मित्रों, मेरा जन्म रावलपिंडी
में हुआ जो अब
पाकिस्तान
में है। तब
भारत एक ही था।
इसका विभाजन
नहीं हुआ था।
बचपन थोड़ा
मुश्किल से
निकला। माता—
पिता का साया
बहुत छोटी
उम्र में ही
उठ चुका था।
रिश्तेदारों
के यहां पालन—पोषण
हुआ। हम कुल
पांच भाई—बहन
थे। बहनों की शादियां
हो चुकी थीं।
बड़े भाई साहब
ने सोलह साल
की उम्र में
पूरे घर का
बोझ अपने ऊपर
ले लिया और
हमें कोई
तकलीफ नहीं
होने दी। उसी
समय आजादी की
खबरें आने लगी
थीं। मैं बहुत
छोटा था तब
हमारे यहां
गांधी जी का
आगमन हुआ।
कंपनी बाग में
उनका उद्बोधन
होना था। मैं
भी वहां गया।
पहली बार
उन्हें सुना।
छोटे से मन
में देशभावना
की तरंगे
उठने लगीं कि
देश आजाद होना
चाहिए, अंग्रेजों
के शासन से
मुक्ति मिलनी
चाहिए। मैं भी
खादी पहनने
लगा। एक छोटा
सा झोला लटका
कर, अपने
सीने पर
तिरंगा झंडा
लगाकर उस पर ऊर्दू में जयहिंद
लगाकर घूमने
लगा।
देश
आजाद होने
वाला था। उसी
के साथ यह भी
खबरें आने लगी
थीं कि देश का
विभाजन होगा।
तो इस बारे
में भी विचार
उठने लगे कि
कैसे अपने घर, परिवार
और मुहल्ले को
बचाना।
मुहल्लों की टोलियां
बनने लगी। यदि
कोई झगड़ा—टंटा
या दंगे—फसाद
हो ही जाएं तो
कैसे सारी
स्त्रियों को
छतों पर भेजकर
पत्थर, गरम
खौलता तेल व
लाल मिर्च से
दंगाइयों से
निपटना ये
सारी तैयारी
होती थी। छोटे
थे पर इन सब
चीजों में
रुचि लेते थे
और अपनी
क्षमता
अनुसार जो कुछ
भी कर सकते थे,
करते थे।
यूं लगता था
कि देश को
आजाद कराने
में हम भी हिस्सा
ले रहे हैं।
देश के बंटवारे
के साथ ही
धीरे— धीरे
सारा शहर
दंगों की चपेट
में आ रहा था।
दोनों
संप्रदायों
की टकराहट
बढती जा रही
थी। चारों तरफ
हाहाकार मचा
हुआ था। जय
बजरंग बली, हर—हर
महादेव, अल्लाह
ओ अकबर के नारे
दिन रात गूंजते
थे। रह—रह कर
खबरें आती थीं
कि कैसे एक—दूसरे
के परिवारों,
घरों और
मुहल्लों में
आगजनी, खून—खराबा और
लूटपाट मची
हुई है। यूं
लगता था कि बस
चारों तरफ मौत
का तांडव मचा हुआ
है। सब कुछ
गलत हो रहा था।
समझ में नहीं
आता था कि
आदमी इतना
वहशी क्यों हो
रहा है।
जब
झगड़े बहुत बढ़
गये तो हमारे
भाई साहब ने
हम दोनों
भाइयों को
मौसी के घर जम्बू
भेज दिया।
वहां पर हमारे
और भी
रिश्तेदार आ
चुके थे। कुछ
दिनों तक तो
सभी
रिश्तेदारों
के साथ रहकर
खूब अच्छा लगा
लेकिन थोड़े ही
दिनों में
वहां भी दंगे भडूक उठे।
चारों तरफ वैसे
ही नारे लगने
लगे, और
वही हाहाकार
मच उठा। चारों
तरफ से
गोलियों की
आवाजें आती थी।
हमें बताया
गया था कि जब
गोलियां चले
तो जमीन पर
लेट जाओ ताकि
गोलियां सिर
