राबिया-बसरी के गीत-(ओशो की प्रिय पुस्तके)
इस किताब का नाम लिए बिना ओशो ने राबिया के गीतो को अपनी पसंदीदा किताबों की फेहरिस्त में रखा है। इसी फहरिस्त में मीरा भी आती है। जिसे ओशो बहुत ‘मीठी’ कहते है। और राबिया को ‘नमकीन’। और इसी तुलना के ऊपर एक मजाक भी कहते है: मुझे डायबिटीज है, इसलिए मीरा को तो मैं बहुत ज्यादा खा या पी नहीं सकता। लेकिन राबिया चलेगी—नमक तो में जितना चाहे ले सकता हूं। शायद फकीरों में राबिया वह अकेली औरत है जिसकी कहानियां ओशो के प्रवचनों में बार—बार सुनाई देती है। दरअसल खोज की तो पाया कि ओशो ऐसी कोई किताब ही नहीं है, जिसमें राबिया का जिक्र न आया हो; ऐसा दूसरा नाम केवल बुद्ध का है।
राबिया
713 इस्वी
में इराक के
बसरा शहर में
पैदा हुई थी।
हजरत मुहम्मद
और राबिया
के बीच लगभग
कोई सौ साल का
ही फासला है।
इसीलिए सबसे
पहले हुई सूफी
नारी राबिया
है। और यह भी
कहा जाता है
कि प्रेम के
मार्ग का प्रारंभ
राबिया
से होता है।
कहते
है कि राबिया
जब पैदा हुई
तो उसके गरीब
घर में न तो
चिराग जलाने
के लिए तेल था
और न उसे लपटेने
के लिए कोई
कपड़ा। राबिया
की मां ने
उसके पिता से
कहा कि वह
पड़ोस से
थोड़ा तेल और
कोई कपड़ा
मांग लाये।
लेकिन राबिया
के पिता ने यह
कसम उठा रखी
थी कि वह अपना
हाथ अल्लाह
को छोड़ कभी
किसी के आगे
नहीं फैलाएंगे।
पत्नी का दिल
रखने के लिए
वह पड़ोस में
गए और बिना किसी
से कुछ मांगे
वापस आ गये।
कहते
है उस रात
हज़रत मुहम्मद
उनके सपने में
आए और बोले, ‘तेरी बेटी
मुझे अजीज है।
तू बसरा के
अमीर के पास
जा और उसे एक
खत दे। जिसमें
यह लिखना: तू
हर रात नबी को
सौ दुरूह करता
है और हर जुम्मेरात
को चार सौ
दुरूद करता
है। लेकिन
पिछली जुम्मेरात
को तू दुरूद
करना भूल गया, सज़ा के तौर
पर इस खत लाने
वाले को चार
सौ दीनार दे
दे।’
आंखों
में आंसू लिए राबिया के
पिता आमिर के
पास पहुंचे।
अमीर नाच उठा
कि वह नबी की
नजरों में है।
उसने 1000 दीनार गरीर
गरीबों में
बांटे व खुशी—खुशी
चार सौ दीनार राबिया के
पिता को दिये
और यह भी कहा
कि उन्हें जब
जरूरत हो उसके
पास चले आएं।
राबिया
के पिता की
मृत्यु के
बार बसरा में
अकाल पडा। राबिया
अपनी मां और
बहनों से अलग
एक दूसरे
कारवां के पीछे
चल पड़ी, जो
लुटेरों के
हाथ लग गया।
उन लुटेरों ने
राबिया
को गुलामों के
बाजार में बेच
दिया।
राबिया
का मालिक उससे
कड़ी मेहनत
करवाता। वह
बिना किसी शिकयत
सब काम करती,
और रात जब वह
अकेली होती तो
अपने प्रीतम ‘अल्लाह’
के साथ मानों
खेलती। रात वह
अपने गीत रचती
और अल्लाह को
सुनाती।
