ओशो
के पास रहते
हृदय में
हमेशा एक
जुनून बना
रहता है। एक मस्ती
सी छाई रहती, यूं
लगता कि बस
नशे में हों।
ओशो के वचन
सुनते तो सीधे
हृदय में
उतरते जाते
हैं। ओशो रोज
हमें नई—नई चुनौतियां
देते, हमारी
संभावनाओं को
ललकारते।
हमें भी ओशो
के साथ अज्ञात
की इस यात्रा
पर चलने का
बड़ा ही आनंद
आता।
एक
बार
अष्टावक्र पर
बोलते हुए ओशो
कहते हैं कि 'जब
संन्यासी
अपने सिर के
बाल कटवाता है,
सर मुंडवा
लेता है तो
सिर्फ बाल ही
नहीं कटते, कुछ और भी कट
जाता है।’ मैंने
प्रवचन सुना
और सीधा नाई के
पास गया। और
बोला कि 'बाल
और दाढी
सब साफ कर दे।’
नाई को थोडा
अजीब लगा, लेकिन
भगवा वस्त्र,
गले में ओशो
की माला, इतना
पर्याप्त था
कि उसने अधिक
प्रश्न पूछे बिना
मेरी दाढ़ी
और सिर के बाल
काट दिये।
सिर के बाल काटते हुए उसने पूछा कि ' हिंदू लोग चोटी रखते हैं।’ तो मैंने कहा, 'चोटी रख दे।’ और उसने लंबी सी चोटी रख दी। ये घटना मेरे और नाई के बीच हुई थी। मैं आश्रम गया, सब देख कर चकित हुए। मैं बड़ा अभिमान से भर गया कि जैसे मैंने कोई बड़ी खास बात कर दी हो, अष्टावक्र का वचन 'सुखी भव इति ज्ञानम्' मेरे मन में चले।
सिर के बाल काटते हुए उसने पूछा कि ' हिंदू लोग चोटी रखते हैं।’ तो मैंने कहा, 'चोटी रख दे।’ और उसने लंबी सी चोटी रख दी। ये घटना मेरे और नाई के बीच हुई थी। मैं आश्रम गया, सब देख कर चकित हुए। मैं बड़ा अभिमान से भर गया कि जैसे मैंने कोई बड़ी खास बात कर दी हो, अष्टावक्र का वचन 'सुखी भव इति ज्ञानम्' मेरे मन में चले।
शाम
को जब मैं ओशो
के दर्शन के
लिए गया तो वे
देख कर हंस दिए।
ओशो की नजर
हमारी छोटी से
छोटी बात में
भी दूर तक के
सच को देख
लेती, हमारी
किसी आदत या
संस्कार को
पकड़ लेती है।
अब सिर मुडवा
लेने पर भी
ओशो एक छोटी—सी
बात में मेरे
गहरे गये
संस्कार को
दिखाने से
नहीं चूके।
दूसरे
दिन सुबह
प्रवचन में
ओशो कहते हैं, 'स्वभाव
ने चोटी क्यों
बचा ली, हिंदूपन
चोटी बचा गया।
हिंदू लोग
चोटी रखते हैं।
आज यदि चोटी कटवा लेते
तो कोई बात घट
सकती थी।
हिंदूपन ने
अटका दिया। और
स्वभाव अब
चोटी कटवाने
से कुछ नहीं
होगा। अब
प्रतीक्षा
करो। हाथी
निकल गया, पूंछ
अटक गयी।’ अब
मैं बड़ा हैरान
यह बात मेरे
और नाई के बीच
हुई थी, ओशो
को कैसे पता
चली? ऐसे
हैं हमारे ओशो
हर बात का
इतना खयाल
रखते हैं, अपने
शिष्यों की हर
छोटी से छोटी
बात पर भी उनकी
पैनी नजर बनी
रहती है। कैसे
हिंदू
संस्कारों ने
काम किया। यदि
वे काम नहीं
करते तो बात
कुछ और होती, ओशो उसी तरफ
इशारा कर रहे
थे, और यह
भी कह रहे थे
कि अब चोटी कटवा
भी लो तो कुछ
नहीं होगा।
आज
इति।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें