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रविवार, 28 फ़रवरी 2016

दस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्‍याय--63)

अध्‍याय—(तरेष्‍ठवां)


 शाम हो चुकी है, और बंबई की सड्कों पर वाहनों की सबसे ज्यादा भीड़ का समय है। मैं क्रॉस मैदान पहुंचने के लिए एक टैक्सी का इंतजार कर रही हूं, जहां 6—30 बजे ओशो भगवद्गीता पर प्रवचन देने वाले हैं। मैं पंद्रह मिनट इंतजार करने के बाद बड़ी अधीर सी हो रही हूं। मेरे आगे से कितनी ही टैक्सियां गुजर रही हैं, लेकिन सभी भरी हुई हैं। मैं हैरान होती हूं कि ये इतने सारे लोग आखिर जा कहां रहे हैं, और मुझे कोई क्यों नहीं बिठा लेता।
क्षण प्रतिक्षण मुझे देर होती जा रही है और मेरा धीरज जवाब देने लगा है, मैं बिलकुल असहाय महसूस कर रही हूं। अंतिम आश्रय के रूप में, मैं अपने मन ही मन अस्तित्व से प्रार्थना करने लगती हूं कि प्रवचन में ठीक समय से पहुंचने के लिए मेरी मदद करे। मैं शांत होकर सब कुछ अस्तित्व पर छोड़ देती हूं और एक चमत्कार होता है। एक कार मेरे नजदीक आकर रुकती है। कोई आगे का दरवाजा खोलता है। मैं भीतर झांककर देखती हूं।
मैं अपनी आंखों पर विश्वास नहीं कर पाती। ओशो पिछली सीट पर बैठे हुए हैं और मुझे देखकर मुस्कुराते हैं। मां लक्ष्मी कार चला रही हैं और मुझे आगे अपने साथ बैठने को कहती हैं। मैं तो हक्की—बक्की रह जाती हूं। कार में गहन मौन है और मैं उसमें स्वयं को डूबा हुआ महसूस करती हूं। मेरी आंखें अहोभाव में मुंद जाती हैं और आंसू बहने लगते हैं। कुछ ही मिनट में हम क्रॉस मैदान पहुंच जाते हैं। मैं कार से उतरकर उनके चरण छूने के लिए बढ़ती हूं लेकिन पहले ही बहुत से लोगों ने उन्हें घेर लिया है। कई लोग उनके चरण छू रहे है और हर बार सबके सिर पर हाथ रखने के लिए वे झुक रहे हैं। यह तो बहुत ज्यादा हो रहा है। इतने लोगों ने उन्हें घेर रखा है कि उनके लिए एक इंच भी बढ़ पाना मुश्किल है। लक्ष्मी मेरी ओर देखती है और हम दोनों मिलकर लोगों को किनारे की तरफ करने लगती हैं; अपनी बाहैं फैलाकर हम उनके दोनों ओर दीवार बन गई हैं। फिर भी पोडियम जाने के लिए दो मिनट की दूरी को वे दस मिनट में तय कर पाते हैं। वे श्रोताओं को हाथ जोड़कर नमस्कार करते हैं और आलथी—पालथी मारकर आंखें बंद करके बैठ जाते हैं। मैं पहली पंक्ति में जाकर जमीन पर बैठ जाती हूं। उनकी ओर देखती हूं उनके चेहरे पर थकान का नामोनिशान तक नहीं है। वे किसी देवता की तरह ताजे और सद्य—स्नात लगते हैं, जो अभी—अभी ही पृथ्वी पर उतरे हों।

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