एक रात राबिया के मालिककी
नींद खुली तो
उसने देखा राबिया
यह गीत गा रही
थी:
आंखें
आराम में है;
तारे डूब रहे
है
परिदों
के घोसलों में
कोई आवाज नहीं
समुंदर
के शैतान भी
चुप है
खलाफों
और शहंशाहों
के दरवाजे बंद
है
लेकिन
बस एक तेरा
दरवाजा खुला
है
तू ही
है जो बदलता
नहीं
तू ही
है जो कभी
मिटता नहीं
मेरे
अल्लाह,
हर
आशिक अपने—अपने
महबूब के साथ
है
मैं बस
तेरे साथ हूं।
राबिया
के मालिक ने
देखा कि जब वह
गा रही थी। तो
उसके चेहरे से
ऐसा नूर टपक
रहा था कि
जैसे रात में
रोशन हो गयी
हो। वह राबिया
के पैरों में
गिर पडा और
बोला कि कल से
तू मेरी मालकिन
होगी और मैं
तेरा गुलाम।
उसने राबिया
से यह भी कहा
कि अगर वह
जाना चाहे तो
वह उसे गुलामी
के बंधन से
आजाद कर देगा।
राबिया
ने कहा कि वह
रेगिस्तान
में जाकर कुछ
समय अकेली
रहना चाहती है।
रेगिस्तान
में उसने कई
दिन गुजारे
और वहीं मुर्शिदके
रूप में उसे
हसन अल बसरी
मिले, जिसके
चरणों में वह
रहने लगी।
कहते
है कि जिस दिन राबिया
प्रवचन में न
आती हसन चुप
ही रहते। जब
उनसे पूछा गया
तो वह बोले,
जिस बर्तन में
चाश्नी हाथीको
पिलाई जाती है, वह बर्तन
चींटियों को
चाशनी पिलाने
के काम नहीं आ
सकता।
एक दिन
रात अचानक रात
गीत गाते हुए राबिया
चुप हो गई। जब
वह हसन से मिली
तो हसन ने
उसकी आंखों
में देखकर
कहा: अरे तुझे
तो मिल गया।
कैसे मिला तुझ?
राबिया
ने कहा, आप ‘कैसे’ की
बात करते है, और मैंने
जाना कि, ‘कैसे’ और ‘ऐसे’
कहीं नहीं
पहुंचते है।
जो है, सो
है। ‘कैसे’ तो वहां पहुंचाएगा
और होना यहां
है।
हसन ने राबिया को
गले लगाया और
कहा कि तू जा
अपने गीतों को
फैला।
वह
अकेली एक
कुटिया में
रहने लगी और
हजारों शिष्य
उसके पास
पहुंचने लगे।
वह जो गाती,
शिष्य उसे
लिख लेते।
उसके जो गीत
आज उपलब्ध है, वह उसके
शिष्यों ने
ही कागज पर
उतारे है।
राबिया
के कुछ गीत:
आबे ज़म—ज़म
मिले तो आंखे धोलूं
और
देख हूं कि
पूरी जमीन ही
मुकद्दस
(पवित्र) है।
कोई
भटक ही नहीं
सकता वहां,
जहां उसकी मदद
न हो।
जो
कुछ भी तुम
छूते हो
उसी
ने तो छुपाया
है।
मैंने
तो बस आलू के
छिलके उतारे
है
तुम
उसकी कीमत
सोचने लगे
प्यारों,
कुछ भी कहां
जाएगा?
सब
अल्लाह में
है।
........
क्यों
अल्लाह को छेड़ें न?
क्यो
न उसके साथ
शरारत करें?
क्यों
न समझें उस
आजादी को
जिस
आजादी में ‘वो’ है
और
जिस आजादी में
‘वो’ हमे
देखना चाहता
है।
............
चलो
ऐसा सजदा करें
कि सब दीवारें
गुम हो जाएं
जहां
मस्ती अपने
आप में ऐसी
ढले
कि
खुदी गुम हो
जाए।
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