(The
Beloved-Vol-1)
ओशो
बाउलों
को बावरा कहा
जाता है, क्योंकि वे
लोग पागल जैसे
होते हैं।
बाउल शब्द
संस्कृत के
मूल शब्द 'वतुल'
से आता है, जिसका अर्थ
है—पागल। बाउल
लोगों का कोई
धर्म नहीं
होता। न वह
हिंदू होते
हैं, न
मुसलमान, न
ईसाई और न बौद्ध
ही, वे
केवल साधारण
मनुष्य होते
हैं। वे
समग्रता से
विद्रोही हैं।
वे किसी के
होकर नहीं
रहते। वे केवल
स्वयं के ही
होकर स्वयं के
छंद से जीते
हैं।
बाउल
गाते हैं—
न कुछ
भी हुआ है और न
कुछ भी होगा,
जो
वहां है, वह वहां
ही रहेगा।
ब्रह्मांड
का गहराई से
अध्ययन करने
पर
तुम
अपना समय नष्ट
ही कर रहे हो।
‘वह’ तो इस छोटे
से भाण्ड
(बर्तन) में भी
मौजूद है,
इस
छोटे से शरीर
में ही उसने
अपना घर बनाया
है।
‘वह’ यहीं है
इसी
छोटे से भाण्ड
में
तुममें—
देवताओं
का भी
परमात्मा
बनकर
सम्राटों
का भी सम्राट
होकर
वही तो
है प्रीतम
प्यारा।
सभी से
न्यारा।
जरा
झांको तो
स्वयं
अपने ही अंदर।
— ओशो
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