प्यारे
ओशो,
'जब से मैने
शब्रेँ को
बेहतर रूप से
जाना है ' जरथुस्त्र
ने अपने एक
शिष्य से कहा 'आत्मा मेरे
लिए केवल अलंकारिक
रूप से आत्मा
रही है; और
वह सब कुछ जो ''नित्यं'' है
— वह भी केवल एक ''बिंब'' भर
रहा है। '
'मैने एक बार
पहले भी आपको
यह कहते सुना
है ' शिष्य
ने जवाब दिया;
'और तब आपने
आगे कहा था :
''लेकिन
कवि लोग बहुत
ज्यादा झूठ
बोलते हैं''। आपने
क्यों ऐसा कहा
कि कवि लोग
बहुत ज्यादा झूठ
बोलते हैं?'
'तथापि
जरथुस्त्र
ने एक बार
तुमसे क्या
कहा? कि
कवि लोग बहुत
ज्यादा झूठ
बोलते हैं? — लेकिन
जरथुस्त्र
भी एक कवि है।
'क्या
तुम अब
विश्वास करते
हो कि वह सत्य
बोला? क्यों
तुम यह
विश्वास करते
हो?' शिष्य
ने जवाब दिया : 'मैं
जरयुस्त्र
में विश्वास
करता हूं। ' लेकिन जरथुस्त्र
ने अपना सिर
हिलाया और
मुस्कुरा
दिया।
विश्वास
मुझे धन्यभागी
नहीं बनाता
(उन्होंने
कहा),
और स्वयं
मुझमें
विश्वास तो
सबसे कम।
लेकिन
मंजूर किया कि
किसीने पूरी
गंभीरता में
कहा है कि कवि
लोग बहुत
ज्यादा झूठ
बोलते हैं : वह
(व्यक्ति) सही
है — निश्चित
हम बहुत
ज्यादा झूंठ बोलते
है।
कवियों
से मैं थक गया
हूं पुराने और
नये : वे सब के
सब मुझे सतही
और उथले
समुद्र
प्रतीत
उन्होने
पर्याप्त
गहराई से विचार
नहीं किया है :
इसलिए उनका
भाव___गहराइयों की
थाह नही ले
पाया है।
कवि
के प्राण
दर्शक चाहते
हैं भले ही वे
केवल भैसें
हों!
लेकिन
मैं ऐसे प्राण
से थक गया हूं :
और मैं उस दिन
को आता हुआ
देखता हूं जब
यह स्वयं से
थक जाएगा।
पहले
ही मैं कवियों
को रूपांतरित
हुआ देख चुका
है मैने उनको
अपनी निगाह
अपने आप पर
करते देखा है।
मैं
प्राणों के
पश्चात्तापी
प्रगट होते
देख चुका हूं :
वे कवियों के
भीतर से ही
जन्मे।
..........ऐसा जरथुस्त्र ने कहा।
..........ऐसा जरथुस्त्र ने कहा।
जरथुस्त्र
इतने ईमानदार
व सत्यनिष्ठ
हैं कि वह
स्वयं को भी
माफ नहीं
करेंगे, यदि
उनके द्वारा
कही गयी कोई
ऐसी बात है जो
नितांत सच
नहीं है। और
सत्य के संबंध
में समस्या यह
है, तुम
उसे उसकी
संपूर्णता
में नहीं कह
सकते।
ज्यादा
से ज्यादा तुम
किसी पहलू की
तरफ इशारा कर
सकते हो, कुछ
झलकों की तरफ
संकेत कर सकते
हो। लेकिन उस
व्यक्ति के
लिए जिससे तुम
बात कर रहे हो,
ये टुकड़े
नितांत
उलझनकारी बने
रहेंगे, क्योंकि
वह अंतरालों
को नहीं भर
सकता। उन
अंतरालों को
भरने का, और
अपने
वक्तव्यों को
उतना समग्र, उतना सुव्यवस्थित
करने का
रहस्यदर्शी
का कर्तव्य है
जितना संभव हो।
वहीं है स्रोत
झूठों का।
रहस्यदर्शी
को झूठ बोलना
ही पड़ता है, वह
अपरिहार्य है।
उसकी
जिम्मेदारी
रहस्यदर्शी
की नहीं है, यह
सत्य का
स्वभाव ही है
कि वह ज्ञान
को, भाषा
को, अभिव्यक्ति
को पूर्णत:
उपलब्ध नहीं
है। बहुधा, रहस्यदर्शियों
