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मंगलवार, 16 जुलाई 2019

अंतर्वीणा-(पत्र संकलन)-013

(तीव्र अभीप्सा--सत्य के लिए, शांति के लिए, मुक्ति के लिए-तैरहवां)

प्यारी शिरीष,
प्रेम।    
तेरा पत्र पाकर अत्यंत आनंदित हुआ हूं।
सत्य के लिए, शांति के लिए, मुक्ति के लिए तेरी कितनी अभीप्सा है!
उस अभीप्सा को अनुभव करता हूं, तो लगता है कि मैं तेरे लिए जो कुछ भी कर सकूं, वह थोड़ा ही होगा।
फिर भी मैं सामथ्र्य भर तेरी सहायता करना चाहता हूं।
क्यों करना चाहता हूं?
शायद न करना मेरे वश में ही नहीं है।
परमात्मा का जो आदेश है, उसे ही करना होगा।

और, जब तुझे तैयार देखता हूं, तो आनंदित होता हूं।
वह घड़ी निरंतर ही निकट आ रही है, जब मैं उस दिशा में इंगित कर सकूं, जो कि तेरी नियति (क्मेजपदल) है।
श्री पै को मेरे प्रणाम।
हां, तू अपने संबंध में जो भी लिखना चाहती है, अवश्य लिख।

रजनीश के प्रणाम
1-12-1966
(प्रतिः सुश्री शिरीष पै, बंबई)

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