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शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

मदर-(गोर्की)-023

मदर—(मैक्‍सिम गोर्की)-ओशो की प्रिय पुस्तकें

Mother-- Maxim Gorky
 (विख्‍यात रशियन लेखक मैक्‍सिम गोर्की उपन्‍यास मदर पहली रशियन क्रांति के पहले लिखा गया था जब ज़ार शाही के खिलाफ मजदूरों को उत्‍थान शुरू हुआ। रशिया में नया-नया औधोगिकीकरण हुआ था। शहरों में कारखाने खड़े हुए और उनमें काम करने के लिए मजदूरों की जरूरत पड़ने लगी। कारख़ानों के मालिक मजदूरों का शोषण ठीक उसी तरह करने लगे जैसे ज़ार किसानों का करते थे। मजदूरों की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ।)

      यह उपन्‍यास भी एक कारखाने की पृष्‍ठभूमि में लिखा गया। एक अर्थ में उपन्‍यास की नायिका मदर है, मदर अर्थात मां, पावेल की मां—लेकिन सच देखा जाये तो मजदूरों की बदतर हालत, उनका असंतोष और असंतोष जन्य बगावत इस उपन्‍यास के मुख्‍य चरित्र है। सारे मजदूर यहां एक सामूहिक चेहरा बनकर उभरते है। मदर है उन मजदूरों के नेता पावेल की मां। वह अप्रयोजन, परिस्थितिवश उनके आंदोलन में खिंच जाती है।
      विरोधाभास देखिये, मैक्‍सिम गोर्की ने यह उपन्‍यास एक मां पर लिखा है। लेकिन उसका अपनी मां से कोई संबंध नहीं है। गोर्की अपनी नानी के पास तला। जिंदगी के भीषण अनुभवों ने उसके भीतर इतनी कड़वाहट भर दी कि उसने अपने नाम में ही कड़वाहट को अंगीकार कर लिया। ‘’गोर्की’’ का अर्थ है, कड़वा। वह उसका असली नाम नहीं है, उसका असली नाम था। अलेक्‍सी मैक्‍सिमाविच पैश्‍कोव। वह 1868 में पैदा हुआ और 1936 में मरा। गोर्की सर्वहारा वर्ग से जरूर था लेकिन उसका वजूद बहुत बड़ा था। उसके कभी हुकूमत के आगे हार नहीं मानी। उसमे विद्रोह की आग थी। और यह आग सिर्फ उसकी कलम में ही नहीं, उसके जीवन में हर वक्‍त जलती थी। इसीलिए वह मज़दूरों को क्रांति के लिए उकसाता रहा और उनके साथ खुद भी जेल जाता था।
      मज़े की बात, गोर्की खुद कभी स्‍कूल नहीं गया लेकिन उसका साहित्‍य इतना प्रभाव शाली था कि ज़ार जिसके खिलाफ गोर्की उमर भ जंग छेड़ता रहा। रशियन चिन्‍तन और रसिअन साहित्‍य को गोर्की ने इस हद तक प्रभावित किया कि उनके चिन्‍तन की पूरी धारा बादल गई। ‘’मदर’’ गोर्की का अजर उपन्‍यास है। पूरी दूनिया में इस उपन्‍यास के 28 भाषाओं में 106 संस्‍करण छपे।
      उपन्‍यास में मां का नाम है निवलोन पेलाग्‍वेया वलासोवा। एक अधेड़ उम्र की अनपढ़ स्‍त्री। उसका जीवन अन्‍य मजदूर पत्‍नियों से भिन्‍न न था—दिन भर गधे की तरह काम करना और रात शराबी पति के हाथों पिटना। उसका एक ही बेटा था। पावेल। बेतहाशा पी गई शराब ने उसके पति को निगल लिया और पति की मृत्‍यु के बाद वह पावेल के साथ रहने लगी।
      धीरे-धीरे मां को पावेल में कुछ परिवर्तन-सा दिखाई देने लगा। वह देर तक घर से बाहर रहने लगा। जब घर आता तो उसके हाथ में कुछ किताबें होती। पावेल उन्‍हें पढ़ता रहता और पढ़ने के बाद छुपा देता। उसकी बातचीत में कुछ नये शब्‍द प्रवेश कर गया थे। जिन्‍हें निवलोना ने पहले कभी नहीं सुना था। ‘’विद्रोह’’ ‘’स्‍वतंत्रता’’ ‘’शोषण’’ ‘’अन्‍याय’’ इस तरह के शब्‍द मजबूर इस्‍तेमाल नहीं करते।
