यह छोटी सी खूबसूरत किताब अधिकत: गद्य में लिखी गई है। लेकिन इसके ह्रदय में कविता बह रही है। खलिल जिब्रान का अंतस् उस सौंदर्य लोक में प्रविष्ट हुआ है। जहां गद्य और पद्य में बहुत फर्क नहीं होता और विचार भी एक तरह का संगीत हो जाता है।
यह किताब भी जिब्रान ने उसी अंदाज में लिखी है जैसे उसकी अन्य किताबें। अल मुस्तफा, एक प्रबुद्ध रहस्यदर्शी बहुत यात्राएं कर उसके अपने द्वीप में वापस लौटता है जहां उसका अपना बग़ीचा है। उस बग़ीचे में उसके मां-बाप दफनाये गये है। इसी बग़ीचे में वह पला, बड़ा हुआ।
‘’तिचरीन’’ के महीने में अल मुस्तफा अपने द्वीप वापस लौटता है। यह महीना स्मरण करने का महीना है। अंत: अपने मां-बाप और मातृभूमि का स्मरण करने अल मुस्तफा आ रहा है। जैसे उसका जहाज किनारे से गुफ्तगू करने लगता है। जहाज का नाविक देखते है कि किनारे पर गांव वालों की भीड़ खड़ी अल मुस्तफा के स्वागत का इंतजार कर रही है। अल मुस्तफा के ह्रदय में समुंदर लहरा रहा है। लेकिन उसके होंठ चुप है। वह गांव वालों की पीड़ा को अपने भीतर महसूस कर रहा है।
तभी भीड़ में से करीमा आगे आती है। करीमा उसकी बचपन की दोस्त है। वह सबकी जबान बनती है—‘’बारह साल तक तुम हमसे मुंह छिपाये रहे। बारह साल तक तुम्हारी आवाज सुनने के लिए हमारे कान तरसते रहे।
वह निहायत कोमलता से उसे देखता है। वह करीमा ही थी जिसने उसकी मां की आंखे बंद की थी जब मौत के सफेद पंखों ने उसे अपनी बांहों में समेट लिया था।
‘’बाहर साल।’’ उसने कहा, ‘’मैंने कभी सितारों के डंडे से अपने विरह को नापा नहीं। प्रेम जब घर की याद करता है तो वक्त का लेखा-जोखा समाप्त हो जाता है। कुछ पल ऐसे भी होते है जो विरह के युगों को अपने से संजोते है। फिर भी विरह मन की थकान के अलावा और कुछ नहीं है। हो सकता है हम कभी बिछुड़े ही न हो।‘’
फिर उसने भीड़ पर नजर डाली। हर तरह के लोग थे वहां। और उनके चेहरे पर भी विरह और प्रश्नों की रोशनी थी।
एक ने कहा, ‘’मास्टर जिंदगी ने हमारी आशाओं और इच्छाओं के साथ बड़ा बुरा सलूक किया है। हमारे दिल परेशान है और हमारी समझ को साहिल नहीं मिल रहा। मेहरबानी करके हमारे इन दुखों का मतलब हमें समझायें।
और अल मुस्तफा का ह्रदय करूणा से पसीज जाता है। उसने कहा, ‘’जीवन सारी जिंदा चीजों से भी पुराना है। जब जमीन पर सुंदरता पैदा नहीं हुई थी। तब भी सौंदर्य के पंख थे। जीवन हमारी खामोशियों में गाता है और हमारी नींदों में ख्वाब देखता है। जब हम कुटे-पीटे होते है तब भी जीवन बुलंदी को छू रहा होता है। और जब हम आंसुओं में डूबे होते है तब वह हंसता रहता है।
इसके बाद अकेला अल मुस्तफा अपने बग़ीचे में जाता है। लोग भी उसके पीछे जाना चाहते है लेकिन वे अपनी चाहत के पाँवों में ज़ंजीरें बाँध लेते है।
