प्यारे
ओशो,
...
अब मैं सर्वाधिक
बुरी बातों को
तराजू पर
रखूंगा और
उनको भलीभांति
और
मानवीयता
सहित तौलूंगा.........
ऐंद्रिक
सुख,
शक्ति की
लिप्सा, स्वार्थपरायणता
: ये तीन अब तक
सर्वाधिक
कोसे गये हैं
और सबसे बुरी
तथा सर्वाधिक
अन्यायपूर्ण
ख्याति में
रखे गये हैं —
इन तीनों को
मैं भलीभांति
और
मानवीयता
सहित तौलूंगा
ऐंद्रिक
सुख : एक मीठा
जहर केवल
मुरझा गये
लोगों के लिए
लेकिन सिंह—
संकल्पी के
लिए महा
पुष्टिकर और
सम्मानपूर्वक
परिरक्षित की
गयी शराबों की
शराब ।
ऐंद्रिक
सुख : महान
प्रतीकात्मक
सुख एक उच्चतर
सुख और
उर्च्चतम आशा
का....
शक्ति
की लिप्सा :
इसकी निगाह के
सामने मनुष्य
रेगंता है और
झुकता है और
एड़ी— चोटी का
पसीना एक करता
है और सूअर
अथवा सांप से
भी नीचा बनता
है — जब तक कि
अंतत: विशाल
घृणा की चीख
उससे फूट नहीं
पड़ती....
शक्ति
की लिप्सा : जो
कि बहरहाल बड़े
सम्मोहक रूप
से उठती है
पवित्र व एकांतवासी
तक को और
आत्मनिर्भर
ऊचाइयों तक एक
ऐसे प्रेम की
तरह दमकती हुई
जो सांसारिक
स्वर्गों पर
लुभावने
रूप से
नीललोहित
(पर्पल)
खुशियां उकेरता
है ।
शक्ति
की लिप्सा :
लेकिन. कहेगा
इसे लिप्सा, जब
कि शक्ति के
पीछे ऊंचाई
नीचे हकने की
अभीप्सा करती
है! सच में ऐसी
अभीप्सा और
अवरोह (उतार)
में रूग्णता और
लिप्सा नहीं
है।
चाहे
व्यक्ति
ईश्वरों और
दैवी
पादप्रहारों के
समक्ष
खुशामदी हो,
अथवा मनुष्यों
और उनकी तुच्छ
रायों के
समक्ष '' यह
सब प्रकार के
गुलामों पर
थूकती है यह
यशस्वी स्वार्थपरनायणता!..... ... स्वार्थपरायणता
का दुरुपयोग
करना — ठीक वही
सद्गुण रहा
है। और सद्गुण
कहा गया है ।
और 'निःस्वार्थ'
— वही है जो
भले कारणों से
ये सारे
दुनिया से थके
हारे कायर...
होने की
अभिलाषा करते
थे!
लेकिन
अब वह दिन वह
रूपांतरण वह
फैसले की तलवार
वह महा
मध्याह्न
वेला उन सब पर
आती है : तब
बहुत सी बातें
खुलासा होंगी!
और वह जो
अहंकार को स्वस्थ
व पवित्र
घोषित करता है
और
स्वार्थपरायणता
को यशस्वी — सच
में वह एक
पैगंबर उसे भी
घोषित करता है
जो वह जानता
है : 'लो, वह
आती है, वह
निकट
है, महा
मध्याह्न
वेला!'
...
