दि ज़ेन टीचिंग ऑफ हु आंग पो ऑन दि ट्रांसमिशन ऑफ माईड--ं
अंग्रेजी अनुवाद: जॉन ब्लोफेल्ड
The Zen teaching of Huang Po on the transmission of mind-John Blofield
हु आंग पो एक मनुष्य का नाम था और पर्वत का भी क्योंकि हु आंग पो इसी नाम के पर्वत पर रहता था। यह एक उतंग ज़ेन सदगुरू था जिसे पर्वत शिखर का नाम मिला क्योंकि वह खुद भी एक उत्तुंग शिखर था।
यह किताब उसके शिष्य और विद्वान पंडित पेई सियु द्वारा किया गया संकलन है। चांग साम्राज्य में ईसवीं सदी 850 में यह संकलन चीनी भाषा में किया गया था।
आठवीं शताब्दी में ज़ेन दो शाखाओं में बट गया था: आकस्मिक बुद्धत्व और क्रमश: बुद्धत्व।
क्रमश: बुद्धत्व का प्रतिपादन करने वाली शाखा अधिक समय नहीं चली। आकस्मिक बुद्धत्व में विश्वास करने वालों की संख्या अधिक होती चली गई।
हु आंग पो इसी शाखा का प्रमुख गुरु था। उसने लिन ची उर्फ रिंझाई को निःशब्द सिद्धांत सौंपा और वह 850 में मर गया। यह धारा चीन और जापन में आज भी फल फूल रही है। सभी चीनी संतों के एक से अधिक नाम होते है। हु आंग पो के भी थे। जीवित रहते हुए उसके नाम थे मास्टर स्ही युन और मास्टर तू आन ची। हु आंग पो नाम उसे मरने के बाद मिला।
मूल चीनी संकलन की भूमिका हु आंग पो के शिष्य पेई सियु ने लिखी है। चूकि वह हु आंग पो के निकट रहा था, उसके लेखन में आदर मिश्रित आर्द्रता है।
पेई सियु चीनी सरकार का विद्वान उच्च अधिकारी था। उसकी कैली ग्राफी (एक प्रकार की चीनी चित्रकारी) आज भी आदर्श मानी जाती है। ज्ञान के लिए उसकी प्यास असीम थी। कभी-कभी वह साल भर अपनी किताबें लेकर एकांत में बैठा उनका चिंतन करता रहता था। हु आंग पो के प्रति उसकी श्रद्धा इतनी गहरी थी कि उसने अपना पुत्र उसे भेंट किया था। कहा जाता है कि यह लड़का आगे जाकर महान ज़ेन गुरु बना।
‘’महान ज़ेन मास्टर स्हि युग हु आंग पो पर्वत के वल्चर शिखर पर रहता था। वह हुई नेंग, छठे प्रट्रियार्क का तीसरा वारिस था और हुई हाई का शिष्य था। वह श्रेष्ठ वाहन की अंत: प्रज्ञा पर आधारित विधि का पालन करता था। जो कि शब्दों से कहीं नहीं जा सकती।
वह ‘’एक मनस’’ के तत्व को सिखाता था। मन और उसके भीतर की चीजें शून्य है। जिन्होंने सत्य को जान लिया है उनके लिए न तो कुछ नया है न कुछ पुराना; उथले और गहरे की धारणा निरर्थक है। उसके शब्द सरल है, उसका तर्क सीधा, उसकी जीवन शैली दिव्य है और उसके तरीके अन्य लोगों से अलग। भिन्न-भिन्न जगह से शिष्य उसके पास आते थे और उसकी और आंखें उठाकर यूं देखते थे मानों पर्वत को देख रहे हों। उसके सत्संग से यर्थाथ के प्रीत जागते थे। उसके साथ हमेशा हजारों की भीड़ होती थी।
