कुल पेज दृश्य

सोमवार, 14 सितंबर 2009

चंद्रमा को देखना—‘ध्यान’


अगली बार जब पूर्णिमा आने वाली हो, तो तीन दिन पहले से यह ध्यान शुरू कर दें। बाहर खुले में चले जाएं, चाँद को देखें और झूमना शुरू कर दें। भाव करें कि आपने सब कुछ चाँद पर छोड़ दिया है—चाँद के नशे में हो जाएं। चाँद को देखे, अपने को ढीला छोड़ दें और उसे कह दें कि आप राज़ी हैं, और उसे जो करना हो करें। फिर भी जो होता हो, होने दें। यदि आपको झूमने जैसा लगे तो झूमें। यदि आपको नाचने का या गाने का भाव हो तो नाचें-गाएं। लेकिन सब कुछ ऐसे होना चाहिए जैसे कि आप करने बाले नहीं हैं—आप कर्ता नहीं हैं—यह सब बस हो रहा है। आप एक बांसुरी हैं। जिसे कोई बजा रहा है। पूर्णिमा से पहले तीन दिन इसे करें। और जैसे-जैसे चाँद पूरा होता चला जाएगा, आप और-और ऊर्जा अनुभव करेंगे, आप और-और मदहोश अनुभव करेंगे। पूर्णिमा की रात तक तो आप पूरे पागल हो जाएंगे। एक घंटे के नृत्यआ और मदहोशी से ही आप इतना महसूस करेंगे जितना कि पहले आपने कभी महसूस नहीं किया होगा।
ओशो—( आरेंज बुक )

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें