(सीखो--प्रत्येक जगह को अपना घर बनाना-उन्नीसवां )
प्यारे सुनील,
प्रेम।
तेरा पत्र पाकर अति आनंदित हूं।
घर की याद स्वाभाविक है और तब तक सताती है, जब तक कि हम प्रत्येक जगह को अपना घर बनाना न सीख लें।
और, वह कला सीखने जैसी है।
अब जितने दिन तू वहां है, उतने दिन उस जगह को अपना ही घर मान कर रह।
सारी पृथ्वी हमारा घर है।
और, समस्त जीवन हमारा परिवार है।
शेष मिलने पर।
वहां सबको मेरे प्रणाम कहना।
रजनीश के प्रणाम
13-5-1970
(प्रतिः श्री सुनीलकुमार शाह, बंबई)
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