प्यारे
ओशो,
जरथुस्त्र
स्वयं से कहते
हैं :
मैं
एक परिव्राजक
हूं और एक
पर्वतारोही....
मुझे मैदान
अच्छे नहीं लगते
और ऐसा लगता
है मै देर तक
शांत नहीं बैठ
सकता।
और
भाग्य और
अनुभव के रूप
में चाहे जो
कुछ भी अभी
मुझ तक आने को
हो —
परिव्रज्या
और
पर्वतारोहण
उसमें रहेगा
ही : अंतिम
विश्लेषण में
व्यक्ति केवल
स्वयं को ही
अनुभव करता है।
'तुम महानता
का अपना मार्ग
तय कर रहे हो
: अब पहले जो
तुम्हारा परम
खतरा था वही
तुम्हारी
परम शरण बन
चुका है!
'तुम महानता
का अपना मार्ग
तय कर रहे हाो : तुम्हारे
पीछे कोई भी
यहां चोरी—
छिपे नहीं आ
पाएगा! स्वयं
तुम्हारे
पांव ने ही
तुम्हारे
पीछे का मार्ग
लुप्त कर दिया
है और उस मार्ग
के ऊपर लिखी
पड़ी है :
असंभावना।
'और जब समस्त
पादाधार विदा
हो जाएं तो
तुम्हें पता
होना जरूरी है
कि अपने ही
सिर के बल
कैसे आरोहण
(चढ़ाई) करना :
इससे अन्यथा
कैसे तुम ऊपर
की ओर आरोहण
कर सकोगे?
एक
सर्वाधिक
मूलभूत बात उन
सब द्वारा
समझे जाने की
जो खोज में
हैं — मार्ग की
खोजे में, दिशा
की खोज में, अर्थ की खोज
में, स्वयं
की खोज में — यह
है कि उन्हें
परिव्राजक (वांडरर)
नहीं बने रह
सकते। उन्हें
एक घटना होने
के बजाय एक
प्रक्रिया होना
सीखना है।
वस्तुओं
और मनुष्य के
बीच,
पशुअpएंअउाऐर
मनुष्य के बीच,
सबसे बड़ा
विभेदक चिह्न
यह है कि
वस्तुएं वैसी हीं
बनी रहती हैं;
वे
परिव्राजक
नहीं बन सकतीं।
पशु भी पूर्ण
ही पैदा होतै
हैं — वे ऊर्ध्व—विकास
नहीं करते, वे केवल आयु—विकास
करते हैं। एक
हिरन हिरन
होकर पैदा
होता है और एक
हिरन होकर ही
मरेगा। उसके
जन्म और
मृत्यु के
मध्य कोई
प्रक्रिया नहीं
है, कुछ
बनना नहीं है।
मनुष्य
ही एकमात्र
प्राणी है
पृथ्वी पर — और
संभवत: पूरी
सृष्टि में —
जो एक
प्रक्रिया बन
सकता है, एक
गतिशीलता, एक
ऊर्ध्व—विकास।
केवल आयु में
ही विकसित
होता हुआ नहीं,
बल्कि
चेतना के नये
तलों तक
विकसित होता
हुआ, सजगता
की नयी दशाओं
तक, अनुभव
के नये आयामों
तक। और मनुष्य
में यह
संभावना भी है
कि वह स्वयं का
भी अतिक्रमण
कर सकता है, वह स्वयं के
पार जा सकता
है। वह है
प्रक्रिया को
उसकी
तर्कपूर्ण
निष्पत्ति तक
ले जाना।
दूसरे
शब्दों में, मैं
चाहूंगा कि
तुम्हें याद
आए कि मनुष्य
को एक 'बीइंग'
के रूप में,
एक होनेपन
के रूप में
नहीं समझा
जाना है, क्योंकि
'बीइंग' (होनापन )
शब्द गलत
धारणा पैदा करता
है — जैसे कि
मनुष्य
परिपूर्ण है।
मनुष्य एक
बिकमिंग है, होने की
प्रक्रिया है।
तुम
महानता का
अपना मार्ग तय
कर रहे हो :
तुम्हारे
पीछे कोई भी
यहां चोरी—
छिपे नहीं आ पाएगा!