      पावेल गुमसुम रहने लगा, और जब बोलता तो आग उगलता। फिर उसके नये-नये युवा मित्र सांझ को घर आने लगे। उसकी आपस में मीटिंग चलती। निवलोना का काम था उनको चाय बनाकर देना।
      निवलोना का आँचल ममता से भीगा हुआ था। वह उस युवा मंडली की पूछताछ करती, देखभाल करती। वह मंडली कहीं से पर्चें और पत्रिकाएँ लाकर कारखाने में बाँटती थी। उनमें क्‍या लिखा था वह तो मां समझ नहीं पाती थी। लेकिन वह इतना जरूर जानती थी के उन पर्चों का पढ़ने वालो पर जबरदस्‍त असर होता है। पावेल एक लिहाज से इस गुप्‍त आंदोलन का नेता था। वह देखने में सुंदर था, बोलने में कुशल, और स्वभाव में निडर। स्‍वभावत: एक दिन पुलिस आई और उसे और उसके मित्रों को पकड़ कर ले गई। यहां से मां का रूपांतरण होता है। बाद में मां काम करने लगती है। वह पढ़ना लिखना तो नहीं जानती लेकिन वे पर्चें कारखाने में बांटने का काम करने लगती है। मजदूरों के लिए खाने की सामग्री बेचने के बहाने वह रो कारखाने जाती है और सब जगह पर्चें छोड़कर आती है।
      सात हफ्तों बाद पावेल जेल से रिहा कर दिया जाता है लेकिन बाहर आते ही दुगुने जोश से मजदूरों को उकसाने की तैयारी करने लगता है। एक मई को सब लोग मई दिवस मनाने की तैयारियाँ करने लगते है। मई दिवस अर्थात मजदूर दिवस। पावेल और उसके दोस्‍त मजदूरों को इकट्ठे कर उनके आगे प्रक्षुब्‍ध वाले भाषण देते है। बहरहाल वे फिर से गिरफ्तार कर लिये जाते है। यह उसकी मां के जीवन में क्रांतिकारी क्षण होता है। वह अचानक बेटे के काम की बागडोर सम्‍हाल लेती है। जैसे ही पुलिस पावेल और उसके गुट को ले जाती है। मां भीड़ को संबोधित कर पहला भाषण करती है। वस्‍तुत: वह नहीं बोलती, वे बोल उससे फट पड़ते है। गोर्की की सशक्‍त कलम ने इस घटना को जीवंतता से चितेरा है:
      ‘’दोस्‍तों, मां चीख पड़ी। भीड़ को चीरती हुई वह आगे बढ़ी। लोगों ने आदरपूर्वक रास्‍ता बनाया। कोई हंस पडा और बोला, ‘’देखो, उसके हाथ में झंडा है।‘’ मां ने अपने हाथ फैलाकर कहा, ‘’सुनो ईश्‍वर के लिए सुनो। लोगों, प्‍यारे लोगो, निर्भयता से देखो क्‍या हुआ है। हमारे अपने बच्‍चे हमारे खून का खून, न्‍याय मांगने के लिए दुनिया में गए है—हम सबकी खातिर। तुम सबकी खातिर और तुम्‍हारे बच्‍चों की खातिर जो अभी पैदा भी नहीं हुए है। उन्‍होंने यह सलीब उठा लिया है। ताकि तुम्‍हारा भविष्‍य उज्‍जवल हो सके। वे एक नई जिंदगी चाहते है—एक सचाई और न्‍याय की जिंदगी। वे सभी लोगों की भलाई चाहते है।
      ‘’उसके सीने में उसका दिल विस्‍फोटित हो रहा है। उसका गला सूख रहा था, तप रहा था। उसकी गहराइयों से नये बुलंद शब्‍द उमग रहे थे। शब्‍द जो सबको अपने अंक में समेटने वाले प्रेम की स्‍फुरणा से भरे हुए थे। वे शब्‍द उसकी जबान को ताकत के साथ अभिव्‍यक्‍त करने के लिए प्रेरित कर रहे थे।
