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सोमवार, 8 फ़रवरी 2016

दस हजार बुद्धों की एक सौ गाथाएं--(अध्‍याय-40)

अध्‍याय—(चालीसवां)

शो माथेरान में एक ध्यान शिविर ले रहे हैं। लगभग पांच सौ लोग ध्यान शिविर में हिस्सा ले रहे हैं। वे रग्बी होटल में ठहरे हैं, जहां बीचों—बीच खुले मैदान में शिविर का आयोजन किया गया है।
एक कुत्ता रोज नियमित रूप से आकर पोडियम के पास बैठ जाता है, जहां से ओशो प्रवचन करते हैं। मैं रोज उसको देखती हूं। वह रोज थोड़ा जल्दी आकर पोडियम के पास ही अपनी जगह बना लेता है। यह किसी बड़े ध्यानी की तरह रोज एक ही जगह पर बैठता है और जब ओशो बोलते हैं तो एकदम चौकन्ना होकर वह उन्हें सुनता है।

जब ओशो आकर सबको नमस्ते करते हैं तो वह अपनी गर्दन उठाकर ओशो की ओर देखता है और ओशो उसे देखकर मुस्कुराते हैं। यह केवल तीन दिन का कैंप है। ओशो के साथ समय बहुत तेजी से गुजरता है। आज चतुर्थ दिन की सुबह है। ओशो बंबई जाने के लिए रेलवे प्लेटफार्म पर खड़े हुए हैं। अनेक मित्र स्टेशन पर उन्हें विदा देने के लिए आए हुए हैं। मैं इस कुत्ते को ओशो के पास खड़ा देखकर हैरान होती हूं। ओशो कुत्ते की ओर इतने प्रेम से देखते हैं कि वह अपनी पूंछ हिलाने लगता है। कुछ ही मिनटों में माथेरान से नेरल के बीच चलने वाली छोटी गाड़ी छूटने को है। ओशो सबको नमस्ते करके गाड़ी में चढ़ जाते हैं। गाड़ी धीरे—धीरे चलनी शुरु हो जाती है। प्रत्येक व्यक्ति पीछे छूटता जाता है किन्तु वह कुत्ता गाड़ी के साथ—साथ चल रहा है। जब गाड़ी गति पकड़ लेती है तो वही कुत्ता गाड़ी के साथ—साथ तेजी से दौड़ने लगता है। ओशो उसको दौड़ता हुआ देख रहे हैं। वे अपने हाथ के संकेत से उसे आशीर्वाद देते हैं और रुकने का इशारा करते हैं।
कुत्ता रुक जाता है और ओशो की ओर देखने लगता है। मैं स्वयं को अपना हाथ हिलाकर उसे अलविदा देने से नहीं रोक पाती। ओशो कहते हैं, यह कुत्ता बहुत विकसित आत्मा है।

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