प्यारे
ओशो,
हमारे
और गुलाब कली
के,
बीच समान
क्या है जो
कंपती है क्योंकि
ओस की एक बूंद
उस पर पड़ी हुई
है?
यह
सच है : हम जीवन
को प्रेम करते
हैं इसलिए नहीं
क्योंकि हम
जीने के आदी
हो गये हैं
बल्कि इसलिए
क्योकि हम
प्रेम करने के
आदी हो गये
हैं प्रेम में
हमेशा एक
प्रकार का
पागलपन है।
लेकिन उस
पागलपन में
हमेशा एक
प्रकार की पद्धति
भी है
और
मेरे देखेभी
जो जीवन को
प्रेम करते
हैं ऐसा
प्रतीत होता
है कि
तितलियां और
पानी के बबूले
और मनुष्यों
में जो कुछ भी
उनके जैसा है
आनंद के बारे
में सर्वाधिक
जानते हैं। इन
हल्की— फुल्की
नासमझ
सुकुमार
भावनामय
नन्हीं आत्माओं
को इधर— उधर पर फड़फडाते
देखना —
जरथुस्त्र को
इतना
प्रभावित
करता है कि आंसू
आ जाते हैं और
गीत फूट पड़ते
है।
मैं
केवल ऐसे
ईश्वर में
यकीन कर सकता
हूं जिसने समझ
लिया हो कि
नाचना कैसे।
वह
पूछ रहे हैं, हमारे
और गुलाब की
कली के बीच
समान क्या है
जो कंपती है
क्योंकि ओस की
एक बूंद उस पर
पड़ी हुई है?
जीवन
के लिए कोई
कारण नहीं है।
यही
है जो गुलाब
की कली के साथ
समान है। गौतम
बुद्ध यह नहीं
कहेंगे; न ही
महावीर, न
जीसस, न
मोजेज कतेंगे।
वे सब के सब
तुम्हें कारण
देंगे, लक्ष्य,
उद्देश्य; क्योंकि वही
तुम्हारे मन
को अच्छा लगता
है। यह सच है :
हम जीवन को
प्रेम करते
हैं इसलिए नहीं
क्योकि हम
जीने के आदी
हो गये हैं — एक
आदत की तरह
नहीं — बल्कि
इसलिए क्योकि
हम प्रेम करने
के आदी हो गये
हैं।
जोर
स्मरण रखना है
: हम जीवन को
प्रेम करते
हैं इसलिए
नहीं क्योकि
हम जीने के
आदी हो गये है।
तुम नहीं कह
सकते कि 'मैं
सत्तर वर्षों
से जीवित रहा
हूं अब यह एक पुरानी
आदत बन गयी है,
यही कारण है
कि मैं जीए
चला जाता हूं
यही कारण hऐ
कि मैं जीते
रहना चाहता
हूं क्योंकि
पुरानी आदत को
छोड़ना बहुत
कठिन है। '
नहीं, जीवन
आदत नहीं है।
तुम जीवन को
प्रेम करते हो,
इसलिए नहीं
क्योंकि तुम
जीने के
अभ्यस्त हो गये
हो, बल्कि
इसलिए
क्योंकि हम
प्रेम करने के
आदी हो गये
हैं।
जीवन
के बिना कोई
प्रेम न होगा।
जीवन एक अवसर
है : भूमि, जिसमें
प्रेम के
गुलाब खिलते
हैं। प्रेम
स्वयं में
बहुमूल्य है;
उसका कोई
उद्देश्य
नहीं होता, उसका कोई
अर्थ नहीं
होता। उसकी
अपरिसीम
महत्ता है; उसमें महान
हर्षोल्लास
है; उसकी
अपनी ही
अलमस्ती है —
लेकिन वे अर्थ
नहीं हैं।
प्रेम कोई
व्यापार नहीं
है जिसमें
उद्देश्यों, लक्ष्यों का
कोई महत्व हो।
प्रेम
में हमेशा एक
प्रकार का
पागलपन है। और
वह पागलपन
क्या है? पागलपन
यह है कि तुम
सिद्ध नहीं कर
सकते कि क्यों
तुम प्रेम
करते हो? तुम
अपने प्रेम के
लिए कोई
तर्कपूर्ण
जवाब नहीं दे
सकते।
तुम
कह सकते हो कि
तुम अमुक
व्यापार करते
हो क्योंकि
तुम्हें
रुपये—पैसों
की जरूरत है; रुपये—पैसों
की जरूरत है
क्योंकि
तुम्हें एक
मकान की जरूरत
है; मकान
की जरूरत है
क्योंकि मकान
के बिना तुम
रहोगे कहौ? तुम्हारे
सामान्य जीवन
में, हर
चीज का कोई
उद्देश्य है;
लेकिन
प्रेम — तुम
कोई कारण नहीं
दे सकते उसके
लिए। तुम बस
इतना ही कह
सकते हो, 'मुझे
