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सोमवार, 14 अक्तूबर 2019

तंत्र-अध्यात्म और काम-(प्रवचन-03)

तीसरा प्रवचन—(काम में समग्र समर्पण)

(Tantra Spiituality and Sex का हिन्दी अनुवाद)

तुम जो भी करो उसे ध्यान बनाते हुए समग्रस्ता से करो--काम को भी। यह समझना आसान है कि अकेले क्रोध कैसे किया जाए लेकिन तुम संभोग भी अकेले कर सकते हो। और उसके बाद जो तुम्हें मिलेगा उससे गुणात्मक भेद होगा।
जब तुम नितांत अकेले हो, अपना कमरा बंद कर लो और तुम इस तरह व्यवहार करो जैसे काम-क्रीड़ा में करते हो। अपने पूरे शरीर को हिलने-डुलने दो। कूदो, चीखो, चिल्ला- जो कुछ करने को मन हो रहा हो उसे करो। उसे समग्रस्ता से करो। सब कुछ भूल जाओ- समाज, वर्जनाएं आदि। अकेले ही काम-क्रीड़ा में रत हो जाओ; ध्यान
पूर्वक, लेकिन अपनी सारी कामुकता इसमें डाल दो।

दूसरे के साथ, समाज हमेशा उपस्थित रहता है, क्योंकि दूसरा वहां मौजूद है। ऐसा गहरा प्रेम होना बड़ा मुश्किल है कि तुम यह अनुभव करो कि दूसरा वहां है ही नहीं। केवल अत्यंत गहरे प्रेम में, गहरी आत्मीयता में ही ऐसा संभव है कि तुम अपने प्रेमी या प्रेमिका के साथ होओ और ऐसा लगे कि वह है ही नहीं।
यही आत्मीयता का अर्थ है- ''जैसा तुम अपने प्रेमी या प्रेमिका, पति या पत्नी के साथ कमरे में अकेले होओ, दूसरे का कोई भय न हो, तब तुम काम-कृत्य को उसकी समग्रस्ता से कर सकते हो। नहीं तो दूसरे की उपस्थिति सदा अवरोध बनी रहेगी। दूसरा तुम्हें देख रहा है, वह क्या सोचेगी? वह क्या सोचेगा? तुम यह क्या कर रहे हो? पशुओं जैसा व्यवहार कर रहे हो!''
कुछ दिन पहले एक औरत मेरे पास आई। वह अपने पति की शिकायत लेकर आई थी। उसने कहा, ''वह जब भी मुझसे प्रेम करता है उसका व्यवहार पशुओं जैसा हो जाता है।''
जब दूसरा उपस्थित होता है, वह तुम्हारी तरफ देख रहा है, तुम यह क्या कर रहे हो?'' और तुम्हें सिखाया गया है कि कुछ बातें ऐसी हैं जो तुम्हें नहीं करनी चाहिए। यह वर्जित है, तुम समग्रस्ता से कुछ कर नहीं सकते।
अगर वास्तव में प्रेम है तब तुम ऐसा कर सकते हो जैसे कि तुम अकेले हो। और जब दो शरीर एक हो जाते हैं, दोनों एक ही लय में हो जाते हैं तब द्वैत मिट जाता है। और काम पूरी तरह छोड़ा जा सकता है। और यह क्रोध की भांति नहीं है।
क्रोध हमेशा कुप है; काम हमेशा कुरूप नहीं। कभी-कभी वह इतना सुंदर होता है जितना कि संभव है, पर केवल कभी-कभी। जब मिलन पूरा हो, जब दोनों एक लय हो गए हों, जब उनकी सांसें एक हो गई हों और उनके प्राण एक वर्तुल में प्रवाहित हो रहे हो, जब दोनों पूरी तरह एक दूसरे में खो गए हों और दो शरीर एक हो गए हों,
जब धन और ऋण, स्त्री और पुरुष वहां न बचे हों, तब काम अत्यंत सुंदर है। लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता।
