दिनांक
21 जून
1976;
श्री
ओशो आश्रम, पूना।
बाऊलगीत—
प्रेम
की गंध और
स्वाद
और
प्रेमी के
हृदय की भाषा
को
केवल
गुणग्राही
रसिक शिरोमणि
ही
समझ
सकता है
दूसरों
को तो उसका
कोई संकेत तक
नहीं मिलता
नीबू
का स्वाद तो
फल के
केंद्र में
होता है!
और
विशेषज्ञ भी
उस तक पहुंचने
का
कोई
सरल मार्ग नहीं
जानते!
शहद तो
कमल पुष्ट के
अंदर
छिपा
होता है
लेकिन
शहद की माखी
उसे जानती है
गोबर में
बसे गुबरैले
शहद का
पूर्वानुमान
कैसे कर सकते
हैं?
विनम्रता
और समर्पण ही
ज्ञान का
रहस्य है
मैं
तुम्हें
बाउलों के
संसार से
परिचित कराते
हुए अत्यधिक
आनंदित हूं।
मुझे आशा है
कि तुम इससे
विकसित और
समृद्ध होगे।
यह बहुत
असाधारण
विचित्र और
पागल संसार है।
इसे ऐसा होना
ही चाहिए। है
यह दुर्भाग्य
की बात, लेकिन इसे
ऐसा होना ही
था, क्योंकि
तथाकथित
समझदार लोगों
का संसार इतना
अधिक पागल है
कि यदि तुम
वास्तव में
समझदार बनना
चाहो, तो
उसके अंदर
जाने में
तुम्हें पागल
बनना ही पड़ेगा।
तुम्हें अपना
मार्ग चुनना
होगा जो
तुम्हारा अपना
स्वयं का
मार्ग होगा।
यह संसार के
सामान्य मार्ग
के विरुद्ध
उससे बिलकुल
अलग मार्ग है।
बाउलों
को बाउल या
बावरा कहा
जाता है
क्योंकि ये
पागल जैसे लोग
हैं। बाउल
शब्द संस्कृत
के मूल शब्द 'वतुल' से
आता है जिसका
अर्थ पागल
होता है जो
हवा के प्रभाव
से पागल हुआ
हो। बाउलों का
कोई धर्म नहीं
होता। न तो वह
हिंदू होते
हैं, न
मुसलमान, न
ईसाई और न ही
बौद्ध। वह
साधारण
मनुष्य होते
हैं।
वे
समग्रता से
विद्रोही हैं।
वे किसी के
होकर नहीं
रहते। वे केवल
स्वयं के ही
होकर स्वयं के
ही छंद से जीते
हैं।
वे
मनुष्यों के
बीच किसी
बस्ती में
नहीं रहते, न उसका
कोई देश है, न उनका कोई धर्म
है, न कोई
उनका धर्म
शास्त्र है।
उनका विद्रोह
झेन
सद्गुरुओं के
अहिंसात्मक तथा
आध्यात्मिक
विद्रोह से भी
कहीं अधिक गहरा
है— क्योंकि
औपचारिक रूप
से वे सभी
बौद्ध धर्म के
अनुयायी हैं,
कम से कम वे
औपचारिक रूप
से ही बुद्ध
की पूजा या
वंदना करते
हैं। औपचारिक
रूप से उनके
धर्मशास्त्र
भी है—पर ऐसे
धर्मशास्त्र,
जो
धर्मशास्त्रों
के विरुद्ध
घोषणाएं करते हैं—लेकिन
फिर भी वे हैं
तो। कम से कम
उनके पास कुछ
धर्मशास्त्र
तो ऐसे हैं, जिन्हें
जलाना है।
पर
बाउलों के पास
कुछ भी तो
नहीं है। न
धर्मशास्त्र, न ऐसे
शास्त्र
जिन्हें जलाना
है, न चर्च,
न मंदिर, न मस्जिद, कोई भी किसी
तरह का पूजाघर
नहीं। एक बाउल
ऐसा मनुष्य है,
जो हमेशा
सड़क पर ही
रहता है। न
इसका कोई घर
है न कोई
द्वार। केवल
परमात्मा ही
उसका घर है और
पूरा खुला आकाश
ही उसका
शरणस्थल है।
एक गरीब आदमी
की गुदड़ी के
सिवाय उसके
पास कुछ भी तो
नहीं होता, बस एक हाथों
से बना एक तार
का
वाद्ययंत्र, जिसे ' एकतारा
' कहते हैं।
एक छोटी थी
डफली और पानी
भरने का एक
डोल। बस सब
कुछ यही उनकी
सम्पूर्ण
सम्पत्ति
होती है। उसके
पास बस एकतारा
और ढफली ही
होती है। वह
एक हाथ से
एकतारा बजाता
है और दूसरे
हाथ से डफली
पीटता जाता है।
ढफली उसकी बगल
में लटकी रहती
है और वह गीत
गाता हुआ
नाचता है। बस
यही उसका धर्म
होता है।
नृत्य
ही उसका धर्म
है और गीत
गाना ही उसकी
पूजा। वह ' परमात्मा
' शब्द का
भी प्रयोग
नहीं करता।
परमात्मा के
लिए बाउलों का
शब्द है—' आधार
मानुष ' अर्थात्
सारभूत
मनुष्य। वह
मनुष्य की ही
पूजा करता है।
वह कहता है—' अंदर तू और
मैं ' और
प्रत्येक के
अंदर वही
सारभूत
अस्तित्व ही है।
वही सारभूत
अस्तित्व ही
सब कुछ है।
उसी सारभूत
मनुष्य या
आधार मानुष की
खोज करना ही
पूरी खोज
इसलिए
तुम्हारे
बाहर वहां
परमात्मा
जैसा कोई भी
नहीं, और
न वहां कोई
मंदिर बनाने
की जरूरत है।
क्योंकि तुम
पहले ही से
स्वयं उसका
मंदिर हो।
पूरी खोज ही
अपने स्वयं के
अंदर ही है।
और गीतों की
तरंगों पर
नृत्य की
लहरों द्वारा
वह स्वयं अपने
अंदर प्रवेश
करता है। वह
एक भिखारी की
तरह गीत गाता
हुआ घूमता
रहता है। वह
कोई भी उपदेश
नहीं देता।
उसका पूरा
उपदेश और
देशना उसकी
कविता है और उसका
काव्य भी कोई
साधारण कविता
नहीं है, वह
मात्र कविता
ही नहीं है।
वह सचेतन रूप
से कवि है भी
नहीं, वह
गाता भी इसलिए
है क्योंकि
इसका हृदय ही
गाता है।
कविता एक छाया
की तरह उसका
अनुसरण करती
है, इसलिए
वह अत्यंत
सुंदर और मधुर
है। वह कोई
नाप तौल कर
उसे गढ़ता नहीं।
वह अपनी कविता
के साथ स्वयं
जीता है। वही
उसकी भाव दशा
और वही उसका
जीवन है। उसका
नृत्य लगभग
दीवानापन है।
वह नृत्य करने
के लिए कभी
कोई
प्रशिक्षण
नहीं लेता, वह नृत्य की
कला के बारे
में कुछ भी
नहीं जानता।
वह एक पगले की
भांति तेजी से
एक हवा—चक्की
की भांति
घूमता है। और
वह बहुत सहज
स्वाभाविक बन
कर रहता है।
क्योंकि बाउल
कहते हैं—’‘यदि
तुम ' आधार
मानुष ' तक
पहुंचना
चाहते हो, उस
सारभूत
मनुष्य को
खोजना चाहते
हो—तब उसका
मार्ग, सहज
मानुष के
द्वारा स्वाभाविक
और स्वयं
प्रवर्तित
मनुष्य होकर
ही जीना है।’’ उस सारभूत
मनुष्य तक
पहुंचने के
लिए तुम्हें सहज
स्वाभाविक
मनुष्य के
द्वारा होकर
ही जाना होगा।
सहज
स्वाभाविक
मार्ग ही उस
सारतत्व तक
पहुंचने का
एकमात्र
मार्ग है.
इसलिए जब उसे
गाने या रोने
जैसा कुछ
अनुभव होता है
वह बिलख—बिलखकर
रोता और गाता
है। तुम उसे
गांव की सड़क
पर फूट—फूटकर
रोते और गाते
हुए बिना किसी
बात के अकारण
ही खड़ा हुआ
देख सकते हो।
यदि तुम उससे
पूछो—तुम आखिर
क्यों रो हो?
वह
हंसेगा .'गैर कहेगा, '' यहां ' क्यों
' है ही
नहीं। मैंने
बस ऐसा अनुभव
किया कि रोऊं
और में रोने
लगा। हंसने
जैसा कुछ
महसूसता है तो
वह हंसता है, यदि उसे
लगता है की वह
गाये तो वह
गाने लगता है।
लेकिन
प्रत्येक चीज
का गहरी भावना
से उद्भूत होना
आवश्यक है।’’
वह
मस्तिष्क या
बुद्धिप्रधान
नहीं है, और न किसी भी
भांति
अनुशासित या
नियंत्रित।
वह कोई संस्कार
या कर्मकाण्ड
नहीं जानता।
वह सभी
संस्कारों के
पूरी तरह
विरुद्ध है और
वह कहता है, '' एक
संस्कारित
मनुष्य एक
मुर्दा
मनुष्य है। वह
सहज
स्वाभाविक
नहीं हो सकता।
और एक व्यक्ति
जो संस्कारों
और
औपचारिकताओं का
अनुसरण करता
है, वह
अपने चारों ओर
बहुत अधिक
आदतें
उत्पन्न कर
लेता है और
फिर उसे सजग
बने रहने की
कोई जरूरत
होती ही नहीं।
जब आदतें
निर्मित हो
जाती हैं तो
सजगता खो जाती
है। तब
संस्कारों
में रहने वाला
एक व्यक्ति
आदतों के
द्वारा जीता
है। यदि वह
मंदिर जाता है
तो वहां सिर
झुकाता है, किसी भी
भांति वह जो
कुछ वहां करता
है, वह
किसी सजग
सचेतन रूप से
नहीं, बल्कि
केवल इसलिए
करता है
क्योंकि उसे
वैसा करना
सिखाया गया है
और उसने वैसा
करना सीखा है।
वैसा करना एक
अनुशासित आदत
बन चुकी है, वह ' कंडीशनिंग
' हो गई है
जैसे एक।
इसलिए
वे किन्हीं
संस्कारों का
अनुसरण नहीं करते, उनकी न
कोई विधि है
और न उनकी कोई
आदतें ही हैं।
इसलिए तुम दो
बाउलों को एक
जैसा नहीं पा
सकते। इनकी
अपनी
वैयक्तिकता
होती है। उनका
विद्रोह
उन्हें
प्रामाणिक
व्यक्तिगत इकाई
बनने की दिशा
में ले जाता
है।
यह बात
समझ लेने जैसी
है कि जितने
अधिक तुम समाज
के एक भाग बन
जाते हो
तुम्हारी
निजता और
वैयक्तिकता
उतनी ही कम होती
जाती है। तुम
कम से कम सहज
स्वाभाविक
बनते जाते हो, क्योंकि
समाज के सदस्य
बने रहने में
समाज तुम्हें
स्वाभाविक
बने रहने की
अनुमति नहीं
देता।
तुम्हें उसके
खेल के नियमों
का पालन करना
ही होगा। यदि
तुम एक समाज
में प्रवेश
करते हो, तुम्हें
उसके नियमों
का अनुसरण
करना ही होगा,
जो समाज ने
उस खेल के लिए
तै कर रखे हैं,
अथवा समाज
जिस खेल को
खेल रहा है।
उस समाज के
सदस्य होने
का अर्थ है, तुम जिस
विशिष्ट
संस्था में
प्रवेश करते
हो, तुम्हें
उसका खेल खेलना
ही होगा।
बाउलों
की कोई संस्था
या संगठन होता
हो नहीं, इसलिए
प्रत्येक
बाउल
वैयक्तिक
होता है।
और
वास्तविक या
सच्चा धर्म
वही है जिसमें
सता तक
पहुंचने का
प्रत्येक का
वैयक्तिक ढंग
हो। प्रत्येक
को अकेला ही
जाना होता है, प्रतीक
को अपने ही
रास्ते से
जाना होता है
और प्रत्येक
को अपना
रास्ता स्वयं
खोजना हाता है।
तुम किसी
दूसरे का
अनुसरण नहीं
कर सकते, तुम
किसी बने—बनाये
पथ पर नहीं चल
सकते। जितना
अधिक तुम अपना
मार्ग स्वयं
खोजते हो, तम
परमाता। के
अथवा सत्य के
अथवा
वास्तविकता के
उतने ही अधिक
निकट होते। वास्तव
में मार्ग तो
चलने से ही
बनता है। जैसे—जैसे
तुम चलते हो
मार्ग तैयार
होता जाता है।
वह मार्ग
तुम्हारे लिए
पहले से कोई
बना—बनाया
मार्ग नहीं है,
जो
तुम्हारे चलने
की प्रतीक्षा
कर रहा हो।
तुम चलते हो, तुम उसे
निर्मित करते
हो।
यह ठीक
ऐसा ही है, जैसे तुम
जंगल में
रास्ता भटक गए
हो। तुम करोगे
क्या? न तो
तुम्हारे पास
कोई नक्शा है
और न कहीं कोई
रास्ता ही है,
जो कहीं ले
जा रहा हो—पेड़
और पेड, बस
चारों ओर पेड
और पेड हैं और
तुम खो गए हो
उसमें। तुम
करोगे क्या? तुम चलना
शुरू कर दोगे,
तुम खोजोगे,
मार्ग
ढूंढोगे।
तुम्हारे इस
तरह चलने से, खोजने से पथ
स्वयं
निर्मित हो
जाता है।
जीवन
उग्र या जंगली
है, और
यह अच्छा है
कि वह जंगली
है। यह अच्छा
ही है, कि
उसके पास कोई नक्शे
नहीं है, वह
किसी के अधिकार
में नहीं है, उसे ज्ञात
बनाने का कोई
उपाय नहीं है,
अन्यथा
उसका सारा
सौंदर्य ही खो
जाता, सारा
आकर्षण ही
समाप्त हो
जाता। तब जीवन
तुम्हें
आश्चर्यचकित
नहीं कर पाता
और मधु— माखी
उसे भली भाति
जानती है यदि
आश्चर्य खो जाता
है तो सब कुछ
खो जाता है।
तब वहां न कोई
आश्चर्य रह
जाता है, और
न आश्चर्य
करने वाला। तब
तुम्हारी आंखें
मुर्दा हो
जाती हैं और
तुम्हारा
हृदय धड़कना बंद
कर देता है, सारे भाव
मिट जाते हैं।
तब प्रेम करना
सम्भव न हो
सकेगा। तब
आदरपूर्ण भय,
आश्चर्य
चमत्कार, यह
सभी, किसी
करिश्मे के
अंश हैं अथवा
जीवन का रहस्य
है। इसलिए
अच्छा है कि
यहां कोई धर्म
शास्त्र हो ही
नहीं, यह
अच्छा है कि
यहां कोई
संस्कारों
युक्त धर्म हो
ही नहीं, और
यह अच्छा है
कि तुम किसी
राजमार्ग पर
नहीं चल रहे
हो।
एक
बाउल एक
विद्रोही
व्यक्ति होता
है और मैं विद्रोही
शब्द भी बहुत
अधिक सोच—विचार
के बाद ही कह
रहा हूं। वह
क्रांतिकारी
नहीं है। एक
क्रांतिकारी
अभी भी समाज
के सम्बन्ध
में ही सोच
रहा है कि उसे
कैसे बदला
जाये यही है एक
क्रांतिकारी
का सतत् चिंतन।
वह सदा समाज
की ओर ही
केंद्रित बना
रहता है, वह केवल उसी
दिशा की ओर
सोचता रहता है
कि उसे कैसे
बदला जाए?
एक
विद्रोही
व्यक्ति
संसार के बारे
में फिक्र
करता ही नहीं, क्योंकि
वह समझता है
कि उसके
द्वारा संसार
को नहीं बदला
जा सकता और मैं
संसार को
बदलने वाला
होता ही कौन
हूं? संसार
को बदलने का
मेरा अधिकार
क्या है? और
यदि संसार जिस
तरह से बने
रहने का
निश्चय करता
है, तो मैं
दखल देने वाला
होता कौन हूं
न; वह
संसार को
स्वयं उसी पर
छोड देता है।
वह उसमें कोई
हस्तक्षेप
नहीं करता, उसमें कोई
विघ्र नहीं
डालता। वह
स्वयं को
बदलना शुरू
करता है। उसका
विद्रोह अंदर
होता है, उसका
विद्रोह पूरी
तरह से आंतरिक
है।
एक
विद्रोही व्यक्ति
छोड़ने वाला
होता है। वह
उस समाज को
छोड देता है, जो उसे
अनुकूल नहीं
पडता। वह यह
प्रतीक्षा
नहीं करता कि
समाज बदल जाए
जिससे वह अपने
को उसके
अनुसार अनुकूल
बना सके। यह
इच्छा ही
मूर्खता और
मूढ़तापूर्ण
है। तब तुम
भटक जाओगे। और
वह दिन कभी
नहीं आएगा। जब
तुम्हारे
स्वप्नों का
आदर्श संसार
बने और संसार
इतना अधिक बदल
जाए कि तुम
उसके अनुकूल हो
सको और समाज
तुम्हारे
अनुकूल हो जाए।
ऐसा कभी हुआ
ही नहीं है।
क्रांतिकारी
सदियों से
रहते आए हैं
और वे मर भी गए
लेकिन कमोवेश
संसार वैसे का
वैसा ही बना
रहा, बल्कि
उन
क्रांतिकारियों
के जीवन उसे
बदलने के
प्रयास में
व्यर्थ नष्ट
हो गए।
जरा
सोचें यदि
मार्क्स, लेनिन और
ट्राटस्की
फिर से वापस
लौटकर इस संसार
को देखें—तो वे
सभी चीखना
शुरू कर देंगे।
क्या यह वही
संसार है जिसके
लिए उन्होंने
अपना पूरा जीवन
बरबाद किया? पूरे जीवन
को जुए के
दांव पर लगा
दिया था? वे
सभी अपने जीवन
को ठीक से जी
भी न सके।
क्योंकि वे
लोग संसार को
बदलने की
कोशिश कर रहे
थे वे लोग
इसलिए संसार
को बदलने की कोशिश
कर रहे थे
क्योंकि उनका
खयाल था उनकी
इच्छाओं के
अनुरूप जब यह
संसार बदल
जाना, केवल
कि तभी वे
जीने में
समर्थ हो
सकेंगे—
अन्यथा वे
कैसे रह सकते
हैं उस संसार
में। तुम एक
दुखी संसार
में सुख से
कैसे रह सकते
हो? यह
प्रश्न एक
क्रांतिकारी
के लिए सबसे
अधिक महत्वपूर्ण
प्रश्न है, तुम दुखी
संसार में
सुखी कैसे रह
सकते हो? इसीलिए
वह संसार को
प्रसन्न
बनाने की
कोशिश करता है।
विद्रोही
व्यक्ति कहता
है—संसार को
उसके हाल पर
यूं ही छोड़ दो।
कोई कभी भी
उसे आज तक बदल
न सका। वह अधिक
व्यावहारिक
और जमीन से
जुड़ा व्यक्ति
है। वह कहता
है, '' मैं
अपनी तरह से
जी सकता हूं।
मैं स्वयं
अपने अंदर ही
अपना संसार
निर्मित कर
सकता हूं।’’
वह एक
त्याज्य है।
सभी बाउल समाज
को छोड़ देने
वाले लोग हैं।
उनका न तो कोई
धर्म है, न समाज और न
कोई अपना देश।
वे भिखारी हैं,
घुमक्कड़
हैं, आवारा
हिप्पी या
जिप्सियों जैसे
हैं, जो एक गांव
से दूसरे गांव
में गीत गाते
और नाचते अपने
ढंग से काम
करते और जीते हुए
परिभ्रमण करते
रहते हैं।
वही
होता है एक
विद्रोही
व्यक्ति जो
कहता है — '' मैं अब
प्रतीक्षा
करने नहीं जा
रहा हूं। मैं
ठीक अभी से अपने
ढंग से जीने
जा रहा हूं।’’ क्रांतिकारी,
भविष्य के
लिए आशाएं
संजोता है। वह
कहता है। मैं
प्रतीक्षा
करने जा रहा
हूं। मैं उचित
क्षण की
प्रतीक्षा
करूंगा। जबकि
विद्रोही व्यक्ति
कहता है, उचित
और ठीक क्षण
तो अभी और यही
है। मैं अब
किसी के आने
की प्रतीक्षा
नहीं करूंगा।
मैं ठीक अभी
से ही अपने
छंद से जिऊंगा।
विद्रोही
व्यक्ति
वर्तमान में
जीता है।
और एक
अन्य बात भी
समझ लेने जैसी
है, एक
विद्रोही
व्यक्ति किसी
के विरुद्ध
नहीं होता है।
वह किसी के
विरुद्ध लगता
जरूर है, क्योंकि
वह अपने ढंग
से अपना जीवन
जीने की कोशिश
कर रहा है, लेकिन
वास्तव में वह
किसी के भी
विरुद्ध नहीं
है। वह किसी
मस्जिद में
भले ही न जाता
हो, लेकिन
वह मुसलमानों
के विरुद्ध
नहीं है। वह
भले ही किसी
मंदिर में न
जाता हो, लेकिन
वह हिंदुओं के
विरुद्ध नहीं
है। वह सरलता
से कहता है—मेरा
किसी से कुछ
लेना—देना ही
नहीं, यह
सब कुछ असंगत
है मेरे लिए।
वह सिर्फ यही
कहता है, कृपया
मुझे अकेला
छोड़ दो। तुम
अपना काम करो
और मुझे अपना
कार्य करने दो।
न तुम मेरे
काम में दखल
दो और न मैं
तुम्हारे कार्य
में दखल दूंगा।
एक
विद्रोही मन
का दृष्टिकोण
बहुत
यथार्थवादी
होता है। जीवन
क्षणभंगुर है।
कोई भी नहीं
जानता कि कल
आयेगा भी या
नहीं। भविष्य
अनिश्चित है
और यह क्षण
अकेला ही है, जिसमें
कोई जी सकता
है। दूसरों से
लड़ने में उसे
क्यों व्यर्थ
मधु— माखी उसे
भली भाति
जानती है?
बरबाद
किया जाए? दूसरों
को कायल करने
या समझाने की
कोशिश में इसे
क्यों व्यर्थ—बरबाद
किया जाए? उसका
आनंद लो। उसका
आनंद लो।
उसमें
प्रसन्नता का
अनुभव करो। एक
बाउल, जीवन
को उत्सव आनंद
से इपीक्यूरस
की भांति स्वयं
अपने छंद से
जीता है। वह
जीवन से प्रेम
करता है और
उसमें
प्रसन्न रहता
है।
जब एक
बाउल की
मृत्यु आती है, वह
मृत्यु से
डरता नहीं—वह
उसके लिए
तैयार होता है।
वह अपना जीवन
जी चुका। वह
पके हुए फल के
समान है, जो
बिना किसी
झिझक के कभी
भी पृथ्वी पर
गिर सकता है।
तुम तो उससे
डर जाओगे। तुम
उससे पहले ही
से डरे हुए हो,
क्योंकि
तुम जीवन को
जीने में भी
समर्थ न हो सके
हो। तुमने अभी
उसे जीया ही
नहीं, और
मृत्यु आ
पहुंची है
अथवा आ रही है।
तुम तो अभी
जीवन जीने में
भी समर्थ न हो
सके हो और
मृत्यु ने
तुम्हारे
दरवाजे पर
दस्तक दे दी है।
तुम मृत्यु को
स्वीकार कैसे
कर सकते हो? तुम उसका
स्वागत कैसे
कर सकते हो?
एक
बाउल किसी भी
क्षण मरने को
तैयार रहता है, क्योंकि
उसने जीवन का
एक भी क्षण
बरबाद नहीं किया
है। उसने उसे
इतनी गहराई से
जीया है, जितना
जीना सम्भव था।
उसे जीवन से न
तो कोई शिकवा
है और न
शिकायत और उसके
पास
प्रतीक्षा
करने के लिए
कुछ भी नहीं
है। इसलिए यदि
मृत्यु आती है,
तो वह
मृत्यु का
आलिंगन करता
है। वह कहता
है—’‘ अंदर
पधारो '' वह
मृत्यु के लिए
भी मेजबान बन
जाता है।
यदि
तुम ठीक तरह
से जीए हो, तो तुम
शांति और आनंद
से मरने के
लिए तैयार रहोगे।
यदि तुम ठीक
से नहीं जीए
हो, यदि
तुम मरने को
टालते आये हो
यदि तुम अपने
जीवन से
किनारा काट कर
उसका आनंद
उठाने के
स्थान पर, प्रसन्नता
पाने के स्थान
पर वस्तुत : एक
हजार एक अन्य
दूसरे
कार्यों में
व्यस्त रहे हो,
तब वास्तव
में
स्वाभाविक
रूप से
तुम्हें मृत्यु
से भय लगेगा।
और जब मृत्यु
आती है तो
मृत्यु के
सामने तुम कायर
बन जाओगे।
एक
बाउल नृत्य
करते हुए ही
प्राण
त्यागता है, एक बाउल
गीत गाते हुए
अपना एकतारा
और अपनी ढफली
बजाते हुए ही
देह विसर्जित
करता है। वह
भली भांति
जानता है कि
कैसे जीया
जाये, और
कैसे मरा जाए।
और वह
परमात्मा के
बारे में भी
कोई फिक्र नहीं
करता। वह केवल
' आधार—मनुष्य
' के बारे
में चिंता
करता है। वह
सारभूत
मनुष्य, जो
उसके अंदर ही
रहता है। उसकी
पूरी खोज उसी
सारभूत
मनुष्य को, जैसा वह है, उसे पा लेने
की है। मैं
कौन हूं? यही
उसकी आधारभूत
तलाश है। और
वह दूसरे
मनुष्यों को
बहुत अधिक
सम्मान देता
है, क्योंकि
उन सभी में
वही सारभूत
स्वभाव एक ही
है। उसके सभी
दूसरे रूप और
आकृतियों उसी सारभूत
अरूप स्वभाव
से ही जन्मी
हैं, वे
सभी उस एक
सागर की ही
लहरें हैं। वह
सभी के प्रति
सम्मानपूर्ण
ही नहीं, अत्यधिक
आदर देता है
सभी को। एक
बाउल कभी किसी
चीज को बुरा
कहता ही नहीं।
मेरे
लिए एक
धार्मिक
मनुष्य की यही
सबसे बड़ी कसौटी
है। उसका
व्यवहार
बुराई करने
वाला नहीं है।
वह प्रत्येक
चीज को स्वीकार
करता है। उसके
संसार में
प्रत्येक चीज
सम्मिलित है।
वह किसी चीज
की वर्जना
करता ही नहीं।
वह सेक्स भी
स्वीकार करता
है और समाधि
भी। उसका
संसार बहुत
अधिक समृद्ध
है, क्योंकि
वह किसी चीज
की वर्जना
करता ही नहीं।
वह
कहता है, प्रत्येक
वस्तु
तुम्हारे
अस्तित्व के
उसी सारभूत
केंद्र से ही
आती है, इसलिए
उससे इंकार
क्यों किया
जाए? और
यदि तुम उससे
इन्कार करते
हो, तो फिर
तुम उसके
स्रोत तक कैसे
पहुंच सकोगे?