कुछ पता नहीं।
इतना ही मैं
जानता हूं कि
प्रेम करना
अपने भीतर
सर्वाधिक सुंदर
मनोभूमि की
अनुभूति करना
है। ' लेकिन
यह कोई ' उद्देश्य
न हुआ। वह
मनोभूमि
मस्तिष्कगत
नहीं है। वह
मनोभूमि किसी
उपयोगी वस्तु
में नहीं परिवर्तित
की जा सकती।
वह मनोभूमि
फिर एक बार
गुलाब की कली
है, जिसके
ऊपर मोती की
तरह चमकता
उपकण है। और
प्रातकालीन
मंद समीर में
और सूरज के
प्रकाश में
गुलाब की कली
नाच रही है।
प्रेम
तुम्हारे
जीवन का नृत्य
है।
इसलिए
जो लोग नहीं
जानते कि
प्रेम क्या है
वे जीवन के
नृत्य से ही
चूक गये हैं; वे
गुलाब उगाने
के अवसर से ही
चूक गये हैं।
यही कारण है
कि सांसारिक
मन को, हिसाबी—किताबी
मन को, संगणकीय
मन को, गणितज्ञ
को, अर्थशास्त्री
को, राजनीतिक
को प्रेम एक
प्रकार का
पागलपन प्रतीत
होता है।
प्रेम
में हमेशा एक
प्रकार का
पागलपन है।
लेकिन उस
पागलपन में
हमेशा एक
प्रकार की
पद्धति भी है।
यह
वक्तव्य इतना
सुंदर है, इतना
विलक्षण।
जिन्होंने
कभी प्रेम का
अनुभव नहीं
किया है उन्हें
प्रेम पागलपन
जैसा प्रतीत
होता है।
लेकिन उनके
लिए जो प्रेम
को जानते हैं,
प्रेम ही
एकमात्र
स्वस्थचित्तता
है। प्रेम के
बिना, कोई
व्यक्ति अमीर
हो सकता है, स्वस्थ हो
सकता है, सुप्रसिद्ध
हो सकता है, लेकिन वह
स्वस्थचित्त
नहीं हो सकता
क्योंकि उसे
अंतरस्थ
मूल्यों का
कोई पता नहीं
है।
स्वस्थचित्तता
कुछ भी नहीं
केवल
तुम्हारे हृदय
में खिल रहे
गुलाबों की
सुवास है।
जरथुस्त्र के
पास महान
अंतर्दृष्टि
है जब वह कहते
हैं, 'लेकिन
यह पागलपन, प्रेम के
रूप में जाना
जानेवाला
पागलपन, सदा
ही एक प्रकार
की पद्धति लिए
हुए है; यह
सामान्य
पागलपन नहीं
है। '
प्रेमियों
को
मनस्विकित्सकीय
उपचार की जरूरत
नहीं होती।
प्रेम का अपना
ही ढंग है।
दरअसल, प्रेम
जीवन में
महानतम
स्वस्थकारी
शक्ति है। जो
इससे चूक गये
हैं वे रिक्त
रह गये हैं, अ—कृतकृत्य।
सामान्य
पागलपन में
कोई पद्धति
नहीं होती, लेकिन प्रेम
कहलानेवाले
पागलपन में एक
प्रकार की
पद्धति होती
है। और वह
पद्धति क्या
है? वह
तुम्हें
हषोंल्लसित
करता है, वह
तुम्हारे
जीवन को एक
गीत बना देता
है, वह
तुममें एक महा
भद्रता लाता
है।
क्या
तुमने लोगों
को देखा है? जब
कोई व्यक्ति
प्रेम में
पड़ता है तो
उसे इसकी
घोषणा करने की
जरूरत नहीं
होती। तुम देख
सकते हो कि
उसकी आखों में
एक नयी गहराई
उतर आयी है।
तुम उसके
चेहरे में एक
नया प्रसाद, एक नया
सौंदर्य देख
सकते हो। तुम
उसकी चाल में
एक सूक्ष्म
नृत्य देख
सकते हो। वह
वही व्यक्ति
है, लेकिन
फिर भी वह वही
व्यक्ति नहीं
है। प्रेम ने
उसके जीवन में
प्रवेश किया
है, उसके
प्राणों में
बसंत आ गया है,
उसकी आत्मा
में फूल खिल
गये हैं।
केवल
ये ही तीन
चीजें हैं जो
तुम्हारे
जीवन की
प्रमुख
घटनाएं हो
सकती हैं : जन्म, प्रेम
और मृत्यु।
जन्म पर
तुम्हारा
नियंत्रण
नहीं है —
तुम्हारा
अपना ही जन्म;
कोई तुमसे
पूछता नहीं, बस एक दिन
तुम अपने आपको
पैदा हो गया
पाते हो। और
मृत्यु के साथ
भी वही घटता
है — वह भी
तुमसे पूछती
नहीं : 'क्या
तुम तैयार हो?