चालीस दिन और चालीस रातें अल मुस्तफा एकांत में बिताता है। चालीस दिनों के बाद वि द्वार खोलता है ताकि लोग अंदर आ सकें। नौ लोग अंदर आते है। जो कि उसके शिष्य होते है। उन शिष्यों में से एक-एक करके अल मुस्तफा से अलग-अलग विषयों पर प्रश्न पूछते है और वह उसका जवाब देता है।
यह शैली खलील जिब्रान के ‘’प्रॉफेट’’ जैसी है। वहां भी लोग उसे जीवन के सभी पहलुओं पर प्रश्न पूछते है। और अल मुस्तफा उनके प्रज्ञा पूर्ण उत्तर देता है।
फिर एक दिन करीमा द्वार पर आ कर खड़ी होती है। अल मुस्तफा उसके लिए द्वार खोल देता है। करीमा का उस पर खास हक बनता है। बचपन में उनका भाई-बहन का सा प्यार था।
उस हक को अदा करते हुए करीमा पूछती है। ‘’आपने खुद को हमसे कहां छुपा लिया है?इतने साल हम आपके लिए तरसते रहे, आपने सलामत लौटने की दुआ करते रहे। ओर अब लोग आपकी मांग कर रहे है, आपसे बातें करना चाहते है, मैं उनका पैगाम ले कर आई हूं। उनके टूटे हुए दिलों को दिलासा दो, हमारी बेवकूफी को अपनी समझ का किनारा दो।‘’
उसकी और देखकर अल मुस्तफा ने कहा, ‘’मुझे समझदार मत कहो जब तक कि तुम सभी को समझदार न कहो। मैं एक कच्चा फल हूं, अभी तक डाली को पकड़े हुए हूं। कल तक तो मैं फूल ही था।
और तुम लोगों में से किसी को बेवकूफ न कहो क्योंकि हकीकत में न तो हम बेवकूफ है न समझदार। हम जीवन के दरख़्त पर उगे हरे पत्ते है। और जीवन समझ और नासमझी के पार है।
उसके बाद अल मुस्तफा करीमा के साथ बजार गया। लोग उससे भिन्न-भिन्न विषयों पर उनकी शंकाएं पूछते गये और वह अपनी आवाज में समुंदर की गहराई भरकर उनका समाधान करता रहा।
एक शिष्य ने पूछा, ‘’होने का अर्थ क्या है? अल मुस्तफा ने का, ‘’होने का अर्थ है उन उंगलियों से बुनना जो देखती है, ऐसा वस्तु विशारद होना जिसे प्रकाश और अवकाश का बोध हो, ऐसा किसान जो हर बीज बोते वक्त जानता है कि तुम एक खजानें को मिट्टी में छिपा रहे हो। ऐसा मछुआरा और शिकारी होना जिसके दिन में मछली और जानवर के लिए दया हो, और उससे भी ज्यादा आदमी की भूख और जरूरत का अहसास हो।‘’
‘’मेरे साथियों, मेरे प्यारों, हिम्मतवर होओ, कमजोर नहीं; विशाल होओ, सीमित नहीं। और जब तक मेरी और तुम्हारी आखिरी घड़ी न आये तब तक श्रेष्ठता को उपलब्ध रहा।‘’
बोलते-बोलते वह रूक गया और नौ शिष्यों पर गहरी उदासी छा गई। उनके ह्रदय उससे दूर चले गये क्योंकि उसके शब्द उनके पल्ले नहीं पड़ रहे थे। जो तीन नाविक थे। वे सागर पर सवार होने के लिए व्याकुल हो उठे। जो मंदिर के पुजारी थे वे पूजा घर की सांत्वना के लिए आतुर हो गये, और जो बचपन के दोस्त थे वे बाजार की चाह से भर उठे। वे सब उसके शब्दों के लिए बहरे हो गये थे इसलिए अल मुस्तफा के शब्दों की ध्वनि थके हुए बेघर पंछियों की तरह उसके पास लोट आई।