‘’हुई चांग के दूसरे वर्ष (सन 843) जब मैं चुंग लिन जिले का अधिकारी था तब हु आंग पो पर्वत से उतर कर उस शहर आया था। हम लंग सिंग आश्रम में रहे जहां मैं दिन-रात मार्ग के बारे में सवाल पूछता रहा।
उसके बाद ताई चुंग (सन 849) के दूसरे वर्ष जब मैं वान लिंग जिले का गवर्नर था तब भी वहां पर हु आंग पो का आगमन हुआ। इस बार हम काइ युग आश्रम में शांति पूर्वक रहे। उस समय भी मैंने दिन-रात उनके साथ अध्ययन किया। और उनके विदा होने के बाद मेरी स्मृति के अनुसार सब कुछ लिखा। मुझे चिंता थी कि ये कीमती वचन आनेवाली पीढ़ियों के लिए कैसे सुरक्षित रख जायें। मैंने मेरा संकलन हु आंग पो पर्वत पर रहनेवाले वरिष्ठ भिक्षुओं के पास भेजा ताकि उन्होंने हु आंग पो से जो सुना था उसके साथ मेरे लिखने का तालमेल वे बिठा सकें।
जैसा कि ज़ेन वचनों का दस्तूर है, हु आंग पो के वचन तीन प्रकार से ग्रंथित है—प्रवचन, संवाद और कथाएं।
यों तो पूरा सिद्धांत अभिव्यक्त करने के लिए प्रवचन अपने आप में काफी है। फिर भी संवाद और कथाएं। फिर भी संवाद और कथाएं उसी आशय को सुस्पष्ट करती है। बड़ी सरलता से गहरे सिद्धांत लोगों तक पहुंचाने के लिए वे बहुत अच्छा माध्यम है।
ज़ेन सदगुरूओं का मानना है कि सिर्फ एक मुहावरा सही ढंग से सुनने से शिष्यों का अंधकार नष्ट हो जाता है। अंत: ज़ेन गुरु संक्षिप्त विरोधाभासी संवाद बहुत पसंद करते है। शिष्य के मस्तिष्क को अचानक धक्का दिया जाये तो वह बुद्धत्व की कगार पर आ सकता है।
किताब की एक झलक:
प्रवचन--
सामान्य जन धारणाओं और विचारों में जीते है। वे विचार आसपास की घटनाओं पर आधारित होते है। इसलिए वे वासनाओं और घृणा को अनुभव करते है। घटनाओं को हटाना हो तो अपने धारणा गत की घटनाएं शून्य बन जाती है। और जब वे शून्य बनती है तब विचार थम जाते है।
लेकिन अगर तुम धारणा गत विचारों को रोके बगैर घटनाओं को हटाने का प्रयत्न करते हो तो तुम सफल नहीं होओगे। उल्टे तुम्हें विचलित करने की उनकी शक्ति को बढ़ाओगे।
अंत: सारी वस्तुएं मन के अलावा कुछ नहीं है—अगोचर मन। तो तुम क्या पाने की आशा रखते हो। जो प्रज्ञा के विद्यार्थी है वे मानते है कि कुछ भी गोचर नहीं है। इसलिए वे तीन वाहनों के बारे में सोचना बंद कर देते है। (तीन वाहन अर्थात क्रमिक बुद्धत्व को मानने वाली तीन शाखाएं।) हकीकत केवल एक है—न उसे पाना है न जानना है, अपने आपको अहंकारियों की श्रेणी में रखना है। जिन लोगों ने अपने वस्त्र फड़फड़ाएं और सभा के बीच में उठकर चले गये—जैसा कि लोटस सूत्र में लिखा है—वे ऐसे ही लोग थे।
इसलिए बुद्ध ने कहा, वास्तव में मुझे बुद्धत्व से कुछ नहीं मिला।‘’ केवल एक रहस्यपूर्ण समझ, और कुछ भी नहीं।
संवाद--
प्रश्न: मार्ग क्या है और इस पर कैसे चलना चाहिए?