ऐसा
जरमुस्त्र ने
कहा ।
जरथुस्त्र
के पूर्व, और
उनके बाद भी, समस्त
शिक्षकों ने
चीजों को बहुत
पूर्वाग्रहयुक्त
चित्त से देखा
है । उन्होंने
हर अनुभव के
बहु—आयामीपन
को अनुमति
नहीं दी है ।
उन्होंने एक आयाम—विशेष
थोप दिया है
और मनुष्य के
चित्त को
संस्कारित कर
दिया है चीजों
को एक ढंग—विशेष
से देखने के
लिए ।
जरथुस्त्र का
महान योगदान
यह है कि वह
मनुष्य की मदद
करते हैं
चीजों को नये
ढंग से देखने
के लिए —
सर्वथा नये, ताजे, और
महान उद्बोधक
ढंग से देखने
के लिए । कभी—कभी
तुम स्तब्ध रह
जाओगे, क्योंकि
वह तुम्हारे
पूर्वाग्रहों
के खिलाफ बात
कर रहे होंगे
। तुम्हें
अपने समस्त
पूर्वाग्रहों
को एक किनारे
रख देने के
लिए पर्याप्त
साहसी होना
होगा ।
महान
अंतर्दृष्टि
वाले इस
व्यक्ति को
समझने के लिए, जो
चीजों को किसी
पूर्वनिर्धारित
सिद्धात—विशेष
के अनुसार
नहीं देखता, बल्कि चीजों
को वैसे ही
देखता है जैसी
वे हैं अपने
आप में... वह कोई
अर्थ नहीं थोपता,
उलटे यह पता
करने की कोशिश
करता है : क्या
स्वयं चीजों
में ही कोई
अर्थ छिपा है?
वह बहुत
वस्तुगत, बहुत
यथार्थवादी
और नितांत
स्वस्थचित्त
हैं । वह किसी
विचार से
मनोग्रस्त
(आब्सेस्ड )
नहीं हैं और
वह किसी
प्रकार के
दर्शन अथवा धर्म—विशेष
का प्रतिपादन
नहीं करना
चाहते हैं ।
उनकी
पहुंच का
मार्ग इतना
समग्र रूप से
भिन्न है । वह
तुम्हें
सिखाते हैं कि
कैसे
स्पष्टता से
देखना । वह
तुम्हें नहीं
सिखाते कि
क्या देखना, वह
केवल इतना
सिखाते हैं कि
कैसे
स्पष्टता से देखना
।
तुम्हारे
देखने की
स्पष्टता ही
तुम्हें सत्य
से मिला देगी
। वह तुम्हें
सत्य
हस्तांतरित
नहीं करने जा
रहे हैं
तैयारशुदा
चीज के समान ।
वह नहीं चाहते
कि सत्य इतना
सस्ता हो । और
कोई भी चीज जो
बहुत सस्ती हो
सच नहीं हो
सकती । सत्य
मांग करता है
तुम्हारे एक
जुआरी होने की
ताकि तुम सब कुछ
दाव पर लगाने
का जोखिम उठा
सको । सत्य
तुम्हारी
मालिकियत
नहीं बन सकता
। उलटे, यदि
तुम सत्य की
मालिकियत में
आने को तैयार
हो, केवल
तभी वह
तुम्हें मिल
सकता है ।
इस
शाम वह जो कुछ
कहने जा रहे
हैं वह सभी
धर्मों से, सभी
तथाकथित
नैतिकताओ से
इतना विपरीत
है कि जब तक
तुम अपने
चित्त को
रास्ते से अलग
ही न हटा दो
तुम उन्हें
सुनने में
समर्थ न होओगे
और तुम समझने
में समर्थ न
होओगे । और वह
तुम्हारी राह
पर हीरे फेंक
रहे हैं ।
लेकिन तुम अंधे
बने रह सकते
हो; तुम
अपनी आंखें
बंद रख सकते
हो ताकि
तुम्हारे
पूर्वनिर्धारित
विश्वासों
में बाधा न
पहुंचे ।
वह
तुम्हें बाधा पहुंचाने
पर आमादा हैं —
क्योंकि जब तक
तुम्हें बाधा
न पहुंचे तुम
हिल—डुल ही
नहीं सकते, तुम
आगे बढ़ ही
नहीं सकते; तुम्हारे
पास सुदूर
सितारों तक
पहुंचने की उत्तेजना
ही नहीं हो
सकती; तुम
परममानव बनने
की अभीप्सा से
उद्वेलित ही नहीं
हो सकते ।
तुम्हें
हिलाया जाना ही
होगा — और
निर्दयतापूर्वक
हिलाया जाना
होगा । केवल बाद
में तुम
समझोगे : वह
करुणा थी —
सच्ची करुणा ।
तुम्हारे
सुविधाजनक
झूठों में
तुम्हें मदद पहुंचाया
जाना प्रेम
नहीं है ।
उससे तुम्हें अच्छा
लगता है, लेकिन
वह विनाशकारी
है — वह बुरा है
। वह तुम्हारे
विकास की
संभावनाओं को
नष्ट करता है।
और जरुथुस्त्र
की केवल एक ही
एकनिष्ठ
शिक्षा है :
मनुष्य को
स्वयं का
अतिक्रमण
करना चाहिए ।
लेकिन क्यों
वह अतिक्रमण
करे यदि वह
बहुत आराम में
है? उसका
आराम नष्ट
किया जाना
होगा, उसकी
सुविधाएं छीन
लेनी होंगी; उसके
पूर्वाग्रह
छिन्न—भिन्न
किये जाने
होंगे; उसके
धर्म, उसके
ईश्वर, उसके
दर्शनशास्त्र
सब जला दिये
जाने होंगे; उसे निपट
नग्न छोड़ना
होगा, ठीक
जैसे कोई
नवजात शिशु ।
हम
इस मानवता के
आदी हो गये
हैं — यही कारण
है कि हम उसकी
बीभत्सता को
नहीं देख पाते
। हम उसकी
कुरूपता को
नहीं देख पाते, हम
उसकी ईर्ष्या
को नहीं देख
पाते, हम
उसकी अप्रेम-दशा
को नहीं देख
पाते; हम
उसके
प्रतिभाशून्य,
जडमति, अतिसामान्य
व्यवहारों को
नहीं देख पाते
। जरथुस्त्र
को सुनते हुए
तुम मनुष्यजाति
को देखने के
एक सर्वथा अलग
ही ढंग के प्रति
जाग सकते हो ।
जरथुस्त्र
कहते हैं, अब
मैं तीन
सर्वाधिक
बुरी बातों को
तराजू पर रखूंगा
और उनको
भलीभांति और
मानवीयता
सहित तौलूंगा..
मैं
चाहूंरग्र कि
तुम मानवीयता
सहित शब्द का
स्मरण रखो, क्योंकि
समस्त
तथाकथित धर्म
और
आध्यात्मिक
दर्शनशास्त्र
चीजों का मूल्यांकन
बहुत अमानवीय
ढंग से करते
रहे हैं । इसलिए
मैं चाहता हूं
कि तुम
मानवीयता
सहित शब्द का
स्मरण रखो ।
जरथुस्त्र
मनुष्य के साथ
असीम प्रेम
में हैं । वह
शत्रु नहीं
हैं;
वह एक मित्र
हैं । वह
वर्तमान दशा
से घृणा करते
हैं क्योंकि
वह जानते हैं
कि तुम दूर तक
जा सकते हो
तुम उच्च
शिखरों तक
पहुंच सकते हो
। यह होने के
लिए तुम नहीं
हो । वर्तमान
मनुष्य— जाति
के प्रति उनकी
घृणा
तुम्हारे
भविष्य के लिए
परममानव के
सुदूर लक्ष्य
के लिए उनके
गहन प्रेम के
कारण है । वह
अमानवीय
मूल्यों के
निपट खिलाफ
हैं । समस्त
धर्म तुमसे
अपेक्षा करते
हैं अमानवीय
मूल्यों का
अनुसरण करने
की ।
यदि
तुम सब धर्मों
के
धर्मग्रंथों
में देखो तो
तुम
आश्चर्यचकित
रह जाओगे : जो
वे तुमसे करने
के लिए कह रहे
हैं वह इतना
अप्राकृतिक
है कि तुम उसे
पूरा ही नहीं
कर सकते ।
निश्चित ही
उनके कहने के
पीछे
उद्देश्य कुछ
ऐसा है जिसका
तुम्हें पता
नहीं है । वे
भी जानते हैं कि
तुम उन मार्गो
को पूरा नहीं
कर सकते जो वे
तुमसे कर रहे
हैं । लेकिन
तब क्यों वे
उन मांगों को
