अध्याय—(सैतालीसवां)
सुबह 8
बजे, ओशो
चाय और टोस्ट
का नाश्ता कर
रहे हैं। शीलू
ऐलयुमिन्यम
के ढ्ढकन पर
टोस्ट सेंकने
में मेरी मदद
कर रही है।
शीलू बहुत ही
शांत प्रकृति
की है, और
मुश्किल से ही
कभी बोलती है।
टोस्ट
जाते समय ओशो
कहते हैं, शीलू
बहुत कम बोलती
है, वह
बहुत शांत है।’
मैं ओशो को
बताती हूं
शीलू की मा
उसके शांत
स्वभाव के
कारण उसे देवता
'कहती है।’
ओशो
हंसकर कहते
हैं ‘जब मेरा
इतिहास लिखा
जाए, तो यह
लिखना मत
भूलना कि देवता
'मेरे लिए
टोस्ट सेंका
करते थे।’
शीलू
मैं तथा वहां
उपस्थित सभी
मित्र ओशो के
इस कथन पर हंस
पड़ते हैं
लेकिन भीतर ही
भीतर मैं यह
बात स्मृति
में संजो लेती
हूं।
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