उत्तर: तुम मार्ग कौन सी चीज मानते हो जिस पर तुम चलना चाहते हो?
प्रश्न: सर्वत्र सदगुरूओं ने ध्यान अभ्यास तथा धर्म-अध्यन के लिए क्या निर्देश दिये है?
उत्तर: मंदबुद्धि लोगों को आकर्षित करने के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
प्रश्न: अगर वे देशनाएं मंदबुद्धि के लिए है तो श्रेष्ठ योग्यता के लोगों को कौन सा धर्म सिखाया जाता है। वह मैने अभी तक सुना नहीं।
उत्तर: यदि वे सच मुच श्रेष्ठ योग्यता के लोग है तो उन्हें अनुयायी कहां से मिलेंगे? यदि वे अपने भीतर खोजते है तो उन्हें कुछ भी स्थूल नहीं मिलेगा। उन्हें ऐसा धर्म बाहर कहां मिलेगा? उपदेशक जिसे धर्म कहते है उसकी और मत देखो, क्योंकि वह किस तरह का धर्म होगा?
प्रश्न: यदि ऐसा है तो क्या हम खोजना बंद ही नहीं कर दें?
उत्तर: ऐसा करने से तुम बहुत से मानसिक प्रयास से बच जाओगे।
प्रश्न: लेकिन इस तरह तो सभी कुछ विदा होता जायेगा। सिर्फ नाकुछ तो नहीं हो सकता।
उत्तर: किसने उसे ‘’नाकुछ कहा?’’ यह कौन व्यक्ति? तुम तो कुछ खोजना चाहते थे।
प्रश्न: अगर खोजने की जरूरत ही नहीं है तो आप ऐसा क्यों कहते है कि सब कुछ विदा नहीं होता।
उत्तर: ना खोजना शांति से जीना है। तुमसे कुछ कम करने के लिए किसने कहां? तुम्हारी आंखों के सामने जो शून्य है उसे देखो। तुम उसे पैदा या समाप्त कैसे कर सकते हो?
प्रश्न: यदि मैं इस धर्म तक पहुंच जाऊं तो क्या वह शून्य एक है और अनेक भी है।
उत्तर: मैंने तुम्हें एक क्षणिक स्पष्टीकरण की तरह कहा लेकिन तुम उसके द्वारा धारणाएं बना रहे हो।
प्रश्न: क्या आपका ये मतलब है कि हम धारणा न बनाएँ? जैसा की मनुष्य सामान्यत करता है?
उत्तर: मैंने तुम्हें राका नहीं लेकिन धारणाएं इंद्रियों से संबंधित होती है। और जब भाव उभरते है तो प्रज्ञा का द्वार बंद हो जाता है।
प्रश्न: तो क्या हम धर्म के संबंधित सभी भावों से बचे?
उत्तर: जहां कोई भाव नहीं होगा वहां कौन कह सकेगा कि तुम सही हो?
प्रश्न: आदरणीय, आप इस तरह क्यों बोलते है जैसे मैंने आपसे सभी गलत प्रश्न पूछे?
उत्तर: तुम ऐसे व्यक्ति हो जो उसे नहीं समझता जो उससे कहा जाता है। यह गलत होने का मामला क्या है ?