के ऊपर से
निकल जाएं।
वहां भी बहुत
तनावपूर्ण माहौल
था। और यहां
तक खबरें आने
लगी कि जो दूध
यहां आता है उसमें
जहर मिला दिया
जाता है। खाने—पीने
की चीजें नहीं
मिलती थीं, बाहर शहर
में कर्फ्यू
लगा होता था।
अक्सर खाने को
भोजन भी नहीं
होता था। पानी
तक पीने की
समस्या हो
जाती थी कि
अफवाह होती कि
उसमें भी जहर
है। हम तो
छोटे थे तो
ज्यादा समझ
नहीं आता था, लेकिन छोटे
से मासूम दिल
को यह सब
अनुभव करके
बड़ा गहन असर
होता था कि ये
सब क्या है, क्यों इतनी
मारा—मारी, क्यों इतना
संकट? उन्हीं
दिनों हमारे
भाई साहब का रावलपिंडी
से एक खत आया
जिसमें
उन्होंने
लिखा था कि यह
मेरा आखिर खत
है। मैं तो
पाकिस्तान
में ही रहने
वाला हूं। अब
मिलें या नहीं
कुछ पता नहीं।
मेरे मौसाजी
ने सोचा कि अब
हमारा जम्बू
में ठहरना ठीक
नहीं रहेगा तो
हमें दिल्ली
भेजने की
व्यवस्था की
गई। ट्रेन, बस पता नहीं
कैसे—कैसे
यात्रा शुरू
हुई। जगह—जगह
दंगे, नारे,
शोर, आग,
ट्रेन किसी बीयाबान
जगह पर ठहर
जाए तो तीन—तीन
दिन तक हिलने
का नाम न ले।
हम ट्रेन में
बैठे हैं और
पास से कोई
दूसरी ट्रेन
गुजरे तो
उसमें लाशों
का ढेर लगा
हुआ। कहीं—कहीं
लिखा हुआ, ' यह
पाकिस्तान है।’
बड़ी
मुश्किल से
दिल्ली
पहुंचे। बहुत
दिनों बाद
थोड़ा
सुरक्षित
महसूस हुआ।
बड़ी राहत मिली।
कुछ ही दिन
गुजरे होंगे
कि मेरे भाई
साहब जामा
मस्जिद की तरफ
कुछ खरीददारी
करने गए तो
अचानक वहां पर
मेरे वो बड़े
भाई साहब मिल
गए जो
पाकिस्तान रह
गए थे। उन्हें
बंदूक की नोक
पर पाकिस्तान छुडवा
दिया गया था।
हमारा पूरा
परिवार भारत आ
चुका था। हम
सभी पुन:
मिलकर बहुत
खुश हुए।
काम
धंधों के
मामले में इधर—उधर
घूमते हुए हम
सभी पुणे
पहुंच गए।
यहां पर एम जी
रोड पर छत्तीस
रुपये महीना
किराये पर
दुकान ले ली।
यहां पर बहुत
शांति थी। हम
सभी खुश थे।
इस बीच हमारे
भाई साहब की
शादी हो गई थी
तो अब हमारी
नई भाभी जी भी
हमारे साथ थीं।
हम यहां पर
स्कूल जाने
लगे। भाई साहब
कारोबार में
लगे रहे। बहुत
सारे कारोबार
बदलते रहे। इस
तरह से हमने वेकफील्ड
इंडस्ट्री की
स्थापना की।
और इसमें हमने
बहुत खुशहाली
देखी। खूब धन—
धान्य आया।
कुदरत ने दौलत
दोनों हाथों
से हम पर लुटायी।
बहुत से
संघर्ष और असुरक्षाओं
से गुजरने के
बाद इतनी
खुशहाली और
वैभव से हम
निश्चित ही
बहुत खुश और
प्रसन्न थे।
पर क्या
सांसारिक
वैभव और एश्वर्य
पर्याप्त
होता है? नहीं ना, और
यहां से हमारी
यात्रा उस
दिशा की —तरफ मुड़ती है
जहां इस
प्रश्न का
उत्तर आता है।
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