अगर ऐसा संभव नहीं है तो जब तुम अकेले हो, अपने काम-कृत्य को ध्यान की अवस्था में पागलपन की चरम सीमा तक ले जा सकते हो। कमरा बंद कर लो, इस पर ध्यान करो और अपने शरीर को इस तरह गति करने दो जैसे तुम इस पर कोई नियंत्रण नहीं कर रहे। सब नियंत्रण ढीला छोड़ दो।
पति-पत्नी एक दूसरे के सहयोगी हो सकते हैं, विशेष रूप से तंत्र में। तुम्हारी पत्नी, तुम्हारा पति या तुम्हारा मित्र बहुत ही सहयाक सिद्ध हो सकते हैं। ऐसा तभी हो सकता है अगर दोनों ही गंभीरता पूर्वक प्रयोग कर रहे हों।
तब दोनों एक दूसरे को पूरी तरह अनियंत्रित होने में मदद दें। भूल जाओ सब सभ्यता को जैसे उसका कभी अस्तित्व ही नहीं था। ईडन के उपवन में वापस लौट जाओ। उस सेब को- ज्ञान के वृक्ष के फल को एक ओर फेंक दो। तुम फिर से वही आदम और हौवा बन जाओ जो ईडन के उपवन से निकाले जाने से पहले थे। पीछे लौट जाओ। मात्र निर्दोष सरल जानवर हो जाओ और अपनी कामुकता को उसकी समग्रस्ता में भोगो। तुम फिर वही कभी नहीं हो पाओगे।
दो बातें होंगी। कामुकता विदा हो जाएगी काम बचेगा, लेकिन कामुकता पूरी तरह विलीन हो जाएगी। और जब कामुकता नहीं होती तो काम दिव्य हो जाता है। जब वह तुम्हारे दिमाग में ही नहीं घूमती रहती जब वह तुम्हारी सोच की विषय नहीं होती जब वह एक सहज वृत्ति होती है--एक संपूर्ण वृत्यि केवल तुम्हारे दिमाग का ही न तुम्हारे होने का तुम्हारी पूरी बीइंग का कृत्य बन जाता है- तब यह दिव्य है। पहले कामुकता विदा होगी और तब काम भी विदा हो जाएगी, क्योंकि एक बार जब तुम इसके गहनतर छोर को जान जाते हो तो तुम उस छोर को बिना यौन के उपलब्ध कर सकते हो।
लेकिन तुमने गहनतर छोर को जाना ही नहीं तो उसे किस तरह पा सकते हो? पहली झलक समग्रस्ता से किए गए काम-भोग में मिलती है। एक बार जान लेने से दूसरे मार्गों से भी यात्रा की जा सकती है। फूल को देखने मात्र से ही तुम उस परमसुख को प्राप्त कर सकते हो जो तुम्हें अपनी पत्नी या पति से संभोग करते समय चरमसीमा पर मिलता है। तारों को केवल निहारने से ही तुम उसमें गति कर सकते हो।
एक बार जब तुम उस मार्ग को जान लेते हो तुम्हें पता चल जाता है कि वह तो तुम्हारे भीतर ही है। पति- पत्नी केवल उसे जान लेने में एक दूसरे की सहायता करते हैं। वह तुम्हारे ही भीतर है। दूसरा तो कवेल उत्प्रेरक था, दूसरा तो केवल चुनौती था दूसरा तो उसे जानने के लिए तुम्हारी सहायता करने के लिए था जो तुम्हारे ही भीतर था।
और गुरु और शिष्य में यही घट रहा है। गुरु तुम्हारे भीतर जो सदा-सदा से छिपा है उसे दिखाने के लिए सिर्फ एक चुनौती बन सकता है। गुरु तुम्हें कुछ नहीं दे रहा। वह दे ही नहीं सकता देने के लिए कुछ है नहीं। और जो कुछ भी दिया जा सकता है वह मूल्यवान नहीं क्योंकि वह केवल वस्तु होगी।
