(अध्याय—अड़तीसवां)
मैं
खिड़की से बाहर
देखती हूं
गाड़ी खंडाला
से गुजर रही
है। बाहर
पहाड़ियों से
घिरे हरे—भरे
खेतों का बड़ा
सुंदर सा
दृश्य है, और
बादल नीचे
घाटियों में
तैर रहे हैँ।
सारा दृश्य
बड़ा जादुई लग
रहा है। इस
सबसे मेरा
ध्यान एक आदमी
की आवाज से
भंग होता है
जो मेरे पास
ही खड़ा मुझे
मेरे नाम से
बुला रहा है।
मुझे हैरान
देखकर वह अपना
परिचय देता है
कि वह मुझे
सोहन के घर पर
मिल चुका है
और इस गाड़ी से खासकर
इसीलिए यात्रा
कर रहा है कि
वह ओशो से कुछ
बात करना चाहता
है। मैं उसे
थोड़ी देर बाद
आने को कहती
हूं।
मैं ओशो
की ओर देखती
हूं वे उसी
तरह अपनी आंखें
बंद किए किसी
संगमरमर की
मूर्ति की तरह
बैठे हुए हैं।
गाड़ी में काफी
शोरगुल है, लेकिन ओशो
बाहरी जगत से
बिल्कुल
असंयुक्त से लग
रहे हैं। और
यहां मैं हूं
कि उनके बाजू,
में बैठी
हुई भी, अकारण
ही बेचैन होने
लगी हूं। मैं
अपने बेचैन मन
को देखती हूं
और शांत होने
का प्रयास
करती हूं।
अपने को
व्यस्त रखने
के लिए मैं
अखबार पढ़ना
शुरु कर देती
हूं।
गाड़ी
कर्जत स्टेशन
पर रुकती है
और कुछ फेरीवाले
भीतर घुस आते
हैं। बहुत शोर
हो रहा है, लेकिन
ओशो आंखें बंद
किए बिल्कुल
अविचल बैठे
हैं। यह व्यक्ति
दोबारा आता है,
परन्तु ओशो
को आंखें बंद
किए देख वापस
लौट जाता है।
उसके
जाने के बाद
ओशो अपनी आंखें
खोलते हैं और
घड़ी की ओर
देखते हैं।
मैं उनसे
पूछती हूं कि
क्या वे सोडा
पीना पसंद
करेंगे। वे बस
सहजता से
स्वीकृति में
सिर हिला देते
हैं। मैं उनके
लिए सोडा ले
आती हुं, जो वे
जरा सा पीकर
मुझे वापस
लौटा देते हैं।
मैं उन्हें इस
व्यक्ति के
बारे में
बताती हूं,
तो वे कहते है, ‘हां,
मुझे पता है
वह इस गाड़ी
से सफर कर रहा
है। जब वह
दोबारा आए तो
तू उसे मुझसे
बात करने के
लिए दस मिनट
अपनी सीट पर
बैठने देना।’
फिर वे
मुझसे पूछते हैं,
तू कैसी है?
सफर में
तुझे अच्छा लग
रहा है?' मैं
बेझिझक
उन्हें बताती
हूं कि मैं
कितनी बेचैन
महसूस कर रही
थी और कैसे
अखबार लेकर
पढ़ने लगी थी।
ओशो
कहते हैं, तुझे
कम से कम एक
घंटा रोज शांत
बैठकर अपने विचारों
को देखते हुए,
ध्यान करना
चाहिए।’ मैं
उन्हें बताती
हूं मैं बिना
किसी स्पष्ट कारण
के ही व्यग्र
हो जाती हूं।’
वे कहते हैं,
'अपेक्षा
व्यग्रता
लाती है।
अपेक्षा मत कर
बल्कि
स्वीकार कर।
जैसी है, स्वयं
को वैसी ही स्वीकार
कर। अपने होने
में ही
विश्रांत हो
जा, यही
ध्यान है।’ मुझे गंभीर
देखकर वे
हंसते हैं और
कहते हैं, 'अब,
ध्यान के
बारे में
गंभीर. मत हो।
हर चीज को
स्वीकार करना
और उसका आनंद
लेना सीख। और
अगली बार जब
मैं आऊं तो
मुझे सब बताना।’
मैं
उनका हाथ अपने
हाथों में लेकर
अनुग्रह और
अहोभाव से
चूमती हूं। हम
राई का पहाड
बना लेते हैं
और उनके पास
पहाड को घ्वस्त
कर देने की
कला है; राई
तक नहीं बचती।
मैं
उनसे पूछती हूं
कि वे और सोडा
पिएंगे तो वे
कहते है, तू
इसे खत्म कर
दे।’
वे
अपनी आंखें फिर
से बंद कर
लेते हैं और
मैं सोडा पीने
का मजा लेने
लगती हूं।
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