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रविवार, 28 फ़रवरी 2016

दस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्‍याय--65)

अध्‍याय—(पैष्‍ठवां)

 स टैक्सी वाली घटना के बाद, मेरी एक मित्र जो रोज शाम प्रवचन के लिए आती है, वह और मैं यह निश्चय करती हैं कि रात को या तो वह मेरे घर रुक जाया करेगी या मैं उसके घर रुक जाया करूंगी। सुबह हम अपने—अपने घर जा सकती हैं। वह मेरे घर आना पसंद करती है, उसके लिए मैंने अपने कमरे में अलग से एक बिस्तर लगा दिया है। हमारी यह योजना बिलकुल ठीक चल रही है।

मेरे पड़ोसी जब यह देखते हैं तो तथ्यों को बिना जाने ही यह अफवाह उड़ा देते हैं कि रात को मैं लड़कियों को घर लाती हूं जो सुबह होते ही चली जाती हैं। जब एक मित्र से मैं यह अफवाह सुनती हूं तो मैं हैरान रह जाती हूं। कितने सड़े हुए समाज में हम रह रहे हैं। लोग अपना मन हमारे ऊपर थोप देते हैं। उनमें इतनी भी हिम्मत नहीं है कि सीधे आकर मुझसे बात कर सकें।
कभी—कभी मैं भी अपनी मित्र के घर रुक जाती हूं और सुबह घर वापस आती हूं। और फिर वही अफवाहैं, रात को मैं घर नहीं आती; जरूर कोई रात का धन्धा करती होऊंगी। मैं अपने बारे में इन सारी अफवाहों की बातें ओशो को बताती हूं। ओशो का उत्तर है, यह तुम्हारी अग्नि परीक्षा है। तुम्हें कोई प्रतिक्रिया नहीं करनी, बस ऐसे लोगों की उपेक्षा करनी है। उदासीन बने रहो। एक दिन सत्य स्वयं प्रकट हो जाएगा।

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