स्वयं
तुम्हारे
पांव ने ही
तुम्हारे पीछे
का मार्ग
लुप्त कर दिया
है और उस
मार्ग के ऊपर
लिखी पड़ी है :
असंभावना। जब
तक तुम असंभव
की चुनौती न
स्वीकार करो, तुम्हारी
महानता अपने
परम शिखर तक
नहीं खिल सकती।
केवल असंभव ही
तुम्हें
तुम्हारी
पूर्ण खिलावट
तक लाता है; केवल असंभव
ही तुम्हारा
बसंत लाता है,
तुम्हारा
घर लाता है।
यदि
तुम मुझसे
पूछते हो, मैं
कहूंगा ईश्वर
कुछ नहीं है
सिवाय असंभव
का ही एक
दूसरा नाम।
लेकिन इसने
अपनी
गुणवत्ता खो
दी है क्योंकि
तुम इससे इतने
परिचित हो
चुके हो — तुम
कभी सोचते ही
नहीं कि यह
कोई ऐसी बात
है जो असंभव
है। तुमने
ईश्वर को संभव
के रूप में
सोचना शुरू कर
दिया है। इसने
अपना
उद्देश्य ही
खो दिया है।
बेहतर
है अब इसे
जरथुस्त्र के
शब्द ' असंभावना'
के साथ बदल
लेना। वही
उनका घर है, वही उनकी
शरण है, और
वही उनकी
परिव्रज्या
(वाडरिंग ) है।
और यह उनकी
प्रतिभा को, उनकी महानता
को, उनकी
सत्यनिष्ठा
को, उनकी
निजता को परम
भव्यता पर
लाना है। तुम्हारी
अपनी ही
अंतरात्मा की महिमा
के सिवाय अन्य
कोई उपलब्धि
नहीं है।
और
जब समस्त
पादाधार विदा
हो जाए तो
तुम्हें पता
होना जरूरी है
कि अपने ही
सिर के बल
कैसे आरोहण
(चढ़ाई) करना :
इससे अन्यथा
कैसे तुम ऊपर
की ओर आरोहण
कर सकोगे 7
व्यक्ति
को स्वयं का
अतिक्रमण करना
होगा।
व्यक्ति
को स्वयं को
पीछे छोड़ देना
होगा।
व्यक्ति
को स्वयं से
आगे निकल जाना
होगा।
जो
कुछ भी तुम हो
वह सब पीछे
छोड़ दिया जाना
होगा —
तुम्हारे
विचार, तुम्हारे
सपने, तुम्हारी
कल्पनाएं
तुम्हारे
पूर्वाग्रह, तुम्हारे
दर्शनशास्त्र...
सब कुछ जिससे
मिलकर तुम्हारा
व्यक्तित्व
बना है।
तुम्हें उसे
ऐसे ही छोड़
देना है जैसे
सर्प अपनी
पुरानी चमड़ी
(जाली ) छोड़ता
है — वह उससे
बाहर सरक जाता
है और कभी
पीछे मुड़कर देखता
तक नहीं।
जब
तक व्यक्ति
स्वयं का ही
अतिक्रमण
नहीं करता, वह
'असंभव' की अनुभूति
नहीं कर सकता।
तब तक व्यक्ति
परिव्रज्या
में, खोज
में परम की
अनुभूति नहीं
कर सकता, व्यक्ति
शुद्धतम
अभीप्सा की
अनुभूति नहीं
कर सकता। तुम
बस एक तीर हो, और तुम्हारे
लिए कोई
लक्ष्य नहीं
है। यह समझना
कि तुम एक तीर
हो — पूरी गति
में, कहीं
न जाते हुए
बिना किसी
लक्ष्य के —
अपने ही होने
के संबंध में
समझने के लिए
सर्वाधिक कठिन
बात है।
सारे
अन्य धर्म
बचकाने
प्रतीत होते
हैं — बच्चों
के खिलौने।
जरथुस्त्र
तुम्हें एक
चुनौती दे रहे
हैं जो केवल
अत्यधिक
साहसियों
द्वारा ही
स्वीकार की जा
सकती है।
.........ऐसा
जरथुस्त्र ने
कहा।
THANK YOU GURUJI
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