ध्‍यान परम संवेदना का नाम है।
जब तुम्‍हारी सारी इंद्रियाँ अपनी समग्रता में,
अपनी परिपूर्णता में सक्रिय होती है।
जागरूक होती है, तो उन्‍ही सबके बीच में
एक नया फूल खिलता है,
जिसका तुम्‍हें अब तक कोई भी पता नहीं था।
मगर उसी भूमिका में वह फूल खिलता है—वह है ध्‍यान।
ध्‍यान का अर्थ है: जीवन के गहनतम की संवेदना।
जीवन में जो रहस्‍यपूर्ण है, उसकी संवेदना।
जो आंखों से नहीं दिखार्इ पड़ता, वह भी दिखाई पड़ने लगे: तो ध्‍यान।
जो कान से नहीं सुनाई पड़ता, वह भी सुनाई पड़ने लगे : तो ध्‍यान।
जो हाथ से नहीं छुआ जा सकता, उसका भी स्‍पर्श होने लगे: तो ध्‍यान।
ध्‍यान तुम्‍हारी सारी संवेदनाओं का सार-निचोड़ है।

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