ओशो
ओशो
द्वारा पूना में
संत पलटूदास की
वाणीपर दिए गये
(11—09—1979 से 30—10—1979) उन्नीस
अमृत प्रवचनों
का संकलन।)
संतों
का सारा संदेश
इस एक छोटी सी
बात में समा जाता
है कि संसार
सराय है। और
जिसे यह बात
समझ में आ गई
कि संसार सराय
है, फिर इस
सराय को सजाने
में, संवारने
में, झगड़ने
में, विवाद
में, प्रतिस्पर्धा
में, जलन
में, ईष्या
में, प्रतियोगिता
में—नहीं उसका
समय व्यय
होगा। फिर
सारी शक्ति तो
पंख खोल कर उस
अनंत यात्रा
पर निकलने
लगेगी, जहां
शाश्वत घर है।
पलटूदास
के ये गीत
तुम्हारे
कानों पर पवन
बन जाएं, तुम्हारी
आंखों पर सूरज,
तुम्हारे
कानों पर पंछी
के गीत—इस आशा
में इन पर
चर्चा होगी।
यह चर्चा कोई
पांडित्य की
चर्चा नहीं
है। यह चर्चा
पलटूदास के
काव्य की
चर्चा नहीं है,
न उनकी भाषा
की। यह चर्चा
तो पलटूदास के
उस संदेश की
चर्चा है जो
सभी संतों का
है; नाम ही
उनके अलग हैं।
फिर वे नानक
हों कि कबीर, कि पलटू हों
कि रैदास, कि
रैदास हों कि
तुलसी, भेद
नहीं पड़ता। नाम
ही अलग—अलग
हैं। एक ही
सूरज के गीत
हैं। एक ही
सुबह की पुकार
है। सभी
पंछियों का एक
ही उपक्रम है—याद
दिला दें
तुम्हें, स्मृति
दिला दें
तुम्हें।
क्योंकि तुम
जो हो वही भूल
गए हो और वह हो
गए हो जो तुम
नहीं हो। मान
लिया है वह
अपने को जो
तुम नहीं हो
और पीठ कर ली
है उससे जो
तुम हो। इस
विस्मृति में
दुख है। इस
विस्मृति में
नरक है। लौटो
अपनी ओर!
अपने
को जिसने
पहचान लिया
उसने
परमात्मा को पहचान
लिया। जो अपने
को बिना
पहचाने
परमात्मा को
पहचानने चलता
है, परमात्मा
को तो पहचान
ही नहीं पाएगा,
अपने को भी
नहीं पहचान
पाएगा। क ख ग
से शुरू करना
होगा। और क ख ग
तुम हो।
तुम्हारे
भीतर जलना
चाहिए दीया।
तुम्हें ही
बनना होगा
दीया, तुम्हें
ही तेल, तुम्हें
ही बाती। हां,
जरूर रोशनी
उतरेगी ऊपर से,
मगर इतनी
तैयारी
तुम्हें करनी
होगी—दीया बनो,
तेल बनो, बाती बनो।
आएगा प्रकाश,
सदा आया है।
उतरेगी किरण।
तुम्हारी
बाती जलेगी।
रोशन तुम होओगे।
वह तुम्हारी
जन्मजात
क्षमता है। पर
इतनी तैयारी
तुम्हें करनी
होगी। और उस
तैयारी का पहला
चरण है
तुम्हें यह
याद दिलाना कि
तुम जैसे हो, जहां हो, यह
सचाई नहीं है।
ओशो
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