जो दिया तो नहीं जा सकता लेकिन जिसकी प्रेरणा दी जा सकती वह मूल्यवान है। एक गुरु केवल तुम्हें उकसाता है। वह तुम्हें उस जगह पहुंचने के लिए पुकारता है ललकारता है जहां तुम उसे पहचान सको, जान सको जो पहले ही तुम्हारे पास था। एक बार तुम्हें उसका बोध हो जाए तो गुरु की आवश्यकता नहीं रहती।
हो सकता है कि काम विदा हो जो लेकिन पहले कामुकता समाप्त हो जाएगी। तब काम एक शुद्ध निर्दोष कृत्य हो जाता है। तब ब्रह्मचर्य फलित होता है। यह काम के विपरीत नहीं यह काम की अनुपस्थिति है। और इस भेद
को स्मरण रखना इसका तुम्हें ध्यान नहीं है।
पुराने धर्म काम और क्रोध की निंदा किए चले जाते हैं जैसे कि ये दोनों एक ही श्रेणी के हों। वे नहीं है। क्रोध विनाशात्मक है। काम सृजनात्मक है। सभी पुराने धर्म दोनों की समान रूप से निंदा किए चले जाते हैं जैसे कि काम और क्रोध, लोभ और काम, ईर्ष्या और काम एक समान हैं। वे नहीं हैं। ईर्ष्या विनाशात्मक है--हमेशा। यह कभी सृजनात्मक नहीं हो सकती इससे कुछ भी नहीं हो सकता। क्रोध हमेशा विनाशकारी है लेकिन काम के साथ ऐसा नहीं है।
काम सृजन का स्रोत हैं परमात्मा ने सृजन के लिए इसका उपयोग किया है। कामुकता ठीक ईर्ष्या जैसी है। काम वासना ऐसी नहीं है। कामुकता ईर्ष्या क्रोध और लोभ के समान है--सदा विनाशात्मक। काम ऐसा नहीं है
लेकिन हमें विशुद्ध काम का कुछ पता ही नहीं है। हमें केवल कामुकता का ही पता है।
एक आदमी जो अश्लिल चित्र देख रहा है या कोई काम--व्यभिचार की फिल्म देख रहा है वह काम नहीं खोज रहा, वह कामुकता के पीछे है। मैं ऐसे लोगों को जानता हूं जो अपनी पत्नियों से भी काम-कीड़ा नहीं कर सकते जब तक वे कुछ अश्लिल चित्र न देख लें अश्लिल पत्रिकाएं या किताबें न पढ़ लें। जब वे इन चित्रों को देखते हैं तभी
उत्तेजित होते हैं। वास्तविक पत्नी उनके लिए कुछ भी नहीं। कोई चित्र नग्न चित्र उनको अधिक उत्तेजित करता है। वह उत्तेजना कामकेंद्र में नहीं है चित्र में हे सिर मैं है।
''काम-वासना का मस्तिष्क में रूपांतरण कामुकता है'' इसके विषय में सोचना कामुकता है। इसे जीना बिल्कुल दूसरी बात है यदि तुम इसे जी सको तो तुम इसके पार हो सकते हो। इसलिए किसी चीज से डरो नहीं। इसे जियो।
अगर तुम सोचते हो कि यह दूसरों के लिए विनाशकारी है अकेले ही इसमें गति करो; दूसरी के साथ इसे मत करो। अगर तुम सोचते हो कि यह सृजनकारी है तब कोई साथी ढूंढो, कोई मित्र ढूंडो। एक युगल बनाओ एक तांत्रिक युगल और उसमें समग्रस्ता से गति करो। अगर फिर भी तुम्हें ऐसा लगे कि दूसरे की उपस्थिति अवरोध बन
रही है तब तुम इसे अकेले ही कर सकते हो।

आज इतना ही

1 टिप्पणी:


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