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शुक्रवार, 19 जुलाई 2019

अंतर्वीणा-(पत्र संकलन)-018

(संगीतपूर्ण व्यक्तित्व-अट्ठारवां) 

प्यारी डाली,
प्रेम।
तेरे पत्र आते हैं--तेरे प्राणों के गीतों से भरे।
उनकी ध्वनि और संगीत में जैसे तू स्वयं ही आ जाती है।
मैं देख पाता हूं कि नृत्य करती तू चली आ रही है और फिर मुझमें समा जाती है।
तेरी सूक्ष्म देह अनेक बार ऐसे मेरे निकट आती है।
क्या तू यह नहीं जानती है?
जानती है, जरूर जानती है, भलीभांति जानती है!
वहां सबको प्रेम।

रजनीश के प्रणाम
18-8-1968
प्रभात
(प्रतिः सुश्री डाली दीदी, पूना)


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