ने काव्य को
अभिव्यक्ति
के माध्यम के
रूप में चुना
है, इस सरल
से कारणवश कि
पद्य में झूठ
बोलना ज्यादा
आसान है गद्य
में झूठ बोलने
की अपेक्षा।
इसलिए
रहस्यदर्शियों
ने काव्य को
एक उपाय के रूप
में चुना है।
काव्य का एक
बड़ा गुण यह है
कि उसे नितांत
सच होने की
जरूरत नहीं है; उसे
केवल नितांत
सुंदर होने की
जरूरत है। और
झूठ सुंदर हो
सकते हैं, उसमें
कोई समस्या
नहीं है। कभी—
कभी तो वे
सत्य से भी
बढ़कर सुंदर हो
सकते हैं।
काव्य कवि को
मौका देता है
अंतरालों को
सुंदर फूलों
से सजा देने
के लिए और
तुम्हें ऐसा बोध
देने के लिए
कि तुम्हें
विचारों की एक
पूरी
व्यवस्था दी
जा रही है, अपनी
सम्पूर्णता
में।
जरथुस्त्र
ऐसे ईमानदार
व्यक्ति हैं
कि जो वह कवियों
के बारे में
कहते हैं, कि
वे बहुत
ज्यादा झूठ
बोलते हैं... वह
अपने शिष्य को
याद दिलाना
नहीं भूलते कि
''जरथुस्त्र
भी एक कवि है''।
यह
प्रामाणिकता
उन्हें
महानतम
व्यक्तियों में
एक बना देती
है जिन्होंने
कभी भी
अंतराकाश में
और मनुष्य के
रहस्यों में
यात्रा की है।
और यदि कभी वे
झूठ भी बोलते
हैं,
उनके झूठ
अन्य कुछ नहीं
बस कदम रखने
के पत्थर हैं;
वे सत्य के
मंदिर तक ले
जाते हैं। वे मंदिर
नहीं हैं, सच,
लेकिन वे
मंदिर तक ले
जाते हैं। वे
झूठ हो सकते
हैं, लेकिन
वे तीरों की
तरह हैं, सुदूर
सत्य की तरफ
इशारा करते
हुए। और झूठ
जो तुम्हें
सत्य को समझने
में मदद कर सके
वह झूठ मात्र
नहीं है — उसकी
निंदा मत करना।
वह सच नहीं है
लेकिन वह सत्य
को पाने में
महान रूप से
सहायक रहा है।
जरथुस्त्र
कह रहे हैं.... और
इस शाम का
प्रारंभिक
वक्तव्य
सुदूरगामी
प्रभावों
वाला है :
'जब से मैने
शरीर को बेहतर
रूप से जाना
है: जरथुस्त्र
ने अपने एक
शिष्य से कहा 'आत्मा मेरे
लिए केवल
अलंकारिक रूप
से आत्मा रही
है; और वह
सब कुछ जो ''नित्य''
है — वह भी
केवल एक ''बिंब
'' भर रहा है।'
वह
कह रहे हैं, जब
से मैंने शरीर
को उसकी
समग्रता में
जाना है, प्राण,
आत्मा, स्व
मेरे द्वारा
केवल
अलंकारिक रूप
से इस्तेमाल
किये गये हैं —
क्योंकि जिसे
हम आत्मा कहते
हैं वह शरीर
से अलग नहीं
है।
यह
आसानी से समझा
जा सकता है
यदि मैं कहूं
कि शरीर
तुम्हारी
बाहरी आत्मा
है और आत्मा
तुम्हारा
भीतरी शरीर है।
लेकिन है वह
एक घटना—क्रिया
(फेनामिना ), है
वह एक ऊर्जा।
तुम्हारे घर
के बाहर का
अवकाश (स्पेस )
और तुम्हारे
घर के भीतर का
अवकाश (स्पेस )
दो अवकाश नहीं
हैं — बाहर का
अवकाश और भीतर
का अवकाश एक
और नितांत इकहरा
तथ्य
(फेनामिना )
हैं।
जरथुस्त्र
कह रहे हैं, शरीर
को उसकी
समग्रता में
समझने के
प्रयास में
मुझे पता चला
है कि आत्मा
अन्य कुछ नहीं
बल्कि उसी
ऊर्जा की
अभिव्यक्ति
है जिसका शरीर
है। एक ही
ऊर्जा के दो
पहलू हैं.
