हर कृत्य में सत्य के लिए तैयारी—(अध्याय—पच्चीसवां)
ओशो
के रहने, खाने—पीने,
चलने—उठने,
बैठने हर
बात में एक
निराला अंदाज
है। वह हर काम
को इतनी सफाई
व सुंदरता से
करते कि बस
देखते ही रह
जाओ। उनका
उठना—बैठना भी
अपने आपमें एक
नृत्य होता है,
उत्सव होता
है। यह उन
दिनों की बात
है जब ओशो
सिर्फ सफेद
रोब पहनते थे।
हर दिन एक ही
तरह का रोब।
उसमें किसी भी
प्रकार का
परिवर्तन
नहीं होता।
ओशो के रोब
बहुत विशेष
प्रकार के
कपडे के बनते
थे।
एक
दिन ओशो ने
मुझे बुलाया, उनके
पास एक कपडा
था कोई मित्र
दे गये होंगे।
कहने लगे कपड़े
का रोब बनवाकर
लाओ, उन्होंने
अपना नाप दे
दिया और बोला
कि नीचे से
डेढ इंच मुड़ा
होना चाहिए।
मैंने दर्जी
को कपड़ा दे
दिया और जब
रोब बनकर तैयार
हो गया तो मैं
ले आया। मैंने
रोब जाकर ओशो
को दिया, उन्होंने
रोब को देखा
और बोले कि ' नीचे से कम
मुड़ा हुआ है।
मैंने डेढ़ इंच
मोडने को कहा
था, यह तो
कम मुड़ा हुआ
है।’मैंने
कहा' गलती
हो गई, ठीक
करवा लाता हूं।’
मैं
वापस दर्जी के
पास गया और
बोला कि ' भाई
नीचे से
तुम्हें डेढ़
इंच मोडने को
कहा था, तुमने
तो सवा इंच ही
मोड़ा है।’ दर्जी
ने कहा कि ' इसे
ठीक नहीं किया
जा सकता
क्योंकि यदि ठीक
करूंगा तो
नीचे सिलाई
दिखाई देगी।
आप नया कपडा
ला दो, मैं
नया बना देता
हूं।’ मैंने
कहा ठीक है।
अब मैं पूरे
पुणे में घूम
गया चारों तरफ,
एम जी रोड, लक्ष्मी रोड
और सब जगह
सारी बड़ी—बड़ी
दुकानें और
शोरूम छान
मारे लेकिन
कहीं वो कपड़ा
ही ना मिले।
फिर मैंने
सोचा कि किसी
छोटी दुकान पर
देखते हैं तो
वहां कपड़ा मिल
गया। मैंने
कपडा लिया और
नया बनवा लिया।
नया
रोब लेकर ओशो
के पास पहुंचा।
ओशो ने देखते
ही कह दिया कि 'यह
तो वह रोब
नहीं है।’मैंने
सोचा कि आंखें
है कि एक्सरे
है। कैसे पता
चल गया इतना
जल्दी। मैंने
कहा, 'हां, यह तो वह
नहीं है, नया
कपड़ा ला कर
नया बनवाया।’
इतनी बात
होने पर मैंने
ओशो से कहा कि 'मुझे एक बात
आपसे पूछनी है।
इससे क्या
फर्क पड़ता है
कि नीचे से
रोब सवा इंच
मुड़ा है या
डेढ़ इंच।
लंबाई तो ठीक
उतनी ही है
जितनी आपको
चाहिए। इतना
इसके पीछे
नखरा क्यों?' ओशो बोले, ' स्वभाव, इससे
कोई फर्क नहीं
पड़ता कि नीचे
से कितना मुड़ा
है। लेकिन मैं
इस सब के
द्वारा
तुम्हारे ऊपर
काम करता हूं।
यदि तुम इतनी
छोटी—छोटी
बातों पर सचेत
नहीं रहोगे, ध्यान नहीं
रखोगे तो जब
बड़ी घटना
घटेगी तो कैसे
होश साधोगे? मैं तुम सब
को उस बडी
घटना के लिए
तैयार कर रहा
हूं।’
इसी
तरह की एक
छोटी सी
प्यारी सी
घटना याद आती है।
एक बार ओशो ने
मुझे अपने
कप्लीग देकर
कहा कि ' इनमें
से तीन कड़ियों
में से एक कड़ी
कम करवाकर छोटी
करके इसे एक
चौथाई, सवा
इंच की करवा
लाओ।’ कप्लींग
बहुत ही सुंदर
सोने के बने
थे और उसमें
हीरे लगे थे।
मैंने सोचा कि
यार इतने छोटी—छोटी
कड़ियों को
कटवाकर एक
चौथाई कैसे
करवाओ।
मैं
सोनी के यहां
गया और कड़ी
कटवा लाया
लेकिन वह डेढ
इंच की छोटी
हो गई। मैंने
जब ओशो को दी
तो वे बोले, 'यह
तो अधिक छोटी
हो गई, मैंने
तुम्हें सवा
इंच करवाने को
कहा था।’ मैंने
कहा, ' इससे
छोटी नहीं हो
सकती।’ ओशो
बोले 'हो
जाएगी, तुम
करवाओ तो।’ मैं वापस
गया। और उसने
सवा इंच छोटी
कर भी दी। अब
मेरी हिम्मत
ना हो ओशो के
सामने जाने की।
सात दिन तक
मैंने कप्लीग
अपने पास रख
लिए और गया ही
नहीं। एक दिन
सोचा कि अब जो
हो सो हो, जाना
तो है ही। ओशो
ने देख कर कहा
कि 'देखो, हो गया ना।’ ऐसा है
सद्गुरु के
काम करने का
ढंग। बडी छोटी
सी और मामूली
सी दिखने वाली
बात से भी बडे
से बड़ा अर्थ
निकाल लेते
हैं।
आज
इति।
👌🙏😍👌🙏😍
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