अध्याय—(बयालीसवां)
ओशो
रोज सुबह और
शाम अपनी कॉटेज
के लिविंगरूम
में ही प्रवचन
करने का
निर्णय करते
हैं। क्योंकि
वहा एक ही
बाथरूम है
इसलिए मैं
सुबह जल्दी
उठकर नहा लेती
हूं और फिर
बाथरूम उनके लिए
तैयार कर देती
हूं।
लिविंगरूम
में मैंने
फर्श पर एक
गद्दा बिछा रखा
है,
जिस पर रात
को मैं सो
जाती हूं और
सुबह उसे मोड़कर
और एक सफेद
चादर से ढककर उस
पर कुछ तकिए
रख देती हूं
ताकि एक
आरामदेह आसन
बन जाए, जिस
पर बैठकर ओशो
प्रवचन दे सकें।
प्रवचन के
दौरान मैं
अपना कैसेट
रिकार्डर लेकर
उनके पास ही
बैठ जाती हूं।
मित्रों को
प्रवचन के
दौरान प्रश्न
पूछने की इजाजत
हैं। यह
प्रवचन से
अधिक अंतरंग
वार्तालाप
जैसा है। हर
रोज वे हमें
अस्तित्व के
गहन रहस्यों
में गहरा ले
जा रहे हैं।
मैं उनको सुन
भी रही हूं और
साथ ही साथ
रिकॉर्डिग
इंडिकेटर की
सुइयों को भी
देख रही हूं
जिससे मुझे
वॉल्युम का
पता चल रहा है।
जब टेप की एक
साइड खतम होने
को होती है, तो मैं धीरे
से स्टॉप का
बटन दबा कर
उसे पलटती हूं
और देखती हूं
कि ओशो तब तक
कें लिए रुक
गए हैं, जब
तक कि
रिकॉर्डर फिर
से चालू नहीं
हो जाता।
जिस
तरह वे हर
छोटी—छोटी चीज
का ख्याल
रखते हैं, उसकी
मैं बहुत कायल
हूं। सुबह वे
मुझसे पूछते
हैं कि मुझे
रात को ठीक से
नींद आई या
नहीं? मुझे
उनके प्रति
अपना अहोभाव
व्यक्त करने
के लिए कोई
शब्द नहीं
मिलते, कि
वे मुझे रोज
उसी गद्दे पर
सोने की इजाजत
देते हैं, जिस
पर वे सुबह—शाम
दो—दो घंटे के
लिए बैठते हैं।
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