प्यारे
ओशो
जब
तुम्हारा कोई
शत्रु हो उसे
बुराई के बदले
भलाई मत दो :
क्योकि वह उसे
शर्मिंदा
करेगा। लेकिन
सिद्ध करो कि
उसने
तुम्हारे
प्रति कुछ भला
किया है।
क्रोधित
होना बेहतर है
शर्मिंदा
करने के बजाय!
और जब तुम्हें
शाप दिया गया
हो मैं इसे
नही पसंद करता
कि तब तुम
आशीर्वाद
देना चाहते हो? बल्कि
वापस थोद्यू
शाप दो।
और
यदि तुम्हारे
साथ महो
अन्याय किया
जाए तो जल्दी
से उसके बगल
में ही पांच
छोटे अन्याय
करो। जो
अन्याय को
अकेले सहन
करता है वह
देखने में भयावह
है।
तुम्हारा
भावशून्य
न्याय मुझे
पसंद नहीं है; और
तुम्हारे
न्यायाधीशों
की ऑख से सदा
जल्लाद और उसकी
सर्द तलवार ही
झांकते हैं।
बताओ
मुझे वह न्याय
कहां पाया
जाने वाला है
जो देखती आखों
से युक्त
प्रेम है?....
कैसे
मैं हृदय ही
से
न्यायपूर्ण
हो सकता हूं? कैसे
मैं प्रत्येक
को वह दे सकता
हूं जो उसका है
मेरे लिए तो
यही पर्याप्त
रहने दो : मैं
प्रत्येक को
वह देता हूं
जो मेरा है।
जीसस
के सर्वाधिक
महत्वपूर्ण
कथनों में एक
है : यदि कोई
तुम्हारे एक
गाल पर थप्पड़
मारे तो तुम
दूसरा गाल भी
उसके सामने कर
दो।
जरथुस्त्र
इससे राजी न
होंगे। और जिस
कारण से वह
राजी न होंगे
वह अतिशय महत्वपूर्ण
है : यदि कोई
व्यक्ति
तुम्हें
थप्पड़ मारता
है और तुम
थप्पड़ मारे
जाने के लिए
अपना दूसरा
गाल भी उसके
स्म्मुख कर
देते हो, तो
तुम उसकी
मानवता को खाक
में मिला रहे
हो। तुम एक
संत बन रहे हो
और उसे क्
पापी करार दे रहे
हो; तुम
उसे शर्मिंदा
कर रहे हो; तुम
'तुमसे
ज्यादा
पवित्र' बन
रहे हो। यह एक
अपमान है; यह
मानवता का
सम्मान नहीं
है।
जरथुस्त्र
वापस चोट करना
और मनुष्य बने
रहना चाहेंगे —
पवित्र बनना
नहीं चाहेंगे।
उस प्रकार तुम
दूसरे का
अपमान नहीं कर
रहे हो। उस
प्रकार तुम समानता
दिखा रहे हो, 'मैं
तुम्हारी
कोटि का हूं
तुम मेरी कोटि
के हो। मैं
किन्हीं
अर्थों में
तुमसे उच्चतर
नहीं हूं तुम
किन्हीं
अर्थों में
मुझसे
निम्नतर नहीं
हो। ' यह
चीजों को
देखने का एक
अजीब ढंग है।
लेकिन
निश्चित ही
जरथुस्त्र के
पास एक सारगर्भित
बात है जो याद
रखे जाने
योग्य है। बात
मूलतः यह है
कि समस्त
तथाकथित साधु—संत—महात्मा
लोग अहंकारी
हैं, अपनी
विनम्रता में
भी, अपनी
विनयशीलता
में भी। उनके
पास मनुष्यों
के लिए
तिरस्कार के
अलावा अन्य
कुछ भी नहीं।
गहरे में वे
जानते हैं कि
तुम सब पापी
हो, तुम
उनके क्रोध के
लिए भी पात्र
नहीं हो, वे
तुम्हें किसी
भी रूप में
अपने बराबर
नहीं आकते।
जरथुस्त्र
बहुत मानवीय
हैं और वे
तुम्हारी तथाकथित
आध्यात्मिक
अहकारवादिता
को तृप्ति नहीं
देना चाहते।
तुम्हारे
नित्यानबे
प्रतिशत संत
इसलिए संत है
ताकि तुम्हें
पापी कह सकें; उनका
सारा आनंद संत
होने में नहीं
बल्कि तुम सब
कोपीपी कहने
की सामर्थ्य
पाने में है; हर व्यक्ति
की गरिमा को
नष्ट करना, खाक में
मिलाना उनके
अंतरतम का
आनंद है।
तुम्हारा
भावशून्य
न्याय मुझे
पसंद नहीं है; और
तुम्हारे
न्यायाधीशों
की आंख से सदा
जल्लाद और
उसकी सर्द
तलवार ही
झांकते हैं।
बताओ
मुझे वह न्याय
कहां पाया
जाने वाला है
जो देखती आखों
से युक्त
प्रेम है?....
जब
तक न्याय
प्रेम में
आधारित और
अवस्थित नहीं
है वह पहले से
ही अन्याय है।
हमारे समस्त
न्यायालय
इतने
भावशून्य हैं —
वहा कोई प्रेम
नहीं, करुणा
नहीं, समझ
नहीं। वहा बस
शब्द हैं, मृत;
कानून हैं,
मृत; न्यायाधीश
हैं, मृत; और हर मृत
चीज मिलकर
जीवित के बारे
में तय कर रही
है। और सब कुछ
अतीत के बारे
में तय किया
जा रहा है।
हो
सकता है किसी
व्यक्ति ने
चोरी की हो, लेकिन
यह एक बीत गया
कृत्य है, उसका
यह मतलब नहीं
होता
कि चोर आगे
चलकर संत नहीं
हो सकता।
'आदमी इसी
क्षण में बदल
सकता है।
उसका
आनेवाला कल
खुला है, उस पर
उसके बीते कल
का अनधिकृत
प्रवेश नहीं
है। हमारे
समूचे,, न्याय
ने
शताब्दियों
से यह तयशुदा
ले लिया है कि
आनेवाला कल
नहीं है; बीते
हुए कल ही
पर्याप्त हैं किसी
व्यक्ति के
संबंध में तय
करने के लिए।
और सारे बीते
कल मृत हैं।
तुम
अपने
न्यायाधीशों
की आखों में
देख सकते हो
और वहा सदा
जल्लाद और
उसकी सर्द
तलवारे ही
झांकते हैं।
बताओ
मुझे वह न्याय
कहां पाया
जाने वाला है
जो देखती आखों
से युक्त
प्रेम है?
बिना
प्रेम के, बिना
हृदय के तुम
किसी व्यक्ति के
जीवन की
जटिलताओं को
नहीं देख सकते।
एक छोटा सा
कृत्य एक लंबे
जीवन के संबंध
में निर्णायक
होने जा रहा
है। तुम
भविष्य के
सारे दरवाजे
बंद कर रहे हो;
तुम उसे
बदलने का अवसर
नहीं दे रहे
हो — तुम उसे एक
मौका और नहीं
दे रहे हो।
प्रेम हमेशा
एक मौका, एक
अवसर देने को
तैयार है।
लेकिन
ये भावशून्य
आखें
तुम्हारे
न्यायाधीशों
की केवल मृत
कानूनों को
जानती हैं और
वे इस बात की
चिंता किये
बगैर अपने
कानूनों का
पालन करते हैं
कि कानून
इसलिए नहीं
बनाया गया था ताकि
उसके लिए
व्यक्ति की
बलि दी जाए।
कानून मनुष्य
की सेवा में
बनाया गया था; न
कि मनुष्य
कानून की सेवा
में। कानून
बदला जा सकता
है — कानून
मनुष्य—निर्मित
है।
यह केवल
प्रेम है जो
शक्ति के
दुरुपयोग को
टाल सकता है।
प्रेम महानतम
मूल्य है, कानून
निम्नतम।
लेकिन
यह एक दुर्दशा
है और एक
नितात
दुर्भाग्यपूर्ण
स्थिति है कि
कानून सर्वोच्च
बात बन गया है, और
प्रेम पूर्णत:
उपेक्षित है।
जहा तक कानून
का संबंध है, या कहें
जहां तक न्याय
के मंदिरों
अथवा न्यायालयों
का संबंध है, प्रेम के
लिए कोई स्थान
नहीं है।
एक
महान क्राति
की जरूरत है
जो हर कानून
को प्रेम के
नियमों के
अनुसार बदल दे।
न्याय को
प्रेम की छाया
भर होना चाहिए
प्रतिशोधमय
नहीं बल्कि
सम्मानमय। यह
संभव है; यह
व्यक्तियों
के जीवन में
संभव हुआ है; यह एक दिन
समूचे समाज के
जीवन में संभव
है।
..........ऐसा
जरथुस्त्र
ने कहा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें