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रविवार, 14 अप्रैल 2024

01-चट्टान पर हथौड़ा-(Hammer On The Rock)-हिंदी अनुवाद-ओशो

 चट्टान पर हथौड़ा-(Hammer On The Rock)-हिंदी अनुवाद-ओशो


10/12/75 से 15/1/75 तक दिये गये व्याख्यान

दर्शन डायरी

31 अध्याय

प्रकाशन वर्ष: दिसंबर 1976

चट्टान पर हथौड़ा- (Hammer On The Rock)

अध्याय-01

(दिनांद-10 दिसंबर 1975 अपराह्न चुआंग त्ज़ु सभागार में)

[तथाता समूह के नेता के लिए (बिना शर्त स्वीकृति संगोष्ठी)]

यह याद रखना होगा कि नेता वास्तव में जोड़-तोड़ करने वाला नहीं है। वह नहीं होना चाहिए यदि आप हेरफेर करते हैं, तो यह मन से कुछ है, और जो मन से आता है वह मन से अधिक गहराई तक नहीं जा सकता है। इसलिए नेता को पर के, संभावनाओं के प्रति खुला रहना होगा।

आरंभ में मन वहीं रहेगा। धीरे-धीरे इसे खो दो ताकि तुम आविष्ट हो जाओ। यह सही शब्द है - आप आविष्ट हैं। तब तुम वहां नहीं हो। आपसे महान किसी चीज़ ने, आपसे भी बड़ी किसी चीज़ ने कब्ज़ा कर लिया है। तब तुम कुछ करते हो, लेकिन तुम कर्ता नहीं हो; तब कुछ घटित होता है, लेकिन आप केवल उसके साक्षी होते हैं। तब नेता खो जाता है, और एक बार जब नेता खो जाता है, तो असली नेता प्रवेश करता है। जब नेता नहीं रहता है तो आप समूह का हिस्सा बन जाते हैं। फिर जिनका नेतृत्व आप कर रहे हैं वे अलग नहीं हैं; कोई द्वैत मौजूद नहीं है एक बार जब नेता वश में हो जाता है, तो द्वंद्व गायब हो जाता है। तब शिक्षक और सिखाया हुआ एक ही हैं। चिकित्सक और रोगी एक हैं। केवल तभी, और केवल तभी, उपचार संभव है। और ऐसा केवल इतना ही नहीं है कि आप उन्हें ठीक कर रहे हैं; आप भी इस प्रक्रिया के माध्यम से ठीक हो रहे हैं।

04-गुलाब तो गुलाब है, गुलाब है -(A Rose is A Rose is A Rose)-(हिंदी अनुवाद) -ओशो

 गुलाब तो गुलाब है,गुलाब है-(अध्याय-04)


A Rose is A Rose is A Rose-(हिंदी अनुवाद)

01 जुलाई 1976 अपराह्न चुआंग त्ज़ु सभागार में

 

[एक आगंतुक: मुझे अंदर से भरोसा नहीं है कि मैं संन्यास लेना चाहता हूं या नहीं क्योंकि मुझे समझ नहीं है कि इसका मतलब क्या है। मुझे यकीन नहीं है कि मैं आत्मसमर्पण कर सकता हूं क्योंकि यह आपको मसीह के सामने खड़ा करेगा। और मैं जानता हूं कि आप मसीह के बारे में बहुत कुछ बोलते हैं, इसलिए मैं वास्तव में अभी तक नहीं जानता कि मैं कैसा महसूस करता हूं।]

 

मैम, मैं समझता हूं। यदि आप मसीह को समझते हैं तो कोई समस्या नहीं है। आप उसे पीछे रख सकते हैं यदि तुम उसे समझोगे, तो तुम मुझे समझोगे और तुम मुझे सामने रख सकते हो; कोई बात नहीं है। यदि आप उसे नहीं समझेंगे तो समस्याएँ होंगी। क्योंकि ईसा मसीह कोई व्यक्ति नहीं हैं इसका जोसेफ और मैरी के बेटे यीशु से कोई लेना-देना नहीं है। मसीह मन की एक अवस्था है यदि आप मसीह से प्रेम करते हैं, तो आप तुरंत मुझमें मसीह को पहचान लेंगे।

शनिवार, 13 अप्रैल 2024

03-गुलाब तो गुलाब है, गुलाब है -(A Rose is A Rose is A Rose)-(हिंदी अनुवाद) -ओशो

 गुलाब तो गुलाब है, गुलाब है-अध्याय-03


A Rose is A Rose is A Rose-(हिंदी अनुवाद)

30 जून 1976 अपराह्न चुआंग त्ज़ु सभागार में

[एक संन्यासिन ने कहा कि वह अपनी बहन से, जो यहीं है, संवाद करने में असमर्थ है। उसने कहा कि उसे लगा कि उसकी बहन के मन में उसके प्रति कुछ ईर्ष्या है जिसे वह समझ नहीं पाई।]

इसमें कई छुपी बातें शामिल हो सकती हैं बचपन की कुछ ईर्ष्याएँ तो होंगी ही। आपने उनका दमन किया होगा, या हो सकता है, उसने उनका दमन किया हो। क्योंकि हमें एक-दूसरे के प्रति अच्छा व्यवहार करना सिखाया जाता है, और यह सबसे खतरनाक चीजों में से एक है। हमें सिखाया जाता है कि व्यक्ति को अपनी बहन, अपने भाई के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए। भावनाएँ दमित हैं और व्यक्ति भावनाओं के प्रति ईमानदार नहीं है।

अब जब आप ध्यान कर रहे हैं, तो वे भावनाएँ उमड़ पड़ेंगी और उनमें भी वे सभी दबी भावनाएँ उमड़ पड़ेंगी। तो आपको अपने बचपन के उस दौर से गुजरना होगा जिसे आप चूक गए थे। लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है यह स्वाभाविक है, क्योंकि जो कुछ दमित और बाधित है वह अभिव्यक्त होना शुरू हो जायेगा। तो आप संचार खो देंगे

02-गुलाब तो गुलाब है, गुलाब है -(A Rose is A Rose is A Rose)-(हिंदी अनुवाद) -ओशो

 गुलाब तो गुलाब है, गुलाब है-(अध्‍याय-02)

A Rose is a Rose is a Rose-Hindi

A Rose is A Rose is A Rose-(हिंदी अनुवाद)

दिनांक - 29 जून 1976 अपराह्न चुआंग त्ज़ु सभागार में

देव का अर्थ है दिव्य और पुण्यतम का अर्थ है पवित्र, शुद्ध, सरल। पुराना नाम भूलकर नया याद रखना है। और इसके पीछे पवित्रता, सरलता के विचार को याद रखें। कोई व्यक्ति शुद्ध भी हो सकता है, सरल नहीं; फिर पवित्रता का कोई मूल्य नहीं है। आप अपने ऊपर पवित्रता थोप सकते हैं, लेकिन क्योंकि आप इसे थोपते हैं, तो यह सरल नहीं होगा। यह बहुत जटिल होगा. यह हमेशा दमित को अंतर्धारा के रूप में ले जाएगा और आप ज्वालामुखी पर बैठे रहेंगे।

इसलिए जब मैं शुद्ध और सरल कहता हूं, तो मेरा मतलब यही होता है। पवित्रता तभी होती है जब यह सरल हो, जब यह अनायास आती है, जब इसे लागू नहीं किया जाता है, जब आप इसका अभ्यास नहीं करते हैं बल्कि इसे खिलने देते हैं। यह एक बच्चे की तरह है वह शुद्ध है, सरल है, लेकिन उसकी सरलता अनुशासन वाली नहीं है। एक बार जब आप किसी चीज़ को अनुशासित करने का प्रयास करते हैं, तो आपका मस्तिष्क शक्तिशाली हो जाता है, और हृदय में सरलता आ जाती है। सिर तुम्हें सरलता नहीं दे सकता।

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2024

01-गुलाब तो गुलाब है, गुलाब है -(A Rose is A Rose is A Rose)-(हिंदी अनुवाद) -ओशो

 

01-A Rose is A Rose is A Rose-(हिंदी अनुवाद)

A Rose is A Rose is A Rose-Osho

(Darshan Diaries)

(दिनांक 28/6/76 से 27/7/76 तक दिये गये व्याख्यान)


(दर्शन डायरी कुल 28 अध्याय)