      उसने देखा कि सभी लोग उसे शांति से सुन रहे है। उसके भीतर एक तीव्र इच्‍छा जागी कि मैं किसी तरह इन्‍हें प्रेरित करूं कि वे मेरे बेटे और उसके दोस्‍तों के पीछे चलें; उन सभी के पीछे जो सिपाहियों के हाथ पड़ गये; जिन्‍हें उन्‍होंने उनकी तकदीर के हवाले कर दिया।
      उसके शब्‍द बीच में ही लडखड़ाये, वह कमजोरी महसूस करने लगी। वह गिरने को थी कि किसी ने उसे थाम लिया।
      वह ईश्‍वर का सत्‍य बोल रही थी। किसी ने उत्‍तेजना से कहा ‘’ईश्‍वर का सत्‍य’’। भले मानसों सुनो।
      दूसरे ने हमदर्दी से कहा, ‘’देखो, वह खुद को कितना तकलीफ दे रही है।
      कोई और बोला, ‘’वह खुद को नहीं सता रही है, हम अपने आपको सता रहे है। हमारी मूर्खता का भी जवाब नहीं।‘’
      ये शब्‍द सुनकर मां कांपने लगी, उसके गालों पर खामोश आंसू ढुलकने लगे।
      सिज़ोव ने कहा, ‘’घर जाओ, पेलाजिया। जाओं मां, आज का दिन तुम पर भारी पडा है।‘’
      धीमे कदमों से मां घर की और चल पड़ी। उसके पीछे लोग खिंच चले जा रहे थे। जब घर के द्वार पर पहुंची तो मुड़कर उसने लोगों को देखा, और झुककर बोली, धन्‍यवाद। और पुनश्‍च वह ख्‍याल जो उसके भीतर मंडरा रहा था, उसके प्रगट किया। ‘’यदि लोग अपनी जिंदगी कुर्बानी न करते तो जीसस क्राइस्‍ट नहीं होते।‘’
      ‘’हां पर उपन्‍यास का पहला भाग समाप्‍त होता है। इसके बाद मां सिर्फ पावेल की मां नहीं रहती। वह उन सभी क्रांतिकारियों की मा बन जाती है। जो छूप-छूप कर बगावत के खिलाफ बगावत कर रहे थे। उसका छोटा सा घर उनके मिलने-झुलने को अड्डा बन जाता है। उनसे जितना बन सके उतने पैसे लाकर वे उसे देते है और उसका चूल्‍हा जलता रहता है। मां का यह परिवर्तन गोर्की ने बडी खूबसूरती से लिखा है।
      मां का जीवन एक अजीब-सी शांति में बह रहा था। कभी-कभी वह शांति खुद उसे हैरान कर देती। उसका बेटा जेल खाने में था। और उसे पता था कि उसे बहुत सख्‍त सज़ा मिलेगी, लेकिन जब भी वह इसके बारे में सोचती उसके मन में आंद्रे और फियोडोर और बहुत से चेहरे उभरते। उसके बेटे की आकृति बडी होती और उन सभी लोगों में फैल जाती जो उसके समान धर्मा थे। इससे उसके अंतस में एक चिंतन की भाव दशा पैदा होती।
      पावेल के बारे में उसके विचार अपने आप कई शाखाओं में फैल जाते। उनकी महीन किरणें टटोलती हुई सी सब तरफ फैलती और सभी वस्‍तुओं पर रोशनी डालती, सभी वस्‍तुओं को एक ही आकार में गूँथ देती। इससे वह एक ही चीज वर ध्‍यान केंद्रित करने से बच जाती; इससे अपने बेटे का विरह या उसके भविष्‍य की चिंता उससे कोसों दूर भाग जाती।
      पावेल और उसके साथियों पर मुकदमा चलता है। वैसे मुकदमा एक दिखावा ही था। क्‍योंकि फैसला सभी को पहले ही मालूम था—‘’साइबेरिया में सश्रम कठोर कारावास।‘’ खचाखच भरी हुई अदालत में पावेल जिस निर्भीकता से, जिस ओजस्‍विता से भाषण करता है उससे सारे न्यायधीश और जुरी और कानून की व्‍यवस्‍था का कद एकदम चूहे जैसा हो जाता है। यह संभ्रम हो जाता है कि मुजरिम कौन है—मजदूर या वे लोग?
