‘’रिसरेक्शन’’ टॉलस्टॉय का आखिरी उपन्यास है। इससे पहले ‘’वार एंड पीस’’ और ऐना कैरेनिना’’ जैसे श्रेष्ठ और महाकाय उपन्यास लिखकर टॉलस्टॉय ने विश्व भर में ख्याति अर्जित कर ली थी। ऐना कैरेनिना के बारे में उसने खुद कहा कि मैंने अपने आपको पूरा उंडेल दिया है। इस उपन्यास के बाद टॉलस्टॉय की कल्पनाशीलता वाकई चुक गई थी क्योंकि इसके बाद वह दार्शनिक किताबें लिखने लगा था। अपने आपको एक संत या ऋषि की तरह प्रक्षेपित करने लगा था। उस भाव दशा में ‘’रिसरेक्शन’’ जैसा उपन्यास लिखने की प्रेरणा टॉलस्टॉय के पुनर्जन्म जैसी ही थी। रिसरेक्शन अर्थात पुनरुज्जीवन।
अख़बार में प्रकाशित एक छोटी सी खबर पढ़कर टॉलस्टॉय के भीतर का सोया हुआ सर्जन जाग उठा और उसने इस उपन्यास को जन्म दिया। ‘’रिसरेक्शन’’ के कई अंश लंबे समय तक विवाद के घेरे में पड़े थे। रशियन चर्च ने उन पर प्रतिबंध लगा दिया क्योंकि वे चर्च के पाखंड और राजनीति पर प्रहार करते थे। चर्च जीसस के सूत्रों पर जिस तरह अमल कर रहांं था वह टॉलस्टॉय को बिलकुल पसंद नहीं था, इसलिए अपने उस पर चोट की।
टॉलस्टॉय के सभी नायकों में उसकी अपनी छवि झलकती है। वैसी इस उपन्यास के नायक में भी साफ नजर आती है। यह उपन्यास लिखते समय टॉलस्टॉय की मनोदशा कुछ दार्शनिक की थी और कुछ उपन्यासकार की। अंत: अपने पात्रों की कहानी कहते-कहते वह बीच में कूदकर अपना दर्शन पिलाने लगता था। और ये ही पन्ने चर्च को आपत्तिजनक लगे। उपन्यास की शुरूआत जीसस के पाँच सूत्रों से होती है। उनमें से एक है:
‘’फिर पीटर उसके पास आया और उसने पूछा, ‘’प्रभु मेरा भाई मेरे खिलाफ कितनी बार अपराध करेगा तब मैं उसे माफ करूंगा—सात बार?’’
जीसस ने कहा, ‘’सात बार नहीं, सतहत्तर बार।‘’
उपन्यास की पूरी कहानी राजकुमार नेखलुदोव और एक गरीब और खुबसूरत कैदी स्त्री के अंतर्सबंधों की कहानी है। उपन्यास की शुरूआत ही क़ैदख़ाने में होती है। मैस लोवा, एक महिला जो कि वेश्या वृति से रहती थी। एक अमीर आदमी की हत्या के जुर्म में कैद की जाती है। उसका अपराध अभी साबित नहीं हुआ है। लेकिन उस दिन उसे अदालत में पेश किया जाना था। अदालत में ज्यूरी के जो सदस्य थे उनमें से एक था राजकुमार नेखलुदोव। कट घरे में खड़ी मैस लोवा को देखकर नेखलुदोव की पुरानी यादें जाग जाती हे। जब वह बीस-इक्कीस साल का था तब उसकी मौसियों के घर मैस लोवा काम करती थी। उस समय नेखलुदोव ने उसके साथ रिश्ता बनाया था। बाद में उसके हाथ में सौ रुबल थमा कर वह चला गया और सेना में भरती हुआ।
इधर मैसलोवा के पेट में नेखलुदोव का बच्चा पलने लगा। मौसियों को उसके गर्भवती होने की खबर लगी तो उन्होंने उस पर लांछन लगाकर घर से निकाल दिया। बेसहारा मैसलोवा का बच्चा पैदा होते ही मर जाता है और वह वेश्यालय चली गई। उसके पास जो ग्राहक आते थे उन्ही में से एक की हत्या करने के जुर्म में वह पकड़ी गई। मैसलोवा का जुर्म किसी भी तरह से साबित नहीं हो सका और फिर भी ज्यूरी ने उसे साइबेरिया में चार साल तक सश्रम कारावास की सज़ा दे दी। मैसलोवा रो-रोकर कहती रही, ‘’मैंने हत्या नहीं की, मैं निर्दोष हूं।‘’
लेकिन न्यायाधीशों को और भी कई काम थे, एक वेश्या की सच्चाई में गहरे उतरने की फुर्सत नहीं थी। सिर्फ नेखलुदोव की अंतरात्मा उसे कचोटने लगी। एक तो ज्यूरी के फैसले को वह बदल सकता था। लेकिन उसकी कायरता ने उसे मैसलोवा के पक्ष में कुछ कहने नहीं दिया। उसे डर था कि कहीं उन दोनों के संबंध का भेद न खुद जाए।
खैर, देर से ही, नेखलुदोव ने अपनी गलती को सुधारने का निश्चय किया। उसका आदर्शवादी मन मैसलोवा की हालत के लिए खुद को जिम्मेदार मानने लगा। न वह मैसलोवा को फुसलाता, न उसे घर छोड़ना पड़ता, न उसका बच्चा मरता, न वह वेश्या बनती ओर इस मुक्दमें में फँसती।
इसके बाद नेखलुदोव की जिंदगी का एक ही मकसद हो गया: मैसलोवा को इस इल्जाम से बरी कराना और उससे विवाह कर उसे इज्जतदार जिंदगी देना। चूंकि वह राजकुमार था। बड़े-बड़े अधिकारियों से उसकी पहचान थी, समाज में प्रतिष्ठा थी, उसने वकीलों के द्वारा सीनेट में अपील की कि निचली अदालत के निर्णय पर पुनर्विचार किया जाये। वहां उसकी अपील खारिज हुई तो उसने खूद ज़ार से अपील की। वहां वह सफल हुआ और मैसलोवा की सज़ा कम हुई—साइबेरिया में चार साल सामान्य कारावास, सश्रम नहीं।
मैसलोवा से मिलने के बाद नेखलुदोव के समूचे जीवन दर्शन में बदलाव हुआ। उसने गरीब किसानों को अपनी ज़मीन दान देना शुरू कर दी। उसके रिश्तेदारों और अन्य राज परिवारों में उसके पागलपन की खबर फैल गई—कि वह एक हत्यारिन वेश्या से विवाह करना चाहता है। और अपनी संपति गरीबों में बांट रहा है। लेकिन नेखलुदोव इस सबसे एक प्रकार की निर्मलता अनुभव कर रहा था, मानो धुल गया हो। इधर वह जब भी मौका मिलता मैसलोवा से मिलने चला जाता। इतनी बदसूरत जिंदगी जी कर मैसलोवा जड़ हो चुकी थी। नेखलुदोव के विवाह प्रस्ताव का उस पर कोई असर नहीं हुआ। अब तक क़ैदियों के बीच भी इन दोनों की कहानी फैल चुकी थी। लेकिन मैसलोवा सोचती थी कि नेखलुदोव उस पर दया कर रहा है और वह यह बिलकुल नहीं चाहती थी।
जब लगभग दो हजार क़ैदी भेड़-बकरीयों की तरह साइबेरिया ले जाये गये तो दूसरी रेल से नेखलुदोव भी साइबेरिया गया। मैसलोवा की सज़ा पूरी होने तक वि भी उसके साथ रहना चाहता था। यहां से कहानी अचानक मोड़ लेती है। मैसलोवा नेखलुदोव से विवाह करने के लिए इंकार कर देती है। वह जिन राजनैतिक क़ैदियों के साथ होती है उन्हीं में से एक, सिमॉनसन के साथ प्रेम हो जाता है। उसका मानना था कि नेखलुदोव अपना फ़र्ज अदा कर बीते हुए कल का प्रायश्चित करना चाहता है और सिमॉनसन आज वह जैसी है वैसी ही स्वीकार कर उससे प्रेम करता है।
नेखलुदोव का गुब्बारा अचानक फूट जाता है, प्रायश्चित, त्याग, कर्तव्य–सारे आदर्श एक झटके में बिखर जाते है। वह अपने मन को समझा लेता है कि मैसलोवा इससे बहुत प्रेम करती है, इसलिए नहीं चाहती कि अपनी कुरूप जिंदगी का साया उसकी राजसी जीवन शैली पर पड़े।
