अध्याय—(इक्षठवां)
ओशो ने
खुले मैदानों
में सार्वजनिक
प्रवचन करने
बंद कर हैं।
हर शाम वे
बुडलैंड्स
अपार्टमेंट
के लिविंगरूम
में मित्रों
के समूह से
बोलते हैं।
सुबह के
प्रवचन
सभागारों में
आयोजित किए
जाते हैं। अब
हम करीब पचास
संन्यासी हैं, जिन्हें
पोडियम पर
उनके पीछे
बैठने दिया
जाता है।
प्रवचन के बाद
कीर्तन होता
है। हम सब
पोडियम पर ही
नाचते गाते
हैं. और ओशो
संगीत की पुन
के साथ—साथ
ताली बजाते
हैं। स्टेज पर
ऊर्जा का एक
नृत्य घटित हो
जाता है।
ऑडिटोरियम
में
कुर्सियों पर
बैठे हुए लोग
भी खड़े होकर
नाचने लगते
हैं। हर रोज
दो या तीन
मित्र साहस
जुटाकर
संन्यास में
छलांग ले लेते
हैं।
शाम
को जब मैं
बुडलैंड्स
पहुंचती हूं
तो लक्ष्मी
मुझे बताती है
कि आज कितनी
विकेट डाउन हो
गई। हम अपनी
उंगलियों पर
गिनते हैं और खुश
होते हैं कि
हमारा
संन्यास
परिवार हर रोज
बढ़ता चला जा
रहा है। एक
मित्र ओशो से
कहते हैं, ‘एक
दिन आएगा जब
सभी संन्यासी
आपको
ऑडिटोरियम
में बैठकर
सुनेंगे और
थोड़े से गैर—संन्यासी
ही आपके साथ
पोडियम पर
बैठा करेंगे।’
ओशो
हंसकर कहते
हैं,
यह संभव है।
इसमें थोड़ा
समय लगेगा। एक
चिंगारी पूरे
जंगल को जला
सकती है। यह
नव—संन्यास आंदोलन
जल्दी ही पूरे
विश्व में आग
की तरह फैल जाएगा।’
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