प्रकाशन वर्ष: 1978

गुलाब तो गुलाब है, गुलाब है

अध्याय-01

28 जून 1976 अपराह्न चुआंग त्ज़ु सभागार में

[पश्चिम की ओर प्रस्थान करने वाला एक संन्यासी कहता है: जब से मैं यहां आया हूं, मेरे साथ जो कुछ भी हुआ है उसके लिए मैं गहरी कृतज्ञता महसूस करता हूं।]

मैं जानता हूं... बहुत कुछ घटित होगा, बहुत कुछ, और कृतज्ञता रास्ता तैयार करती है। अस्तित्व के प्रति जितना संभव हो सके आभारी महसूस करें - छोटी चीज़ों के लिए, न केवल महान चीज़ों के लिए... केवल साँस लेने के लिए। अस्तित्व पर हमारा कोई दावा नहीं है, इसलिए जो कुछ भी दिया जाता है वह एक उपहार है। यदि यह नहीं दिया गया तो हमारे पास अपील के लिए कोई अदालत नहीं है।

इसलिए कृतज्ञता और कृतज्ञता में और अधिक बहे उसमें डूबें - न केवल मेरे प्रति; इसे अपने जीने की शैली बनने दें। सबके प्रति आभारी रहें।

यदि कोई कृतज्ञता को समझता है तो वह उन चीजों के लिए आभारी है जो सकारात्मक रूप से की गई हैं। और व्यक्ति उन चीजों के लिए भी आभारी महसूस करता है जो नकारात्मक तरीके से की जा सकती थीं। आप आभारी महसूस करते हैं कि किसी ने आपकी मदद की; यह तो एक शुरूआत है। तब आप आभारी महसूस करने लगते हैं कि किसी ने आपको नुकसान नहीं पहुंचाया - वह पहुंचा सकता था; यह उसका बहुत दयालु पन था।

रविवार, 1 जनवरी 2023

तंत्रा-विज्ञान-(Tantra Vision-भाग-02)-प्रवचन-10

 तंत्रा-विज्ञान-Tantra Vision-(भाग-दूसरा)


प्रवचन-दसवां-(केवल एक स्मरण ही)

दिनांक 10 मई 1977 ओशो आश्रम पूना।

 

      पहला प्रश्न:

      प्यारे ओशो!

ऐसा क्यों हैं? जब कभी भी मैं आपके प्रवचन के बाद आपको छोड़कर जाता हूं, तो जो कुछ आपको सुनते हुए मुझे सुंदर और प्रभावी लगा था, वह मुझे शीघ्र ही निराशा करने लगता है। क्योंकि मैं स्वयं को उन आदर्शों को जी पाने में, जो आपके अपने प्रवचन में सामने रखे थे अपने को असमर्थ पाता हूं।

 

तुम किसके बारे में बात कर रहे हो? आदर्शों के? ठीक यही वह चीज़ है जो मैं नष्ट किये चले जाता हूं। मैं तुम्हारे सामने कोई भी आदर्श नहीं रख रहा हूं। मैं तुम्हें भविष्य के बारे में कोई कल्पनाएं और कथाएं नहीं दे रहा हूं, मैं तुम्हें किसी भी प्रकार का कोई भी भविष्य गारंटी नहीं दे रहा हूं। क्योंकि मैं जानता हूं कि भविष्य वर्तमान को स्थगित करने की एक तरकीब है। यह तुम्हें स्वयं से बचाने की एक तरकीब है, यह स्वयं से पलायन कर जाने का एक तरीका है। कामना करना एक धोखा है और आदर्श, कामनाएं सृजित करते हैं। मैं तुम्हें कोई भी चाहिएअथवा कोई भी नहीं चाहिएनहीं दे रहा हूं। मैं न तो तुम्हें कुछ विधायक दे रहा हूं और न नकारात्मक। मैं सामान्य रूप से तुमसे सभी आदर्शों को छोड़ने और होने के लिए कह रहा हूं।

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2022

तंत्रा-विज्ञान-(Tantra Vision-भाग-02)-प्रवचन-09

 तंत्रा-विज्ञान-Tantra Vision-(भाग-दूसरा)


प्रवचन-नौवां-(अमन ही द्वारा है)

