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रविवार, 13 सितंबर 2009

गर्भ की शांति


मौन को अपना ध्याधन बनने दे।जब भी आपको समय मिले, मौन में सिमट कर बैठ जाएं—और सच में यही मेरा मतलब है: सिमट जाएं—जैसे कि आप अपनी मां के गर्भ में एक छोटे से बच्चें है। फिर धीर-धीरे आपको लगेगा कि अपना सर जमीन पर टिका दें। तब सर को जमीन पर टिक जाने दें। गर्भ की मुद्रा में आ जाएं, जैसे कि बच्चा मां के गर्भ में सिकुड़ा रहता है। और तत्क्षनण आप अनुभव करेंगे कि शांति उतर रही है, वही शांति जो मां के गर्भ में थी। तो अपने बिस्तेर में कंबल के नीचे, गर्भ में बच्चेह की तरह गुड़ीमुड़ी हो जाएं और शांत-मौन, बिना कुछ किए स्थिर पड़े रहें। कुछ विचार कभी-कभी आएंगे, उन्हेंत आने दें, आप उदासीन बने रहें, उसमें कोई दिलचस्पीा न लें। यदि वे आएं तो ठीक; न आएं तो ठीक। उनसे लड़़ें नहीं, उन्हेंन धक्काक देकर भगाएं नहीं। यदि आप लड़े़ंगे, तो आप विचलित हो जाएंगे। अगर आप उन्हें धक्कान दे कर भगाएंगे तो वो और-और आएंगे। अगर आप चाहेंगे कि वे न आएं, तो वे भी जिद्ध में आ जाएंगे। आप तो बस उनके प्रति उदासीन रहें। उन्हेंप वहां परिधि पर चलने दें, जैसे कि ट्रैफिक का शोर हो रहा हो। और सच में वह ट्रैफिक का शोर ही है—मस्तिष्के की लाखों कोशिकाओं का ट्रैफिक जो एक-दूसरे के साथ संपर्क कर रही है और ऊर्जा घूम रही है, विद्युत एक कोशिका से दूसरी कोशिका में छलांग लगा रही है। वह एक बड़ी मशीन की गूँज जैसी ही है। तो उसे चलेने दें। आप उसके प्रति बिलकुल तटस्थ रहें। आपको उससे कुछ लेना-देना नहीं है। वह आपकी समस्याक नहीं है, दूसरे की समस्याो हो सकती है, लेकिन आप की नहीं है। आपको उससे क्याक लेना-देना, और आप हैरान हो जाएंगे—ऐसे क्षण आएंगे जब वह शोर खो जाएगा, बिलकुल खो जाएगा और आप स्वायं में स्थिर अकेले बचे रहेंगे।
ओशो ( ध्या‍न विज्ञान )

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