बाहर वह दृश्य
है, भीतर
वह अदृश्य है।
वह उस द्वैत
को समाप्त
करने की कोशिश
कर रहे हैं
जिसे सारे
धर्मों ने
मनुष्य के मन
में निर्मित
किया है। वह
भौतिकवादियों
और
अध्यात्मवादियों
के बीच फूट को
नष्ट करने की
कोशिश कर रहे
हैं।
उनका
प्रयत्न एक
विशाल
संश्लेषण के
लिए है — कि
आध्यात्मिक
अनुभव
प्राप्त करने
के लिए तुम्हें
शरीर को सताने
की जरूरत नहीं
है। उलटे, शरीर
को इतना
स्वस्थ, इतना
दुरुस्त होना
है जितना संभव
हो, क्योंकि
वह तुम्हारे
लिए सहायक
होगा तुम्हारे
अंतरतम
अदृश्य जगत
में प्रवेश के
लिए। उनमें
कोई संघर्ष
नहीं है, उनमें
एक गहन
सामंजस्य है।
जरथुस्त्र
सामंजस्य
सिखाते हैं।
जरथुस्त्र के
अलावा हर
व्यक्ति
संघर्ष सिखाता
रहा है। जैसे
ही कोई
व्यक्ति शरीर
और आत्मा के
बीच संघर्ष
में यकीन कर
लेता है, वह
अपने खिलाफ ही
बंटा हुआ
व्यक्ति बन
जाता है। उसकी
पूरी ऊर्जा
स्वयं से ही
लड़ने में लग
जाती है। यह
दयनीय स्थिति
जिसमें
मनुष्यता पड़ी
हुई है वह
मनुष्य के
भीतर के इस
द्वंद्व की
चरम परिणति है।
जरथुस्त्र
कह रहे हैं कि
जीव,
आत्मा और ये
सारे शब्द
सुंदर शब्द
हैं, लेकिन
वे केवल
बिंबात्मक
हैं — वे
केवल अलंकार
हैं, वे
केवल
काव्यात्मक
हैं। किसी
संघर्ष में मत
फंसो। तुम एक
अखंड इकाई हो,
तुम एक सजीव
इकाई हो; इसलिए
किसी
अंतर्कलह की
जरूरत नहीं है।
और जैसे ही
तुम किसी
अंतर्कलह में
नहीं रह जाते,
तुम्हारी
पूरी ऊर्जा
परममानव की
दिशा में ऊर्ध्वगमन
के लिए उपलब्ध
है। स्वयं से
लडते हुए तुम
विजय नहीं कर
सकते।
जरथुस्त्र
कह रहे हैं कि
वह शरीर और
आत्मा को इकाई
के रूप में
चाहते हैं, ईश्वर
और संसार को इकाई
के रूप में
चाहते हैं।
केवल एक की
सत्ता है।
क्या नाम तुम
उसे देते हो
उससे कोई फर्क
नहीं पड़ता।
यदि
तुम्हें उसे
ईश्वर कहने से
बड़ा प्रेम है —
कहो। यदि तुम
पदार्थ शब्द
से मनोग्रस्त
हो और उसे
पदार्थ कहना
चाहते हो — कहो।
तुम्हारे
पदार्थ में
कुछ
आध्यात्मिक
गुण होगा, तुम्हारे
पदार्थ में होगी।
लिए जो कहना
चाहते, उन्हें
भी स्मरण रखना
है कि, तुम्हारे
ईश्वर में
पदार्थ का
विस्तृत जगत समाया
होगा।
वह
ऐसे व्यक्ति
नहीं हैं जो शब्दों
के लिए झगड़ा
करेंगे, लेकिन
वह इशारा करना
चाहते हैं कि
यदि हम दृश्य
और अदृश्य के
बीच, परिवर्तनशील
और
अपरिवर्तनशील
के बीच, चल
और अचल के बीच
की सजीव इकाई
को समझें तो
हम एक बेहतर
मनुष्य के
आगमन के लिए
नींव तैयार कर
सकते हैं। हम
अग्रदूत हो
सकते हैं और
घोषणा कर सकते
हैं कि
परममानव
हमारे
उत्तराधिकारी
के रूप में
आने वाला है।
अब तक हम इसे
करने में
असमर्थ रहे
हैं, क्योंकि
हमारी सारी
ऊर्जा स्वयं
से लड़ने में जाती
है।
'मैने एक बार
पहले भी आपको
यह कहते सुना
है; शिष्य
ने जवाब दिया;
''और तब आपने
आगे कहा था :
''लेकिन कवि
लोग बहुत
ज्यादा झूठ
बोलते हैं''। आपने
क्यों ऐसा कहा
कि कवि लोग
बहुत ज्यादा झूठ
बोलते हैं?'
कवि
लोग निश्चित
ही बहुत
ज्यादा झूठ
बोलते हैं।
जरथुस्त्र ने
अवश्य इसे कहा
होगा। कवियों
को सत्य के
कुछ छोटे से
टुक्के कहने के
लिए बहुत
ज्यादा झूठ
बोलना होता है।
वे सत्य की
प्रतिध्वनियों
को,
सुदूर
प्रतिध्वनियों
को कहने के
लिए झूठ का उपयोग
युक्ति के रूप
में करते हैं।
वे मानवता की
महती सेवा
करते हैं।
यह
अच्छी बात है
कि कवि हुए
हैं। और यह
अच्छी बात है
कि सत्य की
सेवा में झूठ
बोलने के लिए
पर्याप्त
साहसी कवि हुए
हैं;
अन्यथा
दुनिया उससे
कहीं अधिक
अज्ञानी होती
जितनी कि वह
है, उससे
कहीं अधिक
अंधकार में
होती जितनी कि
वह है।
सद्गुरुओं
को झूठ बोलना
पड़ता है, क्योंकि
कभी—कभी सत्य
तुम्हारे लिए
बहुत कठोर हो
सकता है स्वीकार
करने में।
उन्हें उसे
थोड़ा हल्का
बनाना पडता है,
उन्हें
उसमें कुछ झूठ
डालना पड़ता है।
कभी—कभी सत्य
बहुत क्लुवा
हो सकता है, और झूठ रूपी
चीनी की कुछ
डलियां
फ्लूवी से भी कड्वी
दवा पी जाने
में तुम्हारी
मदद कर सकती हैं।
झूठ का
निश्चित ही
तुम्हें सत्य
के निकटतर लाने
में उपयोग
किया जा सकता
है; वे
आवश्यक रूप से
सत्य के खिलाफ
नहीं हैं। वे
सच नहीं हैं —
यह सच है —
लेकिन वे सत्य
के दुश्मन
नहीं हैं; कम
से कम
अनिवार्य रूप
से नहीं।
'क्या तुम
विश्वास करते
हो कि वह सत्य
बोला?... जरथुस्त्र
कह रहे हैं, मैंने कहा
कि कवि लोग
बहुत जगदा झूठ
बोलते हैं, और अब मैं
कहता हूं मैं
भी एक कवि हूं।
'क्या अब
तुम विश्वास
करते हो कि वह
सत्य बोला? क्यों तुम
यह विश्वास
करते हो? ' क्यों
तुम मेरा
विश्वास करते
हो?