      अब पावेल उठ खड़ा हुआ। अचानक पूरा कमरा स्‍तब्‍ध हो गया। मां के कान खड़े हुए। पावेल बहुत शांति से बोल रहा था।
      ‘’पार्टी के सदस्‍य की हैसियत से मैं सिर्फ मेरी पार्टी का फैसला मानता हूं। इसलिए मैं अपने बचाव में नहीं बोलूंगा। लेकिन मेरे साथियों की गुजारिश पर, जिन्‍होंने अपना बचाव करने से इन्‍कार कर दिया है, मैं उन बातों को समझाऊंगा जिन्‍हें आप नहीं समझें है। सरकारी वकील ने हमारे प्रदर्शनों को, ‘’सत्‍ता के खिलाफ बगावत।‘’ कहा है। और वे सोचते है कि हम ज़ार को अपदस्‍थ करना चाहते है। मैं यह बात स्‍पष्‍ट करना चाहता हूं कि सामंतवाद हमारे देश को बांधने वाली एकमात्र कड़ी नहीं है। वह सबसे पहली, और सबसे उपलब्‍ध सांकल है जिससे हम लोगों को आजाद करना चाहते है।
      पावेल की बुलंद आवाज तले सन्‍नाटा और गहराया। मानों उसने अदालत की दीवारों को पीछे की और सरका दिया। और पावेल सबसे ऊपर, कहीं दूर खड़ा नजर आ रहा था।
      जज अपनी कुर्सियों में सरकने लगे, एक-दूसरे के कानों में खुसुर-फुसुर करने लगे। पावेल का स्‍वर और ऊपर उठा:
      ‘’हम समाजवादी है। इसका मतलब है हम निजी जायदाद के खिलाफ है। यह संस्‍था समाज को तोड़ती है, लोगों को एक-दूसरे का दुश्‍मन बनाती है। एक दूसरे के स्‍वार्थों को लड़वाती है। और अपनी दुश्‍मनी की खातिर उन्‍हें झूठ का सहारा लेना पड़ता है। हम हर तरह की शारीरिक और मानसिक गुलामी के खिलाफ लड़ेंगे जो इस तरह का रूग्‍ण समाज हम पर थोपता है।
      हम मजदूर है; वे लो, जिनके श्रम से सारी चीजें बनती है—बच्‍चों के खिलौनों से लेकर विशाल मशीनों तक। फिर भी हमें अपनी स्‍वयं की मानवीय कीमत की रक्षा करने को कोई हक़ नहीं है। कोई भी अपने निजी स्‍वार्थ के लिए हमें इस्‍तेमाल करता है। अभी हम कुछ हद तक अपने हाथों में सत्‍ता लेना चाहते है। जिससे अंतत: हमें पूरी ताकत मिलेगी। हमारी घोषणाएँ सरल सी है। ‘’निजी संपति का विनाश हो।‘’ पूरी सत्‍ता लोगों के हाथ में हो। काम करना प्रत्‍येक का कर्तव्‍य है।
      हम क्रांतिकारी है, और क्रांतिकारी बने रहेंगे। जब तक कि मुट्ठीभर लोग मालिक है और बाकी सब मजदूर।
      न्‍याय-मंडल में बेचैनी फैलने लगी। बूढे जज ने नाराज होकर पावेल को रूकने का इशारा किया। अंत में पावेल ने कहा, ‘’मैं अपना भाषण खतम कर रहा हूं, मैं व्‍यक्‍तिगत रूप से आपको चोट पहुंचाना नहीं चाहता। उल्‍टे मैं जो यहां बैठा हूं, मुकदमा नाम के इस तमाशे के एक बेमन दर्शक की तरह, मुझे आप पर दया आती है। आखिर आप लोग मनुष्‍य है, ऐसे लोगों को देखकर सदा कोफ्त होती है। जो अमानुष ताकत की सेवा में इतने गिर जाते है कि मानवीय गरिमा को मिट्टी में मिला देते है।
      न्‍यायधीशों की और देखे बिना पावेल नीचे बैठ जाता है। जबकि मां सांस रोककर उनकी और टकटकी लगाये देख रही थी। अब क्‍या होगा?
