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शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2016

दस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्‍याय--50)

अध्‍याय—(पचासवां)

र रोज ओशो और क्रांति के लिए टिफिन में सुबह और शाम का भोजन भेजा जाता है। जब वे अपना भोजन कर चुकते हैं तो मैं पाती हूं कि टिफिन में इतना भोजन छूट गया है जो मेरे और शीलू के लिए पर्याप्त है। हम दोनों बचे हुए भोजन को खूब आनन्द लेकर खाते हैं साथ ही रसोईघर तक भोजन के लिए जाने की तबालत से बचने पर बहुत प्रसन्न होते हैं।

आज हम सभी को दर्शनीय स्थलों की सैर करवाने के लिए एक बस का इंतजाम किया गया है। मैं जाने में हिचकिचा रही हूं और घूमने—फिरने में मेरा कोई रस नहीं है। मेरा पूरा रस ओशो के साथ होने में है। कुछ मित्र मुझसे नाराज हो जाते हैं। मैं उनकी नाराजगी को समझ नहीं पाती। मुझे लगता है कि जाना या न जाना मेरा चुनाव और मेरी स्वतंत्रता है। लेकिन वे भी मुझे साथ लेकर जाने पर अड़े हुए हैं और बहस करने लगते हैं।
अचानक ओशो कमरे से बाहर आते हैं और यह देखकर कि वहां क्या चल रहा हैं वे मित्रों से कहते हैं कि मैं जो करना चाहूं मुझे करने दें।मित्र शांत हो जाते हैं और जाकर बस में चढ़ने लगते हैं।
मेरी आंखों में आंसू हैं। ओशो मेरी ओर देखकर हंसते हैं जिससे मुझे भी हंसी आ जाती है।
वे कहते हैं....., 'आंसू और मुस्कान एक साथ। यह जरा दुर्लभ दृश्य है।

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