जहां
कहीं भी तुम
किसी चीज से
इन्कार करते
हो, तुम
वहीं रुक जाते
हो? उससे
बंध जाते हो।
तब यात्रा
जारी रखते हुए
तुम उस केंद्र
तक नहीं पहुंच
सकते।
जीवन
जैसा वह है, समग्रता
से स्वीकार है।
इसका यह भी
अर्थ नहीं कि
एक बाउल केवल
सभी कामनाओं
को तुष्ट करने
वाला मनुष्य
मात्र है। वह
तुच्छ को उच्च
में
रूपांतरित
करने का रसायन
जानता है। वह
जानता है लोहे
को कैसे
स्वर्ण में
बदला जाए। वह
जानता है कैसे
सेक्स को
समाधि में
रूपांतरित किया
जा सकता है, वह इस रहस्य
को जानता है।
वह इस जीवन को
शाश्वत जीवन
में बदलने और
समय को शाश्वत
बनाने की
कीमिया और
उसका रहस्य
जानता है। और
वह रहस्य है
प्रेम। सेक्स
और समाधि के
मध्य का सेतु
है—प्रेम।
प्रेम दोनों
में ही
सम्मिलित है—एक
ओर सेक्स में
और दूसरी ओर
समाधि में। वह
दोनों के मध्य
एक सेतु है।
एक किनारा है
सेक्स और
दूसरा किनारा
है समाधि।
प्रेम दोनों
में सम्मिलित
है, इसी को
समझ लेना है।
बाउल कहते हैं—कोई
प्रेम के
द्वारा ही
अपने शाश्वत
घर पहुंचता है।
उनके मार्ग
(प्रेम) पर
चलने के लिए
यही उसकी
तैयारी है।
उनके लिए
प्रेम ही पूजा
है, प्रेम
ही उनकी
प्रार्थना है,
प्रेम करना
ही उनके लिए
ध्यान है।
बाउल का मार्ग
ही प्रेम का
मार्ग है। वह
बहुत अधिक
प्रेम करता है।
भारत
में दो
परम्पराएं
हैं—एक
परम्परा है
वेदों की ओर
दूसरी है तंत्र
की। वेदों की
परम्परा अधिक
औपचारिक है, जिसकी
प्रकृति में
संस्कार है।
वेद कहीं अधिक
सामाजिक और
संगठनात्मक
है जबकि तंत्र
वैयक्तिक
अधिक है। उसका
सम्बन्ध, संस्कारों,
आदतों और
रूपों से बहुत
कम है, उसका
सम्बंध
आधारभूत तत्व
से अधिक है, वह बाह्य
रूप आकृति से
कम, आत्मा
से अधिक
सबंधित है।
वेदों
में सब कुछ
सम्मिलित
नहीं है, काफी कुछ
वर्जनाएं हैं।
उसमें कहीं
अधिक कट्टर
धार्मिकता और
नैतिकता है।
तंत्र में
उदारता है, उसमें सभी
कुछ सम्मिलित
है, वह
अधिक मानवीय
और इसी पृथ्वी
से जुड़ा हुआ
है। तंत्र
कहता है कि
प्रत्येक चीज
का प्रयोग
करना चाहिए और
कुछ भी—
अस्वीकारने
जैसा नहीं है।
बाउल, वेदों
की अपेक्षा, तंत्र के
अधिक निकट हैं।
तंत्र में
वहां केवल एक
ही सुधार और
प्रगति है और
वही दोनों में
एकमात्र अंतर
है। तंत्र में
सब कुछ समाहित
है। यह पुरुष
प्रधान की
अपेक्षा
स्त्री
प्रधान अधिक है,
जबकि वेद
अधिक पुरुष
प्रधान है।
तंत्र में
स्त्री की
अधिक
प्रमुखता है।
वास्तव में
पुरुष की
अपेक्षा
उसमें स्त्री
की भागीदारी
अधिक है।
पुरुष स्त्री
में ही
सम्मिलित है,
लेकिन
स्त्री पुरुष
में सम्मिलित
नहीं है।
पुरुष
होना एक तरह
की विशेषता
लगता है।
स्त्री कहीं
अधिक सामान्य, अधिक तरल
और कहीं अधिक
स्वीकार है।
तंत्र का
मार्ग ताओ की
भांति
स्त्रैण
मार्ग है।
लेकिन
बाउल तंत्र से
अधिक विकसित
हैं। तंत्र
अत्यधिक
यांत्रिक है।
तंत्र शब्द का
अर्थ ही है—विधि।
यह अधिक
वैज्ञानिक
लेकिन थोड़ा
सख्त है। बाउल
लोग कहीं अधिक
काव्यात्मक
हैं। बाउल लोग
कहीं अधिक
कोमल गायक और
नर्त्तक है।
तंत्र
सेक्स का
प्रयोग उससे
ऊपर उठने के
लिए करता है, लेकिन वह
उसका प्रयोग
करता है।
सेक्स एक
उपकरण या
माध्यम बन
जाता है। बाउल
कहते हैं—यह
बहुत अधिक
असम्मानपूर्ण
है : तुम किसी
ऊर्जा का
प्रयोग कैसे
कर सकते हो? उस ऊर्जा को
तुम माध्यम या
उपकरण कैसे
बना सकते हो? वे सेक्स का
माध्यम की
भांति प्रयोग
नहीं करते, वे उसमें
प्रसन्नता और
आनंद का अनुभव
करते हैं। वे
बिना किसी
यांत्रिकता
के उसे एक
पूजा या आराधना
बना देते हैं।
प्रेम करना
कोई
यांत्रिकता
नहीं है। वे
प्रेम करते हैं
और प्रेम के
द्वारा
रूपांतरण
स्वत: घटता है।
तंत्र
में तुम्हें
उससे तादात्म्य
न जोड़कर
अनासक्त रहना
होता है। यहां
तक के सेक्स
का प्रयोग
समाधि के लिए
एक माध्यम के
रूप में करते
हुए भी
तुम्हें
सेक्स के
प्रति
अनासक्त रहना
होता है, पूरी तरह
तटस्थ, पूरी
तरह एक दर्शक
बने रहना होता
है, ठीक एक
साक्षी बनकर
या उस
वैज्ञानिक की
भांति जो अपनी
प्रयोगशाला
में कार्य कर
रहा है।
तांत्रिक
कहते हैं—तंत्र
की विधियां उस
स्त्री के साथ,
जिससे तुम
प्रेम करते हो,
नहीं की जा
सकतीं।
क्योंकि
प्रेम ही बाधक
बन जाता है।
तुम उसके
प्रति आसक्त
हो जाओगे। तुम
उससे
निरासक्त बने
रहकर उससे
बाहर नहीं, इसलिए
तांत्रिक
किसी ऐसी
स्त्री को
खोजेंगे जिसके
साथ वे प्रेम
नहीं करते, जिससे उनका
पूरा व्यवहार
पूरी तरह
तटस्थ दर्शक
का बना रह सके।
यहीं
पर बाउल उनसे
पृथक हैं। वे
कहते हैं कि
यह कहीं अधिक
निर्दयता है।
यह
भावनाशून्य
व्यवहार बहुत
अधिक कूर है।
वहां इतना
कठोर और रूखा
बने रहने की
कोई आवश्यकता
नहीं। प्रेम
के द्वारा
रूपांतरण
सम्भव है। यही
कारण है कि
मैं उनके
व्यवहार और
आचरण को कहीं
अधिक
काव्यात्मक, कहीं
अधिक मानवीय
और कहीं अधिक
कीमती मानता हूं।
बाउल कहते हैं
कि तुम संसार
से बंध कर
रहते हुए भी
उससे निरासक्त
भी रह सकते हो,
तुम एक
स्त्री से
प्रेम करते
हुए भी प्रेम
के साक्षी बने
रह सकते हो और
तुम बाजार के
बीच खड़े हुए
भी उसके पार
हो सकते हो।
तुम
संसार में
जीते हुए भी
उससे पृथक हो
सकते हो।
यही
दृष्टि मेरी
भी दृष्टि है।
यही मेरे
संन्यास का
नाम है—संसार
में रहो पर
उसके होकर मत
रहो। और किसी
भी चीज का कोई
मूल्य नहीं, यदि वह
प्रेम के
द्वारा न की
जाए।
इसी
वजह से जहां
तंत्र में कुछ
भी कमी है, तो वह
मनुष्यता की
कमी है। यदि
तुम किसी
स्त्री से
प्रेम करते हो,
तो तंत्र
सम्भव नहीं है।
तुम्हें
प्रेम से बिलकुल
पृथक, अलिप्त
रहना होगा। तब
सेक्स बहुत
अधिक
वैज्ञानिक
प्रक्रिया बन जाती
है। वह विधि
बन जाती है—कुछ
ऐसी चीज नहीं,
जिसे
नियंत्रित
करना है, कुछ
ऐसी चीज जिसे
किये जाना है,
कोई ऐसी चीज
जिसके अंदर
बने रहना है, कोई ऐसी चीज
नहीं है जो तुम्हें
अपने में जज्व
कर लेती है
कोई ऐसी चीज
नहीं ,जिसमें
सागर में डब
जाने की या
समाहित होकर
सर्वोच्च
परमानंद पाने
की अनुभूति
होती है, बल्कि
वह ऐसी क्रिया
बन जाती है, जिसे तुम कर
रहे हो। किसी
स्त्री अथवा
किसी पुरुष
में कोई भी
चीज करने का
विचार इसीलिए
उठता है, क्योंकि
तुम समाधि को
उपलब्ध होना
चाहते हो, दूसरे
व्यक्ति को
साधन या एक
माध्यम बनाने
का विचार ही
कुरूप और
अनैतिक है।
इसीलिए
जहां कहीं भी
बाउल होते हैं
उनकी एक भिन्न
सुवास होती है।
वे कहते हैं—वहां
इतना अधिक
कठोर होने की
कोई आवश्यकता
ही नहीं है।
वहां किसी को
माध्यम की
भांति प्रयोग
करने की या
साधन प्रधान
होने की कोई
आवश्यकता ही
नहीं। प्रेम
सब कुछ स्वत:
कर देगा और हम
यह समझने का प्रयास
करेंगे कि
उनका प्रेम
करने से अर्थ
क्या है।
पहली
कविता. .यह
कविताएं
भिन्न—भिन्न
बाउलों
द्वारा गाई
जाने वाली
कविताएं हैं, लेकिन
मैं उनके
नामों का
प्रयोग करने
नहीं जा रहा
हूं। वह असंगत
है। उन सभी की
दृष्टि एक ही
है। वे भिन्न—भिन्न
कविताएं गाते
हैं, लेकिन
गहरे में वे
सभी ठीक वैसे
ही बने रहते हैं।
जैसे
प्रत्येक
कविता में
भिन्न शब्द और
भिन्न छंद
होता है, लेकिन
उनमें एक ही
धारा दौड़ती
रहती है। यह
ठीक वैसे ही
है जैसे एक
माला में बहुत
से पुष्प साथ—साथ
गुंथे रहते
हैं, लेकिन
उसके अंदर
केवल एक धागा
ही सभी को
बांधे रखता है।
हम
केवल उसी धागे
पर जोर देंगे।
हम इस बारे
में फिक्र
नहीं करेंगे
कि किसने लिखीं
वे कविताएं? वास्तव
में बहुत सी
कविताएं किसने
लिखीं, यह
ज्ञात ही नहीं,
वे अनाम हैं।
कभी कोई जान
ही न सका कि
उन्हें लिखा
किसने, क्योंकि
वास्तव में वे
कभी भी लिखी
ही नहीं गईं।
बाउल
अशिक्षित हैं, और शायद
यही कारण है
कि उनमें इतनी
अधिक निर्मलता
और शुद्धता है।
वे सुसंस्कृत
लोग नहीं है
और न सांसारिक
दृष्टि से
शिक्षित हैं।
शायद इसी कारण
उनमें इतनी
अधिक
निर्दोषिता है।
वे इसी पृथ्वी
की ही संतान
हैं, अशिक्षित,
निर्धन, विनम्र
लेकिन बहुत
अधिक ईमानदार।
इसलिए मैं
तुम्हें यह न
बता सकूंगा कि
आने वाले बीस
दिनों में
उन्हीं गीतों
का अनुसरण करते
हुए मैं अन्य
किन गीतों के
बारे में
बतलाने वाला
हूं। वह सभी
कुछ असंगत है,
उन सभी की
एक ही दृष्टि
है। उनकी एक
विशिष्ट
रागिनी है, इतनी अधिक
वैयक्तिक, कि
इसे बाउल—सर, कहा जाता है,
बाउलों की
रागिनी—बाउल—राग
जिसका स्वाद
इतना विशिष्ट
है, जिसकी
सुवास इतनी
वैयक्तिक है
कि जब भी कहीं
तुम बाउलों से
गीत सुनते हो,
तुम उन्हें
तुरंत पहचान
जाओगे। उनकी
अपनी
वैयक्तिकता
है, अपना
जंगलीपन
अशिक्षा और
असंस्कृत
होना, उनकी
अपनी
वैयक्तिकता
है। ठीक वैसे
ही जैसे सागर
का स्वाद हर
जगह एक ही होता
है, उसे
कहीं से भी
चखो, वह
खारा ही होता
है। इन गीतों
में भी तुम्हें
तुरंत इस बात
का अनुभव होगा
कि वे सभी एक ही
दृष्टि एक ही
व्यवहार, एक
हीर तीव्र
भावोद्वेग और
एक ही अनुभव
को अभिव्यक्त
कर रहे हैं।
और वे
कभी भी लिखे
नहीं गए। बाउल
उन्हें
सदियों से
गाते आ रहे
हैं।
प्रत्येक
बाउल ने उनमें
कुछ चीजें छोड़
दीं और कुछ
चीजें जोड़ दीं, और अपने
या तो नये गीत
बना लिए अथवा
पुराने गीतों
का जो उसने
अपने गुरु से
सुने थे उनका
ऐसा प्रयोग
किया, जिससे
उनकी दृष्टि
इतनी अधिक
स्पष्ट रही कि
जब भी तुम कोई
बाउल गीत
सुनते हो, तुम
कभी भी न उसे
भूल सकते हो
और न उससे चूक
सकते हो। पहला
गीत है
गुण
ग्राही रसिक
शिरोमणि ही
केवल
प्रेम की
सुवास और
प्रेमी
के हृदय की
भाषा समझ सकता
है।
दूसरों
को तो उसका
कोई आभास तक
नहीं होता।
नींबू
का स्वाद तो
उसके केंद्र
में होता है
उसके
बीज में होता
है
और
विशेषज्ञ भी
उस तक पहुंचने
का
कोई
भी सरल मार्ग
नहीं जानते।
शहद
तो कमल पुष्प
के अंदर छिपा
होता है।
लेकिन
शहद की मक्खी
उसे भली भांति
जानती है।
गोबरमें
बसे गुबरैले
शहद
का
पूर्वानुमान
कैसे कर सकते
हैं?
