(संगीतपूर्ण व्यक्तित्व-अट्ठारवां)
प्यारी डाली,
प्रेम।
तेरे पत्र आते हैं--तेरे प्राणों के गीतों से भरे।
उनकी ध्वनि और संगीत में जैसे तू स्वयं ही आ जाती है।
मैं देख पाता हूं कि नृत्य करती तू चली आ रही है और फिर मुझमें समा जाती है।
क्या तू यह नहीं जानती है?
जानती है, जरूर जानती है, भलीभांति जानती है!
वहां सबको प्रेम।
रजनीश के प्रणाम
18-8-1968
प्रभात
(प्रतिः सुश्री डाली दीदी, पूना)
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