पत्र पाथय—02
निवास:
115, योगेश भवन, नेपियर टाउन
जबलपुर
(म. प्र.)
आर्चाय
रजनीश
दर्शन
विभाग
महाकोशल
महाविद्यालय
प्रिय मां,
पद—स्पर्श।
आपकी स्नेह—पाती
मिली। आप मुझे
निकट देखना
चाहती हैं—मेरा
भी मन आने को
और आपके स्नेह
को पाने के
लिए लालायित
है। मेरा बड़ा
होना आपकी
प्रेम—अभिव्यक्ति
में बाधा नहीं
बनेगा—मां के
सामने भी क्या
कोई बड़ा हो
पाता है?
मैं दिसम्बर
की छुट्टियों
में आने को
हूं—वैसे दूर
तो अब भी कहां
हूं। शरीर ही
दूर है, हृदय
तो नहीं। हृदय
कोई दूरी नहीं
मानता है—समय
और स्थान की
धारणायें
उसके प्रसंग
में कोई अर्थ
नहीं रखती है।
प्रेम है तो
कोई दूरी—दूरी
नहीं होती है
और प्रेम नहीं
है तो शरीर निकट
भी हो तो क्या
कोई निकट आ
पाता है?
मैं
प्रसन्न और
स्वस्थ हूं।
प्रभु से आपको
स्वस्थ और स्व—स्थित
बनाये रखने की
कामना करता
हूं।
सबको
मेरे विनम्र
प्रणाम
रजनीश
के प्रणाम
5 अक्तूबर
1960
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