समर्पण
और विनम्रता
ही ज्ञान का
रहस्य है।
पहली
बात तो यह है
कि प्रेम केवल
प्रेम करने से
ही जाना जा
सकता है। यह
कोई ऐसी चीज
नहीं है कि
उसके बारे में
की गई बौद्धिक
चर्चा से उसे
समझा जा सके।
प्रेम कोई
सिद्धांत
नहीं है। यदि
तुम उससे कोई सिद्धांत
बनाने की
कोशिश करो, तो वह
बेबूझ हो
जाएगा। यह
बाउल गीत का
पहला दृष्टि
बिंदु है, वहां
ऐसी चीजें हैं,
जिसे तुम
केवल करने के
बाद या वैसा
होने के बाद ही
जान सकते हो।
यदि
तुम तैरना
नहीं जानते, तो यह भी
नहीं जानते कि
वह है क्या, और उसके
बारे में
जानने का फिर
कोई उपाय है
ही नहीं। तुम
बाहर जाकर एक
हजार एक
तैराकों से
उसके बारे में
चर्चा सुन
सकते हो, लेकिन
फिर भी वह है
क्या, तुम
इसे कभी जान न
सकोगे। यह
किसी भी तरह
से समझ में न
आने वाली बात
है, तुम्हें
उसे समझने के
लिए तैरना
सीखना ही होगा।
तम[एं नीचे
नदी में जाना
होगा, तुम्हें
जोखिम उठानी
होगी, डूबने
का खतरा उठाना
होगा। यदि तुम
बहुत—बहुत
चालाक हो, तो
तुम कह सकते
हो—'' मैं
नदी में तब तक
कदम न रखूंगा,
जब तक तैरना
न सीख लूं।’’ बात है तो
तर्कपूर्ण, मैं नदी में
कदम कैसे रखूं
जब तक मैं
तैरना न सीख
लूं? इसलिए
पहले मुझे
तैरना सीखना चाहिए
केवल तभी मैं
नदी में कदम
रख सकता हूं।
लेकिन तब तुम
तैरने के बारे
में कुछ भी
जानने में
समर्थ न हो
सकोगे, क्योंकि
तैरना सीखने
के लिए तो तुम्हें
नदी में कदम रखना
ही होगा।
तैरना
केवल तैरने के
द्वारा ही
जाना जा सकता
है, प्रेम
केवल प्रेम
करने से जाना
जा सकता है, प्रार्थना
केवल
प्रार्थना
करने के
द्वारा ही
जानी जाती है,
इसके
अतिरिक्त
अन्य कोई
मार्ग है भी
नहीं। यहां
ऐसी भी चीजें
हैं, जिन्हें
बिना उनमें
गतिशील हुए भी
जाना जा सकता
है, लेकिन
वे व्यर्थ की
तुच्छ
वस्तुएं हैं
यह बौद्धिक
चीजें हैं, दर्शनशास्त्र,
अंधविश्वास
अथवा किसी पंथ
या धर्म का
अनुयायी बनना।
लेकिन जो कुछ
वास्तविक या
सच्चा है उसे
जीया जाता है
और जो कुछ भी आस्तित्वगत
होता है उसमें
प्रवेश करना
होता है और
जोखिम उठानी
होती है। इसके
लिए उस
व्यक्ति को
साहसी और निडर
होना होगा और
यह सबसे बड़ा
साहस का काम
है, क्योंकि
जब तुम किसी
से प्रेम करते
हो, तुम
स्वयं को खोना
शुरू कर देते
हो। किसी को
प्रेम करना
अपने अहंकार
को मिटाना है,
किसी जो
प्रेम करना स्वयं
का खो जाना है,
किसी को
प्रेम करने का
अर्थ होता है
कि तुम उसे
अपने ऊपर
सत्ता सौंप
रहे हो और
प्रेम करने का
अर्थ होता है
किसी के
अधिकार में
रहना और समर्पित
होना। ज्ञान
का रहस्य है—विनम्रता।
…...क्योंकि
बाउल के लिए
वहां प्रेम ही
केवल ज्ञान
होता है। तुम
वेदों का
अध्ययन कर
सकते हो लेकिन
इसके लिए
समर्पित और
विनम्र होने
की कोई जरूरत
नहीं, तुम
बाइबिल पढ़
सकते हो और
उसके लिए
समर्पण की कोई
जरूरत नहीं।
तुम बहुत
प्रवीण, बहुत
कुशल और बहुत
बड़े विद्वान
बन सकते हो, लेकिन उसके
लिए समर्पित
होने की कोई
आवश्यकता
नहीं। यदि वहां
समर्पित होने
की कोई जरूरत
नहीं, तो
बाउल के लिए
वह ज्ञान है
ही नहीं।
बाउल
की तो केवल
कसौटी यही है
कि जब भी कोई
चीज समर्पण
मांगती है, केवल तभी
वहां
वास्तविक
ज्ञान की
सम्भावना होती
है, अन्यथा
नहीं। यदि तुम
मेरे पास आते
हो और मैं बस
तुम्हारे सामने
ज्ञान के सारे
रहस्य खोल
देता हूं
बहुत
से लोग मेरे
पास आते हैं
और मुझसे कहते
हैं, '' यदि
हम संन्यासी न
बनना चाहें और
आपको समर्पण न
करना चाहें, तो वहां
क्या कोई
कठिनाई है? और फिर भी जो
कुछ आप कहते
हैं, हम
उससे प्रेम
करते हैं। फिर
भी हम आपको
सुनना चाहते
हैं। क्या
वहां कोई
समस्या है? क्या हम ऐसा
नहीं कर सकते?''
मैं
कहता हूं—'' तुम उसे
कर तो सकते हो
और उसमें कोई
समस्या भी नहीं
है, लेकिन
तब तुम उथला
ज्ञान ही
संग्रहीत
करोगे, तब
तुम केवल शब्द
ही बटोरोगे।
तब तुम भोजन
की मेज से
नीचे गिरे हुए
टुकड़े ही बटोरोगे
और वास्तव में
तुम मेरे
मेहमान नहीं
बनोगे। जो कुछ
सारभूत है, तुम्हारा
भाग्य होगा।
अब तै तुम्हें
करना है।’’
एक बार
तुमने समर्पण
कर दिया, तो पूरी तरह
से तुम्हारे
और मेरे मध्य
एक दूसरे
संसार का
द्वार खुल
जाता है हृदय
का हृदय से संवाद
होना शुरू हो
जाता है। तब
तुम मेरे शब्द
सुन सकते हो, लेकिन तुम
उन्हें एक
भिन्न रूप में
सुनोगे, तुम
उन्हें ऐसी
गहरी
सहानुभूति, प्रेम, कृतज्ञता,
और
ग्रहणशीलता
से सुनोगे, तब वे शब्द
फिर शब्द नहीं
रह जाएंगे, वे जीवन्त
होना शुरू हो
जाएंगे। अपनी
ग्राह्यता के
कारण तुम
उन्हें जीवंत
बना देते हो।
फिर जो कुछ मैं
तुमसे कह रहा
हूं जो कुछ
तुम्हें
प्रतिसंवेदित
कर रहा हूं वह
तुम्हारे
अंदर पहुंचकर
गर्भ की तरह
विकसित होता
है। तब शब्द
तो मात्र
बहाने होते
हैं, तब
वहां कुछ
स्थानांतरित
होता है।
शब्दों के
चारों और
लिपटा हुआ मैं
तुम्हें कुछ
ऐसी चीज
प्रेषित कर
रहा हूं जिसकी
व्यवस्था
शब्दों '।
नहीं की जा
सकती। तब न
केवल शब्द तुम
तक पहुंचते
हैं, बल्कि
वे मेरे हृदय
कं द्वारा
उसकी जलवायु
तुम तक ले
जाते हैं।
यदि
तुम्हें
मुझसे प्रेम
है, तब
तुम्हारे और
मेरे मध्य
पूरी तरह से
भिन्न किस्म
की एक समझ
होती है। यदि
तुम्हारे साथ
मेरा प्रेम नहीं
है, तब हम
लोग काफी दूर
हैं। तब तुम
किसी दूसरे
ग्रह पर हो, मुझसे
हजारों मील
दूर। मैं
चिल्ला कर जो
कहूंगा, तुम
उसमें से थोड़े
से शब्द ही
सुन सकोगे
लेकिन इस तरह
से कुछ भी
विशेष घटने का
नहीं। तुम
मुझे सुनकर
अधिक जानकारी
इकट्ठी कर
सकते हो।
लेकिन आवश्यक
बात यह है ही
नहीं।
तुम्हें अधिक
जानकारी नहीं,
तुम्हें
अधिक
अस्तित्व
चाहिए। यदि
तुम वास्तव
में समृद्ध बन
रहे हो और
यहां मेरे
सान्निध्य
में हो, तब
तुम्हारा
अस्तित्व
विकसित हो रहा
है। तब अधिक
से अधिक
तुम्हारी
चेतना
केंद्रित होती
जा रही है, वह
अधिक से अधिक
जीवंत और
दिव्य होती जा
रही है। यह सब
कुछ बिना
प्रेम के
सम्भव ही नहीं
है।
और
समर्पण क्या
है? समर्पण
का अर्थ है—' अपने अहंकार
का समर्पण।
समर्पण का
अर्थ है कि
तुम जो कुछ
जानते हो उसका
समर्पण।
समर्पण का
अर्थ होता है
कि तुम अपने
ज्ञान को बुद्धि
को और मन को भी
समर्पित कर
रहे हो। ' समर्पण
करना एक तरह
की आत्महत्या
करना है। अपने
अतीत के प्रति
मर जाना। यदि
तुम गुप्त रूप
से अपने अंदर
अपने अतीत को ढोए
जा रहे हो, तब
तुम्हारे
संन्यास की
भावाभिव्यक्ति
नपुसंक है।
तुम संन्यास
भी ले सकते हो,
और फिर भी
एक खजाने की
तरह अपने अतीत
को छिपाकर और
उसकी रक्षा
करते हुए तुम
अपने साथ ढोये
लिए जा रहे हो।
तब
केवल परिधि पर
ही तुम
संन्यासी
रहोगे, लेकिन
तुम्हारा
मेरे प्रति
समर्पण न होगा।
और तब यदि तुम
परिपूर्ण
नहीं हो, तो
कोई दूसरा
इसके लिए
जिम्मेदार
नहीं है।
एक
बाउल का पहला
दृष्टिकोण
यही है कि
अस्तित्वगत
चीजें केवल
अस्तित्वगत
मार्गों द्वारा
जानी जा सकती
हैं। प्रेम को
केवल प्रेम
करने के
द्वारा ही
जाना जा सकता
है।
किसी
ने जीसस से
पूछा— '' प्रार्थना
कैसे की जाए?''