दिनांक 09 मई 1977 ओशो आश्रम पूना।

सरहा के सूत्र

एक बार पूरे क्षेत्र में जब वह पूर्णानन्द छा जाता है

तो देखने वाला मन समृद्ध बन जाता है।

सबसे अधिक उपयोगी होता है।

जब भी वह वस्तुओं के पीछे दौड़ता है

वह स्वयं से पृथक से पृथक बना रहता है।

 

प्रसन्नता और आनंद की कलियां

तथा दिव्य सौंदर्य और दीप्ति के पत्ते उगते हैं।

यदि कहीं भी बाहर कुछ भी नहीं रिसता है

तो मौन परमानंद फल देगा ही।

 

जो भी अभी तक किया गया है

और इसलिए स्वयं में उससे जो भी होगा

वह कुछ भी नहीं है।

यद्यपि इसके परिणाम स्वरूप

वह इसऔर उसके लिए उपयोगी होता है।

वह चाहे कामवासना में लिप्त हो अथवा न हो

उसका स्वरूप शून्यता ही होता है।

गुरुवार, 29 दिसंबर 2022

तंत्रा-विज्ञान-(Tantra Vision-भाग-02)-प्रवचन-08

तंत्रा-विज्ञान-Tantra Vision-(भाग-दूसरा)


प्रवचन-आठवां-(प्रेम कोई छाया निर्मित नहीं करता है)

दिनांक 08 मई 1977 ओशो आश्रम पूना।

 

      पहला प्रश्न:

      प्यारे ओशो!

कल जब आप बुद्धिमत्ता को ध्यान बनाने के संबंध में बोले, तब वहां मेरे अंदर बहुत वेग से दौड़ भाग हो रही थी। ऐसा अनुभव हुआ जैसे मानो मेरे ह्रदय में विस्फोट हो जायेगा। वह ऐसा था, जैसे मानो आपने कुछ ऐसी चीज़ कहीं जिसे सुनने की मैं प्रतीक्षा कर रहा था। क्या आप इसे विस्तारपूर्वक स्पष्ट कर सकते है?

 

बुद्धिमत्ता जीवन की सहज स्वाभाविक प्रवृति है। बुद्धिमत्ता जीवन का एक स्वाभाविक गुण है। ठीक जैसे कि अग्नि उष्ण होती है। वायु अदृश्य होती है और जल नीचे की और बहता है। ठीक इसी तरह जीवन में भी बुद्धिमत्ता होती है।

बुद्धिमत्ता कोई उपलब्धि नहीं है, तुम बुद्धि के साथ ही जन्म लेते हो। अपनी तरह से वृक्ष भी बुद्धिमान हैं, उनके पास अपने जीवन के लिए प्रर्याप्त बुद्धिमत्ता होती है। पक्षी बुद्धिमान हैं और इसी तरह से पशु भी। वास्तव में, धर्मों का परमात्मा से जो अर्थ है वह केवल यह है कि पूरा ब्रह्माण्ड ही बुद्धिमान है। वहां हर कहीं बुद्धिमत्ता छिपी हुई है, और तुम्हारे पास देखने के लिए आंखें हैं, तो तुम उसे हर कहीं देख सकते हो।

गुरुवार, 22 दिसंबर 2022

तंत्रा-विज्ञान-(Tantra Vision-भाग-02)-प्रवचन-07

 तंत्रा-विज्ञान-Tantra Vision-(भाग-दूसरा)


प्रवचन-सातवां-(बुद्धिमत्ता ही ध्यान है )

दिनांक 07 मई 1977 ओशो आश्रम पूना।

 

सरहा के सूत्र-

मन, बुद्धि और मन के ढांचें की सभी अंर्तवस्तुएं,

इसी तरह यह संसार भी, और वह सभी कुछ जैसा प्रतीत होता है,

वे सभी वस्तुएं जिनका मन के द्वारा अनुभव किया जा सकता है,

और वह जानने वाला भी, जड़ता, द्वेष, घृणा, कामना और बुद्धत्व भी,

जो वहहै, उससे भिन्न है।

 

अध्यात्म के अनजाने अंधकार में जा एक दीपक के समान प्रकाशित है,

वह मन के सारे अंधकार और धूमिलता को दूर करता है।

बुद्धि का एक बम्ब की भांति विस्फोट होने से जितनी टुकड़े,

इधर-उधर बिखर जाते हैं, उनसे क्या प्राप्त होता है?

