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गुरुवार, 31 अक्तूबर 2019

14-संत बाबा शेख फरीद-(ओशो)

संत बाबा शेख फरीद—भारत के संत-(ओशो) 

     शेख फरीद के पास कभी एक युवक आया। और उस युवक ने पूछा कि सुनते है कि हम जब मंसूर के हाथ काटे गये, पैर काटे गये। तो मंसूर को कोई तकलीफ न हुई। लेकिन विश्‍वास नहीं आता। पैर में कांटा गड़ जाता है, तो तकलीफ होती है। हाथ-पैर काटने से तकलीफ न हुई होगी? यह सब कपोल-काल्‍पनिक बातें है। ये सब कहानी किसे घड़े हुये से प्रतीत होते है। और उस आदमी ने कहां, यह भी हम सुनते है कि जीसस को जब सूली पर लटकाया गया,तो वे जरा भी दुःखी न हुए। और जब उनसे कहा गया कि अंतिम कुछ प्रार्थना करनी हो तो कर सकते हो। तो सूली पर लटके हुए, कांटों के छिदे हुए, हाथों में कीलों से बिंधे हुए, लहू बहते हुए उस नंगे जीसस ने अंतिम क्षण में जो कहा वह विश्‍वास के योग्‍य नहीं है। उस आदमी ने कहा, जीसस ने यह कहा कि क्षमा कर देना इन लोगों को, क्‍योंकि ये नहीं जानते कि ये क्‍या कर रहे है।

     यह वाक्‍य आपने भी सुना होगा। और सारी दुनिया में जीसस को मानने वाले लोग निरंतर इसको दोहराते है। यह वाक्‍य बड़ा सरल है। जीसस ने कहा कि इन लोगों को क्षमा कर देना परमात्‍मा, क्‍योंकि ये नहीं जानते कि ये क्‍या कर रहे है। आम तौर से इस वाक्‍य को पढ़ने वाले ऐसा समझते है कि जीसस ने यह कहा कि ये बेचारे नहीं जानते कि मुझे अच्‍छे आदमी को मार रहे है। इनको पता नहीं है।

     नहीं यह मतलब जीसस का नहीं था। जीसस का मतलब यह था कि इन पागलों को यह पता नहीं है कि जिसको ये मार रहे है, वह मर ही नहीं सकता है। इनको माफ कर देना। क्‍योंकि इन्‍हें पता नहीं है कि ये क्‍या कर रहे है। यक एक ऐसा काम कर रहे है, जो असंभव है। ये मारने का काम कर रहे है, जो असंभव है।
     उस आदमी ने कहा कि विश्‍वास नहीं आता कि कोई मारा जाता हुआ आदमी इतनी करूणा दिखा सकता है। उस वक्‍त तो वह क्रोध से भर जाएगा।
     शेख फरीद खूब हंसने लगा। और उसने कहा कि तुमने अच्‍छा सवाल उठाया। लेकिन सवाल का जवाब मैं बाद में दूँगा, मेरा एक छोटा सा काम कर लाओ। पास में पडा हुआ  एक नारियल उठाकर दे दिया उस आदमी को, और कहा कि इसे फोड लाओ, लेकिन ध्‍यान रहे,इसकी गिरी को पूरा बचा लाना, गिरी टूट न जाये। लेकिन वह नारियल बिलकुल ही कच्‍चा था। उस आदमी ने कहा,माफकीजिए, यह काम मुझसे ने होगा। नारियल बिलकुल कच्‍चा है। और अगर मैंने इसकी खोल तोड़ी तो गिरी भी टूट जायेगी।तो उस फकीर ने कहां की उसे रख दो। दूसरा नारियल उसने दिया  जो कि सूखा था और कहा कि अब इसे तोड़ लाओ। इसकी गिरी तो तुम बचा सकोगे। उस आदमी ने कहा, इसकी गिरी बच सकती है।
     तब बाबा फरीद ने कहा मैंनेतुम्‍हें जवाब दिया, कुछ समझ में आया? उस आदमी ने कहा, मेरी कुछ समझ में नहीं आया। नारियल से और मेरे जवाब का क्‍या संबंध है? मेरे सवाल का क्‍या संबंध है।  बाबा शेख फरीद ने कहा, यह नारियल भी रख दो, कुछ फोड़ना-फाड़ना नहीं है। मैं तुमसे यह कहा रहा हूं। कि एक कच्‍चा नारियल है, जिसकी गिरी और खोल अभी आपस में जुड़ी हुई है। अगर तुम उसकी खोल को चोट पहुंचाओगे तो उसकी गिरी टुट जायेगी। फिर एक सुखा नारियल है। सूखे नारियल और कच्‍चे नारियल में फर्क ही क्‍या है? एक छोटा सा फर्क है कि सूखेनारियल की गिरी सिकुड़ गई है भीतर और खोल से अलग हो गई है। गिरी और खोल के बीच में एक फासला, एक डिस्‍टेंस हो गया है। एक दूरी हो गई है। अब तुम कहते हो कि इसकी हम खोल तोड़ देंगे तो गिरी बच सकती है। तो मैंने तुम्‍हारे सवाल का जवाब दे दिया।
     मैं फिर भी नहीं समझा, आपने जो कहा है। तब बाबा फरीद ने कहा जाओ मरो और समझो। इसके बिना तुम समझ नहीं सकते। लेकिन तब भी तुम समझ नहीं पाओगे, क्‍योंकि तब तुम बेहोश हो जाओगे। खोल और गिरी एक दिन अलग होंगे,लेकिन तब तुम बेहोश हो जाओगे। अगर समझना है तो अभी खोल और गिरी को अलग करना सिख लो। अभी मैं भी जिंदा हूं। और अगर खोल और गिरी अलग हो गये तो समझना मोत खत्‍म हो गई। वह फासला पैदा होते ही हम जानते है कि खोल अलग,गिरी अलग। अब खोल टूट जायेगी तो भी में बचूंगा। तो भी मेरे टूटने का कोई सवाल नहीं है, मेरे मिटने का कोई सवाल नहीं है। मृत्‍यु घटित होगी, तो भी मेरे भीतर प्रवेश नहीं कर सकेगी। मेरे बाहर ही घटित होगी। यानी वही मरेगा जो मैं नहीं हूं, जो मैं हूं वह बच जायेगा।
     ध्‍यान या समाधि का यही अर्थ है कि हम अपनी खोल और गिरी को अलग करना सीख जाएं। वे अलग हो सकते है। क्‍योंकि वे अलग है,  वे अलग-अलग जाने जा सकते है। दोनों का स्‍वभाव भिन्‍न है ये कुदरत को एक चमत्‍कार ही है कि दोनों कैसे मिले है। एक सूक्ष्‍म है एक स्‍थूल है।
     इसलिए ध्‍यान को मैं कहता हूं,स्‍वेच्‍छा से मृत्‍यु में प्रवेश, बालेंटरी एन्‍ट्रेंस इनटू डेथ। अपनी ही इच्छा से मौत में प्रवेश।  और जो आदमी अपनी इच्‍छा से मौत में प्रवेश कर जाता है, वह मौत का साक्षात्‍कार कर लेता है। कि यह रही मौत और मैं अभी भी हूं।
--ओशो
मैं मृत्‍यु सिखाता हूं,
प्रवचन—2, संस्करण—1991,

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