और
उन्होंने
उत्तर दिया, '' प्रार्थना।’’
लेकिन
उस व्यक्ति ने
कहा, '' यही
तो मैं आपसे
पूछ रहा हूं।
मैं नहीं
जानता कि
प्रार्थना
कैसे की जाए?''
इसलिए
जीसस ने कहा, '' मैं
प्रार्थना
करूंगा। तुम
मेरे साथ
बैठकर कोशिश
करो उसे करने
की।''
पर प्रार्थना
कैसे सिखाई जा
सकती है? वह तो पकडी
जा सकती है, सीखी नहीं
जा सकती। यदि
तुम मेरे
प्रति खुले
हुए नहीं हो
तो कुछ भी
नहीं सिखाया
जा सकता है।
प्रार्थना
तो एक छूत की
तरह होती है।
प्रेम भी एक
छूत के रोग की
तरह होता है।
इसके जाल में
पकड़ा जा सकता
है पर सिखाया
नहीं जा सकता।
तुम उसे पकड़
सकते हो। वह
तुम्हारे
चारों ओर
प्रवाहित हो
रही है, लेकिन तुम
यदि एक द्वीप
की भांति चारों
ओर से बंद
रहते हो तब
तुम्हें
सिखाने का कोई
रास्ता नहीं
है।
जब
तुम अपना मन
बहलाने के लिए
शंख
फूंकते हो, या घंटे
बजाते हो
तो
परमात्मा
घबराकर
तुम्हारा
मंदिर छोड़ देता
है।
उस
तक पहुंचने का
रास्ता
मंदिरों
और मस्जिदों
से रुका हुआ
है।
मैं
तुम्हें
पुकारते हुए
सुनता हूं—मेरे
मालिक।
लेकिन
मैं आगे कदम
नहीं उठा पाता।
क्योंकि
गुरु और
शिक्षक
रास्ता रोक
लेते हैं।
परमात्मा
तुम्हारे
चारों ओर है, लेकिन
तुम
शास्त्रों से,
थोथे ज्ञान
से और अपने ही
अहंकार से
इतने अधिक भरे
हुए हो कि
वहां अंदर कोई
खाली स्थान
बचा ही नहीं
है, जहां
तुममें
परमात्मा
प्रवेश कर सके
और तुम उसका
अनुभव कर सको।
यह असम्भव हो
गया है। और यह
असम्भव केवल
तुम्हारे ही
कारण हुआ है।
जीसस
ठीक कहते हैं—यदि
तुम जानना
चाहते हो कि
प्रार्थना
क्या है तो
प्रार्थना
करो। और वह
मनुष्य भी ठीक
है, जो
कहता है—प्रार्थना
कैसे करूं? यही मेरी
समस्या है।
तुमने इसका
उत्तर अभी
दिया ही नहीं
है। और जीसस
कहते हैं— ''सिर्फ
यही रास्ता है
कि जब मैं
प्रार्थना
करूंगा और
घुटने झुकाकर
प्रार्थना
में बैठ जाऊंगा,
तो तुम भी
बस मेरे साथ
ही बैठ जाना, लेकिन पूरी
तरह खुले हुए
और होशपूर्ण
और तुम उसे पकड़
लोगे।’’
यही सब
कुछ मैं यहां
करने की कोशिश
कर रहा हूं।
तुम केवल मेरे
लिए अपने
द्वार खोले
रहो और तुम
उसे पकड़ लोगे।
और एक बार जब
तुम अपने
रास्ते को
स्वयं ही नहीं
रोक रहे हो, एक बार जब
तुम बाहर
निकलकर अपने
पथ पर चलना शुरू
कर दोगे, तब
वहां
तुम्हारे लिए
प्रत्येक
संभावना है।
वहां कोई
समस्या है ही
नहीं क्योंकि
वह सारभूत
मनुष्य जो
तुमसे बोल रहा
है, वही
तुम्हारे
द्वारा सुन
भी रहा है।
तब अस्तित्व
ही अस्तित्व
से मिल सकता
है। बस, अपने
अहंकार को एक
और उठाकर रख
दो, वह
अनावश्यक है।
अपने सार तत्व
अथवा परम
चेतना के साथ
मेरे सामने आओ
और उसका मुझसे
आमना—सामना
होने दो, तब
अचानक तुम
देखोगे कि तुममें
एक नई अग्नि
प्रज्वलित हो
रही है और एक
नया प्रेम
उत्पन्न हो रहा
है।
हां, विनम्रता
ही ज्ञान का
रहस्य है। और
समर्पण ही
ज्ञान का
रहस्य है। यह
कोई बौद्धिक
प्रयास नहीं
है। बल्कि यह
पूरी तरह डूबना
है, अपने
स्वयं का घुल
कर उसके साथ
एक हो जाना है।
यही कारण है
कि बाउल
जानकारी और
ज्ञान के बाबत
कम, और
प्रेम के बाबत
अधिक बात करते
हैं, क्योंकि
संसार में
प्रेम अकेली
एक ऐसी चीज है
जो प्रेम करने
के सिवा किसी
और तरह से प्राप्त
नहीं किया जा सकती।
अब
किसी दिन यह
भी सम्भव है
कि तुम्हें
तैरना भी बिना
नदी पर ले
जाये। : '' ही सिखाया
जा सके।
उन्होंने ऐसी
विधियों की
ईजाद की है कि
वे तुम्हें
सड़क पर ले
जाये बिना ही
ड्राइविंग
सिखा सकते हैं।
तुम बस
एक कमरे में
रखी कार में
बैठ जाओ, कहीं भी न
घूमना है और न
मलना है
क्योंकि वहां
चलने के लिए
कोई स्थान है
ही नहीं। तुम
बस कार में
स्टीयरिंग
व्हील के पीछे
बैठ जाते हो, और दीवाल पर
सामने एक
फिल्म दिखाई
जाती है।
पर्दे पर सड़क
घूमती है
जिससे
तुम्हें
अनुभव होता है
जैसे तुम सड़क
पर ही चल रहे
हो। तुम्हें
दोनों ओर सड़क
घूमती दिखाई
देती है। वह
फिल्म बहुत
तीव्रगति से
चलाई जाती है
जिससे लगता है
तुम तेजी से
कार चला रहे
हो। वहां
घुमाव होते
हैं और
वस्तुओं के
अवरोध भी और
तुम्हें
स्टीयरिंग
व्हील से सभी
चीजें ठीक—ठीक
करनी होती है।
शिक्षक
तुम्हें दिखा
सकता है कि
तुम ठीक कर रहे
हो या गलत और तुम
केवल कार में
बैठे रहते हो।
कार चल नहीं
रही है, फिल्म में
केवल सड़क चल
रही है, केवल
किनारों पर।
तुम उससे सीख
सकते हो। यह
सुरक्षात्मक
है। मेरा खयाल
है कि किसी भी
दिन तुम बस
चटाई पर लेटे
हुए होगे और
तुम्हारे
चारों ओर बहती
नदी की फिल्म
चल रही होगी
और तुम तैरने
के प्रशिक्षण।
की शुरुआत कर
सकते हो। यह
सम्भव है। कम
से कम एक
प्रार्थामक
जानकारी तो
पाना सम्भव है।
लेकिन
प्रेम? इसके लिए
वहां कोई
रास्ता दिखाई
ही नहीं देता।
बहुत से लोग
फिल्में
देखकर प्रेम
के बारे में
सीखने का
प्रयास कर रहे
हैं? बहुत
से लोग प्रेम
के बारे में
जानने के लिए
अश्लील
साहित्य पढ़कर
कोशिश कर रहे
हैं। बहुत से
लोग उपन्यास,
कहानियां
और दूसरों के
प्रेम पत्र
पढ़कर प्रेम के
बारे में
जानने की
कोशिश करते
हैं। हां, पर
इस सभी से
वहां एक खतरा
है क्योंकि
तुम प्रेम के
बारे में बहुत
सी बातें जान
भी सकते हो, लेकिन प्रेम
के बारे में
जानना प्रेम
को जानना नहीं
है। वास्तव
में तुम प्रेम
के बारे में
जितना अधिक
जानते हो
प्रेम को
जानने की
संभावना उतनी
ही कम हो
जाएगी। तुम
अपनी जानकारी
में ही खो
जाओगे। तुम
सोचना शुरू कर
दोगे कि तुम
जानते हो।
क्या
तुमने यह
निरीक्षण
किया है कि
फिल्मी
अभिनेता जो
लगभग प्रेम का
व्यापार करते
हैं हमेशा
उन्हें जीवन
में प्रेम की
विफलता का
सामना करना
होता है। वे
कभी सफल नहीं
होते। यहां तक
कि मर्लिन
मनरो जैसी
प्रसिद्ध
अभिनेत्री भी
आत्महत्या कर
लेती है। वह
अपनी सफलता के
चरम—शिखर पर
थी।
प्रेसीडेन्ट
केनेडी भी
उससे प्रेम
करते थे। पूरा
संसार उसे
प्रेम करता था।
लेकिन फिर भी
किसी तरह उसके
पूरे जीवन में
एक रिक्तता थी।
इतनी सुंदर
अभिनेत्री ने
अपनी
प्रसिद्धि के चरम
शिखर पर पहुंच
कर आत्महत्या
कर ली।
हुआ
क्या? अभिनेता
और
अभिनेत्रियां
हमेशा अपने
वास्तविक
जीवन में प्रेम
में क्यों
विफल होते हैं?
उन्होंने
तो प्रेम के
बारे में इतना
अधिक सीखा है
कि वे प्रेम
के बारे में
वास्तविक
नहीं हो सकते।
वे उन्हीं
चरित्रों का
अभिनय किये
चले जा रहे है,
वे वही
पुराना खेल
खेल जा रहे
हैं।
रंगमंच
पर तो सबकुछ
ठीक है, क्योंकि
वहां कोई भी
कठिन
परिस्थिति या
उलझन में नहीं
फंसता है।
लेकिन उनके
वास्तविक
जीवन में एक
रिक्तता है।
इसीलिए वे
केवल खाली
मुद्राएं ही
बनाए चले जा
रहे हैं।
स्मरण
रखें, तुम
प्रेम के बारे
में बहुत अधिक
जान सकते हो लेकिन
वह प्रेम को
जानने में
सहायता नहीं
कर सकता।
प्रेम को तो
केवल प्रेम
करने से ही
जाना जा सकता
है। इसका अर्थ
है कि तुम्हें
उसके बारे में
कोई भी बात
जाने बिना ही
उसमें उतरना होगा।
यही कारण है
कि उसके लिए
साहस की जरूरत
होती है।
तुम्हें बिना
किसी नक्शो,
बिना किसी
मार्गदर्शक
और बिना किसी
टार्च के घोर
अंधेरे में
गतिशील होना होगा।
तुम्हें बिना
यह जाने हुए
कि तुम अंधेरे
में कहां किस
ओर जा रहे हो, वह रास्ता
ठीक है भी या
नहीं, और
बिना यह जाने
हुए भी चलना
ही होगा कि
तुम अपना
रास्ता खोज सकोगे
अथवा किसी खाई
या खन्दक में
गिरकर हमेशा
के लिए खो
जाओगे।
इसी का
नाम साहस है।
बाउल बहुत साहसी
होते हैं। वे
कहते हैं—
केवल
प्रेम की
सुवास का
गुणग्राही
रसिक शिरोमणि
ही : प्रेम की
बहुत सी सुवास
होती हैं.....प्रेम
के बहुत से
आयाम होते हैं, भावनाओं
के विभिन्न
रंग और प्रकार
होते हैं।
प्रेम अकेली
कोई चीज नहीं
है। वह बहुत
समृद्ध है, अत्यन्त
समृद्ध।
उसके बहुत से
पहलू होते हैं।
उसके अनेक
चेहरे होते
हैं। वह एक
हीरे की तरह
होता है।
जिसके अनेक
पहलू होते हैं
और प्रत्येक
पहलू उसे
समृद्ध बनाता
है।
केवल
एक ' रसिक
शिरोमणि ' ही—ऐसा
व्यक्ति
जिसने कई तरह
से प्रेम किया
है, जो
प्रेम करते
हुए साहस से
जीया है, जिसने
जोखिम और खतरे
उठाए है और
जिसे प्रेम की
सभी सुवास का
ज्ञान और
अनुभव है...
क्या
तुमने कभी इस
बात पर गौर
किया है? Love (लव) अर्थात्
प्रेम सब। हुक
अभिव्यक्त
नहीं करता।
अंग्रेजी में
अकेला एक ही
शब्द लव है।
सभी प्राचीन ''भाषाओं में
प्रेम के लिए
कई शब्द है
क्योंकि वहां
अनेक तरह के
प्रेम हैं। इन
अर्थों में
अंग्रेजी
भाषा निर्धन
है। क्योंकि
तुम एक कार से
भी लव करते हो,
तुम एक
स्त्री गे भी '
लव ' करते
हो, तुम
अपने घर से भी '
लव ' करते
हो। केवल एक
शब्द। Love ( लव)।
तुम एक
विशिष्ट
ब्रांड की
सिगरेट से भी '
लव ' करते
हो। यह ' लव '
शब्द बहुत
निर्धन है, क्योंकि
प्रेम के बहुत
से पहलू होते
हैं। यह लव
शब्द बहुत
निर्धन है, क्योंकि
प्रेम के बहुत
से पहलू होते
हैं।
जब तुम
एक बच्चे से
प्रेम करते हो, तो वह
प्रेम किसी और
तरह का होता
है। वह उस
प्रेम की तरह
नहीं होता, जैसा प्रेम
तुम एक स्त्री
से करते हो।
उसमें तीव्र
लालसा या
उत्कंठा नहीं
होती। जब तुम
अपनी मां से
प्रेम करते हो,
तो वह पूरी
तरह भिन्न
होता है।
उसमें
श्रद्धा होती
है, एक
गहरी
कृतज्ञता
होती है।
लेकिन जब तुम
स्त्री से
प्रेम करते हो,
तो वह पूरी
तरह भिन्न तरह
का प्रेम होता
है। उसमें
अत्यंत
तीव्रता होती
है, लगभग
पागलपन जैसी—लेकिन
यह वह प्रकार
नहीं है जिस
तरह तुम अपनी मां
को प्रेम करते
हो। तुम अपने
मित्र को
प्रेम करते हो,
वह पूरी तरह
भिन्न होता है।
यह अनुराग
होता है।
लेकिन यह उस
प्रकार का
नहीं होता।
यदि
तुम गौर करो
तो तुम प्रेम
की अभिव्यक्ति
में बहुत से
नाजुक अंतर, भावनाओं
के उतार—चढ़ाव
और उसके कई
रंग पाओगे।
अकेले एक शब्द
लव या प्रेम
में कई संसार
छिपे हुए हैं।
और प्रत्येक
व्यक्ति को
सभी दिशाओं
में गति करते
हुए प्रेम के
बारे में
जानना चाहिए।
यदि
तुम प्रेम का
कोई भी पहलू
नहीं जानते हो।
तो प्रेम के
बारे में
तुम्हारी समझ
में बहुत कमी
होगी। एक
व्यक्ति को
प्रेम के सभी
पहलू और सभी
सूक्ष्म अंतर
को जानना
चाहिए। यही
अर्थ है
बाउलों का जब
वे गाते हैं—
केवल
प्रेम की
सुवास का
गुणग्राही या
रसिक शिरोमणि
ही
प्रेमिका
के हृदय की
भाषा समझ सकता
है।
दूसरों
को तो उसका
कोई संकेत तक
नहीं मिलता।
हां!
प्रेम की पूरी
एक भाषा है।
लव के अकेले
एक शब्द से
कुछ नहीं होने
का, यह
तो पूरी एक
भाषा है। और
एक बार तुम
इसे जान लो, तो तुम
आश्चर्यचकित
हो जाओगे, तुम
किसी का हाथ
एक मित्र की
तरह स्पर्श
करते हो, तब
उसका स्वाद और
सुगंध भिन्न
होगी। और तुम
किसी का भी
हाथ एक प्रेमी
की भांति स्पर्श
करते हो, तब
उस स्पर्श का
गंध और स्वाद
जुदा होगा।
एक
गुणग्राही
रसिक शिरोमणि
अपनी बंद आंखों
से ही
तुम्हारे हाथ
को महसूस करता
हुआ उन्हें
देख सकता है
और तुम्हारे
प्रेम की भाषा
समझ सकता है।
क्या कभी
तुमने इसका
निरीक्षण
नहीं किया है? तुम्हें
तुरंत महसूस
हो जाता है—जब
कोई भी
तुम्हें
तीव्र वासना
की दृष्टि से
देखता है। जब
कोई गहरे
प्रेम के साथ
देखता है, तुम
उस अंतर को
देख सकते हो।
जब कोई सेह और
अनुराग से
देखता है, तब
भी तुम उसका
अंतर देख सकते
हो। लेकिन यह
सभी बहुत
प्राथमिक
चीजें हैं, क्योंकि
करुणा के भी
कई तल होते
हैं।
जब
वहां एक बुद्ध
होता है, तो उसकी
करुणा का पूरी
तरह एक भिन्न
गुण होता है।
जब तुम करुणा
करते हो, तो
वह कुछ अधिक
सहानुभूति
जैसा होता है
और करुणा से
कम होता है।
जब एक बुद्ध
करुणा करता है
तो उसमें
सहानुभूति
जैसा कुछ भी
नहीं होता। वह
शुद्ध होता है।
जब
बुद्ध का
प्रेम तुम पर
बरसता है तो
वह वैसे प्रेम
जैसा कुछ भी
नहीं होता, जिसे
तुमने अभी तक
जाना है। उसे
केवल एक बुद्ध
ही जान सकता
है। उसमें कोई
लालसा या
वासना नहीं
होती, वह
बहुत शीतल
होता है। वह
गर्म नहीं
होता—यह बात
नहीं कि उसमें
उष्णता नहीं
होती, उसमें
ऊष्मा तो होती
है, लेकिन
फिर भी वह
शीतल होता है।
यदि तुम किसी
बुद्ध के निकट
सान्निध्य
में आते हो तो
उसका
सान्निध्य ही
तुम्हें शांत
और शीतल कर
देता है।
यह
तुम्हारी
उत्तेजना को
शांत कर अधिक
संग्रह करने
योग्य बनाने
में तुम्हारी
सहायता करता
है। यह
तुम्हारे
अंदर कोई भी
कोलाहल या
उपद्रव उत्पन्न
न कर सारे
कोलाहल को
विसर्जित कर
देगा और यह एक
शांतियुक्त
शक्ति बन
जाएगा। वह एक
सूक्ष्म
जलवायु के
समान तुम्हें
चारों ओर से
घेर लेगा। और
तुम्हें
अद्भुत शांति
देगा। वह एक लोरी
की भांति होगा।
तुम्हें नींद
में जाने का
अनुभव होना
शुरू हो जाएगा।
जैसे मानो तुम
अपनी मां के
वक्ष से चिपके
हुए हो। इसमें
कुछ चीज मां
के प्रेम की
तरह, कुछ
चीज पिता के
प्रेम की तरह,
कुछ चीज
प्रेमी के
प्रेम की तरह
और कुछ चीज बच्चे
के प्रेम जैसी
होगी। उसमें
प्रत्येक
सूक्ष्म और
नाजुक भावों
का स्पंदन और
विभिन्न रंग
होंगे। उसमें
प्रेम के सभी
आयाम एक महान
लयबद्धता में
होंगे।
जब तुम
एक बुद्ध के
सान्निध्य
में आते हो, तो उसके
प्रेम में सभी
गंध, स्वाद
और घ्वनियों का
एक अनूठा
आस्केस्ट्रा
होता है।
कभी वह
एक शिशु के
समान दिखाई
देता है, तुम उसके
साथ खेल सकते।
ने। उसकी
मुस्कान अथवा
उसका
अस्तित्व
मात्र ही तुम्हें
ऐसी अनुभूति
कराता है। कि जैसे
वह एक शिशु हो—
और तुम उसे
मां जैसा
प्यार दे सकती
हो। कभी—कभी वह
एक मां जैसा
हो जाता है और
तुम एक छोटे
बच्चे के समान
होते हो। कभी—कभी
वह प्रेमी
जैसा दिखाई
देता है—तुम
उसे, केवल
उसे ही प्रेम
कर सकते हो, पर किसी और
को नहीं।
लेकिन कभी—कभी
वह केवल एक
मित्र के समान
होता है। वह
सब कुछ एक साथ
होता है।
यह सभी
परिवर्तन
तुम्हारे
कारण ही घटित
होते हैं।
तुम्हारा
दृष्टिकोण
बदलता है।
तुम्हारी
दृष्टि बदलती
है। तुम्हारी आंखें
अभी भी स्पष्ट
और थिर नहीं
हैं। तुम उसे
उसकी समग्रता
में नहीं देख
सकते। तुम उसे
केवल परिधि पर
देखते हो। एक
बार में तुम
एक पहलू देखते
हो, दूसरी
बार में तुम
दूसरा पहलू
देखते हो—क्योंकि
तम उसे
पूर्णता में
नहीं समझ सकते।
प्रेम
की गंध और
स्वाद का
गुणग्राहक
रसिक शिरोमणि
ही
प्रेमी
के हृदय की
भाषा को समझ
सकता है।
दूसरों
को उसका संकेत
तक नहीं मिलता।
दूसरों
को तो उसका
संकेत तक
मिलना सम्भव
नहीं है।
तुम्हें
प्रेम के
संसार में
विचरण करना
होगा और यह मत
पूछो—कैसे? तुम्हें
अंधेरे में
भटकना होगा। और
किसी नक्शो
की मांग करना
ही मत, क्योंकि
उसके बाबत
पूछना ही
प्रेम के
विरुद्ध होगा।
यही कारण है
कि विश्वास और
श्रद्धा की
जरूरत है। यदि
तुम एक
व्यक्ति पर
विश्वास करते
हो तो तुम
कहते हो—'' ठीक
है यदि आप
मुझे अंधेरे
में भेज रहे
हो तो मैं
जाऊंगा। यदि
आप मुझे मृत्यु
का आलिंगन
करने भेज रहे
हैं, तो
मैं जाऊंगा।’’
प्रेम
के पथ पर
विश्वास ही
सबसे अधिक
आवश्यक चीज है।
ध्यान के पथ
पर तुम बिना
समर्पण किए भी
गतिशील हो
सकते हो, लेकिन प्रेम
के पथ पर बिना
विश्वास और
बिना समर्पण
चलना होता ही
नहीं, क्योंकि
प्रेम ही पहला
द्वार होता है।
प्रेम
बहुत कुछ
मांगता है, वह लगभग
असम्भव की
मांग करता है
और पहले ही कदम
पर। प्रेम का
मार्ग सरल है
लेकिन वह बहुत
कुछ मांगता है।
यही कारण है
कि भले ही
मार्ग आसान हो,
बहुत कम लोग
इस पर पर
यात्रा करते
हैं। ध्यान का
पथ बहुत
मुश्किल है
लेकिन उसकी
इतनी अधिक
मांग नहीं है।
यही कारण है
कि पथ कठिन और
श्रमपूर्ण है,
लेकिन फिर
भी इस पथ पर
बहुत से लोग
यात्रा करते
जब तुम
प्रेम के बारे
में सुनते हो
तो वह बहुत सरल
दिखाई देता है, लेकिन
उसकी मांग की
ओर देखो।
ध्यान के पथ
पर जिसकी
अंतिम कदम पर
मांग की जाती
है, प्रेम
के पथ पर वही
पहली मांग है।
ध्यानी
से अपना
अहंकार
समर्पित करने
को कहा जाता
है और वह भी
केवल अंतिम
चरण पर जब वह
समाधि से
निर्विकल्प
समाधि की ओर
गतिशील होता
है। जब वह मन
से— अमन की ओर
गति करता है।
पहले वह अपने
मन को शुद्ध
करता चला जाता
है, वह
उसे अधिक से
अधिक सूक्ष्म,
परिष्कृत
और सुसंस्कृत
बनाए चला जाता
है। तब केवल
एक सूक्ष्म
मात्रा रह
जाती है।
आखिरी चरण पर
उसे उस
सूक्ष्म
मात्रा को भी
छोड़ देना होता
है।
प्रेम
असम्भव की
मांग करता है।
वह कहता है
तुम्हें पहले
ही कदम पर
अपना अहंकार
छोड़ना होगा।
वहां उसके
परिष्कृत और
युद्ध करने की
कोई जरूरत
नहीं और न उस
पर कुछ कार्य
करने की जरूरत
है। क्योंकि
किसी भी
व्यक्ति को
उसे छोडना
होता है, इसलिए उसे
साथ ले जाने
की फिक्र
क्यों? उसे
यहीं और अभी
गिरा दो।
ध्यान
के पथ पर
अंतिम चरण में
ही श्रद्धा का
जन्म होता है।
श्रद्धा केवल
तभी होती है
जब तुम घर
पहुंचने के
निकट होते हो।
जब पहुंच जाना
इतना निकट
लगता है कि
तुम लगभग बस
पहुंच ही जाते
हो, और
तुम द्वार भी
देख सकते हो, और घर भी और
तुम देख सकते
हो, कि तुम
पहुंच गए तभी
श्रद्धा का
जन्म होता है,
तुम कहते हो—
'' हां!''
