एक बार ओशो
कश्मीर में
थे। वहां पर
भावातीत ध्यान
करवाने श्री
महेश योगी का
शिविर भी चल
रहा था। उनके
बहुत सारे
विदेशी शिष्य
वहां आए हुए
थे। ओशो को
उनके बीच
उद्बोधन के
लिए बुलाया
गया।वहां पर
ओशो हिंदी में
ही बोले।
हिंदी उन
मित्रों को
समझ नहीं आई।
तब ओशो को लगा
कि विदेशियों
के बीच—बीच
में अंग्रेजी
में भी बोलना
चाहिए। वहां से
लौट कर माऊंट
आबू में शिविर
था, तो
वहां पर तीस
मिनट वे हिंदी
में बोलते और
पंद्रह मिनट
अंग्रेजी में बोलने
लगे। वहां यह
होने लगा कि
जब हिंदी का
प्रवचन पूरा
हो जाता तो भारतीय
मित्र उठकर
जाने लगते।
तब
एक दिन ओशो ने
डांटते हुए
कहां, ‘जब
मैं हिंदी में
बोलता हूं तो
विदेशी मित्र
बैठे रहते है
तो आप क्यों
उठकर जाते है, बैठ जाएं।’
इस बीच
एक दिन मैं और
मेरे दोस्त
चैनानी मुंबई
गये हुई थे।
ओशो से मिलकर
जब सीढियां
उतर रहे थे तो
सीढ़ीयां
उतरते—उतरते ओशो
ने पूछा ‘हमारी
अंग्रेजी
कैसी लगी?’
मेरे मित्र नैनानी ने कहा कि ‘अंग्रेजी तो आपकी अच्छी है लेकिन आपका प्रनांउशिएशन ठीक नहीं है। कई शब्दों को आप अजीब ढंग से बोलते है, जैसे कि शोल्डर को आप शोल्जर कहते है.....।’ इसके बाद ओशो सणखानंद हॉल में बोलने बाले थे। हम भी वहां गये हुए थे। ओशो अंग्रेजी में बोल रहे थे। बात को निकालते—निकालते शोल्डर पर लाए और सही बोल कर हमारी तरफ देख कर आँख से इशारे से पूछा ठीक है? इस तरह ओशो ने अंग्रेजीमें बोलनाशुरू किया और धीरे—धीरे अंग्रेजी में बोलने लगे। वे बाद के सालों में एक महीना हिंदी में बोलते और एक महीना अंग्रेजी में प्रवचन होते।
मेरे मित्र नैनानी ने कहा कि ‘अंग्रेजी तो आपकी अच्छी है लेकिन आपका प्रनांउशिएशन ठीक नहीं है। कई शब्दों को आप अजीब ढंग से बोलते है, जैसे कि शोल्डर को आप शोल्जर कहते है.....।’ इसके बाद ओशो सणखानंद हॉल में बोलने बाले थे। हम भी वहां गये हुए थे। ओशो अंग्रेजी में बोल रहे थे। बात को निकालते—निकालते शोल्डर पर लाए और सही बोल कर हमारी तरफ देख कर आँख से इशारे से पूछा ठीक है? इस तरह ओशो ने अंग्रेजीमें बोलनाशुरू किया और धीरे—धीरे अंग्रेजी में बोलने लगे। वे बाद के सालों में एक महीना हिंदी में बोलते और एक महीना अंग्रेजी में प्रवचन होते।
जब ये
घटनाएं अब याद
आती है तो
अपनी मुर्खता
पर हंसी आती
है। कि हम ओशो
को ही सुझाव
दे देते थे।
और यह भी कि
ओशो
कितनेप्रेम
से हमारे
सुझावों को
सुन भी लेते
थे। हमें तो
ये बातें एक
खेल की तरह ही
थीं। अब जो
सुझाव हमारे
मित्र चैनानी
ने दिया उसे
उन्हें याद
भी रहा, ठीक से बोला
भी, और उसी
समय हमारी तरफ
देख कर स्वीकृति
भी ली की ठीक
से बोला ने।
ऐसे ने जाने
कितने अवसर
होंगे, जब
ओशो ने पल—पल
हमें जीकर पाठ
पढ़ाये।
आज इति
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