(स्वतंत्रता का जीवन--प्रेम के आकाश में-सत्रहवां)
प्यारी नीलम,
प्यारे विन्दी,
तुम प्रेम के मंदिर में प्रवेश करोगे और मैं उपस्थित नहीं रह सकूंगा! इससे मन बहुत दुखता है।
लेकिन, मेरी शुभकामनाएं तो वहां होंगी ही।
और, हवाओं में तुम उनकी उपस्थिति अनुभव करोगे।
तुम्हारा जीवन प्रेम के आकाश में स्वतंत्रता का जीवन बने, यही प्रभु से मेरी कामना है।
क्योंकि, अक्सर प्रेम की आड़ में परतंत्रता आ जाती है और प्रेम मर जाता है।
इसलिए, तुम अपने विवाह को "विवाह" मत बनने देना।
तुम उसे प्रेम ही रहने देना।
विवाह के नाम पर प्रेम की कितनी कब्रें बन गई हैं!
तुम एक दूसरे को बांधना मत--वरन एक दूसरे को मुक्त करना। क्योंकि, प्रेम मुक्त करता है। और जो बांधता है, वह प्रेम नहीं है।
वहां सबको मेरे प्रणाम।
रजनीश के प्रणाम
26-6-1969
(प्रतिः श्री विन्दी और सुश्री नीलम, पूना)
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