जॉर्ज बर्नार्ड शॉ इस सदी का अद्भुत मेधावी और मजाकिया लेखक था। उसका व्यक्तित्व उतना ही रंगबिरंगा था जितनी कि उसकी साहित्य-संपदा। उसकी रोजी रोटी कमाने का मूल व्यवसाय था। ‘’नाटकों को लेखन।’’ बर्नार्ड शॉ एक साथ कई चीजें था। उसको किसी एक श्रेणी में रखना संभव नहीं था। उसको किसी एक श्रेणी में रखना संभव नहीं था। वह बहुमुखी प्रतिभा का धनी था। वह परिष्कृत कलाओं का—साहित्य, संगीत, चित्र, नाटक—समीक्षक था। वह अर्थशास्त्री और जैविकीतज्ञ था। वह अपना धर्म ‘’क्रिएटिव इवोल्युशनिस्ट, सृजनात्मक, विकासवादी बताता था।
उपन्यास लिखते समय वह इन्सेनवादी था, शेलीवादी नास्तिक भी था। शाकाहारी, चाय और शराब से दूर रहनेवाले, खतरनाक आदमी, मसखरा, असुरक्षित साईकिल चलाने वाला और भगवान जाने क्या-क्या था। अपने शिखर पर रहते हुए उसने अपने आसपास के सभी लोगों को संभ्रमित कर रख था। उसके व्यक्ति के इतने अधिक और विरोधाभासी आयाम थे कि यह मानना कठिन था कि वह एक ही आदमी के विभिन्न चेहरे है।
आयरलैंड के प्रसिद्ध डब्लिन शहर में, सन 1856 में बर्नार्ड शॉ पैदा हुआ। लेकिन बाद में वह लंदन जा बसा क्योंकि लंदन का वातावरण साहित्यिक विकास के लिए पोषक था। बर्नार्ड शॉ दीर्घायु था, अपनी शताब्दी पूरी करने से कुछ वर्ष पूर्व, सन 1950 में उसका निधन हुआ। उस समय वह 94 वर्ष का था।
किताब की एक झलक--
यह छोटी सी पुस्तिका बर्नाड शॉ के सुप्रसिद्ध नाटक ‘’ मैन एंड सुपरमैन’’ के अंत में जोड़ा गया सूत्रों का संकलन है।
इन सूत्रों में शॉ का पूरा व्यंग और नुकीला पैनापन सारगर्भित रूप से प्रकट होता है।
तेहर पृष्ठों के भीतर अड़तीस विषयों पर शॉ ने खास अपने निराले अंदाज में कुछ बेबाक कुछ व्यंग्यपूर्ण सूत्र लिखे है।
मिसाल के तौर पर कुछ विषय है:
स्वर्णिम नियम
दूसरों के साथ मत करो जो तुम नहीं चाहते कि वे तुम्हारे साथ करें। हो सकता है उनकी पसंद तुम्हारे जैसी न हो।
अपने पड़ोसी से अपनी तरह प्रेम मत करो। यदि तुम अपने आपको पसंद करते हो तो वह बेअदबी होगी, यदि नहीं करते हो तो चोट होगी।
स्वर्णिम नियम यहीं है कि कोई स्वर्णिम नियम नहीं है।
मूर्तिपूजा
मूर्तिपूजा को संगठित करना प्रशासन की कुल कला है।
अफसरशाही में अधिकारी होते है; सामंतशाही में मूर्तियां होती है, और लोक तंत्र में मूर्ति पूजक।
वहशी आदमी लकड़ी और पत्थर की मूर्ति के आगे झुकता है; सभ्य आदमी रक्त-मास की मूर्ति को प्रणाम करता है।
जनता अफसरशाही को समझ नहीं सकती; वह सिर्फ राष्ट्रीय मूर्तियों को पूजती है।
लोकतंत्र
अगर कनिष्ठ मस्तिष्क, श्रेष्ठ मस्तिष्क को उस तरह नाप सके जैसे फीट की पट्टी पिरामिड को नाम सके तो वैश्विक मतदान अंतिम रूप से निर्णायक होगा। फिलहाल तो राजनैतिक समस्या सुलझायी नहीं जा सकती।
लोकतंत्र अकार्य क्षम बहुजनों के द्वारा थोड़े से भ्रष्ट लोगों को चुनाव द्वारा नियुक्त करने का उपाय है।
स्वतंत्रता और समानता
जो राजनैतिक स्वतंत्रता को मुक्ति के साथ और राजनैतिक समता को समानता के साथ मिलाता है
उसने कभी पाँच मिनट भी इनके बारे में नहीं सोचा है।
कुछ भी बिना शर्त नहीं है, इस कारण कुछ भी मुफ्त नहीं हो सकता।
स्वतंत्रता याने दायित्व; इसीलिए अधिकांश लोग उससे डरते है।
समानता सामाजिक संगठन के हर विभाग में मूलभूत है।
शिक्षा
जब एक आदमी दूसरे आदमी को बह सिखाता है, जिसके बारे में वह खुद नहीं जानता, और सीखने वाले के पास उसे सीखने का कोई रुझान नहीं होता, और फिर भी वह उसे कुशलता का प्रमाणपत्र देता है। तो कहना चाहिए कि पहले आदमी ने एक सभ्य आदमी को शिक्षित कर दिया है।
