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सोमवार, 8 फ़रवरी 2016

दस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्‍याय--37)

(अध्‍याय—सेतीसवां)

शो खिड़की के पास वाली सीट पर बैठ जाते हैं और मैं उनके बाजू में बैठ जाती हूं। वे मुझे कहते हैं किए उन्हें आराम करना है और मैं इस बात का ध्यान रखूं कि कोई उन्हें परेशान न करे। मैं स्वीकृति में अपना सिर हिलाती हूं और वे अपनी आंखें बंद कर लेते हैं।

कोई आधे घटे के बाद चाय और टोस्ट का हमारा नाश्ता आ जाता हे। मैं ट्रे को आगे की सीट से लगे हुए छोटे से शेल्फ पर रख देती हूं। मैं उलझन में हूं कि उन्हें जगाऊं या नहीं। मैं चुपचाप उनकी ओर देखती हूं और हैरान रह जाती हूं कि वे अपनी आंखें खोलते हैं और मुस्कुराने लगते हैं। मुझे विश्वास ही नहीं होता कि एकाएक वे कैसे यूं उठ गये हैं। ऐसा लग रहा था कि जैसे वे गहरी नींद में सो रहे हों। बिना कुछ बोले वे अपने सामने का शेल्फ खोलते हैं और मैं उनकी ट्रे उस पर रख देती हूं। वे चाय और टोस्ट इतने मजे से खाने लगते हैं जैसे कि सर्वाधिक स्वादिष्ट नाश्ता हो वह। मैं उनसे कहती हूं च,।य बहुत ठंडी है, यह आप न पिएं। मैं ताजी गर्म चाय मंगवाती हूं।वे कहते हैं, चिंता मत कर, यह ठीक है।हैरानी की' बात, कि कुछ ही क्षणों में वेटर ताजी गर्म चाय की केतली लिए दौड़ा हुआ आता है और कहता है, यह ताजी चाय लीजिए और पहले वाली लौटा दीजिए।ओशो वेटर को देखकर मुस्कुराते हैं और उसे धन्यवाद देते हैं। मैं ओशो के लिए ताजी गर्म चाय डालने लगती ई तो ओशो कहते हैं बस थोड़े सै धैर्य की जरूरत होती है।
अपनी चाय पी चुकने के बाद, वे अपनी घड़ी की ओर देखते हैं और फिर अपनी आंखें बंद कर लेते हैं।

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