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शनिवार, 13 फ़रवरी 2016

दस हजार बुद्धो की एक सौ गथाएं--(अध्‍याय--51)

अध्‍याय—(इक्‍यवनवां)

हर्षि महेश योगी भी अपने कुछ पश्चिमी शिष्यों के साथ पहलगाम आए हुए हैं, उन्होंने ओशो से मिलने की इच्छा व्यक्त की है। जिस बंगले में महेश योगी अपने शिष्यों के साथ ठहरे हुए हैं, उसके बाहर खुले लॉन में दोपहर को एक मीटिंग आयोजित की गई है।
मैं अपना कैसेट रिकार्डर लेकर बाकी दो मित्रों के साथ उसी कार में बैठ जाती हूं जिससे ओशो जा रहे हैं। दस मिनट के बाद कार एक बंगले के पास रुकती है।
बंगले के बाहर बड़ा सुंदर सा लोन है। बहुत सारी कुर्सियां वहां बिछाई गई हैं। महेश योगी एक कुर्सी पर बैठे अपने शिष्यों से बात चीत कर रहे हैं। हमारे पहुंचने पर वे सब लोग बड़े उत्तेजित दिखाई दे रहे हैं। ओशो हाथ जोड़कर सबको नमस्कार करते हैं और महेश योगी के साथ वाली कुर्सी पर बैठ जाते हैं। मैं अपना कैसेट रिकॉर्डर अपनी गोद में लिए ओशो के पास ही बैठ जाती हूं। यहां किसी माइक की व्यवस्था नहीं है। महेश योगी कुछ समय अपने शिष्यों से बातें करना जारी रखते हैं। वह उन्हें समझा रहे हैं कि अलग—अलग मार्ग एक ही लक्ष्य की ओर ले जाते हैं। मैं ओशो की ओर देखती हूं वे अपनी आंखें बंद क़िए हुए बैठे हैं।
महेश योगी का एक शिष्य ओशो को सुनने की इच्छा व्यक्त करता है। एक क्षण के लिए वहां एकदम सन्नाटा छा जाता है। ओशो अपनी आंखें खोलते हैं। मैंने उनकी बातों को रिकॉर्ड करने के लिए माइक्रोफोन अपने हाथ में पकड़ा हुआ है। अभी तक मैंने कभी ओशो को पाश्चात्य लोगों के किसी ग्रुप को इंग्लिश में संबोधित करते नहीं सुना है। शायद यह इंग्लिश में उनका पहला संबोधन है। यह प्रवचन कम वार्तालाप ज्यादा लग रहा हे। मैं उनको कहते हुए सुनती हूं, कोई लक्ष्य नहीं है, मार्ग का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। सभी मार्ग व्यक्ति को स्वयं से दूर ले जाते हैं। तुम केवल स्वप्न ले रहे हो...।
महेश योगी के शिष्य विविध विधियों की उनकी शिक्षा के कारण संस्कारित हैं। वे ओशो से बहस करने लगते हैं। मैं देख सकती हूं कि वे लोग खुले और ग्रहणशील नहीं है, उनके मन मस्तिष्क उधार विचारों से भरे हुए हैं। फिर भी एक घंटे से ओशो उनकी मूढ़तापूर्ण प्रश्नों के जवाब दे रहे हैं। महेश योगी काफी परेशान लग रहे हैं। ओशो उनके पूरे व्यवसाय को ही नष्ट कर सकते हैं, जो कि लोगों को भावातीत ध्यान सिखाने पर ही आधारित है। वह ओशो को अपनी बात पूरी नहीं करने देते और बीच में हस्तक्षेप करके अपने शिष्यों को समझाने लगते हैं कि ओशो का नजरिया अलग है लेकिन अर्थ उनका भी वही है। मैं उनकी छूता को देखकर चकित रह जाती हूं। ओशो ने जो कहा उससे समझौता करके वह अपने आप को बचाने की कोशिश कर रहे हैं।
मैं उन सीधे—सादे पश्चिमी मित्रों के लिए दुख अनुभव करती हूं जो हमारे वापस लौटते समय तक पूरी तरह असमंजस में नजर आ रहे थे।

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