मूर्ख का मस्तिष्क दर्शन को भूल में, विज्ञान को अंध विश्वास में और कला को पांडित्य में हजम कर लेना है विश्वविद्यालय की शिक्षा का यही मकसद है।
अच्छी तरह पले हुए बच्चे वही है जिन्होंने अपने माता-पिता को यथावत देखा है। पाखंड माता-पिता का पहला कर्तव्य है।
जो कर सकता है वह करता है। जो नहीं कर सकता वह सिखाता है।
विद्वान वह है जो पढ़ाई करके समय काटता है। उसके नकली ज्ञान से सावधान। वह अज्ञान से अधिक खतरनाक है।
सबसे जहरीला गर्भपात करने वाला वह है जो बच्चे के चरित्र को ढालने की कोशिश करता है।
विवाह
विवाह इसलिए लोकप्रिय है क्योंकि वह अधिकतम प्रलोभन का अधिकतम अवसर के साथ मेल करता है
विवाह का मूलभूत कार्य है जाति को बनाये रखना—(ऐसा सर्व सामान्य कि किताब में लिखा है)
विवाह का सांयोगिक कार्य है: मनुष्य जाति की कामुक भावनाओं की तृप्ति।
विवाह की कृत्रिम बिन-उत्पादकता से विवाह का सांयोगिक कार्य तो सिद्ध होता है लेकिन मूलभूत कार्य सफल नहीं हो पाता।
बहुगामिता (अनेक स्त्री-पुरूषों के साथ यौन आचरण) जब आधुनिक लोकतांत्रिक परिस्थतियों में की जाती है तो घटिया पुरूषों की बगावत से नष्ट हो जाती है। जिन्हें उस कारण ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है। क्योंकि स्त्री में जो मातृत्व की प्रवृति है, वह श्रेष्ठ पुरूष के दसवें हिस्से की भागीदार बनना पसंद करती है। बजाएं निकृष्ट पुरूष पर पूर्ण मलकियत पाने के। बहुगामिता का, इन स्थितियों में पालन नहीं किया गया है।
राष्ट्रीय न्यून तम ब्रह्मचर्य के लिए आधुनिक संज्ञा है: पवित्रता।
विवाह, या अन्य किसी प्रकार का स्वैर आचार युक्त कामुक, एक पत्नी व्रत, बड़े राज्यों के लिए घातक है क्योंकि उससे राजनैतिक प्राणी की तरह मनुष्य की नस्ल पैदा होने पर प्रतिबंध लग जाता है।
अपराध और दंड
अपराधी कानून के हाथों नहीं मरते। वे दूसरे आदमियों के हाथों मरते है।
मंच पर किसी की हत्या करना हत्या का सबसे बुरा तरीका है, क्योंकि उसमें सामाजिक सहमति है।
कृत्य सिखाता है, वह नाम नहीं सिखाता जो हम उसे देते है। हत्या और देहांत शासक विपरीत नहीं है। जो एक दूसरे को नकारते है, वरन समान धर्मा है जो एक दूसरे को निर्मित करते है।
जब आदमी शेर का शिकार करता है तो उसे ‘’खेल’’ कहते है और जब शेर आदमी का शिकार करना चाहता है तो उसे क्रूरता कहते है। अपराध और न्याय में इससे बड़ा फर्क नहीं है।
जब तक कारागृह है, इस बात से बहुत फर्क नहीं पड़ता कि कोठरियों में कौन बंद है।
जेल खाने में सबसे तनावपूर्ण आदमी जेलर होता है।
अपराध उस प्रणाली का चिल्लर विभाग है जिसे हम थोक में धारा कानून कहते है।
गुण और अवगुण
गुण है, अवगुणों की इच्छा न करना; न की उससे बचना।
मितव्ययता जीवन का अधिक से अधिक उपयोग करना है
आज्ञाकारिता से गुलामी आती है। जैसे पुलिस के भय से ईमानदारी पैदा होत है। अवगुण जीवन को व्यर्थ गंवाना है। गरीबी, आज्ञाकारिता और ब्रह्मचर्य धर्मग्रंथों में ग्रंथित अवगुण है।
महानता
महानता, लघुता की महज एक संवेदना है।
यदि महान आदमी हमारी समण् में आ सके तो हम उसे मार डालेंगे।
मूढ़ देश में प्रतिभाशाली व्यक्ति भगवान हो जाता है; व लोग उसे पूजते है, और काई उसकी सुनता नहीं।
सौंदर्य और सुख, कला और संपति
सौंदर्य और सुख उप-उत्पादन है।