कर रहे हैं? उनका
छद्य
उद्देश्य है
तुम्हें
अपराधभाव महसूस
करवाना । और
तुम्हें
अपराधभाव
महसूस करवाने
का एकमात्र
उपाय है कुछ
अप्राकृतिक
की मांग करना,
जिसे तुम कर
नहीं सकते; चाहे किसी
भी ढंग से तुम
प्रयास करो, तुम असफल ही
होने वाले हो
।
ऐंद्रिक
सुख,
शक्ति की
लिप्सा, स्वार्थपरायणता
: ये तीन अब तक
सर्वाधिक
कोसे गये हैं
और सबसे बुरी
तथा सर्वाधिक
अन्यायपूर्ण
ख्याति में
रखे गये हैं —
इन तीनों को
मैं भलीभांति
और मानवीयता
सहित तौलूंगा
।
यह
बात वह कभी
नहीं भूलते :
स्वयं पर
अमानवीय मापदंड
थोपने की
कोशिश मत करो
जो कि तुम्हें
केवल अपंग
करने वाले हैं, जो
कि केवल
तुम्हारे पंख
काट देनेवाले
हैं, जो कि
तुम्हें केवल
ऐसी गहन
मनोवैज्ञानिक
गुलामी में
कैद करने वाले
हैं कि उसमें
से निकल पाना
बहुत कठिन
होगा —
क्योंकि
व्यक्ति की
उससे चिपकने
की प्रवृत्ति
होती है : वह
अधिक
सुरक्षित
प्रतीत होती
है, वह
अधिक
सुविधाजनक प्रतीत
होती है, वह
समाज द्वारा
अधिक
स्वीकार्य
प्रतीत होती है
।
जितना
ज्यादा कोई
मनुष्य स्वयं
को अमानवीय मूल्यों
में अनुशासित
करने का
प्रयास करता
है,
निश्चित ही
वह केवल एक
पाखंडी हो
जानेवाला है ।
लेकिन भीडें
उसे एक संत के
समान आदर
देंगी — इस
सीधे से
कारणवश कि वे
स्वयं नहीं कर
सके इसे ।
उन्होंने
प्रयास किये
हैं, लेकिन
यह व्यक्ति
महान होना
चाहिए यह करके
दिखा रहा है ।
सर्वाधिक
संभावना यह है
कि उसके पास
दोहरा
व्यक्तित्व
है; दो
चेहरे हैं
उसके : एक तो
दुनिया को
दिखाने के लिए
और एक जो निजी
चीज है जिसे
वह गुप्त रूप
से जीता है ।
जीवन भूमिगत
हो जाता है ।
सतह पर वह उन
समस्त
मूल्यों का
दिखावा करता
है जो मानवीय रूप
से असंभव हैं
।
जरथुस्त्र
कहते हैं, पहला
है ऐद्रिक सुख
: एक मीठा जहर
केवल मुरझा गये
लोगों के लिए
लेकिन सिंह—
संकल्पी के
लिए महा
पुष्टिकर और
सम्मानपूर्वक
परिरक्षित की
गयी शराबों की
शराब । जरथुस्त्र
निश्चित ही
बेमिसाल हैं ।
जब बात सत्य
को कहने की
आती है वह बस
कह देते हैं
बिना इस बात
की परवा किये
कि कोई उन्हें
सुनने जा रहा
है अथवा नहीं
। भले वह पूरी
दुनिया के
खिलाफ जाती हो,
लेकिन वह
अकेले खड़े
होंगे, सत्य
के साथ बने
रहेंगे ।
वह
कह रहे हैं, ऐंद्रिक
सुख : एक मीठा
जहर केवल
मुरझा गये
लोगों के लिए
है.. केवल
कमजोरों के
लिए । और
कमजोर शासन
करते रहे हैं
मजबूतों के
ऊपर । गैर—बुद्धिमान
बुद्धिमानों
के लिए जीवन—ढांचा
निर्धारित कर
रहे हैं । भीड़
जीने के लिए
धर्मों का
निर्माण कर
रही है, अनुसरण
करने के लिए
धमदिशों का
निर्माण कर रही
है । ये सारी
नैतिकताएं ये
सारे नैतिक
विधान मुरझा
गये और कमजोरों
द्वारा, कुदबुद्धि
और मूढ़ों
द्वारा
निर्मित किये
गये हैं ।
...