      आंद्रे ने पावेल का हथ दबाया। उसका चेहरा चमक रहा था। अन्‍य साथी उसकी और झुक गये। अपने साथियों के जोश से पावेल को संकोच सा हो रहा था। उसने अपनी मां की और देखते हुए सिर हिलाया। मानों यह पूछा, ‘’आप संतुष्‍ट है?’’
      मां ने एक प्रसन्‍न सांस छोड़ी। और चेहरा प्रेम की गर्म लहर से चमक उठा।
      अब असली मुकदमा शुरू हुआ, ‘’सिझोव फुसफुसाया, उसने उनको अच्‍छा तीर मारा।‘’
      मां न चुपचाप हामी भरी। वह खुश थी कि उसका बेटा इतनी निडरता से बोला। शायद खुशी इस बात की ज्‍यादा थी कि उसका बोलना बंद हुआ। उसके जेहन में एक ही सवाल लरजता रहा: ‘’अब वे क्‍या करेंगे?’’
      यह उपन्‍यास अचानक समाप्‍त होता है—कुछ सिपाही और मां की हाथापाई की घटना से।
      यह उपन्‍यास काल्‍पनिक होते हुए भी उसकी जड़ें सत्‍य में गहरी ज़मीं हुई है। यह गोर्की का अपना जलता हुआ अनुभव है। इसलिए उपन्‍यास के समाप्‍त होने के बाद भी देर तक वे फटेहाल मजदूर और उस हालत के बीचोबीच खिलता हुआ उनके विद्रोह का अग्नि पुष्प, एक गरीब अनपढ़ मां का उन सबको सहयोग, इन सबका असर मन से मिटाये नहीं       मिटता।
ओशो का नज़रिया:
      ऐसा लगता है कि आज मैं रशियन लोगों में घिरा हुआ हूं। आज की किताब है मैक्‍सिम गोर्की की ‘’मदर’’ मुझे गोर्की पसंद नहीं है। यह कम्‍युनिस्‍ट है और मुझे कम्‍युनिस्‍ट बिलकुल पसंद नहीं है। लेकिन यह किताब ‘’मदर’’ यद्यपि मैक्‍सिम गोर्की ने लिखी है। मुझे हमेशा अच्‍छी लगी है। मेरे पास इस किताब की इतनी अधिक प्रतियां थी कि मेरे पिताजी कहते, ‘’तुम पागल हो गये हो? किताब की एक प्रति काफी होती है; और तुम हो कि लगातार मँगवाते चले जाते हो। जब भी में कोई डाक पार्सल देखता हूं तो वह मैक्‍सिम गोर्की की ‘’मदर’’ होती है। पागल तो नहीं हो गये हो?
      मैं कहता, हां, जहां तक गोर्की की ‘’मदर’’ का सवाल है, मैं पागल हूं एक दम पागल।
      जब भी मैं अपनी मां को देखता हूं तो मुझे गोर्की याद आता है। गोर्की की गिनती दुनिया के श्रेष्‍ठतम रचनाकारों में होनी चाहिए। खास कर ‘’मदर’’ में वह लेखन कला के उच्‍चतम शिखर को छूता है। ‘’न भूतो न भविष्‍याति.....’’ वह हिमालय के शिखर जैसा हे।
      ‘’मदर’’ को गहराई से पढ़ना चाहिए। बार-बार पढ़ना चाहिए, तभी वह तुम्‍हारे भीतर रिसती है। तब कही धीरे-धीर तुम उसे महसूस करते हो, पढ़ना नहीं, सोचना नहीं महसूस करना। तब तुम उसे स्‍पर्श करते हो, वह तुम्‍हें स्‍पर्श करती है। वह जीवंत हो उठती है। फिर वह किताब नहीं वरन एक व्‍यक्‍ति बन जाती है—एक व्‍यक्‍ति।

ओशो
बुक्‍स आय हैव लव्‍ड

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