जो सुंदर स्त्री के साथ आजीवन सुखी होना चाहता है, वह शराब को सदा मुंह में रख कर उसका आनंद लेना चाहता है।
कुरूप और दुःखी संसार में, धनी से धनी आदमी भी कुरूपता और दुःख के अलावा और कुछ खरीद नहीं सकता।
अवचेतन आत्मा
सच्चा प्रतिभाशाली है, अवचेतन आत्मा। जैसे ही तुम्हारा चेतन अहंकार तुम्हारी सांस में दखल देता है, वह गलत हो जाता है।
मुक्त सूत्र
चालीस के बाद हर पुरूष बदमाश हो जाता है।
जो आदमी तुम्हारे घूंसे का लौटाता नहीं उससे सावधान रहना; वह न तुम्हें माफ करता है, न तुम्हें स्वयं को माफ करने देता है।
दो भूखे आदमी एक आदमी से दुगुने भूखे नहीं होते; लेकिन दो बदमाश आदमी एक आदमी से दस गुणा खतरनाक हो सकते है।
तुम्हें जो पसंद है उसे पाओ, नहीं तो तुमने जो पाया है उसे पसंद करने के लिए तुम मजबूर हो जाओगे। जहां झरोखे ने हों वहां ताजा हवा को हानिकारक घोषित किया जाता है। जहां धर्म न हो , वहां पाखंड सुरुचिपूर्ण हो जाता है। जहां ज्ञान न हो वहां अज्ञान स्वयं को विज्ञान कहता है।
उस आदमी से बचना जिसका ईश्वर आकाश में हो।
ओशो का नजरिया
आठवीं किताब एक दम अज्ञात किताब है। वैसे यह अज्ञात होनी नहीं चाहिए क्योंकि जार्ज बर्नार्ड शॉ ने लिखी है। किताब का नाम है: ‘’मैक्ज़िम्स फॉर रिवोल्युशनिस्ट’’ उसकी बाकी सारी किताबें बहुत प्रसिद्ध है। सिवाय इस किताब के। सिर्फ मेरे जैसा पागल आदमी ही उसका चुनाव कर सकता है। उसका लिखा हुआ बाकी सब कुछ मैं भूल गया हूं। वह बिलकुल कचरा है।
जॉर्ज शॉ की यह छोटी सी किताब ‘’मैक्ज़िम्स फॉर रिवोल्युशनिस्ट’’ मुझे बेहद पसंद है। इसे सब लोग भूल गये है लेकिन मैं नहीं भूला। मैं अजीब चीजों को चुनता हूं, अजीब लोगों को, अजीब स्थानों को। ऐसा लगता है जैसे ‘’मैक्ज़िम्स फॉर रिवोल्युशनिस्ट’’ बर्नार्ड शॉ पर उतरी हो। क्योंकि ऐसे तो वह संदेह वादी था। वह संत भी नहीं था, बुद्ध भी नहीं था, बुद्धत्व के संबंध में सोच भी नहीं रहा था। उसने यह शब्द भी नहीं सुना होगा। वह अलग ही दुनियां में जी रहा था।
बहरहाल, मैं तुम्हें एक बात बता सकता हूं कि उसे एक युवती से प्रेम था। वह उससे शादी करना चाहता था। लेकिन वह युवती ज्ञान को उपलब्ध होना चाहती था। सत्य की खोजी थी। इसलिए वह भारत गई। वह युवती और कोई नहीं थी, ऐनि बेसंट थी। खैरियत है कि बर्नार्ड शॉ उसे अपनी पत्नी बनने के लिए राज़ी नहीं कर सका। अन्यथा हम एक शक्तिशाली स्त्री से वंचित रह जाते। उसकी अंतर्दृष्टि, उसका प्रेम, उसकी प्रज्ञा.....हां, वह एक स्त्री शक्ति थी। अंग्रेजी का शब्द ‘’विच’’ बहुत सुंदर है। उसका अर्थ है, ‘’वाइज़’’ समझदार।
यह पुरूष की दुनियां है, जब पुरूष समझदार होता है तो उसे बुद्ध, क्राइस्ट, मसीहा कहा जाता है। जब स्त्री समझदार होती है तो उसे ‘’विच’’ जादूगरनी कहा जाता है। इसके अन्याय को देखो। लेकिन ‘’विच’’ शब्द का मूल अर्थ बहुत सुंदर है।
‘’मैक्ज़िम्स फॉर रिवोल्युशनिस्ट’’ शुरू हाता है,....स्वर्णिम नियम यह कहता है कोई स्वर्णिम नियम नहीं है।
अब यह छोटा सा वाक्य भी असीम सौंदर्य से भरा है। कोई स्वर्णिम नियम नहीं है.....हां, कोई नहीं है। यही एक मात्र स्वर्णिम नियम है।
बाकी नियमों के लिए तुम्हें किताब का अध्ययन करना होगा। ध्यान रहे, जब भी मैं कहता हूं ‘’अध्ययन’’ मेरा मतलब होता है, ‘’उस पर ध्यान करो।‘’ जब मैं कहता हूं, पढ़ो, तब ध्यान करने की जरूरत नहीं है। सिर्फ भावों के साथ परिचित होना काफी है।
ओशो
बुक्स आइ हैव लव्ड
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