अनुवादक की टिप्पणी: जाहिर है कि हु आंग पो प्रश्नकर्ता की धारणागत सोचने की आदत को तोड़ने में मदद कर रहा है। इसकी खातिर वह प्रश्नकर्ता को वह यह अहसास दे रहा है कि यह गलत है। क्योंकि उसे प्रश्न का उत्तर नहीं देना है, बल्कि प्रश्न करने वाले मन को नष्ट करना है।
कथाएं--
हमारे गुरु मूलत: फुकेन से आये लेकिन बचपन में ही उन्होंने माउंट हु आंग पो पर व्रत लिया। उनके माथे के माध्य में मोत जैसी एक छोटी सी गांठ थी। उनकी आवाज मृदु और मधुर थी। उनका चरित्र सरल और शांत था।
दीक्षित होने के कुछ वर्ष बाद, माउंट ति येन ताइ पर जाते हुए उन्हें एक भिक्षु मिला जो उन्हें चिर परिचित लगा, तो उन्होंने एक साथ यात्रा शुरू की। एक जगह उनके रास्ते में एक पहाड़ी झरना आया जिसमे बाढ़ आई थी। हमारे गुरु रूक गये और अपनी लाठी पर झुककर खड़े हो गये। उनके मित्र ने उनसे आगे जाने का आग्रह किया।
‘’नहीं, तुम आगे जाओ,’’ गुरु ने कहा।
मित्र ने उसका बरसाती हैट प्रवाह में तैराया और सहज ही उस पार चला गया।
गुरु ने गहरी सांस छोड़ी: ‘’ऐसे आदमी को मैंने अपने साथ आने की इजाजत दी। मुझे अपने डंडे की चोट से उसे मार डालना चाहिए था।‘’
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एक दफा, जब हमारे गुरु ने काइ यू आन आश्रम में दैनिक सभा समाप्त की ही थी कि मैं वहां पहुंचा। मेरी नजर दीवाल पर टंगे हुए चित्र पर पड़ी। व्यवस्था करने वाले एक भिक्षु से पूछने पर मुझे ज्ञात हुआ कि वह चित्र एक विख्यात भिक्षु का था।
‘’वाकई, मैं उससे समानता देख रहा हूं, लेकिन वह आदमी स्वयं कहां है? मैंने पूछा।
वह भिक्षु मौन रहा।
मैंने कहां: ‘’निश्चय ही इस मंदिर में ज़ेन भिक्षु रहते होंगे न?’’
‘’हां’’ उस व्यवस्थापक ने कहा, ‘’यहां एक है।‘’ इसके बाद मैं सदगुरू से मिलने गया और मेरा वार्ता लाप उन्हें बताया।
‘’पेई सियु।‘’ वे चिल्लाये।
‘’गुरूदेव’’ मैंने आदरपूर्वक कहा।
‘’तुम कहां हो?’’
यह जानकर कि ऐसे प्रश्न का कोई उत्तर संभव नही है, मैंने गुरूदेव से विनती की कि वे पुन: सभागार में जाकर अपना प्रवचन शुरू करें।‘’
ओशो का नज़रिया:
‘’दि बुक ऑफ हु आंग पो’’, एक चीनी आदमी द्वारा लिखी गई किताब है। यह छोटी सी किताब है, ग्रंथ नहीं—बस कुछ अंश। सत्य को ग्रंथ में व्यक्त नहीं किया जा सकता। तुम उस पर पी. एच. डी. नहीं लिख सकते। ऐसी डिग्री है जो मूर्खों को दी जानी चाहिए। हु आंग पो छोटे-छोटे अंशों में लिखता है। ऊपर से असंबंधित लगते है। लेकिन है नहीं। तुम्हें ध्यान करना होगा, तभी उनका आपसी संबंध समझ पाओगे। यह सर्वाधिक ध्यान पूर्ण किताब में से एक है जो आज तक लिखी गई है।
‘’दि बुक ऑफ हु आंग पो’’ अंग्रेजी में ‘’दि टीचिंग्ज़ ऑफ हु आंग पो’’ के नाम से अनुवादित हुई है। जो कि अंग्रेजी शैली है1 यह शीर्षक गलत है। हु आंग पो जैसे लोग सिखाते नहीं। उसमें कोई सिखावन है ही नहीं। उसे समझने के लिए तुम्हें ध्यानस्थ होना होगा, मौन होना होगा।
ओशो
बुक्स आय हैव लव्ड
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