मैसलोवा से मिलने नेखलुदोव क़ैदख़ाने जाता रहा और कैदियों के जीवन से भली भांति परिचित हुआ। कैद खाने की बदतर हालत गंदगी, कैदियों के साथ किया जाने वाला अमानवीय व्यवहार, उनकी भुखमरी, इन बातों का नेखलुदोव के संवेदनशील मन पर गहरा असर होता रहा। उसे सबसे व्यथित करनेवाली बात थी अनेक-अनेक निर्दोष लोगों का कारावास। उन्हें पता ही नहीं था कि उनका गुनाह क्या है। और फिर भी पुलिस उन्हें पकड़कर ले आती है। उन्हें अंदर बंद कर दिया जाता। उनकी कई सुनवाई नहीं थी और न उन्हें कोई इंसाफ मिलता। सबको पकड़कर एक मुश्त साइबेरिया भेज दिया जाता।
उन दिनों अधिकांश रशियन जनता भयंकर गरीबी में जी रही थी। उनके शरीर के कंकाल, बीमार बच्चे और जर्जर बूढ़े, और आधे पेट मेहनत मजदूरी करनेवाले पुरूष देखकर ही नेखलुदोव ने अपनी ज़मीनें उनके नाम कर दी थी।
सामान्य नागरिक के जीवन के इन भीषण दुखों को देखकर नेखलुदोव असहनीय पीड़ा से भर उठा। वह लास्ट टैस्टामैंट में सांत्वना ढूंढने लगा। उसने मैथ्यू के नियम पढ़े—‘’अपने पड़ोसी से प्रेम करो, कोई एक गाल पर चांटा मारे तो दूसरा आगे कर दो’’ इत्यादि।
उसे लगने लगा कि आदमी का अपनी ज़िदगी पर बस कहां, वह यहाँ किसी के द्वारा भेजा गया है। और जिसने भेजा है वही उसका मालिक है। आदमी खुद मालिक बनने की कोशिश करता है और वहीं वह इन नियमों के विपरीत जाता है, दुःख पाता है।
जीसस ने कहा, ‘’पहले ईश्वर का राज्य खोजा, बाकी सारी चीजें तुम्हें अपने आप मिल जायेगी।
हम उल्टा करते है, पहले चीजों को इकट्ठा करने में मशगूल हो जाते है, और ईश्वर के राज्य की कोई फ्रिक नहीं करते।
इस मनन-चिंतन से नेखलुदोव की चेतना में मानों क्रांति घट गई। और वह नई सुबह के लिए, नई जिंदगी के लिए तैयार हुआ। यही उसका पुनरुज्जीवन था।
इस उपन्यास को पढ़ते हुए यह ख्याल में लेना बहुत जरूरी है कि यह समय के किस दौर में लिखा गया था। यह किताब 1899 में लिखी गई। वह विख्यात रशियन क्रांति के पहले का समय था। जमींदारी, जार शाही, गरीब ओर अमीर के बीच की अलंघ्य खाई, ये सब रशियन समाज व्यवस्था के अंग थे। उन दिनों रशिया पर ईसाई धर्म की पकड़ जबरदस्त थी जैसे कि पूरे यूरोप में थी। जीसस के मूल सूत्र खो गए थे। और चर्च तथा चर्च का आडंबर बहुत शक्तिशाली हो गया था। समय के इस दौर में जो-जो बुद्धिजीवी हुए—गैलीलियो से लेकिर बर्ट्रेंड रसेल तक—उन सबने चर्च के द्वारा फैलाये गये पाखंड को मानने से साफ इंकार कर दिया। स्वभावत: उसकी कीमत भी चुकाई—मृत्यु दंड से लेकर सामाजिक बहिष्कार तक।
टॉलस्टॉय भी इन्हीं विद्रोहियों के सिलसिले का हिस्सा था। कारागृह में कैदियों के लिए हर रविवार की सुबह चर्च द्वारा एक धर्म सभा आयोजित की जाती थी। पादरी जीसस और मेरी, पवित्र आत्मा और ईश्वर की खोखली बातें किये जाते जिनका इन सजायाफ्ता, बीमार, भूखे, परेशान कैदियों से कोई तालमेल नहीं होता। उस सभा के विषय में टॉलस्टॉय लिखता है:
‘’उस सभा में जो भी मौजूद थे, पादरी से लेकर मैसलोवा तक, वे इस बात से बेखबर थे कि वह जीसस जिसके नाम पर पादरी बार-बार दोहरा रहा था, जिसकी वह अजीब से क्लिष्ट शब्दों में प्रशंसा कर रहा था। उसके वही बातें करने की मनाही की थी जो यहां हो रही थी। उसने ने केवल यह अर्थहीन बकवास और ब्रेड और शराब के बारे में यह नापाक गौरव गान मना किया था बल्कि साफ शब्दों में मनुष्य को मना किया था कि वह दूसरे मनुष्यों को मालिक कहे। उसके मंदिरों में प्रार्थना करने के लिए मना किया था और एकांत में प्रार्थना करने का आदेश दिया था। उसके मंदिर बनाने का निषध किया था और कहा था कि वह उन्हें मिटाने के लिए आया है। और पूजा मुदिर में नहीं, आत्मा में और सत्य में होनी चाहिए। उसने कहा था, किसी का मूल्यांकन मत करो, कैदी मत बनाओ सताना, दंड देना या किसी प्रकार की हिंसा मत करो। उसका वचन था, ‘’मैं बंदियों को आज़ाद करने आया हूं।‘’
वहां इकट्ठे लोगों में से एक को भी इसका अहसास नहीं था कि वहां जो हो रहा था वह अधर्म है; और वह उसी क्राइस्ट की मखौल है जिसके नाम पर यह सब हो रहा था। किसी को यह होश नहीं था कि पादरी के गले में जो सोने का क्रॉस था, जिसे लोग आगे बढ़कर चम रहे थे वह उस सूली का प्रतीक था जिस पर क्राइस्ट को टाँगा गया था। क्योंकि उसने इन्हीं बातों का विरोध किया था जो यहां पर हो रही थी।‘’
उन्नीसवीं सदी के आखरी चरण में इस तरह की बातें लिखना कोई जीनियस और जिगर वाला व्यक्ति ही कर सकता है। वैसे ये दोनों गुण एक ही सिक्के के दो पहलू है। जीनियस होता जिगर होता ही है।
धार्मिक या दार्शनिक विषय छोड़ भी दें, तब भी मनोविज्ञान की अंतर्दृष्टि और उस अंतर्दृष्टि की अभिव्यक्ति भी टॉलस्टॉय के कलम की बहुत बडी ताकत है। एक जगह वह मनुष्य के बारे में लिखता है:
‘’एक बहुत ही आम मान्यता है कि प्रत्येक व्यक्ति में एक खास गुण होता है। जैसे कोई दयालु होता है, कोई दुष्ट होता है; कोई समझदार होता है कोई नासमझ; काई जोशीला होता है कोई आलसी। लेकिन यह कहना सही नहीं होगा कि यह आदमी दयालु और समझदार है। और दूसरा दुष्ट और नासमझ। और फिर भी हम मनुष्य जाति की अलग-अलग श्रेणियां बनाते है।
‘’लोग नदियों की तरह होते है। सभी नदियों में पानी एक जैसा होता है। लेकिन हर नदी कहीं चौड़ी होती है तो कहीं संकरी; कहीं तेज बहती है, कही धीरे; कहीं मटमैला, कहीं निर्मल; कहीं शीतल, कही उष्ण। मनुष्य के बारे में ऐसा ही है। प्रत्येक आदमी में हर तरह के मानवीय गुणों के बीज होते है। कभी एक गुण प्रकट होता है और कभी दूसरा गूण। और बहुत बार वह आदमी स्वयं से बिलकुल भिन्न हो जाता है। हालांकि वह वही आदमी बना रहता है।
कुछ लोगों में ये बदलाव अतिशय होते है, और नेखलुदोव ऐसा व्यक्ति था। उसके भीतर ये बदलाव होने की वजह जितनी शारीरिक थी उतनी आध्यात्मिक भी थी।
