चक्रा साउंड ध्यान:
इस ध्यान में चक्रों को लयवद्ध करने व उसके प्रति एक चेतना जाग्रत करने के लिए ध्वनियों का उपयोग किया जाता है। स्वयं घ्वनियां पैदा करते हुए अथवा केवल संगीत को सुन कर अपने भीतर ध्वनियों को महसूस करते हुए, इस ध्यान में आप एक गहरे शांत अंतर मौन में उतर सकते है। यह ध्यान किसी भी समय किया जा सकता है। पृष्टभूमि का संगीत आपको ऊर्जा गत रूप से इस ध्यान में सहयोगी होता है। व हर चरण के प्रारंभ का संकेत देता है।
पहला चरण: (45 मिनट)
खड़े होना चाहें, आराम से बैठाना चाहें, या लेटना—आपको जो भी सुविधाजनक हो करें।( परन्तु मेरे खुद के अनुभव से आपको एक बात कहना चाहता हूं की आप क्यों न तीनों अवस्थाओं में ध्यान प्रयोग करें—इस ध्यान की तीन शृंखला है, पहले में खड़े हो, दूसरी में बैठ जाये और तीसरी में लेट जाये, तीसरी और आखरी में आप इतने गहरे विश्राम में चले जायेगे, जो बहुत सहज होगा) अपनी पीठ को सीधा करें व शरीर को ढीला छोड़ दे। श्वास को छाती की बजाय पेट से आने दे। जो भी घ्वनियां आप करेंगे वह खुले मुंह व जबड़े को ढीला छोड़ कर करें। अपनी आंखें बंद कर लें और संगीत को सुनें; यदि आप चाहें तो पहले चक्र में घ्वनियां पैदा करना शुरू कर दे। आप चाहे तो एक ही सूर निकाल सकते है या सूर बदल भी सकते है। स्वयं को संगीत द्वारा निर्देशित होने दें; वैसे अपनी घ्वनियां आप कर रहे है, उसकी आवाज को अपने चक्र के केंद्र में धड़कता हुआ महसूस करें, भले ही शुरू में वह एक कल्पना ही लगे। ओशो सुझाते है कि जो कुछ सदा से वहां है ही, उससे लयवद्ध होने के लिए कल्पना का उपयोग किया जा सकता है। तो यदि आपको लगे कि आप चक्रों की कल्पना कर रहे है तो भी ध्यान जारी रखें। होश के साथ आपकी कल्पना आपको हर चक्र के कंपन के अनुभव में ले जा सकती है।
पहले चक्र में ध्वनि जाग्रत करते के बाद, आप संगीत को ऊंचे तल पर जाता सुनेंगे—यह संकेत है कि आप अब दूसरे चक्र में ध्वनियों को सुनें वह महसूस करें। यदि आप चाहें तो ध्वनियों निकालते भी रहे सकते है। संगीत हर दो मिनट बाद बदल कर आपको निर्देश देगा की अब आप दूसरे चक्र पर पहुंच गये हो। और सुविधा के लिए उन चक्रों को आप छू कर भी ध्वनि कर सकते है। यह आपको पर ध्यान देने में सुविधा जनक होगा। दायें हाथ को चक्र पर रखें और मुहँ से ध्वनि करते रहे। ये प्रक्रिया ऊपर सातवें चक्र तक दोहराते जाये।
जैसे-जैसे आप एक चक्र से दूसरे चक्र पर गति करें, आपकी आवाज को ऊंचे तल पर पहुंचने दें। सातवें चक्र में ध्वनियों को सुनने व महसूस करने के बाद सुर नीचे वापस उतरने लगेंगे। सभी चक्रों पर कुछ क्षण ध्वनि करते हुए आप नीचे उतरते जायेगे। जैसे-जैसे आप सुरों को नीचे उतरता सुनें, और-और नीचे उतरते हुए चक्रों में ध्वनि सुनें। ये लगा तार भाव करे की शरीर एक बांस की पोंगरी की तरह से खाली