एक मीठा जहर
केवल मुरझा
गये लोगों के
लिए लेकिन
सिंह— संकल्पी
के लिए महा
पुष्टिकर और
सम्मानपूर्वक
परिरक्षित: की
गयी शराबों की
शराब । जरथुस्त्र
असीम महत्व व
महानता की कुछ
बात कह रहे हैं : सम्मानपूर्वक
परिरक्षित की
गयी । वह
ऐंद्रिक सुख
को पवित्रता
का दर्जा
प्रदान कर रहे
हैं । यदि कुछ
तुम्हें नष्ट
करता है तो यह
ऐंद्रिक सुख नहीं
है, यह
तुम्हारी
कमजोरी है ।
मजबूत बनो!
लेकिन तुम्हारे
तथाकथित
धर्मनेता
तुम्हें ठीक
उलटी ही बात
कह रहे हैं :
ऐंद्रिक सुख
त्यागो और
कमजोर बने रहो
। और जितना
ज्यादा तुम उन्हें
त्यागोगे
उतना ही
ज्यादा कमजोर
तुम बनते
जाओगे, क्योंकि
तुम सारी
पुष्टिकर
शक्ति खो दोगे,
सारी
नवजीवनदायी
शक्ति खो दोगे
। तुम अस्तित्व
के साथ संपर्क
खो दोगे —
क्योंकि
इंद्रियों के
माध्यम से ही
तुम अस्तित्व
से जुड़े हो ।
यदि तुम अपनी
इंद्रियों को
बंद कर लो, तुमने
अपनी कब्र
पहले ही तैयार
कर ली ।
जरथुस्त्र
ठीक इससे उलटा
कहेंगे । यदि
ऐंद्रिक सुख
तुम्हें नष्ट
करता है, उसका
अर्थ है कि
तुम्हें और
अधिक मजबूत
होने की जरूरत
है । और
तुम्हें
अनुशासन दिया
जाना चाहिए
जिससे कि तुम
और अधिक मजबूत
बन सको । ऐंद्रिक
सुख का त्याग
नहीं किया
जाना है, कमजोरी
का त्याग किया
जाना है । और
हर व्यक्ति
इतना मजबूत
बनाया जाना
चाहिए कि वह ''शराबों की
शराब'' का
आनंद ले सके, बिना उसके
द्वारा नष्ट
हुए, बल्कि,
उलटे, उसके
द्वारा अधिक
मजबूत, अधिक
युवा, अधिक
तरोताजा कर
दिया गया । ऐंद्रिकता
की इतनी निंदा
की गयी है कि
इस बात ने
मनुष्यों के
पूरे जगत को
निपट कमजोर, असंवेदनशील,
जीवन से
असंबंधित बना
दिया है ।
तुम्हारी अधिकांश
जड़ें काट दी
गयी हैं; केवल
कुछ जड़ें छोड़
दी गयी हैं
ताकि तुम जीवन
के नाम पर
जैसे—तैसे
जीवित भर रहो
।
ऐंद्रिक
सुख : महान
प्रतीकात्मक
सुख एक उच्चतर
सुख और उच्चतम
आशा का ऐंद्रिक
सुख को एक
संकेत के रूप
में समझा जाना
है कि और बड़े
आनंद भी संभव
हैं । सब कुछ
तुम्हारे कलापूर्ण
होने पर
निर्भर करता
है । सब कुछ
निर्भर करता
है कि कैसे
तुम अपनी जीवन—ऊर्जाओं
का उपयोग करते
हो । सब कुछ
निर्भर करता
है यदि तुम ऐंद्रिक
सुख पर रुक न
जाओ । ऐंद्रिक
सुख केवल एक
तीर है यह
संकेत करता
हुआ कि और भी
बड़े सुख हैं, कि
और भी बड़ी
खुशियां हैं,
कि और भी
बड़ी
परितृप्तिया
हैं ।
लेकिन
यदि तुम ऐंद्रिक
सुख का त्याग
करो... यह ऐसे ही
है जैसे तुम
किसी मील के
पत्थर पर तीर
का निशान देखो
जो यह दिखा रहा
हो कि यह जगह
नहीं है रुक
जाने की — आगे
चलते चलो!
