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गुरुवार, 31 जुलाई 2025

धम्मपद – बुद्ध का मार्ग –(The Dhammapada: The Way of the Buddha, Vol -01) –(का हिंदी अनुवाद )

धम्मपद – बुद्ध का मार्ग –(The Dhammapada: The Way of the Buddha, Vol -01)  –(का हिंदी अनुवाद )

और हिंदी की पुस्तक –(एस धम्मो सनंतनो) — ओशो

 हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में भगवान बुद्ध के सूत्रों पर ओशो बोले हे। परंतु क्या दोनों समान है। मैंने दोनों प्रवचन माला कई-कई बाद सूनी हे। पढ़ी है। एक तो भाषा का भेद दूसरा समय का भेद। तीसरा सुनने वालों श्रोतागण भी तो भिन्न-भिन्न थी। अब आप ही निर्णय ले सकते है की दोनों ही प्रवचन मालाओं में कुछ समान सूत्र होने पर भी रहस्य के गूढ़ अनुभव भिन्न-भिन्न है। मैं कोई कंपैरिजन- (तुलना) नहीं कर रहा की कौन सी सही या गलत हे। दोनों पुस्तकें ओशो के मुखार बिंदु से निकली है। तो उनका एक-एक शब्द हीरे के समान है। परंतु मुझे न जाने क्यों लगता है अगर अंग्रेजी पुस्तक का भी हिंदी अनुवाद कर दिया जाये तो कुछ और जानने समझने को मिलने हमारे हिंदी भाइयों को। 

पतंजलि या भगवान शिव के विज्ञान भैरव तंत्र को केवल अंग्रेजी में बोला है। परंतु ओशो को बुद्ध से अति प्रेम था। इस लिए शायद उन पर दोनों भाषाओं में बोला है। परंतु इनके प्रश्न उत्तर भी भिन्न-भिन्न है।

 

21 जून 1979 प्रातः बुद्ध हॉल में (The Dhammapada: The Way of the Buddha, Vol -01)

 

WE ARE WHAT WE THINK.

ALL THAT WE ARE ARISES WITH OUR THOUGHTS.

WITH OUR THOUGHTS WE MAKE THE WORLD.

SPEAK OR ACT WITH AN IMPURE MIND

AND TROUBLE WILL FOLLOW YOU

AS THE WHEEL FOLLOWS THE OX THAT DRAWS THE CART

हम वह है? जो हम सोचते हैं।

हमारा उदय हमारे विचारों के साथ हुआ है।

अपने विचारों के साथ, हम दुनिया बनाते हैं।

अशुद्ध मन से बोलना या कार्य करना

और मुसीबतें आपका पीछा करेंगी

जैसे पहिया गाड़ी खींचने वाले बैल के पीछे चलता है।

 

WE ARE WHAT WE THINK.

ALL THAT WE ARE ARISES WITH OUR THOUGHTS.

WITH OUR THOUGHTS WE MAKE THE WORLD.

SPEAK OR ACT WITH A PURE MIND

AND HAPPINESS WILL FOLLOW YOU

AS YOUR SHADOW, UNSHAKABLE.

हम वह है? जो हम सोचते हैं।

हमारा उदय हमारे विचारों के साथ हुआ है।

अपने विचारों के साथ, हम दुनिया बनाते हैं।

शुद्ध मन से बोलें या कार्य करें

और खुशियाँ आपके पीछे आएंगी

आपकी छाया के समान, अविचल।

 

"LOOK HOW HE ABUSED ME AND BEAT ME,

HOW HE THREW ME DOWN AND ROBBED ME."

LIVE WITH SUCH THOUGHTS AND YOU LIVE IN HATE.

"देखो उसने मुझे कैसे गाली दी और मारा,

कैसे उसने मुझे नीचे गिराया और लूटा।"

ऐसे विचारों के साथ जियो और तुम घृणा में जीओगे।

 

 

"LOOK HOW HE ABUSED ME AND BEAT ME,

HOW HE THREW ME DOWN AND ROBBED ME."

ABANDON SUCH THOUGHTS, AND LIVE IN LOVE.

"देखो उसने मुझे कैसे गाली दी और मारा,

कैसे उसने मुझे नीचे गिराया और लूटा।"

ऐसे विचारों को त्यागें और प्रेम में जियें।

 

IN THIS WORLD

HATE NEVER YET DISPELLED HATE.

ONLY LOVE DISPELS HATE.

THIS IS THE LAW,

ANCIENT AND INEXHAUSTIBLE.

इस दुनिया में

नफरत अभी तक नफरत को दूर नहीं कर पाई है।

केवल प्रेम ही घृणा को दूर करता है।

यह कानून है,

प्राचीन एवं अक्षय.

 

YOU TOO SHALL PASS AWAY.

KNOWING THIS, HOW CAN YOU QUARREL?

तुम भी गुजर जाओगे.

यह जानते हुए भी आप झगड़ा कैसे कर सकते हैं?

 

HOW EASILY THE WIND OVERTURNS A FRAIL TREE.

SEEK HAPPINESS IN THE SENSES,

INDULGE IN FOOD AND SLEEP,

AND YOU TOO WILL BE UPROOTED

हवा कितनी आसानी से एक कमज़ोर पेड़ को उखाड़ देती है।

इन्द्रियों में सुख खोजो,

भोजन और नींद का भरपूर आनंद लें,

और तुम भी उखाड़ दिए जाओगे.

 

THE WIND CANNOT OVERTURN A MOUNTAIN.

TEMPTATION CANNOT TOUCH THE MAN

WHO IS AWAKE, STRONG AND HUMBLE,

WHO MASTERS HIMSELF AND MINDS THE LAW.

हवा पहाड़ को नहीं पलट सकती.

प्रलोभन मनुष्य को छू नहीं सकता

जो जागृत, बलवान और विनम्र है,

जो स्वयं पर नियंत्रण रखता है और कानून का पालन करता है।

 

IF A MAN'S THOUGHTS ARE MUDDY,

IF HE IS RECKLESS AND FULL OF DECEIT,

HOW CAN HE WEAR THE YELLOW ROBE?

यदि किसी व्यक्ति के विचार गंदे हैं,

यदि वह लापरवाह और छल से भरा है,

वह पीला वस्त्र कैसे पहन सकता है?

 

WHOEVER IS MASTER OF HIS OWN NATURE,

BRIGHT, CLEAR AND TRUE,

HE MAY INDEED WEAR THE YELLOW ROBE.

जो कोई भी अपने स्वभाव का स्वामी है,

उज्ज्वल, स्पष्ट और सत्य,

वह सचमुच पीला वस्त्र पहन सकता है।

 

 

एस धम्मो सनंतनो  -ओशो

 

आत्म क्रांति का प्रथम सूत्र: अवैर--(प्रवचन-पहला)

 

 

मनो मृब्बड्गमा धम्मा मनो मनोमया।

मनसा चे पदुट्ठेन भासति वा करोति वा,

ततो नं दुक्‍खमन्‍वेति चक्कं' व बहतो पदं।।1।।

 

मनो पुब्‍बड्गमा धम्मा मनो मनोमया।

मनसा वे पसन्नेन भासति वा करोति बा,

ततो नं. मुनमन्‍वेति छाया' व अनपायिनी ।।2।।

 

मन सभी प्रवृत्तियों का पुरोगामी है; मन उनका प्रधान है, वे मनोमय हैं। यदि कोई दोषयुक्त मन से बोलता है या कर्म करता है, तो दुख उसका अनुसरण वैसे ही करता है जैसे गाड़ी का चक्का खींचने वाले बैलों के पैर का।'

 

अक्कोचि मै अवधि मै अजिनि मं अहसि से।

ये च तं उपनय्हन्‍ति वेरं तेस क सम्मति ।।3।।

 

अक्कोचि मं अवधि मै अजिनि मं अहासि में।

ये तं न उपनय्हन्‍ति वेरं तेसूपसम्मति ।।4।।

 

'उसने मुझे डांटा, मुझे मारा, मुझे जीत लिया, मेरा लूट लिया-जो ऐसी गांठें मन में बनाए रखते हैं, उनका वैर शांत नहीं होता।’

 

नहि वेरेन वेरामि सम्मन्तीध कुदाचनं।

अवेरेन व सम्मन्ति एस धम्मो सनंतनो।।5।।

 

परे च न विजानत्ति मयमेत्था यमामसे।

ये च तत्थ विजानन्ति ततो सम्मन्ति मेधगा।।6।।

 

इस संसार में वैर से वैर कभी शांत नहीं होता। अवैर से ही वैर शांत होता है। यही सनातन धर्म है, यही नियम है।

 

हम इस संसार में नहीं रहेंगे, सामान्य जन यह नहीं जानते हैं।

ऐसे जीते हैं जैसे सदा यहां रहना है। उसी से सारी भूल हो जाती है।

और जो इसे जानते हैं, उनके सारे कलह शांत हो जाते हैं।’

 

ओशो जब हिंदी प्रवचन की शुरूआत करते है.... (एस धम्मो सनंतनो ) -हिंदी

 

(गौतम बुद्ध ऐसे हैं जैसे हिमाच्छादित हिमालय। पर्वत तो और भी हैं, हिमाच्छादित पर्वत और भी हैं, पर हिमालय अतुलनीय है। उसकी कोई उपमा नहीं है। हिमालय बस हिमालय जैसा है। गौतम बुद्ध बस गौतम बुद्ध जैसे। पूरी मनुष्य-जाति के इतिहास में वैसा महिमापूर्ण नाम दूसरा नहीं। गौतम बुद्ध ने जितने हृदयों की वीणा को बजाया है, उतना किसी और ने नहीं। गौतम बुद्ध के माध्यम से जितने लोग जागे और जितने लोगों ने परम- भगवत्ता उपलब्ध की है, उतनी किसी और के माध्यम से नहीं।

 

गौतम बुद्ध की वाणी अनूठी है। और विशेषकर उन्हें जो सोच-विचार, चिंतन-मनन, विमर्श के आदी हैं।

      हृदय से भरे हुए लोग सुगमता से परमात्मा की तरफ चले जाते हैं। लेकिन हृदय से भरे हुए लोग कहां हैं न और हृदय से भरने का कोई उपाय भी तो नहीं है। हो तो हो, न हो तो न हो। ऐसी आकस्मिक, नैसर्गिक बात पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। बुद्ध ने उनको चेताया जिनको चेताना सर्वाधिक कठिन है-विचार से भरे लोग, बुद्धिवादी, चिंतन-मननशील।

      प्रेम और भाव से भरे लोग तो परमात्मा की तरफ सरलता से झुक जाते हैं; उन्हें झुकाना नहीं पड़ता। उनसे कोई न भी कहे, तो भी वे पहुंच जाते हैं; उन्हें पहुंचाना नहीं पड़ता। लेकिन वे तो बहुत थोड़े हैं और उनकी संख्या रोज थोड़ी होती गयी है। उंगलियों पर गिने जा सकें, ऐसे लोग हैं।

मनुष्य का विकास मस्तिष्क की तरफ हुआ है। मनुष्य मस्तिष्क से भरा है। इसलिए जहां जीसस हार जाएं, जहां कृष्ण की पकड़ न बैठे, वहां भी बुद्ध नहीं हारते हैं; वहां भी बुद्ध प्राणों के अंतरतम में पहुंच जाते हैं।).......

 

The Dhammapada: The Way of the Buddha, Vol 1

 

(My beloved bodhisattvas.... Yes, that's how I look at you. That's how you have to start looking at yourselves. Bodhisattva means a buddha in essence, a buddha in seed, a buddha asleep, but with all the potential to be awake. In that sense everybody is a bodhisattva, but not everybody can be called a bodhisattva -- only those who have started groping for the light, who have started longing for the dawn, in whose hearts the seed is no longer a seed but has become a sprout, has started growing.

You are bodhisattvas because of your longing to be conscious, to be alert, because of your quest for the truth. The truth is not far away, but there are very few fortunate ones in the world who long for it. It is not far away but it is arduous, it is hard to achieve. It is hard to achieve, not because of its nature, but because of our investment in lies.

We have invested for lives and lives in lies. Our investment is so much that the very idea of truth makes us frightened. We want to avoid it, we want to escape from the truth. Lies are beautiful escapes -- convenient, comfortable dreams. But dreams are dreams. They can enchant you for the moment, they can enslave you for the moment, but only for the moment. And each dream is followed by tremendous frustration, and each desire is followed by deep failure.

But we go on rushing into new lies; if old lies are known, we immediately invent new lies. Remember that only lies can be invented; truth cannot be invented. Truth already is! Truth has to be discovered, not invented. Lies cannot be discovered, they have to be invented……..)

(हिंदी अनुवाद)

मेरे प्यारे बोधिसत्वों... हाँ, मैं तुम्हें इसी नज़र से देखता हूँ। तुम्हें भी खुद को इसी नज़र से देखना शुरू करना होगा। बोधिसत्व का अर्थ है सार रूप में बुद्ध, बीज रूप में बुद्ध, सुप्त बुद्ध, लेकिन जागृत होने की पूरी क्षमता के साथ। इस अर्थ में हर कोई बोधिसत्व है, लेकिन हर किसी को बोधिसत्व नहीं कहा जा सकता -- केवल वे ही बोधिसत्व कहला सकते हैं जिन्होंने प्रकाश की तलाश शुरू कर दी है, जिन्होंने भोर की लालसा शुरू कर दी है, जिनके हृदय में बीज अब बीज नहीं रहा, बल्कि अंकुर बन गया है, उगना शुरू हो गया है।

आप बोधिसत्व हैं क्योंकि आप सचेत रहने, सतर्क रहने और सत्य की खोज में तरसते हैं। सत्य दूर नहीं है, लेकिन दुनिया में बहुत कम भाग्यशाली लोग हैं जो उसकी चाहत रखते हैं। यह दूर नहीं है, लेकिन यह कठिन है, इसे प्राप्त करना कठिन है। इसे प्राप्त करना कठिन है, इसकी प्रकृति के कारण नहीं, बल्कि झूठ में हमारे निवेश के कारण।

हमने झूठ में जन्मों-जन्मों का निवेश किया है। हमारा निवेश इतना ज़्यादा है कि सच का ख़याल ही हमें डरा देता है। हम उससे बचना चाहते हैं, हम सच से भागना चाहते हैं। झूठ खूबसूरत पलायन हैं -- सुविधाजनक, आरामदायक सपने। लेकिन सपने तो सपने ही होते हैं। वे आपको पल भर के लिए मोहित कर सकते हैं, पल भर के लिए गुलाम बना सकते हैं, लेकिन सिर्फ़ पल भर के लिए। और हर सपने के बाद ज़बरदस्त निराशा आती है, और हर इच्छा के बाद गहरी असफलता।

लेकिन हम नए झूठों की ओर दौड़ते रहते हैं; अगर पुराने झूठ पता चल जाएँ, तो हम तुरंत नए झूठ गढ़ लेते हैं। याद रखिए, सिर्फ़ झूठ गढ़ा जा सकता है, सत्य गढ़ा नहीं जा सकता। सत्य तो पहले से ही है! सत्य को खोजना होता है, गढ़ा नहीं जाता। झूठ को खोजा नहीं जा सकता, गढ़ा जाता है।

मन को झूठ बहुत अच्छा लगता है क्योंकि मन ही आविष्कारक, कर्ता बन जाता है। और जैसे ही मन कर्ता बनता है, अहंकार पैदा होता है। सत्य के साथ, आपको कुछ नहीं करना होता... और क्योंकि आपको कुछ नहीं करना होता, मन समाप्त हो जाता है, और मन के साथ अहंकार विलीन हो जाता है, वाष्पित हो जाता है। यही जोखिम है, परम जोखिम।......

ओशो

 

मनसा मोहनी दसघरा  ओशोबा हाऊस नई दिल्ली

 

 

 

 

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