हो गया है। और सब घ्वनियां उसके अंदर से स्वयं प्रतिसंवेदित हो रही है। आप ध्वनि के बीच खड़े देख रहे है। आप करता नहीं, ऐसा आप कर नहीं रहे सब हो रहा है। बांसुरी कुछ करती थोड़ा है, अगर वह भी कुछ करे तब कहां संगीत उत्पन्न हो सकेगा। पूरा शरीर एक संगीत मय लहरों से अभिभूत हो उठेगा। प्रत्येक चक्र की ध्वनि अपनी नई-नई उर्जा के स्त्रोत विकसित कर रही होगी। और आप उर्जा से अतिरेक भरे होगें।
एक चरण करने के बाद थोड़ी देर का विश्राम होगा। उस अवस्था में आप अपना आसन बदल सकते है। आप खड़े है तो बैठ सकते है बैठे है लेट सकते है। फिर जब नई शृंखला शुरू हो तो क्रमश इसी तरह उसे दोहरायेंगे। अगर आप संगीत की सी. डी. और कैसेट ले लेंगे तो आप को दश निर्देश और ध्वनि करने में बहुत सहयोगी होगा।
दूसरा चरण:
ध्वनि की प्रक्रिया को तीसरी बार दोहरा लेने के बाद आंखें बंद करके मौन लेटे रहे, या बैठ जाये। और अपने अंदर उठे ध्वनि के समुन्दर को निहारते रहे। जो भी हो उसे देखे। उर्जा अपना काम करती रहेगी। उस अवस्था में आप जो भी देखें...चित्र, रंग, दृश्य उसे मन का खेल समझे पर उसे दबाये नहीं। बस उस का आनंद ले। चाहे आपको स्वर्ग ही क्यों ने दिखाई दे, पर आप उसमे जुडे नहीं, मात्र श्रोता बने रहे। वरना ये मान कल्पना के जाल में न जाने क्या-क्या लडडू परोस देगा। पर वो सब खेल होगा।
प्रश्न: च्रका साउंड ध्यान का उद्गम कैसे हुआ?
उत्तर: वर्षो पहले की बात है कि जब मैं कम्यून आई (मां अनुप्रदा) और यहां मेरा मिलना स्वामी वदूद से हुआ जो मल्टीवर्सिटी के मिस्ट्रि स्कूल में प्रशिक्षक थे और उन्हें यह जानने की जिज्ञासा थी शरीर में ध्वनि कैसे तरंगायित होती है। जब मैंने अपने अविष्कार की बात उनसे की तो उन्होंने अपने समूह के साथ काम करने के लिए मुझे आमंत्रित किया।
हम लोग उस समय च्रका साउंड ध्यान के लिए संगीत बनाने में उत्सुक थे क्योंकि ओशो को हमने बहुत बार यह कहते सुना था कि हमारे सातों चक्र अलग-अलग ध्वनियों में तरंगायित होते है। वदूद ने इसी आशय से यह संदेश ओशो को भिजवाया कि हम चक्रों की ध्वनियों पर काम करके उसके लिए एक संगीत तैयार करना चाहते है।
एक दिन वदूद ने आकर बताया कि उन्हें ओशो से चक्रा साउंड ध्यान के लिए टेप बनाने के लिए ओशो की स्वीकृति मिल गई है। ‘’तो फिर हो जाए’’ अचानक वह सब हो गया जिसकी प्रतीक्षा थी। हमें आरोह-अवरोह में उठती गिरती उन तरंगों का ज्ञान था जो हमारे चक्रों को प्रभावित करती है। हमने वदूद के साथ कार्य कर रहे गायकों व संगीतकारों का सहयोग लिया। गायकों का वृंद प्रत्येक चक्र के अलग-अलग गुणों को प्रतिबिंबित करता। कुछ समय हमें रिहर्सल में लगा और फिर हमने इसे बुद्ध सभागार में बजाया। वब से यह ध्यान अत्यंत प्रिय ध्यान बन गया है।
मां अनुप्रदा
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