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मंगलवार, 15 सितंबर 2009

सूर्योदय की प्रतीक्षा ‘’ध्यान’’


सूर्योदय से बस पंद्रह मिनट पहले, जब आकाश में हलका सा प्रकाश फैलने लगे तब सिर्फ देखे और प्रतीक्षा करें। जैसे कि कोई प्रियतम की प्रतीक्षा करता है—व्यापग्रता से, गहरी प्रतीक्षा में, आशा से भरे हुए और उतेजित—लेकिन फिर भी शांत। और बस सूरज को उगने दें और देखते रहें। अपलक देखने की कोई जरूरत नहीं, आप अपनी पलकें झपका भी सकते हैं। बस सूरज को उगता देखते रहें और ऐसा भाव करें कि साथ ही साथ कोई चीज भीतर भी उग रही है। जब सूरज क्षितिज पर आए, तब भाव करें कि वह प्रकाश-बिंदु नाभि के पास ही है। वहां सूरज क्षितिज पर ऊपर आ रहा है, और यहां, ना‍भि के भीतर, वह ऊपर आ रहा है, धीरे-धीरे ऊपर आ रहा है। वहां सूर्योदय हो रहा है और यहां प्रकाश का एक अंतर् बिंदु उदय हो रहा है। बस दस मिनट काफी है। फिर अपनी आंखे बंद कर लें। जब पहले आप सूरज को खुली आंखों से देखते हैं तो उसका एक प्रतिचित्र, ‘निगेटिव’ बनता है, इसलिए जब अपनी आंखें बंद कर लेते हैं, तो आप सूरज को भीतर जगमगाते हुए देख सकते हैं। और वह आपको बहुत ही आश्चूर्यजनक रूप से बदल जाएगा।

ओशो—( आरेंज बुक)

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