अल मुस्तफा उनकी तरफ से पीठ कर के अपने बग़ीचे में लोट आया। और वे लोग जाने के लिए बहाने ढूँढ़ते हुए, आपस में चर्चा करते हुए अपनी-अपनी जगह लौट गये। अल मुस्तफा विशिष्ट और प्रेम से भरा, बिलकुल अकेला रहा गया।
फिर सात दिन और सात रातें गुजरी जिनके दरमियान बग़ीचे में कोई नहीं आया। लेकिन आठवें दिन वे नौ शिष्य और करीमा फिर आ पहुंचे। करीमा अपने साथ ब्रेड और शराब लायी थी। वे अब एक साथ बैठकर खाने लगे। अल मुस्तफा ने प्रेमपूर्ण उन पर एक साथ निगाह डाली—उसकी निगाह में यात्रा थी और था एक सुदूर देश।
उसने उनसे कहा, ‘’इसके पहले कि हम अपने-अपने रास्ते जाएं, मैं तुम्हें अपने ह्रदय की फसल और रोशनी देना चाहता हूं। तुम अपने रास्ते गाते हुए जाओं लेकिर हर गीत छोटा रहे। क्योंकि जो गीत तुम्हारे होंठों पर जवान मरते है वे आदमी के ह्रदयो में जीते है। खूबसूरत सत्य को थोड़े से शब्दों में कहना लेकिन बदसूरत सत्य को एक भी शब्द में न कहना। बांसुरी वादक को इस तरह सुनना जैसे अप्रैल के महीने को सुनते हो और आलोचक और नुक्ताचीं आदमी को ऐसे सुनो जैसे बहरे हो और तुम्हारी कल्पनाओं की मानिंद दूर हो।
मैं तुम्हें मौन नहीं, धीमा-धीमा संगीत सिखाता हूं। मैं तुम्हें विशाल आत्मा की सिखावन देता हूं, जिसमे सारे मनुष्य समाहित है।‘’
वह उठा और साइप्रस वृक्षों के लंबे सायों से गुजरता हुआ उसी जहाज पर पहुंचा जिससे आया था। वे उसके पीछे, कुछ दूरी पर, बाअदब, भारी ह्रदय से चल रहे थे। वहां पहुंच कर उसने कहा, ‘’मैं जा रहा हूं, लेकिन अगर मैं सत्य को बिना कहे जाऊँगा तो वह सत्य मेरा पीछा करेगा। और मुझे वापस बूलायेगा। और फिर मुझे तुम्हारे सामने आकर उस नई आवाज में बात करनी पड़ेगी जो ह्रदय की असीम खामोशियों में पैदा होती है।
‘’मैं मृत्यु के पार जीऊूंगा और तुम्हारे कानों में गुनगुनाऊंगा।
जब मुझे समुंदर की विशाल लहर उसकी गहराई में ले जायेगी तब भी मैं तुम्हारे करीब बैठूंगा—बिना शरीर के।
मैं तुम्हारे खेतों में जाउँगा—अदृश्य आत्मा बनकर।
मैं तुम्हारी आग के पास आउंगा—अदृश्य अतिथि बनकर।
मृत्यु कुछ भी नहीं बदलती। सिवाय उन मुखौटों के जो तुम्हारे चेहरों को ढाँकते है।
जैसे ही जहाज गहरे समुंदर की और चल पड़ता है, कोई धुंध सी अल मुस्तफा को घेर लेती है। यह धुंध जिब्रान का प्रतीक है निर्वाण का, परम प्रकाश का या रहस्य का। इसमें धीरे-धीरे अल मुस्तफा विलीन हो जाता है। उसके आखिरी शब्द धुंध को संबोधित है:
‘’ऐ धुंध, मेरी बहन, मेरी बहन धुंध,
अब मैं तुम्हारे साथ एक हूं।
अब मैं ‘’स्व’’ नहीं हूं।
दीवारें ढह गई है और ज़ंजीरें टूट गई है।
धुंध, मैं तुझ तक पहुंचता हूं
