कुल पेज दृश्य

शनिवार, 20 जुलाई 2019

अंतर्वीणा-(पत्र संकलन)-020

(सदा शुभ को--सुंदर को खोज-बीसवां)

प्यारी भारती,
प्रेम।
तेरा पत्र पाकर बहुत आनंदित हूं।
जीवन नये-नये अनुभवों का नाम है। जो नित-नये का अनुभव करने में समर्थ है, वही जीवित है।
इसलिए, परदेश को प्रेम से ले।
नये को सीख। अपरिचित को परिचित बना। अज्ञात को जान--पहचान।
निश्चय ही इसमें तुझे बदलना होगा।
पुरानी आदतें टूटेंगी, तो उन्हें टूटने दे।
और, स्वयं की बदलाहट से भयभीत न हो।
परिवर्तन सदा शुभ है। जड़ता सदा अशुभ।

और, सदा ही अतीत की ओर देखते रहना खतरनाक है। क्योंकि, उससे भविष्य के सृजन में बाधा पड़ती है।
पीछे नहीं, जीवन है आगे।
इसलिए आगे देख।
और आगे, और आगे।
स्मृतियों में नहीं, सपनों में जी।
और, जो भी वहां है, उसे निंदा से मत देख। वह दृष्टि गलत है।
जहां भी रहे, वहां सदा शुभ को, सुंदर को खोज।
और, सब जगह, सब लोगों में सुंदर का वास है।
बस, उसे देखने वाली आंख भर चाहिए।
और, ध्यान रख कि जो हम देखते हैं, वही हम हो जाते हैं।
शुभ, तो शुभ। अशुभ, तो अशुभ।
इसलिए, बुरे को मत देख।
वह भारतीय आदत छोड़ तो अच्छा।
मेरे जानने में तो बुरी दृष्टि के सिवाय और कुछ भी बुरा नहीं है।
वहां सबको मेरे प्रणाम कहना।

रजनीश के प्रणाम
30-5-1970
(प्रतिः कुमारी भारती ईश्वरभाई शाह, लंदन)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें