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रविवार, 23 अप्रैल 2017

चल हंसा उस देश-(ध्यान-साधना)-ओशो

चल हंसा उस देस
—ओशो
श्री रजनीश द्वारा 1966 एवं 1970 में
दिए गए सात अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन.

मन सतत परिवर्तनशील है, और साक्षी सतत अपरिवर्तनशील है। इसलिए साक्षीभाव मन का हिस्सा नहीं हो सकता। और फिर, मन की जो—जो क्रियाएं हैं, उनको भी आप देखते हैं। आपके भीतर विचार चल रहे हैं, आप शांत बैठ जायें, आपको विचारों का अनुभव होगा कि वे चल रहे हैं; आपको दिखायी पड़ेंगे, अगर शांत भाव से देखेंगे तो विचार वैसे ही दिखाई पड़ेंगे, जैसे रास्ते पर चलते हुए लोग दिखायी पड़ते हैं। फिर अगर विचार शून्य हो जायेंगे, विचार शांत हो जायेंगे, तो यह दिखायी पड़ेगा कि विचार शांत हो गये हैं, शून्य हो गये हैं; रास्ता खाली हो गया है। निश्चित ही जो विचारों को देखता है, वह विचार से अलग होगा। वह जो हमारे भीतर देखने वाला तत्व है, वह हमारी सारी क्रियाओं से, सबसे भिन्न और अलग है।

जब आप श्वास को देखेंगे, श्वास को देखते रहेंगे, देखते—देखते श्वास शांत होने लगेगी। एक घड़ी आयेगी, आपको पता ही नहीं चलेगा कि श्वास चल भी रही है या नहीं चल रही है। जब तक श्वास चलेगी, तब तक दिखायी पड़ेगा कि श्वास चल रही है; और जब श्वास नहीं चलती हुई मालूम पड़ेगी, तब दिखाई पड़ेगा कि श्वास नहीं चल रही है लेकिन दोनों स्थितियों में देखने वाला पीछे खड़ा हुआ है।
यह जो साक्षी है, यह जो विटनेस है, यह जो अवेयरनेस है पीछे, बोध का बिंदु है— यह बिंदु मन के बाहर है; मन की क्रियाओं का हिस्सा नहीं है। क्योंकि मन की क्रियाओं को भी वह जानता है। जिसको हम जानते हैं, उससे अलग हो जाते हैं। जिसको भी आप जान सकते हैं, उससे आप अलग हो सकते हैं; क्योंकि आप अलग हैं ही। नहीं तो उसको जान ही नहीं सकते। जिसको आप देख रहे हैं, उससे आप अलग हो जाते हैं, क्योंकि जो दिखायी पड़ रहा है, वह अलग होगा और जो देख रहा है, वह अलग होगा।
ओशो


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