त्यागी कह रहे
हैं,
उस तीर के
निशान को पोंछ
दो; उस मील
के पत्थर का
त्याग करो!
लेकिन तब कौन
तुम्हें
संकेत
देनेवाला है
कि इसके पहले
कि तुम जीवन
के महानतम
आनंद तक पहुंचो
अभी तुम्हें
काफी दूर जाना
है?
ऐंद्रिक
सुख केवल
प्रारंभ है, अंत
नहीं । लेकिन
यदि तुम
प्रारंभ का
इनकार करते हो,
तुमने अंत
का भी इनकार
कर दिया । यह
इतना सरल तर्क
है, लेकिन
कभी—कभी जो
बहुत स्पष्ट
है वह सरलता
से भूल जाता
है । समस्त
धर्म तुम्हें
सिखाते रहे
हैं, यदि
तुम पेंइद्रक
सुख का त्याग
करो तो ही तुम आध्यात्मिक
आनंदमयता को
उपलब्ध हो
सकोगे । यह
बेतुका और
अतर्कपूर्ण
है ।
ऐंद्रिक
सुख
आध्यात्मिक
आनंदमयता की
दिशा में कदम
रखने का पत्थर
होनेवाला है ।
तुम कदम रखने
के पत्थर को
ही नष्ट किये
दे रहे हो ।
तुम कभी भी
उच्चतर तलों
तक नहीं
पहुंचोगे —
तुमने सीढ़ी ही
हटा दी । सीढी
कुछ ऐसी चीज
है जिसका
अतिक्रमण
किया जाना है, त्याग
नहीं!
अतिक्रमण और
त्याग के बीच
के भेद को स्मरण
रखना ।
जरथुस्त्र
कहेंगे, अतिक्रमण
करो लेकिन
त्यागो कभी
नहीं; क्योंकि
यदि तुम त्याग
कर दो तो अतिक्रमण
करने को ही
कुछ न रहा । ऐंद्रिक
सुखों का उनकी
समस्त
विविधताओं
में आनंद लो और
उतनी त्वरा से
जितना संभव हो
। उन्हें चुका
डालो, ताकि
अचानक
तुम्हें चता
चले — ऐंद्रिक
सुखों का जगत
तो खतम हुआ और
मुझे और आगे
जाना है ।
लेकिन
ऐंद्रिक सुख
ने तुम्हें रास्ता
दिखाया है ।
तुम उसके
प्रति
अनुगृहीत होगे,
तुम उसके
खिलाफ न होगे
। उसने तुम से
कुछ छीना नहीं
है, उसने
तुम्हें केवल
दिया है ।
शक्ति
की लिप्सा.
इसकी निगाह के
सामने मनुष्य
रेगंता है और
झुकता है और
एड़ी— चोटी का पसीना
एक करता है और
सूअर अथवा
सांप से भी
नीचा बनता है —
जब तक कि अंतत:
विशाल घृणा की
चीख उससे फूट
नहीं पड़ती ।
शक्ति
की लिप्सा : जो
कि बहरहाल बडे
सम्मोहक रूप
से उठती है
पवित्र व
एकांतवासी तक
को और आत्मनिर्भर
ऊंचाइयों तक
एक ऐसे प्रेम
की तरफ दमकती
हुई जो
सांसारिक
स्वर्गों पर
लुभावने रूप
से नीललोहित
(पर्पल)
खुशियां
उकेरता है ।
शक्ति
की लिप्सा :
लेकिन कौन
कहेगा इसे
लिप्सा, जब कि
शक्ति के पीछे
ऊंचाई नीचे
हकने की अभीप्सा
करती है । सच
में ऐसी
अभीप्सा और
अवरोह (उतार)
में रुग्णता
और लिप्सा
नहीं है!
पूरी
बात पर ही नजर
डालनी होगी ।
शक्ति की लिप्सा
ने गुलामी
पैदा की है, मानवता
को बहुत ढंगों
से नष्ट किया
है । शक्ति की
लिप्सा हर
हृदय मैं
प्रज्वलित है
। जरथुस्त्र
इस प्रकार की
शक्ति की
लिप्सा के
पक्ष में नहीं
हैं — वह
विध्वंसक और
कुरूप है ।
लेकिन
एक सृजनात्मक
ढंग भी हो
सकता है, और इस
सृजनात्मक
चीज को वह
शक्ति की
आकाक्षा कहते
हैं, शक्ति
की लिप्सा
नहीं । शक्ति
की आकाक्षा एक
सर्वथा भिन्न
घटना है; लेकिन
धर्मों ने कोई
विभेद नहीं
किया है । उनके
लिए शक्ति की
लिप्सा ही सब
कुछ है — उसमें
कुछ भी ऐसा
नहीं है जो
कोई भी योगदान
कर सकता हो ।
लेकिन
जरथुस्त्र को
लगता है कि
उसके भीतर
इतनी क्षमता
है कि वह
दुनिया का
महानतम
सृजनात्मक बल
बन सकती है ।
लेकिन वह लिप्सा
नहीं हो सकती
। और उसे
लिप्सा कहा तक
नहीं जा सकता
।
शक्ति
की लिप्सा :
लेकिन कौन
कहेगा इसे
लिप्सा, जब कि
शक्ति के पीछे
ऊंचाई नीचे झुकने
की अभीप्सा
करती है! सच
में ऐसी
अभीप्सा और
अवरोह (उतार)
में रुग्णता
और लिप्सा
नहीं है!
शक्ति की
आकाक्षा महान
फर्क पैदा करती
है । शक्ति की
आकाक्षा का
सीधा सा मतलब
है कि दूसरों
के ऊपर शक्ति
नहीं । शक्ति
की लिप्सा का
मतलब दूसरा के
ऊपर र्शाक्ते
। शक्ति की
आकाक्षा का
मतलब अपने आप
में अधिक—अधिक
शक्तिशाली
होते जाना, अधिक—अधिक
तेजोमय, अधिक—अधिक
मजबूत, अधिक—अधिक
अखंड, अधिक—अधिक
एक शेर, एक
निजतासंपन्न
व्यक्ति ।
शक्ति
की आकाक्षा का
दूसरे से कुछ
लेना—देना
नहीं है । यह
तुम्हारी
अपनी निजी
कसरत है
ऊंचाइयों तक
उठने की । यह
तुम्हारा
अपना निजी
अनुशासन है
अपनी आत्मा के
उच्चतम
शिखरों तक
पहुंचने का ।
यह किसी के भी
प्रति
विध्वंसात्मक
नहीं है; उलटे,
यह औरों के
लिए प्रेरणा
बन सकता है ।
इसे दूसरों के
लिए प्रेरणा
बनना ही है ।
यह एक महान
प्रोत्साहन
हो सकता है :
यदि एक
व्यक्ति जो एक
दिन तुम्हारे
बीच था आज
चेतना के
उच्चतम शिखर पर
है, यह बात
एक ललक, एक
अभीप्सा, एक
संकल्प पैदा
कर सकती है — जो
तुम्हारे ही
भीतर सुषुप्त
पड़े हैं, जो
तुम्हारे ही
भीतर निष्किय
पड़े हैं — कि
तुम भी उच्च
शिखर हो सकते
हो, कि यह
तुम्हारी भी
क्षमता के
भीतर है ।
चाहे
व्यक्ति
ईश्वरों और
दैवी
पादप्रहारों
के समक्ष
खुशामदी हो
अथवा
मनुष्यों और
उनकी तुच्छ रायों
के समक्ष : यह
सब प्रकार के
गुलामों पर मूकती
है यह यशस्वी
स्वार्थपरायणता!...
...
स्वार्थपरायणता
का दुरुपयोग
करना — ठीक वही
सद्गुण रहा है
और सद्गुण कहा
गया है । और 'निःस्वार्थ'
— वही है जो
भले कारणों से
ये सारे
दुनिया से थके—
हारे कायर...
होने की
अभिलाषा करते
थे!
जरथुस्त्र
कह रहे हैं कि
स्वार्थपरायणता
सहज स्वभाव है
चीजों का ।
लेकिन कायर
लोग चाहते हैं
कि
निस्वार्थता
सद्गुण हो, क्योंकि
निस्वार्थता
में कायर लोग
जीतने वाले
हैं ।
भारत
में तुम्हें
पूरे देश भर
में हर कहीं
भिखारी
मिलेंगे । और
हर भिखारी कह
रहा है, 'कुछ
मिल जाए मुझे
। भिखारी को
देना पुण्य है,
और इसके
बदले में
तुम्हें महान
लाभ होगा । ' अब
भिखारियों का
होना ही जाहिर
करता है कि
समाज रुग्ण है,
कि समाज
विक्षिप्त है;
कि वह उन
बच्चों को
पैदा किये चला
जाता है जिन्हें
वह भोजन भी
नहीं दे सकता,
कि यह नितात
अतार्किक बात
है कि समाज का
एक वर्ग देश
का पूरा धन
इकट्ठा कर
लेगा और
करोड़ों लोग
भूखे मर रहे
होंगे ।
एक
स्वस्थचित्त
समाज उन सब
प्रकार के
लोगों को होने
से रोकेगा जो
निःस्वार्थ
सेवा चाहते हैं
। हम ऐसा समाज
निर्मित कर
सकते हैं जो
स्वस्थ हो; हम
ऐसा समाज
निर्मित कर
सकते हैं जो
धनी हो, आरामदेह
रूप से धनी, आरामदेह रूप
से स्वस्थ ।
लेकिन यह केवल
तभी संभव है
यदि हर
व्यक्ति अपनी
जिम्मेदारी
स्वयं अपने
कंधों पर ले ।
यही
है जो उनका
स्वार्थपरायणता
से अर्थ है ।
और
यदि तुम्हारे
पास बहुत
ज्यादा है
बांटने के लिए
तो वह
तुम्हारा
आनंद होना
चाहिए कर्तव्य
नहीं । वह
तुम्हारा
आनंद होना
चाहिए पुण्य नहीं
।
लेकिन
अब वह दिन वह
रूपांतरण वह
फैसले की तलवार
वह महा
मध्याह्न
वेला उन सब पर
आती है : तब बहुत
सी बातें
खुलासा होगी ।
और
वह जो अहंकार
को स्वस्थ व
पवित्र घोषित
करता है और
स्वार्थपरायणता
को यशस्वी — सच में
वह एक पैगंबर
उसे भी घोषित
करता है जो वह
जानता है : 'लो,
वह आती है, वह निकट है, महा
मध्याह्न
वेला!'
मानवता
के जीवन में
महानतम क्षण
को जरथुस्त्र ''महा
मध्याह्न
वेला'' कहते
हैं — जब
स्वार्थपरायणता
महज स्वस्थ
होगी, जब
हर वह चीज जो
पहले निंदित
की गयी है
वैसा नहीं होगा
और हर चीज जो
स्वाभाविक व
मानवीय है
हमारे धर्म के
रूप में, हमारी
आध्यात्मिकता
के रूप में
घोषित कर दी जाएगी
। स्वभाव
स्वयं हमारा
धर्म है, और
किसी अन्य
धर्म की जरूरत
नहीं है ।
'लो वह
आती है वह
निकट है महा
मध्याह्न
वेला!'
.........ऐसा
जरमुस्त्र ने
कहा ।