और एक साथ हम सागर पर लहराये
जीवन के दूसरे दिन तक--
जब भोर तुम्हें किसी बग़ीचे में
ओस बनाकर बिखेरेगी
और मैं किसी स्त्री के स्तन पर पडा
नन्हा शिशु बन जाऊँगा’’
इस किताब में खलील जिब्रान के खुद बनाये हुए पाँच चित्र है। जिब्रान के चित्रों में वहीं रहस्य का आभास है जो उसे शब्दों में है। उसके साथ ही, दो पन्नों पर जिब्रान के हाथ के लिखी पंक्तियां भी है। हस्ताक्षर विशेषज्ञों के लिए जिब्रान के व्यक्तित्व को आंकने का यह सुनहरा मौका है।
किताब की झलक :
और एक सुबह जब आसमान ऊषा के स्पर्श से पीला ही था, वे सब मिलकर बग़ीचे में घूमते हुए पूरब को निहारने लगे। ऊगते हुए सूरज की मौजूदगी में वे मौन रहे।
कुछ समय बाद, सूरज की और इशारा करते हुए अल मुस्तफा ने कहा, ‘’ओस कण में उतरी हुई सूरज की छवि सूरज से किसी तरह कम नहीं है। तुम्हारी आत्मा में हुआ जीवन का प्रतिबिंब किसी तरह जीवन से कम नहीं है।
‘’ओस कण प्रकाश को प्रतिफलित करता है क्योंकि वह प्रकाश के साथ एक है। और तुम जीवन को प्रतिबिंबित करते हो क्योंकि तुम जीवन के साथ ऐ हो।‘’
‘’जब अँधेरा उतरे तो कहो: यह अँधेरा अजन्मी भोर है; और हालांकि रात के तेवर अपने निखार पर है, सुबह मेरे ऊपर उतनी ही उतरेगी जितनी कि पहाड़ियों पर।
‘’सांझ को लिली के फूल में अपने आपको समेटता हुआ ओस कण तुम्हारी तरह है—अपनी आत्मा को परमात्मा के ह्रदय में संजो रहा।‘’
क्या ओस कण ऐसा कहे कि ‘’हजार साल में सिर्फ एक बार मैं ओस कण बनता हूं।‘’ तुम उससे कहोगे कि सभी वर्षों का प्रकाश तुम्हारे घेरे में चमक रहा है।‘’
फिर वह उन नौ लोगों और एक स्त्री के साथ बाजार गया और उसने लोगों के साथ बात की जिनमें उसके दोस्त, उसके पड़ोसी शामिल थे। उनके दिलों में और पलकों पर खुशी थी।
उसने कहा, ‘’तुम नींद में बढ़ते हो और ख़्वाबों में भरपूर जीवन जीते हो। रात की स्तब्धता में तुमने जो पाया है उसका धन्यवाद करने में तुम्हारा दिन बीतता है।
‘’अक्सर तुम रात के बारे में इस तरह बात करते हो जैसे वह विश्राम का समय हो। लेकिन हकीकत में रात खोजने का, ढूढ़ने का मौसम है।
‘’दिन तुम्हें ज्ञान की ताकत सिखाता है और तुम्हारी उंगलियों को ग्रहण करने की कला सिखाता है। लेकिन वह रात है जो तुम्हें जीवन के खजानें की और ले जाती है।
‘’सूरज उन सब चीजों को सिखाता है जो प्रकाश के लिए अभीप्सा रखते है, लेकिन वह रात है जो उन्हें सितारों तक ऊपर उठाती है।
‘’वि रात की स्तब्धता ही जो है जो जंगल के वृक्षों के ऊपर और बग़ीचे के फूलों वर विवाह का घूँघट डालती है फिर वह मिष्ठान भोज तैयार कर सुहागरात का कक्ष तैयार करती है। और उस पवित्र सन्नाटे में समय के गर्भ में ‘’कल’’ का बीज पड़ता है।‘’
ओशो का नज़रिया :