शिष्य
ने जवाब दिया 'मैं
जरथुस्त्र
में विश्वास
करता हूं'।
उसका जवाब भी
निरतिशय
सुंदर है। वह
कह रहा है, मैं
फिक्र नहीं
करता कि आप
क्या कहते हैं,
मैं फिक्र
नहीं करता कि
आप क्या इनकार
करते हैं। आप
में मेरा
भरोसा आपके
वक्तव्यों पर
निर्भर नहीं
है — मेरा
भरोसा आपकी
उपस्थिति पर
निर्भर है, आपके होने
मात्र पर।
'मैं जरथुस्त्र
में विश्वास
करता हूं। ' इससे भेद
नहीं पड़ता कि
वह क्या कहते
हैं, मैं
उनकी निजता में
विश्वास करता
हूं मैं उनकी
स्फटिक—स्वच्छ
आखों में
विश्वास करता
हूं उनकी अधिकारपूर्ण
आवाज में; उनके
शब्दों में
नहीं बल्कि
उनके मौनों
में।
लेकिन
जरथुस्त्र
ने अपना सिर
हिलाया और
मुस्कुरा
दिया।
विश्वास
मुझे
धन्यभागी
नहीं बनाता....
सद्गुरु
हमेशा और की
मांग करता है।
वही एकमात्र
ढंग है कि वह
तुम्हें और
ऊंचे, और ऊंचे
खींचता जा
सकता है। वह
कहते हैं, विश्वास
मुझे
धन्यभागी
नहीं बनाता.
मुझे कुछ और
प्रमाण की
जरूरत है; केवल
विश्वास
पर्याप्त
नहीं है।
तुम्हें
कुछ उसका होना
होगा जिसके
जरथुस्त्र
अन्य कुछ नहीं
बस एक सपना हैं, जिसके
जरथुस्त्र
अन्य कुछ नहीं
बस एक अभीप्सा
हैं, जिसके
जरथुस्त्र
अन्य कुछ नहीं
बस एक संदेशा हैं।
तुम्हें
परममानव होना
होगा; सिर्फ
जरथुस्त्र
में विश्वास
करने से काम
नहीं चलेगा।
इतने सारे
विश्वास
करनेवाले हैं
दुनिया में —
हर व्यक्ति ही
विश्वास
करनेवाला है —
विश्वास
करनेवालों ने
मानव चेतना का
एक कतरा भी
नहीं बदला है।
मुझे थोडे और
प्रमाण की
जरूरत है, स्वयं
मुझमें
विश्वास की तो
सर्वाधिक कम।
तुम मुझे
फुसला नहीं
सकते क्योंकि
मेरा कोई अहंकार
नहीं है जिसे
तुम्हारे
विश्वास के
जरीए तृप्त
होना है। मैं
मांग करता हूं
कि तुम सिद्ध
करो — सिद्ध
करो कि
जरथुस्त्र
सही है। और
सुबूत
बौद्धिक कसरत
भर न हो, वह
तुम्हारी
संभावनाओं का
साकार हो चुका
रूप हो।
लेकिन
मंजूर किया कि
किसीने पूरी
गंभीरता में
कहा है कि कवि
लोग बहुत झूठ
बोलते हैं : वह (
व्यक्ति) सही
है — निश्चित
हम बहुत
ज्यादा झूठ
बोलते हैं।
इसके
लिए साहस की
जरूरत है, महान
साहस की, कहने
के लिए कि
निश्चित हम
बहुत ज्यादा
झूठ बोलते हैं।
लेकिन वह
जरूरतवश है।
तुम अ—प्रदूषित,
शुद्ध सत्य
बोल ही नहीं
सकते। वह
अत्यधिक
अमूर्त है —
तुम उसे पक्क
ही नहीं सकते।
झूठ इस दुनिया
के, तुम्हारी
दुनिया के, तुम्हारी
भाषा के हैं; लेकिन
युक्ति
निर्मित करने
के लिए उनका
उपयोग किया जा
सकता है, और
शायद सत्य की
एक झलक
मिल सके।
एक
बार तुम भी
उसी स्थान पर
आ जाओ, तो तुम
समझोगे कि
क्यों वह झूठ
बोल रहा था।
तुम उसके
झूठों के लिए
कृतश महसूस
करोगे। तुम
समझोगे कि
अस्तित्व
इतना
विस्तीर्ण है,
कोई उसे
