अच्छा हो कि यह प्रार्थना ध्यान आप रात में करो। कमरे में अंधकार कर ले। और ध्यान खत्म होने के तुरंत बाद सो जाओ। या सुबह भी इसे किया जा सकता है, परंतु उसके बाद पंद्रह मिनट का विश्राम जरूर करना चाहिए। वह विश्राम अनिवार्य है, अन्यथा तुम्हें लगेगा कि तुम नशे में हो, तंद्रा में हो।
उर्जा में यह निमज्जन ही प्रार्थना ध्यान है। यह प्रार्थना तुम्हें बदल डालती है। और जब तुम बदलते हो तो पूरा अस्तित्व भी बदल जाता है।
दोनों हाथ ऊपर की और उठा लो, हथैलियां खुली हुई हों सिर सीधा उठा हुआ रहे। अनुभव करा कि आस्तित्व तुममें प्रवाहित हो रहा है।
जैसे ही ऊर्जा तुम्हारी बाँहों से होकर नीचे बहेगी—तुम्हें हलके-हलके कंपन का अनुभव होगा। तुम हवा में कंपते हुए पत्ते की भांति हो जाओ। उस कंपन को होने दो, उसका सहयोग करो। फिर पूरे शरीर को ऊर्जा से स्पंदित हो जाने दो, और जो होता हो उसे होने दो।
अब पृथ्वी के साथ प्रवाहित होने का अनुभव करो। पृथ्वी और स्वर्ग, ऊपर और नीचे, यन और याँग , पुरूष और स्त्री—तुम बहो, तुम घुलो, तुम स्वयं को पूरी तरह छोड़ दो। तुम नहीं हो। तुम एक हो जाओं, निमज्जित हो जाओ।
दो या तीन मिनट बाद या जब भी तुम पूरी तरह भरे हुए अनुभव करो। तब तुम धरती की और झुक जाओ और हथेलियों और माथे से उसे स्पर्श करो। तुम तो बस वाहन बन जाओं कि दिव्य ऊर्जा का पृथ्वी की ऊर्जा से मिलन हो सके।
इन दोनों चरणों को छह बार और दोहराओं ताकि सभी चक्र खुल सकें। इन्हें अधिक बार किया जा सकता है। लेकिन कम करोगे तो बेचैन अनुभव करोगे और सो नहीं पाओगे।
प्रार्थना की उस भाव दशा में ही सोओ। बस सो जाओ और ऊर्जा बनी रहेगी नींद में उतरते-उतरते भी तुम उस ऊर्जा के साथ बहते रहोगे। यह गहन रूप से सहयोगी होगी क्योंकि फिर ऊर्जा तुम्हें सारी रात घेरे रहेगी और भीतर कार्य करती रहेगी। सुबह होते-होते तुम इतने ज्यादा ताजे, इतने ज्यादा प्राणवान अनुभव करोगे, जितना तुमने पहले कभी भी अनुभव नहीं किया था। एक नई सजीवता, एक नया जीवन तुममें प्रवेश करने लगेगा। और पूरे दिन तुम एक नई ऊर्जा से भरे अनुभव करोगे; एक नई तरंग होगी, ह्रदय में एक नया गीत और पैरों में एक नया नृत्य होगा।
ओशो
ध्यानयोग: प्रथम और अंतिम मुक्ति
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