स्वयं कामना विहीन के होने की कौन कल्पना कर सकता है?

 

वहां कुछ भी न तो तिरस्कार करने जैसा है

और न कुछ भी स्वीकार करने अथवा पकड़ने जैसा है

और उसके लिए कभी सोचा भी नहीं जा सकता

बेड़ियां या श्रृंखलाएं मन का ही भ्रम हैं,

और बुद्धि का विस्फोट होने से मन खण्ड-खण्ड हो जाता है।

और वह अविभाजित विशुद्ध स्वच्छन्द बना रहता है।

शनिवार, 17 दिसंबर 2022

तंत्रा-विज्ञान-(Tantra Vision-भाग-02)-प्रवचन-06

 तंत्रा-विज्ञान-Tantra Vision-(भाग-दूसरा)


प्रवचन-छठवां-(मैं अकेला हूं)

दिनांक 06 मई 1977 ओशो आश्रम पूना।

 

पहला प्रश्न :

 

प्यारे ओशो! जब आप मुझसे बोलते हैं तो मेरी आवाज़ को न जाने क्या हो जाता है? यह खेल आखिर क्या है?

 

जब तुम वास्तव में मेरे साथ संवाद में होते हो तो तुम बोल नहीं सकते। जब तुम वास्तव में मुझे सुन रहे हो, तो तुम अपनी आवाज़ खो दोगे, क्योंकि उस क्षण में मैं तुम्हारी आवाज़ होता हूं। जो अंतर्तम संवाद मेरे और तुम्हारे मध्य होता है, वह दो व्यक्तियों के मध्य नहीं होता है। वह कोई तर्क-वितर्क नहीं हे, वह एक संवाद भी नहीं है। अंर्तसंवाद केवल तभी घटता है, जब तुम खो जाते हो, जब तुम वहां नहीं होते हो। सर्वोच्च शिखर पर यह मैं-तूका भी संबंध नहीं होता। यह किसी भी प्रकार से कोई संबंध होता ही नहीं मैं नहीं हूं, और तुम्हारे लिए भी एक क्षण ऐसा आता है, जब तुम नहीं होते हो। उस क्षण में दो शून्यता एक दूसरे में लुप्त हो जाती हैं।

मंगलवार, 13 दिसंबर 2022

तंत्रा-विज्ञान-(Tantra Vision-भाग-02)-प्रवचन-05

 तंत्रा-विज्ञान-Tantra Vision-(भाग-दूसरा)


प्रवचन-पांचवां-(कुछ नहीं से शून्यता तक)

दिनांक 05 मई 1977 ओशो आश्रम पूना।

 

सरहा के सूत्र-

          विस्मृति एक परम्परागत सत्य है

          और मन जो अ-मन बन गया है, वही अंतिम सत्य है।

          यही कार्य का पूरा हो जाता है, यही सर्वोच्च शुभ और मंगलमय है।

          मित्र! इस शुभ और मंगल मय स्थिति के प्रति सचेत बनो।

 

          विस्मृति में मन विलुप्त हो जाता है

          ठीक तभी एक पूर्ण और विशुद्ध भावनात्मक या हृदय ऊर्जा उत्पन्न होती है,

          जो अच्छे और बुरे के सांसारिक भेद से अप्रदूषित होती है।

          जैसे एक कमल का फूल उस कीचड़ से जिसमें वह उगता है, अप्रभावित होता है।

 

          जब नींद और स्वप्नों की काली चादर से मुक्त होकर

तुम्हारा मन निश्चल अ-मन हो जाता है।

तब तुममें आत्म सचेतनता होगी,

जो विचारों के पार अ-मन होगी

और तुम अपने मूल स्त्रोत पर होगे।

 

यह संसार जैसा दिखाई देता है, प्रारम्भ ही से

वह वैसे रंग रूप में दीप्तिवान कभी नहीं रहा।

वह बिना किसी आकृति का है,

उसने रूप का परित्याग कर दिया है।

वह अ-मन है, वह विचारों के धब्बों से रहित निर्विचार का ध्यान हैऔर अमन है।

गुरुवार, 8 दिसंबर 2022

तंत्रा-विज्ञान-(Tantra Vision-भाग-02)-प्रवचन-04

 तंत्रा-विज्ञान-Tantra Vision-(भाग-दूसरा)


प्रवचन-चौथा-(आस्था विश्वासघाती नहीं बन सकती)

दिनांक 04 मई 1977 ओशो आश्रम पूना।

 

          पहला प्रश्न:

          प्यारे ओशो!

मैं हमेशा विवाहित स्त्रियों में ही अभिरुचि क्यों लेता हूं?

 

इस बारे में वहां विशिष्ट कुछ भी नहीं हैंयह बहुत सामान्य बीमारी है, जो लगभग एक व्यापक रोग के रूप में विद्यमान है। लेकिन इसके लिए वहां कारण भी हैं। लाखों लोग जिनमें स्त्री और पुरूष दोनों ही हैं। विवाहित लोगों की और कहीं अधिक आकर्षित होते हैं। पहली बात-व्यक्ति का अविवाहित होना यह प्रदर्शित करता है कि अभी तक उसकी कामना किसी भी स्त्री अथवा पुरूष ने नहीं की हैंऔर विवाहित व्यक्ति से यह प्रदर्शित होता है कि किसी व्यक्ति ने उसे चाहा है। और तुम इतने अधिक अनुकरण शील हो कि तुम अपनी और से प्रेम भी नहीं कर सकते। तुम एक ऐसे गुलाम हो कि जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति से प्रेम करता है, केवल तभी तुम उसका अनुसरण कर सकते हो। लेकिन यदि व्यक्ति अकेला है और कोई भी व्यक्ति उसके साथ प्रेम में नहीं है, तब तुम्हें संदेह होता हैं। हो सकता है वह व्यक्ति इस योग्य न हो, अन्यथा उसे क्यों तुम्हारे लिए प्रतीक्षा करना चाहिए? विवाहित व्यक्ति के पास अनुकरण करने वालों के लिए बहुत बड़ा आकर्षण होता है।

सोमवार, 21 नवंबर 2022

तंत्रा-विज्ञान-(Tantra Vision-भाग-02)-प्रवचन-03

 तंत्रा-विज्ञान-Tantra Vision-(भाग-दूसरा)


प्रवचन-तीसरा-(चार मुद्राओं अर्थात चार तालों को तोड़ना)

दिनांक 03 मई 1977 ओशो आश्रम पूना।

सूत्र-

 

वो अपने अंदर जो भी अनुभव करते हैं,

उसे वे उच्चतम सचेतनता की स्थिति बतलाते हुए,

उसकी ही शिक्षा वे देते हैं,

वे उसकी को मुक्ति कह कर पुकारेंगे,

एक हरे रंग कम मूल्य का कांच का टुकड़ा ही

उसके लिए पन्ने-रत्न जैसा ही होगा।

भ्रम में पड़कर वे यह भी नहीं जानते है

कि अमूल्य रत्न को कैसा होना चहिए?

 

सीमित बुद्धि के विचारों के कारण,

वे तांबे को भी स्वर्ण की भांति लेते हैं,

और मन के शूद्र-विचारों को वे अंतिम सत्य की तरह सोचते हैं।

वे शरीर और मन के सपनों जैसे सुखमय अनुभवों को ही

सर्वोच्च अनुभव मानकर वहीं बने रहते है,

और नाशवान शरीर और मन के अनुभवों को ही शाश्वत आनंद कहते है।

 

इवामजैसे मंत्रों को दोहराते हुए वे सोचते हैं कि वे आत्मोपलब्ध हो रहे हैं।

जब कि विभिन्न स्थितियों से होकर गुजरने के लिए चार

मुद्राओं को तोड़ने की जरूरत होती है,

वे अपनी इच्छानुसार सृजित की गई सुरक्षा की चार दीवारी

तक वे स्वयं तक पहुंच जाना कहते है,

लेकिन यह केवल दर्पण में प्रतिबिम्बों को देखा जैसा है।

मंगलवार, 15 नवंबर 2022

तंत्रा-विज्ञान-(Tantra Vision-भाग-02)-प्रवचन-02

 तंत्रा-विज्ञान-Tantra Vision-(भाग-दूसरा)


प्रवचन-दूसरा-(स्वतंत्रता है उच्चतम मूल्य)

दिनांक 02 मई 1977 ओशो आश्रम पूना।

प्रश्न सार:

पहला प्रश्न: प्यारे ओशो!

      मेरे अंदर प्रेम का होना बाहर के संसार पर आश्रित है। इसी समय इसके साथ मैं देखता और समझता हूं कि आप, स्वयं तो हमें अंदर पूर्ण रूप से बने रहने के बारे में भी कहते हैं। ऐसे प्रेम के साथ क्या होता है, यदि वहां पर न कोई भी चीज़ हो और न कोई भी व्यक्ति हो जो उसे पहचान सके और उसका स्वाद ले सके?

बिना शिष्यों के आपका क्या अस्तित्व हैं?

 

पहली बात: इस जगह दो तरह के प्रेम हैं। सी. एस. लेविस ने प्रेम को दो किस्मों में विभाजित किया हैं—‘जरूरत का प्रेमऔर उपहार का प्रेम। अब्राहम मैसलो भी प्रेम को दो किस्मों में बांटता है। पहले को वह जरूरी प्रेम अथवा कमी अखरने वाला प्रेम कहता है, और दूसरे तरह के प्रेम को आत्मिक प्रेमकहता है। यह भेद अर्थपूर्ण है और इसे समझना है। जरूरत का प्रेम और कमी अखरने वाला प्रेम दूसरे पर आश्रित होता है। यह एक अपरिपक्व प्रेम होता है। वास्तव में यह सच्चा प्रेम न होकर एक जरूरत होती है। तुम दूसरे व्यक्ति का प्रयोग करते हो, तुम दूसरे व्यक्ति का एक साधन की भांति प्रयोग करते हो; तुम उसका शोषण करते हो, तुम उसे अपने अधिकार में रखकर उस पर नियंत्रण रखते हो। लेकिन दूसरा व्यक्ति आधीन होता है और लगभग मिट जाता है; और दूसरे के द्वारा भी ठीक ऐसा ही समान व्यवहार किया जाता है। वह भी तुम्हें नियंत्रण में रखते हुए तुम्हें अपने अधिकार में रखना चाहता है और तुम्हारा उपयोग करना चाहता है।

गुरुवार, 10 नवंबर 2022

तंत्रा-विज्ञान-(Tantra Vision-भाग-02)-प्रवचन-01

तंत्रा-विज्ञान-Tantra Vision-(भाग-दूसरा)


प्रवचन-पहला-(तंत्र का मानचित्र)

दिनांक 01 मई 1977 ओशो आश्रम पूना।

 

सरहा के सूत्र:

          स्त्री और पुरूष एक दूसरे का चुम्बन लेकर

          रस-रूप और स्पर्श का इन्द्रिय सुख

पाने की लालसा के लिए

एक दूसरे को धोखा देकर भ्रमित कर रहे हैं

वे इन्द्रियों के विषय-सुख को ही

प्रमाणिक र्स्वोच्च परमआनंद मान कर

उसे पाने की उच्च घोषणा कर रहे हैं।

वह व्यक्ति उस पुरूष की भांति है,

जो अपने अंदर स्थित स्त्री और पुरूष के मिलन

अपने अंतरस्थ रूपी घर को छोड़कर,

इन्द्रिय रूपी द्वारों पर बाहर खड़ा है।

और बाहर की स्त्री से विषय भोग के आनंद की चर्चा करते हुए

उससे विषय सुख के बारे में आग्रह पूर्वक पूंछ रहा है।

 

जो योगी शून्यता के अंतराल में रहते हुए मन के पर्दे पर

जैविक उर्जाओं से आंदोलित होकर कल्पना में अनेक तरीको से

विकृत सुखों को सृजित करके उनका प्रक्षेपण करते हैं;

ऐसे योगी काल्पनिक वासना से प्रलोभित होकर

अपनी शक्ति खोकरकष्ट भोगते है,

           वे अपने दिव्य स्थान से पतित होते हैं।

जैसे ब्राह्मण जो यज्ञ की अग्नि की लपटों में

अन्न और घी की आहुति देकर

मंत्रो चार आदि का अनुष्ठान करता है

कामना करता है कि वह स्वर्ग में स्थान पा जाएगा

और वह स्वप्न देखते हुए, कल्पना में पुण्य रूपी पात्र को सृजित करता है।