लेकिन
प्रेम के पथ
पर श्रद्धा की
मांग पहले ही
कदम पर होती
है। प्रेम के
पथ पर पर
उठाया गया
पहला कदम
ध्यान के पथ
पर उठाए गए
अंतिम कदम के
ही समान होता
है। यदि तुम
साहसी हो तो
यह मार्ग बहुत
सरल है। यदि
तुम लगभग एक
शैतान की तरह
साहसी हो, यदि तुम
लगभग पागल ही
हो और बिना
कोई शर्त हर जोखिम
उठाने को
तैयार हो, तो
यह मार्ग बहुत
आसान है—क्योंकि
यह पहले कदम
पर ही पूर्ण
हो जाता है।
पहला कदम ही
आखिरी कदम बन
जाता है। यहां
पर तुम समर्पण
करते हो और एक
क्षण का छोटा
सा भाग भी बीत
नहीं पाता और
तुम पहुंच
जाते हो।
......एक
प्रेमी के
हृदय की भाषा
का
दूसरों
को उसका कोई
संकेत तक नहीं
मिलता।
जो लोग
ध्यान के
मार्ग के गहरे
विद्वान हैं, जो
बौद्धिक
चिंतन, गहन
विचार और
एकाग्रता में
लगे हैं, उन
सभी को प्रेम
के बारे में
कोई इशारा तक
नहीं मिलता।
वे साधारण रूप से
प्रेम की भाषा
जानते ही नहीं।
नींबू
का स्वाद फल
के केंद्र में
होता है।
और
यहां तक कि
विशेषज्ञ भी
उस तक पहुंचने
का
कोई
सरल मार्ग
नहीं जानते।
और
बाउल लोग इसी
प्रेम के ही
सम्बंध में
बातचीत करते
हैं। वे इसके
ही बारे में
गीत गाते हैं, इसी के
लिए नृत्य
करते हैं और यही
वस्तुत:
तुम्हारे
अस्तित्व के केंद्र
में ही छिपा
है। वह पहले
ही से वहां है।
तुम्हें अपने
ही आंतरिक
केंद्र तक पहुंचने
के लिए वह
मार्ग खोजना
है। उस ' आधार—मानुष
' और ' सारभूत
मनुष्य ' को
खोजना है। वह
कोई ऐसी वस्तु
नहीं है, जिस
तक पहुंचना है,
वह तो पहले
ही से वहां है।
वह कोई ऐसी
वस्तु नहीं है,
जिसे पाना
या अर्जित
करना है, वह
तो परमात्मा
का उपहार है।
जिस
क्षण
तुम्हारा
सृजन किया गया
उसी क्षण वह
मूल्यवान
खजाना
तुम्हें
सौंपा गया
क्योंकि अभी
तक ऐसा कौन है, जिसने
बिना प्रेम से
जीते हुए उसे
जाना हो? क्या
तुम किसी भी
ऐसे व्यक्ति
को जानते हो, जो बिना
श्वांस लिए
हुए जीवित रहा
हो। प्रेम
आत्मा की
श्वास—प्रश्वास
है।
बाउल
कहते हैं—जैसे
बिना श्वास के
शरीर जीवित
नहीं रहता।
आत्मा भी बिना
प्रेम के
अस्तित्व में
नहीं रह सकती।
इसलिए तुम उसे
जान सकते हो, तुम उसे
नहीं भी जान
सकते हो, लेकिन
निरंतर प्रेम
ही घट रहा है।
वहीं वहां धड़क
रहा है, वही
तुम्हारी
धड़कन है।
तुम्हें बस
वहां तक
पहुंचने का
मार्ग खोजना है,
क्योंकि
तुम दूसरे
खजानों की खोज
में, जो
तुम्हारे है
नहीं, और न
कभी तुम्हारे
हो सकते हैं, भटक कर दूर
चले गए हो।
यही
कारण है कि एक
बाउल एक
भिखारी की तरह
रहता है। वह
कहता है— '' मैं किसी दूसरे
खजाने की खोज
नहीं कर रहा
हूं। मैं
स्वयं अपने
में ही बहुत
अधिक हूं मेरा
खजाना बहुत
समृद्ध है।
मैं पहले ही
से एक सम्राट
हूं। मुझे
किसी दूसरे
दूसरे
साम्राज्य की
कोई जरूरत
नहीं मेरा
साम्राज्य
यहां पहले ही
से है।’’ वह
एक भिखारी की
तरह रहता जरूर
है, लेकिन
यदि तुम किसी
बाउल को निकट
जाकर उसे
देखोगे तो तुम्हें
अनुभव होगा कि
वह एक सम्राट
की भांति रहता
है। यहां तक
कि सम्राट भी
इतनी गरिमा और
गौरव से नहीं
रहते, सम्राट
भी उतने
परमानंद में
नहीं रहते, जितना
आनंदमग्न एक
बाउल रहता है।
उसका पूरा
जीवन आनंद और
आशीर्वाद से ओतप्रोत
है, वह और
कोई दूसरा
स्वाद जानता
ही नहीं। वह
व्यग्र होना
जानता ही नहीं
और न वह किसी
चिंता या दुख
को जानता है।
वह किसी
अज्ञात आयाम
में तीव्र
अनुग्रह से रहता
है। उसके पास
कुछ भी न होते
हुए भी सब कुछ
होता है। किसी
भी चीज पर
अधिकार न होते
हुए भी, उसका
पूरे संसार पर
अधिकार होता
है।..... और वह
गाता है।
आकाश
का दर्पण मेरी
आत्मा को
प्रतिबिम्बित
करता है।
ऐ
सड़क पर घूमते
बाउल। ओ रे
मेरे पागल
हृदय!
आकाश
का दर्पण मेरी
आत्मा को
प्रतिबिम्बित
करता है।
ओ
रे मेरे
मूर्च्छित
हृदय!
तू
मानुष भूमि को
जोतने में
असफल रहा है
उसे
ऐसा जोत, जिससे वह
स्वर्ण
बालियों की
फसल उगा सके,
जब
तेरे जीवन में
मन
और दृष्टि में
एक लयबद्धता
हो जाती है,
वे
एक तान हो
जाते हैं
तो
लक्ष्य तेरी
पहुंच के अंदर
ही होता है।
फिर
तू उस अरूप को
अपनी नंगी आंखों
से भी देख
सकता है।
जब
जीवन, मन
और दृष्टि
तीनों एक तान
हो जाते हैं।
तो अपने अंदर
उतरने का वही
रास्ता है। जब
तुम्हारी इन
तीनों के बीच
एक सहमति बन
जाती है, जब
तुम्हारे
अंदर कोई
संघर्ष नहीं
रह जाता, तो
वही मार्ग है
अन्दर उतरने
का। यही कारण
है कि बाउल
हमेशा
संघर्षहीन
बने रहने पर
सहज
स्वाभाविक और
स्वयं प्रवर्तित
बनने पर जोर
देते हैं।
अपने अंदर कोई
विभाजन
निर्मित मत
करो, अन्यथा
तुम वहां
पहुंचने में
कभी सफल न हो
सकोगे—क्योंकि
इसके लिए एक
विराट
गुणवत्ता
युक्त सहमति
की आवश्यकता
है। जब शरीर
और आत्मा के
बीच लयबद्धता
हो जाती है, द्वार खुल
जाता है। जब
जीवन, मन
और दृष्टि के
मध्य सहमति बन
जाती है, तो
लक्ष्य
तुम्हारी
पहुंच में
होता है। तुम
उस अरूप को
अपनी नग्न आंखों
से देख सकते
हो। बाउल गाता
है:
इसे
भूलो मत
कि
तुम्हारे
पिण्ड में ही
सम्पूर्ण
ब्रह्माण्ड
समाया है।
मैं
परिपूर्ण हूं
तुम्हारी
अपनी श्वांस
की फूंक से ही
तुम्हारी बांसुरी
बज उठती है,
इससे
अधिक मेरी चाह
और क्या हो
सकती है
कि
ऐसी मधुर
रागिनी, सांसों
के सरगम से
मन
की बांसुरी
द्वारा बजती
ही रहे
बजती
ही रहे......
एक बाउल
प्रत्येक
क्षण
परिपूर्णता
से जीते हुए
स्वयं अपने
साथ एक गहरे
स्विकार भाव
से जीता है।
उसका गाना और
नाचना और कुछ
भी नहीं, बल्कि स्वयं
के साथ सहमति
में डूबने का
एक प्रयास है।
क्या
नृत्य करते
हुए किसी
व्यक्ति का
तुमने निरीक्षण
किया है? घटता क्या
है? क्या
तुमने कभी
स्वयं नृत्य
करते हुए अपना
ही निरीक्षण
किया है? होता
क्या है?
नृत्य सबसे
अधिक गहरे में
उतर जाने वाली
चीज की तरह
होता है, जिसमें
कोई भी डूबकर
लयबद्ध हो
जाता जाता है।
तुम्हारा
शरीर
तुम्हारा मन
और तुम्हारी
आत्मा नृत्य
में सभी एक
साथ एक तान हो
जाती है।
वहां
नृत्य सबसे
बड़ी
आध्यात्मिक
चीजों में से
एक है। यदि
तुम वास्तव
में नृत्य
करते हो, तो तुम सोच
नहीं सकते।
यदि तुम
वास्तव में
नृत्य करते हो,
तो शरीर का
इतना गहराई से
उसमें प्रयोग
होता है कि
पूरी ऊर्जा
तरल बन जाती
है। एक
नर्त्तक रूप
और थिरता खो
देता है। एक
नर्त्तक केवल
गति या एक
क्रिया बन
जाता है। उसकी
कोई पृथक
सत्ता नहीं रह
जाती। वह केवल
एक
गत्यात्मकता
अथवा एक ऊर्जा
बन जाता है वह
पूरी तरह पिघल
जाता है।
महान
नर्त्तक
आहिस्ते—
आहिस्ते
पिघलते हैं।
और एक नर्त्तक
अपने अहंकार
को बचाये हुए
नहीं रख सकता, क्योंकि
यदि उसका
अहंकार बना
रहता है तो
उसके नृत्य
में एक असंगति
और कठोरता
होगी। एक
सच्चे
नर्त्तक का
नृत्य में अहंकार
विसर्जित हो
जाता है। तब
उसका द्वार
खुलता है, क्योंकि
तुम अस्तित्व
के साथ एक
इकाई बन जाते हो।
अब आत्मा, मन
और शरीर यह
तीनों पृथक—पृथक
नहीं रहते। यह
तीनों एक साथ
मिलकर पिघलकर
एक दूसरे में
समाहित होकर
एक ही हो जाते
हैं। विश्व के
सबसे महान
नर्त्तक
निझित्सकी के
बारे में कहा
जाता है कि
उसके नृत्य
में वहां ऐसा
एक क्षण आता
था, जब वह
ऊंची उछाल
लेता था और
फिर इतनी
आहिस्ता—
आहिस्ता जमीन
पर वापस आता
था और वैसा
करना असम्भव
जैसा कृत्य
लगता था। जैसे
मानो पृथ्वी
ने उसे अपने
गुरुत्वाकर्षण
शक्ति से
मुक्त कर दिया
हो। वैज्ञानिक
उसे देख कर
उलझन में पड़
जाते थे। और
कहते थे— '' ऐसा
होना तो नहीं
चाहिए ऐसा हो
भी नहीं सकता।’’
लेकिन ऐसा
घट रहा था।
कोई अन्य
नर्त्तक ऐसा
करने में आज
तक समर्थ न हुआ।
और
वास्तव में
निझित्सकी
पागल हो गया
था, वह
एक बाउल बन
गया था। उसे
इस तरह का
पागलपन था, जिसे आज तक
नहीं समझा जा
सका, और
क्योंकि वह
पश्चिम में था
इसलिए यह
समझना और भी
अधिक असम्भव
बन गया कि
उसके साथ आखिर
क्या घटता था?
उसे
मनोचिकित्सालय
में बल का
प्रयोग करके
देखा गया, उसे
बिजली के झटके
दिए गए
इंसुलिन
लगाया गया।
यदि वह पूरब
में हुआ होता,
तो वह सबसे
महान बाउल बन
गया होता।
उसका पागलपन
कुछ ऐसा नहीं
था, जिसका
उपचार किए
जाने की
आवश्यकता थी,
उसके
पागलपन में
कुछ ऐसा था जो
उसके प्रति
श्रद्धा
उत्पन्न करता
था।
पर वह
ऐसा पागल किस
तरह बनता था? वह अपने
नृत्य के
द्वारा ही
पागल बनता था
जब उससे पूछा
गया कि उसे क्या
हो जाता है तो
उसने उत्तर
दिया— '' ऐसा
केवल तभी घटता
है, जब मैं
नृत्य करते
हुए पूरी तरह
खो जाता हूं इसलिए
मैं इस बारे
में कुछ भी कह
नहीं सकता।
यदि मैं बचा
रहूं तब ऐसा
घटता नहीं।
मैंने ऐसा
करने की कोशिश
भी की। पर यदि '
मैं ‘‘ वहां
' उपस्थित
रहता हूं तो
ऐसा कभी भी
नहीं घटता।
लेकिन ऐसे भी
क्षण आते हैं,
जब मैं पूरी
तरह खो जाता
हूं। तब
वास्तव में
मैं नहीं
जानता कि कौन
कैसे उछलता है
और तब वैसा
घटता है। मैं
स्वयं
आश्चर्यचकित
रह जाता हूं।
मेरे पास इसका
कोई
स्पष्टीकरण
नहीं है।
लेकिन यह केवल
घटता तभी है
जब मैं पूरी
तरह खो जाता
हूं।’’
यह वही
है जिसके बाबत
बाउल कहते हैं—'' जब तुम
नृत्य करना
शुरू करते हो
और धीमे — धीमे
गोल—गोल घूमते
हुए पूरी तरह
नृत्य में
खोकर एक चक्रवात
बन जाते हो तब
तुम्हारे
अंदर कोई चीज
टूटती हैं
जिससे अंदर के
सारे अवरोध
मिट जाते हैं—तुम
अस्तित्व के
साथ मिलकर एक
इकाई बन जाते
हो, और
घटना घट जाती
है। तुम्हारे
अस्तित्व के
चारों ओर एक
महान परमानंद
बरसने लगता है।
तुम उन क्षणों
में अस्तित्व
के साथ लयबद्ध
हो जाते हो।
झेन कथाओं के
अनुसार
इन्हीं
क्षणों को
सतोरी कहा
जाता है, लेकिन
इस स्थिति तक
पहुंचने के
लिए बाउलों का
मार्ग इससे
बेहतर है। झेन
को इसके लिए
बारह वर्ष, पन्द्रह, बीस या तीस
वर्षों तक
साधना करनी
होती है। यह
बहुत धीमी
विधि है। यह
मार्ग है
ध्यान का।
बाउल
इस स्थिति को
कहीं अधिक
सरलता से
उपलब्ध हो
जाते हैं। ठीक
जिस दिन तुम
यह तय कर लेते
हो, कि
मैं अपने अहंकार
को गिराने के
लिए तैयार हूं—तुम
परमात्मा को
उपलब्ध हो
जाते हो और
परमात्मा
तुम्हें
उपलब्ध हो
जाता है।
अस्तित्वगत '
आधारमानुष '
अचानक
तुम्हारे
असार तत्व से
जो व्यर्थ
जीवन जैसा है,
उदय होता है
और एक
रूपांतरण
घटता है। और
यह वह क्षण
होता है, जब
तुम प्रेम से
परिपूर्ण
होते हो, जब
तुम प्रेम ही
होते हो, जब
तुम्हारी
पूरी ऊर्जा ही
प्रेम होती है।
यही वह क्षण
होता है जब
तुम पूरे
अस्तित्व से वरदान
और आशीर्वाद
ले सकते हो।
जब तुम्हारे
अंदर वहां कोई
संघर्ष होता
ही नहीं, तब
तुम्हारे और
अस्तित्व के
मध्य कोई
संघर्ष हो ही
नहीं सकता।
इसका
रहस्य यही है
अपने अंदर के
सारे संघर्ष गिरा
दो और इसके
साथ अस्तित्व
के प्रति
तुम्हारा
संघर्ष भी मिट
जाएगा, तुम उसके
साथ एक हो
जाओगे और साथ
ही साथ तुम
अपने अंदर भी
एक हो जाओगे
और बाहर
अस्तित्व के
प्रति —भी एक
हो जाओगे।
वास्तव
में उस तक
पहुंचने का
वहां कोई सरल
मार्ग है ही
नहीं, क्योंकि
यहंकार को
विसर्जित
करना बहुत
कठिन है... और
वही अकेला एक
मार्ग है।
शहद
कमल पुष्प के
अंदर ही छिपा
हुआ है।
लेकिन
एक भ्रमर उसे
जानता है।
गुबरैले
गोबर में रहते
हुए
शहद
के बारे में
सोचते तक नहीं।
बाउल
कहते हैं कि
बुद्धिजीवी
लोग गोबर में
रहने वाले
गुबरैले जैसे
हैं। पंडित और
विद्वान गोबर
के गुबरैले
हैं : वे कमल
पुष्प तक जाने
का मार्ग कभी
पा न सकेंगे......केवल
शहद की मक्खी
ही।
एक
प्रेमी या एक
भ्रमर ही बनो।
क्योंकि
भ्रमर शहद से
प्रेम करता है
और उस तक पहुंचने
का मार्ग
खोजता है।
गोबर के
गुबरैले यह
मार्ग क्यों
नहीं खोज सकते? वह अपना
एक अलग मार्ग
खोजता है वह
गोबर तक जाने
का मार्ग
खोजता है, क्योंकि
प्रेम करना ही
एक मार्ग है।
तुम
जिससे भी
प्रेम करते हो।
तुम
वही हो जाते
हो।
और
तुम्हारा
प्रेम जैसा भी
जिससे होता है।
तुम
उसे पा ही
लेते हो।
इसलिए
अपने प्रेम के
बारे में सजग
बने रहो, अपनी कार को
अपने घर को
अथवा अपने
बैंक एकाउंट
से ही प्रेम
मत करो, क्योंकि
तुम उनके ही
समान हो जाओगे।
गोबर से प्रेम
मत करो, अन्यथा
तुम भी एक
गुबरैला बन
जाओगे।
यदि
तुम्हें
प्रेम ही करना
है तब किसी
ऐसी चीज से
प्रेम करो, जो दिव्य
हो, किसी
ऐसी चीज से
प्रेम करो जो
वस्तुओं का
रूपांतरण कर
देती है, किसी
ऐसी चीज से जो
रूप और आकृति
का अतिक्रमण कर
दे, जिसके
लिए तुम्हें
अपनी आंखें
आकाश की ओर
ऊपर उठानी पड़े।
हिमालय के
सर्वोच शिखर
गौरीशंकर से
प्रेम करो।
यदि तुम गोबर
जैसी किसी चीज
से प्रेम करते
हो, तो तुम
गोबर से होकर
ही गुजरोगे
क्योंकि हमें हमेशा
वहीं से मार्ग
खोजना होता है,
जहां हम खड़े
होते हैं, जब
भी हमारा
प्रेम गतिशील
होता है हम
उसके पीछे
चलते हैं।
भ्रमर कमल के
पुष्प से
प्रेम करता है।
वह उसे खोज ही
लेता है।
प्रेम ही
मार्ग है। कमल
अपने को कितना
भी छिपाकर रखे,
भ्रमर उसे
खोज ही लेता
है।
सम्राट
सोलोमन के
सम्बन्ध में
एक बहुत मधुर
कहानी कही
जाती है।
एक बार
उसके दरबार
में एक स्त्री
आई। वह
इथोपिया की
रानी थी। वह
सम्राट
सोलोमन से
प्रेम करना
चाहती थी और उसकी
प्रेयसी बनना
चाहती थी। वह
अत्यधिक
सुंदर थी
लेकिन वह
संसार के सबसे
बुद्धिमान
व्यक्ति से ही
प्रेम करना
चाहती थी।
इसलिए उसने
सोलोमन की
बुद्धि की
परीक्षा लेने
के लिए कहा, जैसा
उसके बारे में
कहा जाता है
कि वह बहुत बुद्धिमान
है, कुछ
परीक्षण करने
का प्रयास
किया। उसने
बहुत से
प्रयोग किये
उनमें से एक
प्रयोग यह था.....वह
अपने साथ कागज
का बना एक फूल
लाई थी, लेकिन
वह इतनी
सुंदरता से
बनाया गया था,
कि उसे देख
कर यह जानना
लगभग असम्भव
था कि वह नकली
था। वह सोलोमन
के दरबार में
दूर जाकर खड़ी
हो गई और उसने
कहा—'' मेरे
हाथ में जो
फूल है क्या
आप उतनी दूर
बैठ यह बता
सकते हैं कि
वह असली है या
नकली?''
सोलोमन
ने कहा—’‘ प्रकाश काफी
नहीं है वहां
और मैं एक
प्रौढ़ व्यक्ति
हूं जो ठीक से
देख नहीं सकता।
कृपया उधर की
खिड़कियां खोल
दो।’’
खिड़कियां
खोल दी गईं।
वह दो मिनट तक
प्रतीक्षा
करता रहा। फिर
उसने उत्तर
दिया—’‘ नहीं।
यह फूल नकली
है।’’
तब उस
स्त्री ने
अपने थैले से
दूसरा फूल
निकाला और
पूछा—’‘ इस
फूल के बारे
में क्या खयाल
है?''
यह फूल
ठीक पहले जैसा
ही था, लेकिन
असली था।
सोलोमन ने इस
फूल को देखने
का बहाना किया
और फिर कहा—’‘ हां! यह फूल
असली है।’’
वह
स्त्री
आश्चर्यचकित
रह गई। पूरा
दरबार विस्मय
से भर गया। यह
हुआ कैसे? उन्होंने
सम्राट से
पूछा—’‘ आप
कैसे यह पहचान
कर सके?''
उसने
उत्तर दिया—’‘ बहुत
आसान सी बात
है। मैने
खिड़कियां
खुलवा दीं, जिससे
मधुमक्खियां
अंदर आ सकें।
उन्हीं ने
असली नकली की
पहचान की।
पहले फूल पर
कोई मधुमक्खी
नहीं आई लेकिन
दूसरे फूल की
ओर वे तुरंत
दौड़ पड़ी।’’
जब तुम
किसी चीज या
व्यक्ति को
प्रेम करते हो
तो वह कहां है, इस बारे
में तुम्हारे
पास एक
अतीन्द्रिय
ज्ञान होता है।
तुम्हारा
प्रेम ही
तुम्हारी
देखभाल करता
है, वह
तुम्हें
निर्देशित
करता है और
वही तुम्हारा
पथप्रदर्शक
बनता है।
एक
मधुमक्खी या
भौंरा मीलों
दूर से यह
सूंघ सकते हैं
कि पुष्प हैं
किधर। इस बारे
में
मधुमक्खियों
पर बहुत से
प्रयोग किए गए
बहुत सी खोजें
की गई कि वे
रास्ता कैसे खोज
लेती हैं। फूल
मीलों दूर
खिले हों और
मधुमक्खियां
तुरंत आएंगी।
उनमें लगभग एक
अतीन्द्रिय
ज्ञान होता है।
और वह
अतीन्द्रिय
ज्ञान और कुछ
भी नहीं, केवल प्रेम
ही है।
तुम
जिस वस्तु या
व्यक्ति से
प्रेम करते हो, तुम उस तक
जाने का मार्ग
खोज ० लोगे, इसलिए अपने
प्रेम पात्र
के बारे में
बहुत सजग बन
कर रहो, उससे
ही तुम्हारी
स्थिति तै
होने जा रही
है। तुम्हारा
प्रेम ही
तुम्हारी
स्थिति है।
प्रेम कुछ ऐसी
चीज है, जो
बहुत शानदार
है, प्रेम
अति विशिष्ट
अस्तित्व की
कोई चीज है, प्रेम में
हाई चीज
दिव्यता जैसी
है और तुम अपना
मार्ग खोज ही
लोगे।
बाउल
कहते हैं—
जब
वहां कोई भय
नहीं होता।
बस
तो प्रेम ही
यथेष्ट है।
वही
तुम्हारी
देखभाल करेगा।
और
वही तुम्हारा
पथ प्रदर्शित
करेगा।
मधु
तो कमल कोष के
अंदर छिपा है।
लेकिन
भौंरा या मधुमक्खी
उसे भली भांति
जानते हैं।
गुबरैले
गोबर में ही
रहते हैं
और
मधु का उन्हें
ख्याल तक नहीं
आता।
समर्पण
और विनम्रता
ही ज्ञान का
रहस्य है।
समर्पण
और विनम्रता
ही ज्ञान का
रहस्य है, क्योंकि
समर्पण ही
प्रेम का
रहस्य है और
प्रेम ही केवल
वह ज्ञान है
जिसका कुछ
मूल्य है।
आज बस
इतना ही...।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें