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सोमवार, 14 सितंबर 2009

साधारण चाय का आनंद—ध्या‍न


क्षण-क्षण जीए। तीन सप्ताकह के लिए कोशिश करे कि जो भी आप कर रहे हैं, उसे जीवनी समग्रता से सके: उसे प्रेम से करे और उसका आनंद लें। हो सकता है यह मूर्खतापूर्ण लगे। यदि आप चाय पी रहे है, तो उसमें इतना आनंद लेना मूर्खतापूर्ण लगता है—कि यह तो साधारण सी चाय है। लेकिन साधारण सी चाय भी असाधारण रूप से सौंदर्यपूण हो सक्ती है—यदि हम उसका
आनंद लें—चाय बनाना.....केतली की आवज सुनना, फिर चाय उड़ेलना....उसकी सुगंध लेना: चाय का स्वािद लेना और ताजगी अनुभव करना। मुर्दे चाय नहीं पी सकते। केवल अति-जीवंत व्य क्ति ही चाय पी सकते हैं। इस क्षण हम जीवित है, इस क्षण हम चाय का आनंद ले रहे हैं। और भविष्यव की मत सोचें: अगला क्षण अपनी फिक्र कर लेगा। कल की चिंता न लें—तीन सप्तािह के लिए वर्तमान में जीए। ओशो---(आरेंज बुक)

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