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रविवार, 14 जुलाई 2019

अंतर्वीणा-(पत्र संकलन)-002

(धैर्य साधना का प्राण है-दूसरा)

प्रिय बहिन,
सत्य प्रत्येक क्षण, प्रत्येक घटना से प्रकट होता है। उसकी अभिव्यक्ति नित्य हो रही है।
केवल, देखने को आंख चाहिए, प्रकाश सदैव उपस्थित है।
एक पौधा वर्ष भर पहले रोपा था। अब उसमें फूल आने शुरू हुए हैं। एक वर्ष की प्रतीक्षा है, तब कहीं फल है।
ऐसा ही आत्मिक जीवन के संबंध में भी है।
प्रार्थना करो और प्रतीक्षा करो--बीज बोओ और फूलों के आने की राह देखो।
धैर्य साधना का प्राण है।
कुछ भी समय के पूर्व नहीं हो सकता है। प्रत्येक विकास समय लेता है।
और, वे धन्य हैं, जो धैर्य से बाट जोह सकते हैं।

आपका पत्र मिला है। आशा-निराशा के बीच मार्ग बनाते चल रही हैंः यह जान कर मन को बहुत खुशी होती है।
जीवन-पथ बहुत टेढ़ा-मेढ़ा है।
और, यह अच्छा ही है।
इससे पुरुषार्थ को चुनौती है और जीत का आनंद है।
केवल वे ही हारते हैं, जो चलते ही नहीं हैं।
जो चल पड़ा है, वह तो आधा जीत ही गया है।
जो हारें बीच में आती हैं, वे हारें नहीं हैं। वे तो पृष्ठभूमि हैं, जिसमें विजय पूरी तरह खिल कर उभरती है।
ईश्वर प्रतिक्षण साथ है, इसलिए गंतव्य को पाना निश्चित है।
मैं आनंद में हूं। क्रांति प्रणाम भेज रही है।

रजनीश के प्रणाम

28 मार्च, 1963

(प्रतिः सुश्री जया शाह, बंबई)


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