(ओशो के पत्र
मा मदन कुवंर
पारिख के नाम
जो उनके पिछले
जन्म की मां
थी)
दो
शब्द:
डॉ. विकल गौतम
ने आग्रह किया
है कि मैं 'भावना के
भोजपत्रों पर
ओशो' पुस्तक
के संबंध में
दौ शब्द लिखूं।
मैं निरंतर
टालता रहा हूं।
इसलिए नहीं कि
लिखने का भाव
नहीं है। हृदय
मैं बहुत भाव
है, लेकिन
जितना अधिक
भाव होता है
उतना ही कठिन
हो जाता है
उसे
अभिव्यक्त
करना। पहले भी
मैंने काफी
पुस्तकों की
भूमिका लिखी है
और उन्हें
लिखना कभी
इतना कठिन नहीं
रहा है जितना
कठिन है इस
पुस्तक के
संबंध में लिखना।
मेरे लिए यह पुस्तक
सर्वाधिक
मुल्य की है—सवर्था
बहुमुल्य है।
यह एक उपनिषद
है जो मां—बेटे
के बीच घटित
हुआ—परम
सामीप्य में।
समय और स्थान
की दूरी इसमें
कोई अर्थ नहीं
रखती। बेटा
हजारों मील
दूर भी हो तो
वह मां के—
सर्वाधिक
निकट होता है—उसके
हृदय के भीतर
होता है। उसके
यह बेटा तो
कोई सामान्य
पुत्र नहीं है—बुद्ध
है, संबुद्ध
है।
भगवान
शिव और देवी
के बीच, परम
अंतरंगता में,
जीवन के
रहस्य—सूत्र 112
विधियों —में।
उद्घाटित हुए—जो
विज्ञान भैरव
तंत्र के रूप
में शिव की अनूठी
भेंट है। देवी
पार्वती उनकी
प्रेमिका हैं,
पत्नी है—और
जैसा कि
स्त्री अपने आत्यांतिक
स्वभाव में
मां होती है—वह
उन अर्थों में
मां भी हो
सकती है। देवी
के माध्यम से
यह अनुठी भेट
शिव ने पूरे
विश्व को दी
जो युगों—युगों
तक मनुष्यों
का रूपांतरण
करती रहेगी—उसे
जमीन के
गड्ढों से, अंधकूपों से
उठाकर हिमालय
के उतुंग
शिखरों पर, केलाश के स्वणोज्ज्वल
शिखरों पर
स्थापित
करेगी।
कुछ ऐसी
ही अनुभुति
मुझे सदा हुई
है ओशो के इन
पत्रों को
पढ़कर जो उन्होंने
अपनी पूर्व.
जन्म की मां
को लिखे।
इन्हें मैंने
सबसे पहले
क्रांतिबीज
पुस्तक मैं
पढ़ा था —अनेक
बार पढ़ा था'। रात को
सोते हुए और
सुबह उठते हुए
पढ़ा था—और हर
बार पाया था
कि हर बार
पढ़ने में जीवन
के नित नये अर्थ
उद्घाटित
होते हैं। यह मां
और बैटे के
बीच घटित —हुआ
क्रांति—बीज
मेरे लिए भी
उपनिषद हो गया
था—और में
जानता था कि आनेवाले
समय में यह
मेरे जैसे
लाखों—करोड़ों
शिष्यों के
लिए! 'भी
उपनिषद बनेगा—समय
और स्थान को
दूरी से मुक्त।
इसलिए जब कोई
मुझसे पूछता
है कि पहले
कौन—सी पुस्तक
पढूं तो मैं
उन्हें कहता
रहा हूं—सबसे
पहले यह
क्रांति—बीज
पढ़ लो। मुझे
सदा एहसास
होता रहा है
कि इसके बाद 'आनेवाली ओशो
की सैकड़ों
पुस्तक इन्हीं
क्रांति—बीजों
के खिले हुए
फूल हैं। ये क्रांति—बीज
ओशो की जीवन—क्रांति
की
आधारशिलाएं हैं।
फिर हमने एक
बहुत बड़ा, अति
विशाल मंदिर
निर्मित होते
हुए देखा है—और
कैसा सौभाग्य
है कि उसके पूर्व
हमने उसकी आधारशिलाओं
के भी दर्शन
किए। इन बीजों
ने हमें ऐसे
ही आंदोलित—अनुप्राणित
किया जैसे कोई
महा संभावना
वाला बीज अंधेरे
में अपने आस—पास
की भूमि को
आंदोलित
अनुप्राणित
करता हो। इन
बीजों का
स्रोत ओशो की
परम संबोधि का
गर्भ है और
सद्गुरु के
रूप में ओशो
स्वयं एक
किसान हैं जो
अपने शिष्यों
की प्यासी
भूमि में
इन्हें रोपित
करके इन्हें
विकसित करते
हैं।
मां और
बेटे के बीच
घटित हुआ यह
उपनिषद आज ओशो
तथा उनके
लाखों करोड़ों
शिष्यों के
बीज उपनिषद बन
गया। आप इन
सूत्रों को
पढ़ेंगे तो
अपने हृदय में
ऐसे संजो
लेंगे, सहेज लेंगे—जैसे
रत्नगर्भा पृथ्वी
अपने भीतर
संजो लेती है।
और फिर अनंत
फूलों के रूप
में पूरे आस्तित्व
को उपहार देती
है।
माउंट आबू
में मां
आनंदमयी से 1973
में एक ओशो
ध्यान शिविर में
मुझे एक छोटी—सी
मुलाकात का
सौभाग्य मिला
था। उनके साथ
हुए
साक्षात्कार
को मैंने.. आनंदिनी' नाम की
ओशो पत्रिका
में प्रकाशित
किया था।
पत्रिका का वह
अंक आज भी डी.
विकल गौतम तथा
अन्य कुछ मित्रौं
ने सम्हालकर
रखा है। लेकिन
मैंने जा
क्षणों की
मधुर स्मृति
अपनी हृदय—मंजूषा
में संजो कर
रखी हुई है।
डॉ विकल गौतम
के प्रति
अहोभाव कि
उन्होंने
मुझे पुन: पुन:
उन मधुर
क्षणों का समरण
करने और
उन्हें जीने
का एक सुअवसर
प्रदान किया।
मुझे आशा है
कि आप सब पाठक
भी इस उपनिषद
के भाव—तरंग
में डूबेंगे,
आंदोलित
होंगे, नाचेंगे
और आपके जीवन
मैं क्रांति के
ये मधुर
आग्नेय फूल
खिल?।।
आपकी तरह मैं
भी आभारी हूं
डा. विकल गौतम
का जिन्होंने अनेक
वर्षों के
प्रयास से—
इन्हें सजा कर
रखा, सम्हाले
रखा और पूरे
विश्व को भेंट
कर दिया। इन्हें
प्रकाशित करने
का श्रेय और
गौरव जाता है
डायमंड पाकेट
बुक्स के
प्रकाशक श्री
नरेन्द्र
कुमार को
जिन्होंने
बहुत प्रारंभिक
समय से ओशो की
पुस्तकों को
प्रकाशित करके
उन्हें जन—जन
तक पहुंचाने
के लिए श्रम
किया है और
लाखों नए
पाठकों को
साधना के अमृत—पथ
पर प्रशस्त
करने के लिए एक
सशक्त माध्यम
बने हैं।
अंत
में मैं नमन
करता हूं मां
आनंदमयी को और
हमारे
सद्गुरु ओशो
को जिनकी इस
अनूठी देन के लिए
जो कृष्ण—अर्जुन
संवाद, जनक—अष्टावक्र
संवाद से कहीं
अधिक आत्मीय
एवं काव्यमय
स्वामी
चैतन्य
कीर्ति
संपादक
: ओशो वर्ल्ड
पत्रिका;
सी 5/44 सफ्दरजंग
डिवेलपमेंट
एरिया,
नयी
दिल्ली—110016
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