उसकी पूर्णता
में नहीं जान
सकता।
अस्तित्व के
रहस्य के छोटे
से हिस्से को
जानना भी
पर्याप्त है।
बस जरा सी लौ
काफी है और
तुम हजारों
मील की यात्रा
कर सकते हो
अंधेरे में।
वह छोटी सी ली
तुम्हारे
आसपास बस चार
फीट तक प्रकाश
फेंकेगी, लेकिन
उतना काफी है;
जैसे तुम
आगे बढ़ोगे, प्रकाश का
दायरा भी
तुम्हारे साथ
आगे बढ़ता जाएगा।
लेकिन
जब कोई
जरथुस्त्र
जैसा व्यक्ति
झूठ बोलता है, यह
उसकी अपेक्षा
बहुत बेहतर है
जब कोई मूच्छि्रत
व्यक्ति सत्य
बोलता है।
उसका सत्य
सामान्य है, वह मानव
चेतना का
उत्थान नहीं
करने जा रहा।
लेकिन
जरथुस्त्र का
झूठ मानव
चेतना को उस
बिंदु तक ऊपर
उठाने जा रहा
है जहां झूठ
सच बन जाता है,
जहां सपना
यथार्थ के रूप
में साकार हो
उठता है।
कवियों
से मैं थक गया
हूं पुराने और
नये : वे सब के
सब मुझे सतही
और उथले
समुद्र
प्रतीत होते
है उन्होंने
पर्याप्त
गहराई से
विचार नहीं
किया है :
इसलिए उनका
भाव —
गहराइयों की
थाह नहीं ले
पाया है।
कवि
के प्राण
दर्शक चाहते
हैं भले ही वे
केवल भैसें
हों।
वह
कवि और
रहस्यदर्शी
के बीच एक
अंतर कर रहे हैं।
रहस्यदर्शी
एक कवि हो
सकता है; कवि
एक
रहस्यदर्शी
हो सकता है, लेकिन
आवश्यक रूप से
ऐसा नहीं है।
कवि
निरंतर किसी
की खोज में
रहते हैं जो
उनकी प्रशंसा
करे। उनका
एकमात्र आनंद
है अहंकार की सूक्ष्म
परितृप्ति।
जरथुस्त्र
ठीक हैं, कि वह
ऊब गये हैं, थक गये हैं
कवियों से।
लेकिन जब एक
रहस्यदर्शी
काव्य के
माध्यम से
बोलता है, तो
वह एक सर्वथा
भिन्न बात है।
लेकिन
मैं ऐसे प्राण
से थक गया हूं :
और मैं उस दिन को
आता हुआ देखता
हूं जब यह
स्वयं से थक
जाएगा।
पहले
ही मैं कवियों
को रूपांतरित
हुआ देख चुका
हूं मैने उनको
अपनी निगाह
अपने आप पर
करते देखा है।
मैं
प्राणों के
पश्चात्तापी
प्रगट होते
देख चुका हूं :
वे कवियों के
भीतर से ही
जन्मे
वह
कह रहे हैं कि
यदि कोई कवि
अपनी ही कविता
से थक जाए और
बजाय किसी
अन्य की तरफ
देखने के कि वह
उनकी प्रशंसा
करे वह स्वयं
पर ही दृष्टि
मोड़ना शुरू कर
दे,
तो वह रहस्यदर्शी
बनने के
रूपांतरण के
बहुत करीब है।
कवि
को कवि होने
पर ही नहीं
रुक जाना
चाहिए; उसकी
नियति तभी
परिपूर्ण हो
सकती है जब वह
एक रहस्यदर्शी
बन जाए। कवि
दूसरों में
उत्सुक है, रहस्यदर्शी
अपनी ही
अंतरात्मा का
अन्वेषण कर
रहा है। कवि
ऐसी बातें
कहता है जिनकी
तुम प्रशंसा
करोगे, रहस्यदर्शी
ऐसी बातें
कहता है
जिन्हें उसने अपनी
ही आत्मा की
गहराइयों में
पाया है। और
वह उन्हें
इसलिए कहता है
कि संभवत: वे
तुम में खोज व
अन्वेषण की एक
ललक पैदा
करेंगी।
.......ऐसा
जरथुस्त्र ने
कहा!
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