पथ पाथय—07
निवास:
115, योगेश भवन, नेपियर टाउन
जबलपुर
(म. प्र.)
आर्चाय
रजनीश
दर्शन
विभाग
महाकोशल
महाविद्यालय
प्रिय मां,
पद—स्पर्श!
भाव—भीना पत्र
मिला। हृदय की
बात हृदय तक
पहुंच गई।
हृदय तक केवल
वही बात
पहुंचती भी है
जो कि हृदय की
गहराई से आती
है। मेरे
स्नेह में जो
गीत लिखा है
वह बहुत प्रिय
लगा—'अपने
होठों की पूरी
मिठास आपने
उसमें डाल दी
है!
इस
पत्र में मैं
अधिक कुछ
लिखने को नहीं
हूं क्योंकि
मैं खुद ही जो
आ रहा हूं। दो
दिन और भी
जल्दी। पहले
मैं 5 दिसम्बर
को चांदा
पहुंचने को था—यहाँ
से चलता 3 दिस.
को ही पर 4 दिस.
को वर्धा
कॉलेज में एक
व्याख्यान के
लिए रूकता। वह
कार्यक्रम
फिलहाल स्थगित
कर दिया है।
इसलिए मैं 3
दिस. की
संध्या
ग्रेंड ट्रंक
एक्सप्रेस से
चांदा पहुंच
रहा हूं। यह
गाड़ी वहां 7-30 संध्या
पहुंचती है।
मैं यहां सुबह
बस से नागपुर
के लिए
निकलूंगा और
वहां 4 बजे
जीटी पकड़ने को
हूं।
प्रिय
शारदा का पत्र
भी मिला। गीत
भी। उत्तर में
गीत तो मैं
जानता नहीं, प्रीत ही
जानता हूं। सो
आकर दे दूंगा।
शेष शभ।
सबको मेरे
विनम्र
प्रणाम।.
रजनीश
के प्रणाम
22
नवम्बर 1960
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