उसमें अब इसी तरह का बदलाव हुआ था। जीवन को नया रूख मिलने की खुशी और विजय की भावना जो उसे मुकदमे के बाद और कात्युश (मैसलोवा) से मिलने के बाद अनुभव हुई थी वह नदारद हो गई। और पिछली बार उसे मिलने के बाद खुशी की जगह भय और वितृष्णा ने ले ली। उसने ठन ली थी कि वह उसे नहीं छोड़ेगा, और उससे शादी करने का निर्णय नहीं बदलेगा। अगर वह चाहे तो, लेकिन वह अति कठिन मालूम हो रहा था। और उससे उसे बहुत कष्ट हो रहा था।‘’ वह चाहता था इन दोनों के संबंध को आदर्शवादिता की सुनहरी झालर लगा सकता था। नेखलुदोव के साथ-साथ मैसलोवा का भी ह्रदय परिवर्तन दिखाकर, और उसे नेखलुदोव की पत्नी बनाकर उसकी दव्य रूपांतरण दिखा सकता था। लेकिन मानवीय मन की जटिलता और जीवन का यथार्थ इतना सरल नहीं है।
टॉलस्टॉय की प्रतिभा पूरी तरह से जमीन से जुड़ी हुई थी। उसने कभी कल्पना की कृत्रिम उड़ान नहीं भरी। उसकी सफलता का यह एक बहुत बड़ा अधिष्ठान था।
ओशो का नजरिया:
तीसरी किताब है, टॉलस्टॉय की ‘’रिसरेक्शन’’। पूरी जिंदगी लियो टॉलस्टॉय जीसस क्राइस्ट से बहुत प्रभावित था। यह शीर्षक ‘’रिसरेक्शन’’ उसी से आया था।
लियो टॉलस्टॉय ने सचमुच बहुत ही कलात्मक रचना पेश कि है। मेरे लिये यह बाइबल की तरह थी। जब में छोटा था तो मैं अभी भी देख सकता हूं कि किस तरह मैं निरंतर टॉलस्टॉय की ‘’रिसरेक्शन’’ लिए घूमता रहता था। मेरे पिताजी चिंतित हो गए। एक दिन उन्होंने मुझसे कहा, ‘’तुम दिन भी यह किताब लेकर क्यो घूमते हो? तुम तो इसे पढ़ चूके हो।
मैंने कहा: ‘’सिर्फ एक बार नहीं, कई बार। लेकिन फिर भी मैं इसे अपने साथ रखूंगा।‘’
मेरा पूरा गांव जानता था कि मैं ‘’रिसरेक्शन’’ नाम की कोई किताब साथ रखता हूं। उन्होंने सोचा कि मैं पागल हो गया हूं। और पागल आदमी कुछ भी कर सकता है। लेकिन मैं ‘’रिसरेक्शन’’ दिन भी क्यों साथ रखता था? न केवल दिन भर बल्कि रात को भी वह किताब मेरे विस्तर के पास रखी रहती थी। मुझे वह बेहद पसंद थी।
जिस तरह लियो टॉलस्टॉय ने जीसस के संदेश को प्रतिफलित क्या है, वह जीसस के किसी भी शिष्य से अधिक सफल है। थॉमस को छोड़कर। उस किताब में मैं ‘’रिसरेक्शन’’ के तुरंत बाद बात करूंगा। बाईबिल में जो चार गॉस्पल शामिल किये गये है वे जीसस की आत्मा से ही चूक गये।
टालस्टाय सचमुच जीसस से प्रेम करता था। और प्रेम जादुई है। क्योंकि जब तुम किसी से प्रेम करते हो तब समय खो जाता है। टॉलस्टॉय जीसस से इतना प्रेम करता था कि वे दोनों समसामयिक हो गए। दोनों के बीच अंतराल बड़ा है, दो हजार साल का, लेकिन जीसस और टॉलस्टॉय के बीच वह खो जाता है। ऐसा विरले ही होता है, मुश्किल से कभी: इसलिए मैं वह किताब हाथ में लेकिर घूमता था।
हालाकि अब में उसे हाथ में नहीं रखता पर वह अब भी मेरे दिल में उसी तरह रहती है। अभी भी।
ओशो
बुक्स आय हैव लव्ड
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