कल मैं आ
रही हूं। ' कोई
पूर्व सूचना
नहीं; बस
अचानक वह आती
है और तुम मृत
हो।
केवल
प्रेम ही इन
दोनों के बीच
खड़ी
स्वतंत्रता
है। उसे भी
समाज ने तुमसे
छीन लेने की
कोशिश कि है, ताकि
तुम्हारा
समूचा जीवन बस
एक यात्रिक
चर्या भर बन
जाए।
इन
हल्की— फुल्की
नासमझ
सुकुमार
भावनामय
नन्हीं आत्माओं
को इधर—उधर पर
फडूफडाते
देखना —
जरथुस्त्र को
इतना
प्रभावित
करता है कि
आसू आ जाते
हैं और गीत
फूट पड़ते हैं।
वह
कह रहे हैं, कि
पानी के
बबूलों को
देखना, तितलियों
को देखना, गुलाब
की कलियों को
हवा में तैचते
देखना — ऐसी
हल्की—फुल्की,
गैर—गंभीर..
तुम उन्हें
नासमझ, सुकुमार,
भावनामय भी
कह सकते हो..
नन्हीं
आत्माओं को इधर—उधर
पर
फ्लूच्छाते
देखना, यही
वह बात है जो
जरथुस्त्र को
आसुओ और गीतों
तक द्रवित
करती है। उनके
आसू आनंद के
हैं, कि
जीवन इतना
जीवंत है कि
वह स्थायी
नहीं हो सकता —
केवल मृत
चीजें ही
स्थायी हो
सकती हैं।
जितनी ज्यादा
जीवंत कोई
वस्तु होती है
उतनी ही
ज्यादा
परिवर्तनशील
वह होती है।
यह हर तरफ
फैला
परिवर्तनशील
जीवन आनंद के
आसू लाता है
जरथुस्त्र को,
गाने के लिए
गीत लाता है।
और
वह अपना
केंद्रीय
वक्तव्य देते
हैं : मैं केवल
ऐसे ईश्वर में
यकीन कर सकता
हूं जिसने समझ
लिया हो कि
नाचना कैसे।
उन्हें किसी
अन्य तर्क की
आवश्यकता
नहीं है; उन्हें
किसी अन्य
प्रमाण, किसी
अन्य सुबूत की
जरूरत नहीं है;
सारा कुछ जो
वह जानना
चाहते हैं, वह इतना कि :
क्या
तुम्हारा
ईश्वर नाच
सकता है? क्या
तुम्हारा
ईश्वर प्रेम
कर सकता है? क्या
तुम्हारा
ईश्वर गीत गा
सकता है? क्या
तुम्हारा
ईश्वर
तितलियों के
पीछे दौड़ सकता
है? क्या
तुम्हारा
ईश्वर जंगली
फूल इकट्ठे कर
सकता और आनंद
ले सकता है, आसुओ से और
गीतों से? तब
वह तैयार हैं
ऐसे ईश्वर को
स्वीकार करने
के लिए, क्योंकि
ऐसा ईश्वर
सच्चे अर्थों
में जीवन का प्रतिनिधि
होगा, ऐसा
ईश्वर अन्य
कुछ नहीं
बल्कि स्वयं
जीवन होगा।
.........ऐसा
जरथुस्त्र ने
कहा।
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