खलील जिब्रान ने अपनी मातृभाषा में कई किताबें लिखीं। जो उसने अंग्रेजी में लिखीं वे बहुत प्रसिद्ध हुई। जिनमे सबसे अधिक ख्याति नाम है ‘’दि प्रॉफेट’’ और ‘’मैडमैन’’...ओर भी कई है। लेकिन उसने बहुत सी अपनी भाषा में लिखी है। उनमें कुछ अनुवादित हुई। हालांकि अनुवाद मूल की तरह नहीं हो सकता। लेकिन खलील जिब्रान इतना महान है कि अनुवाद में भी कुछ न कुछ बहुमूल्य मिल जाता है। आज मैं कुछ अनुवादों का जिक्र करने वाला हूं।
तीसरी किताब है, खलील की ‘’दि गार्डन ऑफ प्रॉफेट’’ यह अनुवाद है लेकिन यह मुझे महान इपिक्युरस की याद दिलाता है। मेरी जानकारी में नहीं है कि मेरे सिवाय किसी और ने इपिक्युरस को महान कहा हो। सदियों से उसकी निंदा ही की गई है। लेकिन मैं जानता हूं कि जब भीड़ किसी की निंदा करती है तब उसमे कोई श्रेष्ठता होती है।
खलील जिब्रान की किताब ‘’दि गार्डन आफ प्रॉफेट’’ मुझे इपिक्युरस की याद इस लिए दिलाती है क्योंकि वह अपने कम्यून को ‘’गार्डन’’ कहता था। व्यक्ति जो भी कहता है उसमे उसकी छवि झलकती है। प्लेटों अपने कम्यून को ‘’एकेडमी’’ कहता था। स्वभावत: क्योंकि वह महान शिक्षाशास्त्री था, बड़ा बौद्धिक दार्शनिक।
इपिक्युरस अपने कम्यून को गार्डन कहता था। वे लोग वृक्षों के नीचे, सितारों तले रहते थे। एक बार राजा इपिक्युरस को देखने आया क्योंकि उसने सुना था कि कैसे ये लोग बहुत ही आनंदित रहते है। वह जानना चाहता था, उसको जिज्ञासा थी कि ये लोग इतने प्रसन्न क्यों है : क्या कारण हो सकता है—क्योंकि उनके पास कुछ भी नहीं है। वह परेशान था, क्योंकि वे सचमुच प्रसन्न थे, वे नाच और गा रहे थे।
राजा ने कहा, ‘’इपिक्युरस, मैं आप और आपके लोगों के साथ बहुत खुश हूं। क्या आप मुझसे उपहार लेंगे?’’
इपिक्युरस ने राजा से कहा, ‘’यदि आप वापस आते है, आप कुछ मक्खन ला सकते है। क्योंकि कई सालों से मेरे लोगों ने मक्खन नहीं देखा है। वे ब्रेड बिना मक्खन के खाते है। और एक बात और : यदि आप फिर आते है तो कृपया बाहरी व्यक्ति की तरह खड़े न रहे। जब तक आप यहां है हमारे हिस्से बन जाएं। हिस्सा लें, हमारे साथ एक हो जाएं। नाचे गायें। हमारे पास आपको देने के लिए और कुछ भी नहीं है।‘’
खलील जिब्रान की किताब मुझे इपिक्युरस की याद दिलाती है। मैं क्षमा चाहता हूं कि मैंने इपिक्युरस का जिक्र नहीं किया, परन्तु इसके लिए मैं जिम्मेदार नहीं हूं। उसकी किताबें जला दी गई। ईसाइयों द्वारा नष्ट कर दी गई। जितनी भी किताबें थी सैकड़ों सालों पहले नष्ट कर दी गई। इसलिए मैं उसकी किताबों का जिक्र नहीं कर सकता, परंतु मैं खलील जिब्रान और उसकी किताब ‘’दि गार्डन ऑफ प्रॉफेट’’ के द्वारा उसको ले आया हूं।
ओशो
बुक्स आय हैव लव्ड
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