साधुता—‘’’बिन बाती बिन तेल’’
साधुता अकेले हो सकती है।
 क्योंकि साधुता ऐसा दीया है,
क्योंकि साधुता ऐसा दीया है,
असाधुता अकेले नहीं हो सकती।  
उसके लिए दूसरों का तेल और बाती  
और सहारा सब कुछ चाहिए।  
असाधुता एक सामाजिक संबंध है।  
साधुता असंगता का नाम है।  
वह कोई संबंध नहीं है,  
वह कोई रिलेशनशिप नहीं है।  
वह तुम्हारे अकेले होने का मजा है।  
इसलिए साधु एकांत खोजता है, असाधु भीड़ खोजता है,  
असाधु एकांत में भी चला जाए तो कल्पना से भीड़ में होता है।  
साधु भीड़ में भी खड़ा रहे तो भी अकेला होता है।  
क्योंकि एक सत्य उसे दिखाई पड़ गया है।  
कि जो भी मेरे पास मेरे अकेलेपन में है,  
वहीं मेरी संपदा है।  
जो दूसरे की मौजूदगी से मुझमें होता है,  
वही असत्य है, वही माया है।  
वह वास्तविक नहीं है।  
 
 
 
          
      
 
  
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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